प्यास भरी आस: एक चाह-1

(Pyas Bhari Aas: Ek Chah-1)

This story is part of a series:

सभी चूत की मल्लिकाओं को मेरे लंड का प्यार भरा एहसास और साथ ही मेरे लंड का स्पर्श भी।

मित्रों मैं साहिल आज फिर आपके समक्ष एक और कहानी लेकर प्रस्तुत हुआ हूँ लेकिन यह कहानी मेरी नहीं मेरे एक मित्र की है, जब उन्हे पता चला कि मैं अन्तर्वासना का लेखक हूँ तो उन्होंने भी मुझसे बहुत आग्रह करके अपनी एक सच्ची घटना यहाँ आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत करने को कहा।

तो आज मैं उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी आपके समक्ष प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा हूँ।
आशा करता हूँ आप सभी इस कहानी में भी मेरा और मेरे मित्र का उत्साह वर्धन करेंगे।

तो आपका ज़्यादा समय न बर्बाद करते हुए आप सभी को कहानी के तरफ ले चलता हूँ।

नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम राज है, मैं जयपुर का रहने वाला हूँ, मेरी उम्र 21 साल है।

जब यह घटना मेरे साथ घटित हुई तो मुझे समझ ही नहीं आया कि यह मेरे साथ क्या हो रहा है।

लेकिन हूँ तो मैं भी एक लड़का ही… कब तक रोक पाता अपने आप को! तो मैं भी टूटे पत्ते कि तरह बह निकला एक हवा के झोंके के साथ…

बात आज से डेढ़ साल पहले की है जब मेरे बगल वाले मकान में एक शादीशुदा जोड़ा रहने आया।
लड़का बिल्कुल हट्टाकट्टा और लड़की बिल्कुल मासूम परी सी।

खैर लड़के से मुझे क्या मतलब, मैं सीधे लड़की पर आता हूँ।
क्या सुंदर लग रही थी… बिल्कुल अप्सरा सी दूध जैसी गोरी, अगर छू लो तो निशान पड़ जाए, आँखें एकदम नशीली, होंठ बिना लाली के भरपूर रसीले, उसके मम्मे मध्यम आकार के लेकिन कूल्हे पूरे उठे हुए, कमर एकदम पतली बल खाती हुई।

अगर इससे उसके शारीरिक अनुपात का अंदाजा लगाया जाए तो 32-26-36…
अगर किसी के सामने ऐसी औरत आ जाए तो अच्छे अच्छों की बुद्धि ही भ्रमित कर दे तो फिर मेरी क्या औकात… मैं तो एक साधारण आदमी ठहरा।

मैं आज भी वो दिन नहीं भूल सकता जब उस परी के दर्शन हुए।
सुबह के करीब 10 बज रहे होंगे जब मैं बाज़ार से समान लेकर घर जा रहा था तभी एक कार और एक ट्रक आकर मेरे घर के सामने रुके और कार में बैठे आदमी ने मुझसे पता पूछा।

मैंने पता देखा और बता दिया कि यह मेरे बगल का घर है।

तो दोनों ने अपनी अपनी गाड़ी उस घर के सामने लगा ली और मैं अपने घर चला गया और सामान रख कर अपनी माँ से पूछा कि कोई नया किराएदार आया है क्या बगल के घर में?
माँ ने कहा- बेटा मुझे नहीं पता।

फिर मैं माँ और पापा तीनों बाहर आये और देखने लगे कि कौन आया है।

अभी तक वो आदमी कार से निकल कर अगल बगल की ज़मीन देख रहा था तभी एक बहुत ही हसीन और मनमोहक औरत उस कार से उतरी और मैं उसको एकटक देखता हुआ उसी में खो गया।

मेरी एकाग्रता तब भंग हुई जब वह आदमी आ कर मेरे पापा से बात करने लगा और मुझसे उनकी हेल्प के लिए कहा।

तो पापा ने भी हाँ कह दिया।

मेरे लिए तो मानो लाटरी लग गई कि अब उस अप्सरा को थोड़े नजदीक से देख पाऊँगा, और मैं वहाँ उनकी मदद करने चला गया।

वहाँ जाने पर मुझे काफी चीजें पता चली जैसे उन भाभी का नाम, उम्र, कहाँ से हैं वगैरह वगैरह!

