दोस्त की भतीजी संग वो हसीन पल-3

(Dost Ki Bhatiji Sang Vo Haseen Pal-3)

This story is part of a series:

बाथरूम में जाकर कुछ देर लंड को सहलाया और समझाया कि जल्द ही तुझे एक कुंवारी चूत का रस पीने को मिलेगा। जब लंड नहीं समझा तो उसको जोर जोर से मसलने लगा।
पांच मिनट बाद ही लंड के आँसू निकलने लगे और फिर वो शांत होकर अंडरवियर के अन्दर जाकर आराम करने लगा।

बाथरूम से बाहर आकर जब मैं कमरे का दरवाजा बंद करने लगा तो मुझे टीवी चलने की आवाज सुनाई दी। जब मैं कमरे से बाहर आया तो देखा की मयंक और मीनाक्षी बैठे टीवी देख रहे थे, टीवी पर को मूवी चल रही थी, दोनों उसको देखने में व्यस्त थे।

‘अरे सोना नहीं है क्या तुम दोनों को?’ रोहतास भाई की आवाज सुन कर मैं वापिस जाने लगा पर तभी मुझे मीनाक्षी की आवाज सुनाई दी-
‘पापा.. कल छुट्टी है हम दोनों की और मेरी मनपसंद मूवी आ रही है… प्लीज देखने दो ना..’
‘ठीक है पर ध्यान से टीवी बंद करके सो जाना… कभी पिछली बार की तरह टीवी खुला ही छोड़ कर सो जाओ!’
‘आप चिंता ना करो.. मैं बंद कर दूंगी.. पक्का!’
‘ओके गुड नाईट बेटा’ कह कर रोहतास भाई अपने कमरे में चले गये और उन्होंने दरवाजा बंद कर लिया।

रोहतास भाई के जाते ही मेरा मन मीनाक्षी के पास बैठने का हुआ तो मैं भी कमरे से निकल कर मीनाक्षी के पास बैठ गया। मेरे और मीनाक्षी के बीच में मयंक बैठा था। मीनाक्षी ने मेरी तरफ देखा और फिर शर्मा कर अपनी आँखें झुका ली। उसकी आँखे झुकाने की अदा ने सीधा मेरे दिल पर असर किया।

मीनाक्षी और मयंक सोफे पर बैठे थे, ‘कहो ना प्यार है’ मूवी चल रही थी।
मेरे आने के बाद से मीनाक्षी मूवी कम और मुझे ज्यादा देख रही थी।
कुछ कुछ यही हालत मेरी भी थी, हम दोनों के दिलो की धड़कन बढ़ चुकी थी पर मयंक के वहाँ रहते चुपचाप बैठे थे।

‘यार ये लाइट बंद कर दो ना… ऐसे टीवी देखने में मज़ा नहीं आ रहा है।’ मैंने जानबूझ कर मयंक से कहा तो वो उठ कर लाइट बंद करने चला गया।
जैसे ही वो लाइट बंद करके वापिस आकर बैठने को हुआ तो मैंने उसको पानी लाने के लिए बोल दिया।

‘क्या चाचू… मूवी देखने दो ना… आप पानी दीदी से ले लो!’
मीनाक्षी ने थोड़ा गुस्से से उसको पानी लाने के लिए बोला तो वो झुँझलाता हुआ रसोई में गया और पानी की बोतल निकाल कर ले आया।

इस दौरान मैं मीनाक्षी की तरफ खिसक गया, मयंक आया और आकर साइड में मेरी सीट पर बैठ गया। मीनाक्षी मेरी इस हरकत पर मुस्कुराई और फिर शर्मा कर नजरें टीवी की तरफ घुमा ली।

मयंक अब टीवी में ध्यान लगाए मूवी देख रहा था, मैंने मौका देखते हुए अपना एक हाथ मीनाक्षी के हाथ पर रख दिया। उसने अपना हाथ छुड़वाना चाहा पर मैंने पकड़े रखा।
कुछ देर ऐसे ही उसके हाथ को सहलाता रहा और फिर थोड़ी सी हिम्मत करके मैंने वो हाथ मीनाक्षी की जांघों पर रख दिया।
मीनाक्षी ने मेरा हाथ वहाँ से हटाने की कोशिश की पर जितना वो हटाने की कोशिश करती मैं और जोर से उसकी जांघों को दबा देता। वो ज्यादा जोर भी नहीं लगा सकती थी क्यूंकि ऐसा करने से मयंक को शक हो जाता।

जब वो मेरा हाथ नहीं हटा पाई तो उसने अपना हाथ हटा लिया, मेरे लिए मैदान साफ़ था, मैंने धीरे धीरे मीनाक्षी की जांघों को सहलाना शुरू किया और हाथ को धीरे धीरे उसकी चूत की तरफ ले जाने लगा।

