कोकशास्त्र की रचना -1

(Kokshashtra Ki Rachna-1)

This story is part of a series:

अन्तर्वासना के सभी पाठक मित्रों जलगांव ब्वॉय का नमस्कार!
मैं आप सब का बहुत आभारी हूँ कि आपने मेरी पहली कहानी ‘धोबी घाट पर माँ और मैं’ को इतना अधिक पसंद किया कि मैं खुद अचंभा कर रहा हूँ और अभी तक मुझे ईमेल आ रहे हैं।

ख़ास करके मुझे लगा कि इस कहानी के लिए सिर्फ लड़के मेल करेंगे.. पर सबसे ज्यादा ईमेल मुझे आंटियों के और भाभियों के आए।
कोई अपनी रियल कहानी बता रहा था तो कोई फ्रेंडशिप करना चाहती.. तो कोई मेरे साथ चुदाई करना चाहती हैं।
पर किसी महिला को डरने की कोई बात नहीं.. मैं सब सीक्रेट रखता हूँ।

आप सभी के मनोरंजन के लिए ये कहानी लिख रहा हूँ। आशा है कि आप इस कहानी को भी पहले जैसा ही प्यार देंगे। आप इस कहानी पर अपना ईमेल जरूर करना।

किसी एक पुराने समय में एक विशाल भव्य राज्य था.. जिसे कामरीश नाम का राजा चलाता था। राजा काफी सत्यवादी एकवचनी और अपनी प्रजा का अच्छी तरह देखभाल करता था। वो राज्य पर कभी भी किसी तरह की विपत्ति या संकट नहीं आने देता था।

एक बार कामरीश राजा के राज्य भूमि में ऐसी महिला का आगमन हुआ.. जिसकी चूत में हमेशा आग लगी रहती थी। उसकी सदैव एक ही इच्छा रहती थी कि उसकी चूत में दिन-रात मोटा और तगड़ा लंड डला रहे.. वह हमेशा मर्दों की सोहबत में ही रहती थी।
उसने अपने कई प्रेमी बनाए.. लेकिन कोई भी उसकी चूत की ज्वाला को शांत नहीं कर पाया।

जब उसकी कामाग्नि और बढ़ गई.. तो उसने अपने सारे वस्त्र उतार दिए और रास्तों पर नंगी ही फिरने लगी।
लोग उससे तरह तरह के सवाल पूछने लगे.. जिसके जवाब में वह कहती थी- मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिए हैं और जो भी चाहे मुझे कामभोग के लिए ले सकता है और अपनी मर्दानगी साबित कर सकता है.. मैं कसम खाती हूँ.. मैं जब तक नंगी घूमती रहूंगी.. तब तक कि मुझे ऐसा मर्द न मिल जाए जो मेरी काम की ज्वाला को पूर्ण रूप से शांत कर सके।

ऐसा कह कर वह कामरीश राज्य भूमि के समस्त शहरों में घूमने लगी.. कई लोगों ने उसे चोद कर उसकी प्यास बुझाने की चेष्टा भी की.. पर कोई भी सफल न हुआ।
इससे उसकी हिम्मत और बढ़ गई और वह कामरीश की राजधानी के दरबार के में नंगी ही पहुँच गई।

यह देख कर पूरी राज सभा अचम्भित हो गई और एक दरबारी ने पूछा- अरे निर्लज्ज कुतिया.. तुम कौन हो और कहाँ से आई हो? इस तरह से राज दरबार में आने में तुम्हें ज़रा भी लज्जा नहीं आई?

तब वह पूरी सभा की ओर बिल्कुल निडरता से मुड़ी और बोली- अरे हरामजादे.. मुझे तुम क्या कुत्ती बोल रहे हो.. तुम तो साले सबके सब हिजड़े हो.. क्या यहाँ एक भी ऐसा मर्द मौजूद है जो मेरी चूत की आग को शांत कर सके? अरे तुम लोगों ने तो अपने रनिवास और हरमों में रंडिया पाल रखी हैं.. जिनकी आग तुम आपने लौड़ों से नहीं बल्कि उन्हें धन दौलत और जेवर देकर बुझाते हो..