उन भाभी का नाम था सन्ध्या, बड़ा ही खूबसूरत नाम और उम्र जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल था।
वैसे तो उन्होंने मुझे 30 साल बताया पर मुझे लगा कि उनकी उम्र 22 या 23 साल की होगी।

खैर मैं भी अपने सपनों की दुनिया में खोया उनका समान सेट करवा रहा था और भाभी की बाँहों में कैद होने का प्लान भी बना रहा था।

यह सन्ध्या भाभी पहली ऐसी औरत थी कि इसे देखते ही मेरी अन्तर्वासना जागृत हो उठी, अन्यथा आज तक लाइफ में मुझे कोई लड़की पसंद नहीं आई।

और वह शादीशुदा है, यह मैं भूलकर उसको अपने दिल की रानी बनाने के सपने देखने लगा, उसको प्यार करना उसको अपना बनाना उसका हो जाना।

अगर एक शब्द में कहूँ तो मेरे दिलो दिमाग में उसको चोदने के जज़्बात उमड़ने लगे थे पहले ही दिन।

सारा सामान सेट करवाने के बाद जब मैं जाने लगा तो एक मधुर सी आवाज़ आकार मेरे कानों में पड़ी और मैं वहीं रुक गया और पीछे मुड़ कर देखा तो भाभी थी।

उन्होंने मेरा शुक्रिया अदा किया और साथ ही एक आग्रह भी… उन्होंने कहा- मेरे पति बाहर जॉब करते हैं और मैं यहाँ नई हूँ और कुछ जानती भी नहीं… तो अगर हमें आपकी हेल्प की ज़रूरत होगी तो आप कर देंगे?

इतना प्यार भरा आग्रह आखिर ठुकराता कौन…
मैं इतना पागल नहीं कि मेरे पसंद की चीज कोई दे और मैं छोड़ दूँ!

मैंने कहा- यह भी कोई कहने की बात है भाभी, आपको जब भी कोई ज़रूरत हो, मुझे एक फोन कर दीजिएगा, मैं आ जाऊँगा।
और मैंने उनको अपना फोन नंबर दे दिया।

शाम को भैया मेरे घर आए और हमने साथ बैठ के चाय पी।
फिर उन्होंने कहा- चल मुझे मार्केट दिखा ला, यहाँ का तो मुझे कुछ भी पता नहीं।

मैं उनके साथ बाहर गया और आस पास का सारा मार्केट दिखाया।

उन्होंने कुछ सामान लिया और हम वापस आ गए।

मैं जैसे अपने घर में घुसा तो माँ बोली- बेटा उन दोनों लोगों को बोल दे आज रात यहीं खाना खाने के लिए!

मैं उल्टे पाँव उनके घर चला गया उनको खाने के लिए बोलने के लिए!
मैंने दरवाजे की घंटी बजाई तो भाभी ने दरवाजा खोला और मुझे अंदर आने को कहा।

अंदर दोनों अपना घर सही करने में लगे हुए थे।
मैंने उनको कहा- आपका आज रात का खाना हमारे घर पर है।

दोनों ने मना किया लेकिन मैंने कहा ‘माँ ने बुलाया है।’ तो दोनों मान गए।

फिर रात में सबने एक साथ डिनर किया और काफी देर तक बातें करते रहे।
फिर सभी सोने चले गए।

दूसरे दिन मैं सोकर उठा और छत पर जाकर खड़ा हो गया और नए किरायेदार के घर में देखने की कोशिश करने लगा लेकिन कोई दिखा नहीं।

तभी मेरे एक दोस्त का फोन आया कि आज कॉलेज चलना ज़रूरी है।
मैंने उससे बात की और मैं नीचे आकर तैयार होने लगा।
फिर नाश्ता करके कॉलेज के लिए निकल गया।

कॉलेज से घर और घर से कॉलेज… बस यही होता रहा पूरे एक सप्ताह तक।
इतना भी टाइम नहीं मिल पा रहा था कि अपने परिवार के साथ भी बैठ सकूँ।