अपनी जांघों पर मेरे हाथ के स्पर्श से मीनाक्षी मदहोश होने लगी थी। जब मैं उसकी जांघों को सहला रहा था, तभी मुझे अंदाजा हो गया की मीनाक्षी ने नीचे पेंटी नहीं पहनी हुई है।
यह सोचते ही मेरे लंड ने फुंकारना शुरू कर दिया।

जांघो को सहलाते सहलाते जब मैंने मीनाक्षी की चूत को छूने की कोशिश की तो मीनाक्षी ने अपनी जांघे भींच ली और मेरे हाथ को चूत पर जाने से रोक दिया। मैंने बहुत कोशिश की पर कामयाब नहीं हो पाया। जबरदस्ती कर नहीं सकता था क्यूंकि मयंक वहाँ था।

जब मैं चूत को नहीं छू पाया तो मैंने अपना हाथ मीनाक्षी की पेट की तरफ कर दिया और टी-शर्ट के नीचे से हाथ डाल कर उसके पेट पर घुमाने लगा। मीनाक्षी ने रोकने की कोशिश की पर बेकार…
अब मेरा हाथ मीनाक्षी के नंगे पेट पर आवारगी कर रहा था, मज़ा मीनाक्षी को भी आ रहा था।

धीरे धीरे पेट को सहलाते हुए मेरा हाथ ऊपर मीनाक्षी की चूचियों की तरफ बढ़ रहा था और फिर मीनाक्षी की नंगी चूचियों का पहला स्पर्श मेरे हाथों को हुआ। मीनाक्षी की चूचियों पर भी छ पहले मर्द का हाथ था।
मीनाक्षी रोकने की कोशिश कर रही थी पर मुझ पर तो मीनाक्षी की जवानी का नशा चढ़ चुका था, मैं खुद पर कण्ट्रोल नहीं कर पा रहा था।

अचानक मीनाक्षी ने मयंक को आवाज दी।
मयंक का नाम सुनकर जैसे मैं नींद से जागा। मीनाक्षी के गर्म कोमल शरीर से खेलते हुए मैं तो मयंक को बिल्कुल भूल ही गया था। मीनाक्षी की आवाज के साथ ही मेरी नजर भी मयंक की तरफ घूम गई। देखा तो मयंक सोफे की बाजू पर सर टिका कर सो रहा था। मीनाक्षी की आवाज सुनकर वो उठ गया।

‘अगर नींद आ रही है तो अन्दर दादी के पास जाकर सो जाओ…’ मीनाक्षी ने मयंक को कहा।
‘नहीं मुझे मूवी देखनी है!’
‘अरे जब नींद आ रही है तो जाके सो जाओ… मूवी तो फिर भी आ जायेगी।’ मैंने भी मयंक को भेजने के इरादे से कहा पर वो नहीं माना।

कुछ ही देर में मयंक फिर से सो गया तो मैंने मयंक को उठाया और उसको कमरे में भेज दिया।
अब शायद मयंक को ज्यादा नींद आ रही थी, तभी तो वो बिना कुछ बोले ही उठ कर कमरे में चला गया।

मयंक के जाते ही सारी रुकावट ख़त्म हो गई, मैंने तुरन्त मीनाक्षी का हाथ पकड़ा और उसको अपनी तरफ खिंच कर बाहों में भर लिया। मीनाक्षी थोड़ा कसमसाई और उसने छूटने की कोशिश की पर मैं अब कण्ट्रोल नहीं कर सकता था, मैंने तुरन्त अपने होंठ मीनाक्षी के होंठो पर रख दिए।

लगभग पांच मिनट तक मैं मीनाक्षी के होंठो को चूसता रहा, मीनाक्षी भी पूरा सहयोग कर रही थी, अब तो वो मेरी बाहों में सिमटती जा रही थी। मेरा एक हाथ उसकी टी-शर्ट के अन्दर जा चुका था और मीनाक्षी की तनी हुई चूचियों को सहला रहा था।

‘चाचू… यहाँ ये सब ठीक नहीं है… कोई अगर बाहर आ गया तो मुश्किल हो जायेगी!’
‘तो फिर कहाँ…???’
‘कोई कमरा तो खाली नहीं है…’ मीनाक्षी ने थोड़ी परेशान सी आवाज में कहा।
फिर थोड़ा सोच कर बोली- चाचू… छत पर चले… वहाँ कोई नहीं आएगा।