वह अपने चूतड़ों पर हाथ रखे हुए और अपनी मस्त चूचियों को आगे उभारती हुई पूरी सभा को ललकारे जा रही थी।
फिर उसने अपनी टाँगें फैलाईं और इस प्रकार अपनी गरम चूत को खोल कर ठीक से पूरी सभा को दिखाई और गुर्राते हुए कहा- अरे कामरीश के दरबार के हिजड़ों देखो.. तुम सारे के सारे चूतिए हो, अगर किसी में भी दम है.. तो मेरे पास आ जाए..

सारे के सारे दरबारी आपस में चर्चा करने लगे कि इस बेशर्म रन्डी का क्या उपाय किया जाए.. जो सरेआम हमारी बेइज्जती कर रही है।

तभी सभा में से एक रंजीत नाम के मंत्री ने दरबारियों से कहा- मेरे दरबारी दोस्तो.. मैं अपने आपको इस दरबार की इज़्ज़त बचाने के लिए समर्पित करता हूँ.. मैं अलग-अलग जाति की 10 औरतों के साथ रहा हूँ और मुझे इस काम का अच्छा-ख़ासा अनुभव है। मुझे आगे बढ़ने दीजिए.. मैं इसकी चुनौती को स्वीकार करता हूँ।

यह सुनकर दरबारियों के चेहरे खिल गए और रंजीत ने राजा से आज्ञा माँगी कि उसे इस औरत के साथ एक रात बिताने दी जाए।
उसे आज्ञा मिल गई और वह उसे अपने महल में ले गया।

रात में उसने हर तरह से कोशिश की.. एक नहीं अनेक बार उसने उसे भोगा.. पर वह उस औरत की काम-अग्नि को शांत न कर सका। उस औरत ने उसे बुरी तरह से निचोड़ लिया।
दूसरे दिन वह बहुत ही थका और चुसा हुआ राजदरबार में पहुँचा और अपनी हार स्वीकार कर ली- महाराज.. मुझे क्षमा करें.. मैं अपनी हार स्वीकार करता हूँ.. यह औरत मेरे बस की नहीं..

वह औरत भी वहाँ मौजूद थी और अब वो दुगुने जोश से कहे जा रही थी- अरे नामर्दों तुम पर शर्म है.. तुम केवल बड़ी-बड़ी बातें करना जानते हो.. इस सभा मैं एक भी मर्द का बच्चा नहीं है.. अरे तुम से तो हिजड़े ही भले.. यह सिद्ध हो गया कि कामरीश राज्य में सबके लंड एक कमज़ोर लंड हैं!

राजदरबार में सन्नाटा छा गया और दरबारियों ने अपने सर झुका लिए.. किसी के मुँह से बोल नहीं फूट रहा था।
तभी राजा ने सभा का सन्नाटा भंग करते हुए कहा- हे रंजीत तुमने पूरे कामरीश राज्य की नाक कटा दी.. अब हम क्या कर सकते हैं? अब यह औरत और शोर मचाएगी और पूरे राज्य की बदनामी करेगी। इसकी तुम्हें सज़ा मिलेगी..

‘महाराज.. क्षमा करें.. क्षमा करें.. यह औरत एक नंबर की रन्डी और कुत्ती है। मैंने अपने जीवन में ऐसी कामिनी औरत नहीं देखी.. पता नहीं इसकी चूत में क्या है.. शायद कोई जादू-टोना जानती हो?’

यह सुन कर एक दूसरा मंत्री आगे आया.. जिसका नाम विजय था, वह अपनी जवानमर्दी के लिए और अपने बड़े लंबे मोटे लंड के लिए विख्यात था।
उसने उस औरत के साथ एक रात बिताने की इच्छा जाहिर की, उसने दावा किया कि वह उसकी ऐसी चुदाई करेगा कि रन्डी आने वाले 10 दिनों तक चल भी नहीं पाएगी।

सारे दरबारी बहुत खुश हुए और एक स्वर से महाराज से विनती की कि विजय को एक मौका दिया जाए।

‘ठीक है विजय.. हम तुम्हें यह मौका देते हैं.. पर ख़याल रहे.. यदि तुम कामयाब नहीं हुए तो हम तुम्हें देश निकाला दे देंगे।’

‘महाराज.. यदि मैं असफल रहा तो राजसभा को अपना मुँह नहीं दिखाऊँगा..’

