दोस्त की भतीजी संग वो हसीन पल-5

(Dost Ki Bhatiji Sang Vo Haseen Pal-5)

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नाईट बल्ब की लाइट में हम सीढ़ियाँ उतरने लगे। मूसल जैसे लंड से चुदाई के कारण मीनाक्षी चल नहीं पा रही थी। सीढ़ियाँ उतरते हुए तो मीनाक्षी की आह्ह निकल गई।

मैंने बिना देर किये उसको गोद में उठाया और नीचे लेकर आया। नीचे आकर मीनाक्षी बाथरूम में घुस गई और मैं भी बिना देर किये अमन के कमरे में चला गया।
अँधेरे के कारण मैं मीनाक्षी की चूत की हालत तो नहीं देख पाया पर जब मैंने अपना लंड देखा तो हल्का सा दर्द महसूस हुआ। लंड कई जगह से छिल सा गया था। पर खुश था एक कमसिन कुंवारी चूत की शील तोड़ कर।

सुबह हम दोनों ही देर से उठे, दस बज चुके थे, रोहतास भाई ऑफिस जा चुके थे, कोमल भाभी रसोई में थी, अमन भी दिखाई नहीं दे रहा था, ताई जी ड्राइंग रूम में बैठी थी।

भाभी से मीनाक्षी के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसको बुखार और सर दर्द है।
मैं उसके कमरे में गया तो उसने दूसरी टी-शर्ट पहनी हुई थी और वो बेड पर लेटी हुई थी।
‘देखो ना चाचू… क्या हाल कर दिया तुमने मेरा… अभी तक दर्द हो रहा है।’

मैं उसके पास बेड पर बैठ गया और एक हाथ उसकी चूची पर रख दिया और धीरे धीरे सहलाने लगा। मीनाक्षी ने भी मेरे हाथ के ऊपर अपना हाथ रख दिया।
‘कहाँ दर्द हो रहा है मेरी जान को?’
‘क्या चाचू आप भी ना… और कहाँ दर्द होगा… वहीं हो रहा है जहाँ आपने रात को…’ कहते हुए मीनाक्षी शर्मा गई।

मैंने बिना देर किये दूसरा हाथ उसकी चूत पर रख दिया।
हाथ लगते ही मीनाक्षी की दर्द के मारे आह्ह्ह निकल गई। मैंने हाथ लगा कर देखा तो चूत वाला हिस्सा सूज कर डबल रोटी जैसा हो गया था।

मैंने उसके पजामे को उतार कर देखना चाहा तो मीनाक्षी में मुझे रोकने की कोशिश की पर मैंने फिर भी उसके पजामे को थोड़ा सा नीचे किया और उसकी चूत देखने लगा।
रात को मस्ती में मैंने शायद ज्यादा ही जोर से चोद दिया था, चूत बुरी तरह से सूजी हुई थी और चूत का मुँह बिल्कुल लाल हो रहा था।

मैंने बिना देर किये उसकी चूत पर एक प्यार भरा चुम्मा लिया और फिर पजामा दुबारा ऊपर कर दिया।
‘मीनाक्षी… मन तो नहीं है पर मुझे वापिस जाना है!’
मेरी बात सुनते ही मीनाक्षी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- मुझे छोड़ कर चले जाओगे?
‘नहीं मेरी जान… पर वापिस तो जाना ही पड़ेगा ना.. मैं ज्यादा दिन तो यहाँ नहीं रह सकता ना!’

मेरी बात सुनते ही मीनाक्षी की आँखों में आँसू आ गये।
मैंने उसको जल्दी ही वापिस आने का वादा भी किया पर वह मुझे अपने से दूर नहीं करना चाहती थी। उसकी आँखें ही बता रही थी कि वो मुझ से कितना प्यार करने लगी थी।

तभी बाहर अमन की आवाज सुनाई दी, मैं जल्दी से कमरे से बाहर निकल गया।
अमन को जब मैंने वापिस जाने की बात कही तो वो भी मुझे रुकने के लिए बोलने लगा और फिर तो ताई जी और कोमल भाभी भी मुझे रुकने के लिए कहने लगी।

जाना तो मैं भी नहीं चाहता था, मीनाक्षी का प्यार मुझे रुकने के लिए बाध्य कर रहा था।
मैंने अपने घर पर फ़ोन करके दो दिन बाद आने का बोल दिया। जिसे सुनकर सभी खुश हो गये और जब मीनाक्षी को पता लगा कि मैं दो दिन रुकने वाला हूँ तो उसकी ख़ुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा।

फिर मैं अमन के साथ घूमने निकल गया और रास्ते में मैंने अमन की नजर बचा कर एक मेडिकल स्टोर से दर्द और सूजन कम करने वाली गोली ली।
करीब दो घंटे बाद हम घर पहुंचे और मैंने सबकी नजर बचा कर वो गोलियाँ मीनाक्षी को दे दी। फिर एक तो घंटे अमन और मैं रूम में बैठ कर डीवीडी प्लेयर पर मूवी देखते रहे।

