देसी भाभी की चूत चुदाई अरहर के खेत में

(Desi Bhabhi Ki Chut Chudai Arhar Ke Khet Me)

दोस्तो, नमस्कार…
मैं 21 साल का हूँ.. मैं यू. पी. का रहने वाला हूँ.. मैंने एमबीए की पढ़ाई की है।

मेरे गाँव में एक पुष्पा नाम की 35 साल की भाभी रहती थी। वो देखने में एकदम मक्खन जैसी गोरी और मोटे चूतड़ वाली थी। उसका फिगर 36-32-38 का था उसके पति और दो लड़के दोनों मुंबई में रहते थे। वो अपनी एक छोटी लड़की के साथ रहती थी। उसकी वो लड़की अभी कुल 3 साल की थी।

भाभी की निगाहें नशीली थीं और जब वो अपने चू्तड़ मटका कर चलती थी.. तो लोग उसके चूतड़ों के दोनों मटकते उभारों को देखकर लार टपकाते थे।
मेरा उसके परिवार से अच्छा संबंध था.. वो भी मुझे बहुत सम्मान देती थी और शायद वो मुझे अपनी हवस मिटाने के लिए लाइन देती थी.. पर मैं समझ ना पाता था।

बात 2011 के दिसंबर की है.. एक दिन अचानक उसने फ़ोन करके मुझे घर बुलाया.. ठंडी का दिन था.. बहुत ठंड थी। दोपहर का समय था उसकी बेटी अपनी मौसी के साथ उसके घर गई थी।
भाभी घर पर अकेली ही थी.. मैं घर पहुँचा.. तो दरवाजा खुला था।

मैंने आवाज़ दी.. तो भाभी ने अन्दर से बुलाया- आ जाओ.. कोई नहीं है तुम अन्दर ही आ जाओ..
मैं अन्दर गया.. तो नज़ारा क्या सेक्सी था।

भाभी ने एक पतली साड़ी कमर के नीचे बाँधी थी और मुझे पानी देकर वापस मुड़ी.. तो उसकी गाण्ड के दोनों उभारों के बीच में घुसी साड़ी साफ़ दिखा रही थी कि उसके चूतड़ कितने मोटे और गोल हैं।
मेरा तो लण्ड पागल हो रहा था कि पकड़ कर गाण्ड में अपना मुँह लगाकर चूस डालूँ साली को.. पर खुद को सम्भालते मैंने पूछा- क्या हुआ भाभी, अपने क्यूँ बुलाया है?

तो बोली- आज घर में कोई नहीं है और मुझे बाजार जाना था.. तो आज मुझे तुम अपनी बाइक पर ले चलो ना..
मैंने ‘हाँ’ कर दिया और फ़ौरन बाइक लाया और हम दोनों बाजार चल दिए। बाजार से सामान लेकर आ रहे थे.. उस वक्त रास्ते में वो जानबूझ कर अपनी चूची मेरी पीठ पर दबाने लगी।

मैंने एक दो बार खुद को संभाला पर मैं समझ गया भाभी गर्म हो गई है.. और जानबूझ कर ऐसा कर रही है।
मैंने कहा- भाभी क्या हुआ.. बैठने में दिक्कत है क्या?
तो बोली- हाँ तूने ढंग से बैठाया ही कहाँ है आज तक..

मैं समझ गया.. अब मैं भी अब खुलकर आ गया।
मैंने कहा- भाभी कहाँ बैठोगी.. मेरा वो तो बहुत गर्म है।

तभी सुनसान जगह आई और भाभी ने एकाएक मेरे लण्ड पर हाथ रखा और कहा- आज शाम 8 बजे घर के पीछे वाले अरहर के खेत में मिलना.. फिर बताती हूँ..
यह कह कर उसने मेरे लण्ड को रगड़ दिया।

अब मैंने उसे घर छोड़ा और रात 8 बजने का इंतजार करने लगा और उसकी मोटी गदराई गाण्ड और मोटी चूचियाँ मेरे दिमाग़ और लण्ड में तूफान ला रही थीं।
आख़िर वक़्त आ ही गया.. ठीक 8 बजे मैं खेत में इंतजार कर रहा था।