ऐसा कह कर विजय उस औरत को अपने साथ ले गया। उस रात विजय ने उसकी कसके चुदाई क़ी। विजय ने उसके अन्दर 3 बार अपना वीर्य झाड़ा.. पर वह औरत फिर भी सन्तुष्ट नहीं हुई..
वह चौथी बार विजय को चुदाई करने के लिए उकसाने लगी.. पर उसमें और ताक़त नहीं बची थी।

वह सुबह उस औरत को सोता छोड़ के न जाने कहाँ चला गया।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
दूसरे दिन वह औरत अकेली और बिलकुल नंगी फिर दरबार में पहुँची.. उस औरत को दरबार में देखते ही राजा के साथ-साथ सारे दरबारी भी सकते में आ गए।

वह कहने लगी- महाराज.. मैंने आप के राज्य कई वीरों के लंड की ताक़त देख ली.. आपका कल रात वाला वीर तो न जाने कहाँ चला गया.. क्या अब भी आपके राज्य में किसी भी लंड में और ताक़त बची है.. तो वो भी ज़ोर आजमा ले..

सारे दरबारियों के सर शर्म से झुक गए.. तभी एक दुबला-पतला ब्राह्मण आगे आया.. उस ब्राह्मण का नाम कोका पंडित उर्फ़ जलगाव ब्वॉय था और वह दरबार का ज्योतिषी था।
उसने कहा- महाराज आप एक अवसर मुझे दें.. यदि मेरी हार हो जाती है तो सारे दरबार की हार मान ली जाएगी..

इस पर सारे कामरीश के सभी मंत्री बहुत क्रोधित हुए.. यह दुबला-पतला ब्राह्मण अपने आपको क्या समझता है। इस उम्र में इसकी मति क्यों फिर गई है..
एक दरबारी चिल्ला कर बोला- अरे जब बड़े-बड़े लंड इस औरत की चूत की गर्मी ठन्डी नहीं कर सके.. तो तेरा छोटा सा मरियल सा लंड क्या कर लेगा।

यह तो सब जानते थे कि एक क्षत्रिय के लंड के मुकाबले कोका जैसे कमजोर ब्राह्मण का लंड छोटा और कमज़ोर ही होगा।
चारों तरफ से लोग उसके सुर में सुर मिलाने लगे और उस ब्राह्मण का हंस हंस कर उपहास उड़ाने लगे।
पर ब्राह्मण शांत था और राजा के बोलने का इंतज़ार कर रहा था।

जब दरबारी शांत हो गए तो राजा ने कहा- अपने राज्य के श्रेष्ठ लंड वाले व्यक्ति भी इस औरत की प्यास बुझाने में असफल रहे हैं। हम अब तक असफल रहे हैं और यदि अब हमने इस औरत को ऐसे ही जाने दिया तो हम अपने सर और लंड कभी भी उँचे नहीं उठा सकेंगे। हम में से कोई भी कामरीश राज्य की नारी को छूने की कभी भी हिम्मत नहीं जुटा पाएगा। अब यदि इस ब्राह्मण के अलावा और कोई इस औरत के साथ रात बिताना चाहता है.. तो वह आगे आए.. नहीं तो इस ब्राह्मण को मौका नहीं देना अन्याय होगा।

राजा की यह बात सुनकर सभा में एक बार फिर सन्नाटा छा गया। कोई भी अपनी बेइज़्ज़ती के डर से आगे नहीं आ रहा था।
तब राजा ने कोका पंडित को आज्ञा दे दी।
कहानी जारी रहेगी..
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