एक सप्ताह बाद कहीं जाकर चैन की सांस मिली।

मैं सवेरे 11 बजे सोकर उठा तो किसी की आवाज़ मेरे कानों में आई।
मैंने बाहर निकल कर देखा तो वही भाभी थी, मेरी माँ के साथ बैठ कर बात कर रही थी।

मैं भी वहीं पास में जाकर बैठ गया तो माँ ने कहा- तुम्हारी भाभी को कुछ सामान खरीदना है, तू उनके साथ बाज़ार तक चला जा!
मैंने कहा- ठीक है।
और मैं फ्रेश होने चला गया।

करीब 20 मिनट बाद मैं बाहर आया और मैं और भाभी मार्केट के लिए घर से निकल गए।

करीब 2 घंटे घूमने के बाद और सारा सामान लेने के बाद हम एक रेस्तराँ में गए और भाभी ने दोनों के लिए कॉफी और चिप्स ऑर्डर किया।

हम बैठ कर बात करने लगे, कॉफी पी और घर आ गए।

कुछ देर बाद उन्होंने मुझे बुलाया और कहा कि उनके घर में एक कील लगानी है।
तो मैंने कहा- ठीक है, मैं लगा देता हूँ।
मैं उनके घर चला गया।
उन्होंने पहले से ही कुर्सी लगा रखी थी, शायद वो पहले कोशिश कर चुकी थीं।

मैंने वहाँ जा कर कील लगा दी और उतरने लगा तो उन्होंने कहा कि कुछ और कील भी वहीं पास में लगा दूँ, कुछ और चीजें भी टांगनी हैं।
और मुझे कील उठा कर देने लगी।

मैं कील लगा रहा था, वो कुर्सी पकड़ कर खड़ी थीं कि मुझे किसी चीज की ज़रूरत हो और वो मुझे दें दे।

मैं अपना काम खत्म करके जैसे ही उतरने को हुआ कि अचानक मेरी कुर्सी जिस पर मैं खड़ा था वो लड़खड़ाई और मैं सीधे भाभी की बाँहों मैं जा गिरा।
ना उनको संभालने का मौका मिला और ना ही मुझे संभलने का।

शायद नियति को भी यही मंजूर था, वो नीचे और मैं उनके ऊपर…
क्या मदहोश कर देने वाली खुश्बू उनके शरीर से आ रही थी…
मैं ना जाने कहाँ खो गया।

कुछ देर बाद जब हम दोनों की तंद्रा भंग हुई तो हम दोनों एक दूसरे से अलग हुए।
अब ना ही वो मुझसे नज़र मिला पा रही थी ना ही मैं उनसे।

मैं चुपचाप वहाँ से निकला और घर चला आया, खाना खाया और अपने कमरे में चला गया।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हुआ… लेकिन जो भी हुआ था उसका एहसास बहुत ही सुखद था।

मैं सन्ध्या के शरीर के हर हिस्से को महसूस कर सकता था कितनी कोमल कितनी मुलायम बिल्कुल रसभरी सुनहरी मूरत।
उसके शारीरिक अनुपात का अब मैं अनुमान लगा सकता था।

एकदम तराशा हुआ 32-28-36 का 5 फीट 4 इंच का एकहरा बदन, काली आँखें, गुलाब से रसीले होंठ, गोल चेहरा, सीना और चूतड़ पूरे उभरे हुए, पीठ तक आते सुनहरे बाल, कसा हुआ पूरा शरीर।

मैं उसके ख़यालों में इतना खो गया कि मुझे ये महसूस होने लगा कि मैं अब भी उसके बांहों में हूँ, अभी मैं उसकी ही कल्पना में खोया हुआ था कि माँ ने दरवाजा खटखटाया।

मैंने सोचा इस वक़्त माँ को क्या काम आ गया? मैंने दरवाजा खोला तो माँ बोली- बेटा उठा जा, सुबह के 6 बज रहे हैं, कॉलेज नहीं जाना क्या?

मैं तो एकदम स्तब्ध रह गया कि उसका नशा इस कदर छाया कि समय का अंदाजा ही नहीं लगा।
खैर मैं तैयार हुआ और कॉलेज चला गया।
कहानी जारी रहेगी।
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