मैं तो उसकी जवानी का रसपान करने के लिए मरा जा रहा था तो मेरे मना करने का तो कोई मतलब ही नहीं था। मैंने उसको अपनी गोद में उठा लिया और छत की तरफ चल दिया। करीब साठ किलो की मीनाक्षी मुझे फूल जैसी हल्की लग रही थी। सीढ़ियों के पास जाकर मीनाक्षी ने मुझे नीचे उतारने के लिए कहा।

गोद से उतर कर वो पहले रोहतास के कमरे के पास गई और देखा कि रोहतास और कोमल भाभी सो चुके थे, फिर दादी के कमरे में देखा तो वो भी सो रहे थे।
तब तक मैंने भी अमन के कमरे में देखा तो अमन भी खराटे मार रहा था।

मीनाक्षी वापिस सीढ़ियों के पास आ गई तो मैंने उसको वहीं सीढ़ियों पर ही पकड़ कर किस करना शुरू कर दिया और ऐसे ही किस करते करते हम दोनों छत पर पहुँच गए।

छत पर खुले आसमान के नीचे हम दोनों आपस में प्यार करने में मग्न थे। मैंने मीनाक्षी को अपने से अलग करके चारों तरफ देखा तो सब तरफ सुनसान था। रात के करीब एक बजे का समय था तब। वैसे तो सब घरों की छतें आपस में मिली हुई थी पर किसी भी छत पर कोई नजर नहीं आ रहा था। शहरों में वैसे भी लोग खुली छतों पर सोना कम ही पसंद करते है।

मीनाक्षी ने छत पर पड़ी एक चटाई को बिछाया और उस पर बैठ गई। क्यूंकि छत पर और कुछ था भी नहीं तो मैं भी चटाई पर ही मीनाक्षी के पास बैठ गया।

‘चाचू… वैसे जो हम कर रहे है वो ठीक नहीं है… आप मेरे चाचू है और…’ इस से ज्यादा वो कुछ बोल ही नहीं पाई क्यूंकि मैंने अपने होंठो से उसके होंठ बंद कर दिए थे।
कुछ देर उसके होंठ चूसने के बाद मैंने अपने होंठ हटाये और उसको बोला- मीनाक्षी… मुझे तुमसे प्यार हो गया है… और प्यार में सब जायज़ है… और फिर तुम भी तो मुझ से प्यार करने लगी हो…

‘हाँ चाचू… मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ… आप बहुत अच्छे है… मैं तो आपको अपने बचपन से ही बहुत पसंद करती हूँ।’
‘तो सब कुछ भूल कर सिर्फ प्यार करो…’ कहकर मैंने फिर से उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और एक हाथ से उसकी टी-शर्ट को ऊपर उठा कर उसकी एक चूची को बाहर निकाल लिया।
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चाँद की चांदनी में मीनाक्षी की गोरी गोरी चूची किसी मक्खन के गोले जैसी लग रही थी।
मैंने चुम्बन करते करते मीनाक्षी को लेटा दिया और खुद उसके बराबर में लेट कर उसकी चूची को मसलता रहा, होंठ और चेहरे को चूमते चूमते मैंने मीनाक्षी की कानों की लटकन को और उसके गले को चूमना शुरू कर दिया।

मीनाक्षी आँखें बंद किये आनन्द के सागर में गोते लगा रही थी, उसके बदन में मस्ती भरती जा रही थी, उसके हाथ मेरे सर पर मेरे बालों में घूम रहे थे और बीच बीच में मादक सिसकारी सी फ़ूट पड़ती थी मीनाक्षी के मुँह से।

कुछ देर बाद मैंने नीचे का रुख किया और अपने होंठ मीनाक्षी के दूध जैसे गोरे पेट पर रख दिए और मीनाक्षी के नाभि स्थल और आसपास के क्षेत्र को चूमने लगा।
मेरे ऐसा करने से मीनाक्षी को गुदगुदी सी हो रही थी, तभी तो वो बीच बीच में मचल जाती थी।

मैंने अपने होंठों को ऊपर की तरफ सरकाया और उसकी चूची को चाटने लगा। अब मैंने उसकी दोनों तन कर खड़ी चूचियों को नंगी कर दिया, चूचियों को चाटते चाटते मैंने जब अपनी जीभ उसकी चूची के तन कर खड़े चूचुक पर घुमाई तो मीनाक्षी के पूरे शरीर में एक झुरझरी सी उठी और उसका बदन अकड़ गया।

मैं समझ गया था की मेरी जीभ का असर मीनाक्षी की चूत तक पहुँच गया है और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया है। और सच में था भी ऐसा ही।
जब मैंने अपना एक हाथ उसके पजामे के ऊपर से ही उसकी चूत पर रखा तो पजामा चूत के पानी से इतना गीला हो चुका था कि लगता था जैसे मीनाक्षी ने पजामे में पेशाब कर दिया हो।

कहानी जारी रहेगी।
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