शाम को पांच बजे जब हम कमरे से बाहर आये तो मीनाक्षी भी ड्राइंग रूम में अपनी दादी के साथ बैठी थी। गोलियाँ लेने से उसको आराम मिल गया था और सूजन भी कम हो गई थी।
सभी बैठे थे कि मयंक ने पार्क चलने की जिद की और फिर अमन, मैं, मीनाक्षी और मयंक चारों घूमने निकल पड़े और रॉक गार्डन और सुखना झील पर घूम कर रात को करीब साढ़े नौ बजे घर वापिस आये।

मीनाक्षी अब बिल्कुल ठीक थी।
सारा समय मीनाक्षी मेरे साथ साथ ही रही। जब मैंने उसको रात के प्रोग्राम के बारे में पूछा तो उसने शर्मा कर गर्दन नीचे कर ली और जब मैंने दोबारा पूछा तो उसने शरमा कर हाँ में गर्दन हिला दी।

घर आये तो रोहतास भाई आ चुके थे और भाभी ने भी खाना बना लिया था।
सबने खाना खाया और ग्यारह बजे तक सभी साथ में बैठ कर बातें करते रहे। मैं और मीनाक्षी ही थे जिन्हें उन सब पर गुस्सा आ रहा था कि ये लोग सो क्यों नहीं जाते ताकि हम अपना प्यार का प्रोग्राम शुरू कर सकें।

फिर सबसे पहले अमन अपने कमरे में गया और फिर मयंक भी… दोनों घूम घूम कर थक गए थे।
फिर ताई जी भी अपने कमरे में चली गई।
जब मैं भी उठ कर कमरे की तरफ चला तो मीनाक्षी ने आँखों आँखों में पूछा कि ‘कहाँ जा रहे हो?’ तो मैंने उसको थोड़ी देर बाद आने का इशारा किया।

कमरे में गया तो अमन सो चुका था और उसके खराटे चालू थे।
दस पंद्रह मिनट के बाद मैंने कमरे का दरवाजा खोल कर देखा तो रोहतास और भाभी भी अपने कमरे में जा चुके थे और मीनाक्षी अकेली बैठी टीवी देख रही थी।
मैं जाकर मीनाक्षी के पास बैठ गया। हम दोनों ने एक दूसरे को किस किया और फिर मीनाक्षी उठ कर गई और पहले अपने पापा के कमरे में देखा कि वो सो गये है या नहीं… फिर दादी के कमरे में देखा और अमन को तो मैं देख कर ही आया था।
सबके सब सो चुके थे।

आते ही मीनाक्षी मेरे गले से लग गई और मुझे ‘आई लव यू’ बोला। मैंने भी उसको ‘आई लव यू’ बोला और उसको अपनी बाहों में भर कर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
मीनाक्षी ने मुझे रोका और ऊपर चलने का इशारा किया। मीनाक्षी भी चुदने को बेताब थी।

मैंने उसको अपनी गोद में उठाया और ऐसे ही उसको लेकर छत पर चला गया। आज छत का नजारा कुछ बदला हुआ था। आज छत पर चटाई की जगह एक पुराना गद्दा पड़ा हुआ था।
मीनाक्षी आज पूरी तैयारी के करके आई थी।

जब मैं गद्दे पर बैठने लगा तो मीनाक्षी ने मुझे रोका और एक कोने में रखे हुए एक लिफ़ाफ़े से उसने गुलाब की पंखुड़ियाँ निकाल कर गद्दे पर बिखेर दी।
मैं हैरान हुआ उसको देख रहा था।

ये सब करने के बाद मीनाक्षी मेरे पास आई और मेरे गले से लग गई, मुझे रुकने के लिए थैंक यू बोला।
मैंने भी उसको अपनी बाहों में भर लिया और एक बार फिर से हम दोनों के होंठ आपस में मिल गए। दोनों ही बहुत देर तक एक दुसरे को चूमते चाटते रहे और इसी बीच दोनों ने ही एक दूसरे के कपड़े उतार कर साइड में डाल दिए।
अब हम दोनों जन्मजात नंगे थे।

मैंने मीनाक्षी के नंगे बदन को गद्दे पर गुलाब की पंखुड़ियों पर लेटाया और उसके अंग अंग को चूमने लगा और उसकी चूचियों को मसलने लगा। बहुत देर तक मैंने उसकी चूचियों को मसला और चूसा, फिर मैंने उसकी चूत की तरफ का रुख किया।

दवाई असरदार थी, चूत की सुजन बिल्कुल ख़त्म हो चुकी थी और चूत अब अपने सामान्य रूप में थी।
मैंने बिना देर किये अपनी जीभ से उसकी चूत को चाटना शुरू किया, मीनाक्षी मस्ती से लहरा उठी थी। जब मैं उसकी चूत चाट रहा था तो मीनाक्षी ने भी हाथ बढ़ा कर मेरा लंड पकड़ लिया और धीरे धीरे सहलाने लगी।