दस मिनट बाद एक कयामत सी गाण्ड मटकाते हुई भाभी खेत में अन्दर आ गई, मैंने उसको धीमी आवाज़ में अपनी तरफ़ बुलाया.. अरहर का खेत बहुत घना था.. तो पास की चीज़ भी नहीं दिखाई दे रही थी।

भाभी साड़ी में मेरे पास आई थी और ठंड इतनी थी कि मैं तो काँप रहा था।
आते ही मैंने भाभी को पीछे से कसकर पकड़ लिया और बोला- भाभी मैं तुम्हें चोदने के लिए 3 साल से पागल हूँ।
भाभी ने कहा- मैं भी कब से तेरे इंतजार में गर्म थी.. तू समझता ही ना था..

यह कहानी आप अन्तर्वासना डाट काम पर पढ़ रहे हैं।

भाभी की गदराई गाण्ड मेरे लण्ड पर रगड़ रही थी। भाभी के मुँह से ‘आहह..’ की आवाज़ से अब मेरा लण्ड मोटा लोहे का 7 इंच का रॉड बन गया था। मेरा लण्ड भाभी के चूतड़ों के दोनों मांसल उभारों के बीच रगड़ कर पैंट से बाहर आने को बेकाबू था।

इतने में भाभी ने मुड़कर और मुझे अपनी दोनों बड़ी चूचियों के बीच कस लिया। मैंने बिना वक़्त गंवाए उसका ब्लाउज खोल दिया.. काले रंग की ब्रा में उसकी चूचियों की सफेद चमक मुझे खेत में भी दिख रही थी।

मैंने एक-एक कर उसके सारे कपड़े निकाल दिए.. खेत में रात 8 बजे का वक़्त था.. दिसम्बर की ठंड से भाभी कांपने लगी।
मैंने अपने सारे कपड़े उतारे और भाभी की बड़ी चूचियों पर टूट पड़ा, उनको मसल कर मुँह से चूसने लगा।

भाभी ‘आहह.. उहह.. उईईइ..’ करके गरम होने लगी। मैंने उसकी दोनों चूचियों को मसल कर लाल कर दिया।
भाभी अब गर्म होकर चुदास से पगलाने लग गई थी।

उसने कहा- योगेश उई.. आहह.. मार डालोगे क्या.. पेलो मुझे अब.. प्लीज़.. जल्दी करो।
मैंने नीचे शाल बिछाया और उनको पेट के बल लिटा दिया और उसकी उभरी हुई मोटी मांसल गाण्ड को चाटना चालू कर दिया।
अब भाभी की सीत्कार निकल रही थी- आ.. उईईइ.. माँआ.. आहहा.. बस करो प्लीज़..

वो इतनी गर्म हुई कि तुरंत उल्टी हुई और लपक कर मेरा लण्ड पकड़ लिया। मेरे लौड़े को अपने हाथों से पकड़ कर खींचा और अपने मुँह में भरकर चूसने लगी। फिर मैंने उनको सीधा लिटाया और मैंने जीभ डालकर चूत में लपलपाना चालू कर दिया।

इतने में भाभी अकड़ गई- आहह… मार गई… उउईई… अहह.. और झड़ गई।

अब मैंने उनकी मोटी मांसल जाँघों को अपने कंधे पर लिया और मोटा गरम लण्ड का सुपाड़ा उसकी चूत के छेद में हल्का सा घुसाया।

उसके मुँह से ‘आहह…’ निकला.. मैंने फिर 7 इंची लौड़ा पूरा ठोक दिया।
उसने ‘उईईहह..आहह..’ किया और उसकी आँख से आँसू आ गए.. चिल्ला कर बोली- मेरी चूत फट गई.. कमीने..

और अपनी गाण्ड उछाल कर मेरे लण्ड को बाहर निकालने की कोशिश करने लगी.. पर मैं पूरे जोश में था।
मैंने कहा- अब नहीं भाभी..

मैंने धीरे-धीरे चोदना चालू किया, भाभी के मुँह से ‘आहह.. उईईइ.. ऊउउइइ.. आअहह..’ निकलता रहा.. पर 5 मिनट बाद भाभी गाण्ड मटका-मटका कर मेरा लण्ड ‘गपागप’ अपनी चुदासी चूत में लेने लगी, उसके मुँह से आवाजें आने लगीं- और तेज.. जल्दी.. जल्दी.. उईईहह.. आअहह… ले ले.. और ले..

हम दोनों को ठंडी में पसीना आने लगा।

‘मेरी चूत मार ले… फाड़ दे आज मेरी फ़ुद्दी.. और आहह उउई..’
वो झड़ गई.. तब मैंने उसको घोड़ी बनने को कहा.. मैंने कहा- भाभी आपकी मटकती गाण्ड में लण्ड घुसाना है।
पर वो मना करने लगी.. बोली- आज नहीं.. खेत में अभी कोई देख लेगा.. अब मैं तुम्हें अपनी गाण्ड बाद में दूँगी..

पर मैं कब मानने वाला था.. मैंने कहा- भाभी जी प्लीज़.. हल्के से डालूँगा.. कोई भी दर्द नहीं होगा।
वो मान गई और बोली- देखो ग़लत मत करना।

फिर मैंने उसके मोटे-मोटे कूल्हों को घोड़ी बनाकर उँचा कर लिया और जीभ से चाट चाट कर उसकी गाण्ड के छेद को बढ़ाने लगा।

फिर से भाभी की साँसें तेज होने लगीं अब उसकी आँखों का नशा काफ़ी ख़तरनाक हो गया था।
अचानक उसके मुँह से बड़बड़ाने की आवाज़ आने लगी- डाल.. मेरी गाण्ड भी फाड़ डाल.. आज तू मुझे आज चोद कर जन्नत की सैर करा दे.. आज तक इतनी ठंडी में कभी नहीं चुदी।

यह सुनकर मेरा जोश दुगना हो गया.. मैंने लण्ड का सुपारा उसके छेद पर रखा और ‘गच्छ’ करके एक ही झटके में पूरा लण्ड घुसा दिया।
अब भाभी मानो ‘पानी से बाहर मछली रख दिया हो’ जैसी छटपटाने लगी और ज़ोर से चिल्लाई- ऊउइईई ईईई..

इतने में मैंने उसके मुँह पर हाथ रख दिया.. नहीं तो खेत में कोई सुन लेता। मैंने लौड़े को उसकी गाण्ड में अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया… अब भाभी को धीरे-धीरे मज़ा आने लगा। वो भी गाण्ड उठा-उठा कर ‘ढाप्प-ढाप्प’ मेरे जाँघों से अपने चूतड़ों को भिड़ाने लग गई और शेरनी की तरह स्पीड में गाण्ड में लण्ड लेने लगी।

मैंने भाभी का इतना सेक्सी हॉट रूप पहली बार देखा था.. पर वो जितनी ज्यादा गर्म होती जा रही थी.. चुदाई का मज़ा उतना ही ज्यादा आ रहा था।

अब मैंने भाभी की दोनों चूचियों को आगे से पकड़ लिया और मसलना चालू कर दिया और चुदाई की स्पीड को इतनी बढ़ा दी.. कि भाभी के मुँह से निकलने लगा- आअहह.. उउउइइ… अहह…. मर गई.. ऊउउइई…

बस उसके मुँह से यही आवाज़ निकल रही थी। मैं भी अपने लण्ड को गोलाई में घुमा कर गाण्ड में अन्दर-बाहर करना चालू किया और आधे घंटे की घनघोर चुदाई के बाद मेरा गरम लावा भाभी की गाण्ड में ही भर गया।

कुछ देर बाद भाभी ने मुझे चूम लिया और हम आधे घंटे तक एक-दूसरे से चिपक कर रगड़ते रहे।
फिर भाभी ने कहा- रात बहुत हो गई है अब चलो.. कोई देख लेगा तो मुसीबत हो जाएगी।

फिर मैंने भाभी को अगले रात उसके घर में रहकर कैसे उसकी मालिश की और चूचियों की चूसा.. वो अगली कहानी में लिखूँगा।
प्लीज़ अपनी राय ज़रूर दें।
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