‘राज… मेरी जान… अब देर ना करो… आज मुझ से सब्र नहीं होगा!’ आज मीनाक्षी ने पहली बार मुझे मेरे नाम से पुकारा था।
कण्ट्रोल तो मुझ से भी नहीं हो रहा था, मैं उठा और उसकी टाँगें चौड़ी करके बीच में बैठ कर जब मैंने मेरे लंड का लाल लाल सुपाड़ा उसकी चूत पर टिकाया तो उसने मुझे रोका।

जब मैंने कारण पूछा तो उसने शरमाते हुए गद्दे के नीचे से वैसलीन की डब्बी निकाल कर मुझे पकड़ा दी।
एक दिन में ही यह लड़की कितनी सयानी हो गई थी।
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मैंने मेरे लंड पर और उसकी चूत पर अच्छे से वैसलीन लगाईं और दुबारा से लंड उसकी चूत पर टिकाया तो उसने मुझे फिर रोका। मैं पूछा तो उसने गद्दे के नीचे से कोहिनूर कंडोम का पैकेट निकाल कर मेरे हाथ में थमा दिया।

‘यह तुम्हें कहाँ मिल गया?’
‘मम्मी के कमरे से निकाला है… मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहती… अगर मैं प्रेगनेंट हो गई तो..’
लड़की कुछ ज्यादा ही समझदार हो गई थी।

मैंने उसको लंड पर कंडोम लगाने का कहा तो उसे लगाना नहीं आया। मैंने खुद कंडोम अपने लंड पर चढ़ाया और फिर तनतनाया हुआ लंड मीनाक्षी की चूत पर रख दिया। मैंने उसकी आँखों में देखते हुए चुदाई स्टार्ट करने की परमिशन मांगी तो उसने आँखों के इशारे से हामी भरी।

अब देर नहीं कर सकता था, मैंने लंड को धीरे से चूत पर दबाया तो मीनाक्षी को दर्द महसूस हुआ, दर्द की लकीरें उसके चेहरे पर नजर आ रही थी।
मैंने एक जोरदार धक्का लगाया तो वैसलीन की चिकनाई के कारण लगभग दो तीन इंच लंड चूत में समा गया।
मीनाक्षी ने खुद अपने हाथ से अपने मुँह को बंद करके अपनी चीख को रोका, उसकी आँखों में आँसू आ गए थे।

मैंने अपनी गलती को समझते हुए उसको सॉरी बोला और फिर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और फिर धीरे धीरे लंड को उसकी चूत में सरकाने लगा।
दो तीन मिनट की जद्दोजहद बाद मैंने किसी तरह आराम आराम से अपना पूरा लंड मीनाक्षी की चूत की गहराइयों में उतार दिया। मीनाक्षी को दर्द तो हुआ था पर ज्यादा नहीं।

पूरा लंड अन्दर जाने के बाद मैं कुछ देर के लिए रुका और मीनाक्षी की चूचियों को चूसने लगा। बीच बीच में मैं उसके चूचुक पर दांतों से काट भी लेता था। ऐसा करने से उसकी सिसकारी निकल जाती, मेरे ऐसा करने से वो चूत का दर्द भूल गई।

मैंने धीरे धीरे चुदाई शुरू की और कुछ ही देर में मीनाक्षी भी अपने चूतड़ उठा उठा कर लंड लेने लगी। पहले धीरे धीरे करते हुए मैंने अपनी स्पीड बढ़ानी शुरू कर दी और कुछ ही देर में धुँआधार चुदाई शुरू हो गई।
फिर तो बीस मिनट तक मैंने मीनाक्षी की जबरदस्त चुदाई की। मीनाक्षी कम से कम दो बार झड चुकी थी और फिर मैंने भी ढेर सारा वीर्य कंडोम में इकट्ठा कर दिया।

उस रात तीन बार मैंने मीनाक्षी को चोदा और सुबह चार बजे हम दोनों नीचे आये।
उसके अगली रात को भी तीन बार मैंने मीनाक्षी की चुदाई की।

फिर उससे अगले दिन मेरे घर से फ़ोन आ गया और फिर मैं वापिस अपने घर के लिए निकल पड़ा।
जब मैं वापिस जाने के लिए चला तो मीनाक्षी मुझसे लिपट कर बहुत रोई थी।

उसके बाद भी एक दो बार मैं चंडीगढ़ गया और मीनाक्षी की जमकर चुदाई की। मीनाक्षी मुझसे शादी के सपने देखने लगी थी जो हमारे रिश्ते में संभव नहीं था।
बस यही कारण था की मैंने मीनाक्षी से थोड़ी दूरी बना ली, उसने भी कुछ दिन मेरा इंतज़ार किया और फिर मुझे बेवफा समझकर भुला दिया।

कहानी कैसी लगी जरूर बताना… आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।
आपका अपना राज कार्तिक
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