बुढ़िया को गुड़िया बनाकर चोदा

(Budhiya Ko Gudiya Bana kar Choda)

मैं जहाँ रहता था, वहीं पड़ोस में एक विधवा बुढ़िया रहती थी। बुढ़िया मतलब इतनी बुढ़िया नहीं के कमर झुका के लकड़ी के सहारे से चले, पर उसके नाती पोते थे, उसके घरवाले यूरोप में रहते थे, वो भारत में अपनी प्रॉपर्टी की देखभाल करते हुये यहीं रहती थी, दिखने में काफी खूबसूरत थी। गोरा रंग, उभरे हुये उरोज, घने बाल, लंबी नाक, गुलाबी होंठ, कसा हुआ बदन, एकदम सुडौल इस उम्र में भी।

मेरी उसके साथ अच्छी जमती थी, मैं मजाक में उसे दोस्त कहा करता था।

एक दिन मैं उसके घर में बैठे टीवी देख रहा था। टीवी पर एक बूढ़ा बूढी का रोमांस सीन देख के मैंने उससे पूछा- ऐ दोस्त! आप अब भी इतनी खूबसूरत दिखती हो, जवानी में तो बहुत से लड़के आप पर मरते होंगे?
‘हट, कुछ भी पूछता है?’ कहते हुये वो शरमाई।
‘अरे दोस्त! बताओ ना! मुझे दोस्त मानती हो ना? फिर दोस्त को नहीं बताओगी? बताओ ना मरते थे या नहीं?’ मैंने फिर पूछा।
‘हाँ!’ उसने शरमाते हुये जवाब दिया, जवाब देते हुये उनके गाल शर्म से लाल हो गये थे।

‘हाय… कितने थे?’ मैंने शरारत में पूछा।
‘बहुत सारे थे!’ उन्होंने फिर लजा कर जवाब दिया।
‘उनमें से आपको कोई पसंद आया था?’ मैं बात को बढ़ा रहा था।
‘हाँ…’ उन्होंने हंसकर शरमाते हुये कहा।

‘कौन था, कैसा था?’ मैंने उत्सुकतावश पूछा।
‘मेरे ही क्लास में था।’
‘कैसा दिखता था?’
‘तुम्हारी ही तरह…’
‘ओ हो! कहीं इसीलिये तो मुझसे दोस्ती नहीं की?’

‘हट, बेशरम, कुछ भी बोलता हैं। मैं अब बूढ़ी हो चुकी हूँ।’
‘ऐसा आपको लगता है।’
‘एक बुढ़िया से ऐसे बातें नहीं करते।’ उसने कहा।
‘आप बुढ़िया नहीं, गुड़िया हो, प्यारी सी गुड़िया!’

‘तुम्हारा दिमाग ख़राब हो गया है जो ऐसी उल्टी सीधी बातें कर रहे हो।’
‘आप की कसम, आप अब भी बहुत खूबसूरत लगती हो। इतनी कि जवान भी आप पे डोरे डालने लगेगा।’
‘तुम आज पागलों जैसी बातें कर रहे हो! पागल हो गये हो?’ वो बोली।

उनकी बात सुनकर मैं झट से उठा और बाहर चला गया, वो पीछे से मुझे आवाज देती रही पर मैं रुका नहीं।
शाम को जब मैंने उनकी डोर बेल बजाई वो मुझ पर गुस्सा हो गई, कहने लगी- दोपहर में मैं इतनी आवाज दे रही थी फिर भी गुस्से से चले गये।
‘आप पर कैसे गुस्सा हो सकता हूँ? आप तो मेरी दोस्त हो।’

‘फिर चले क्यों गये अचानक?’
‘इसके लिये!’ कहते हुये मैंने बैग से लकड़ी की एक गुड़िया निकाल कर उनको दिखा दी।
‘गुड़िया?’ उसने पूछा।
‘अहं, गुड़िया नहीं, ये आप हो, आप इस गुड़िया की तरह सुंदर हो। यही मैं दोपहर में भी कह रहा था।

‘यह आज हो क्या गया हैं तुम्हें?’
‘आप जो खुद को बुढ़िया समझ रही हो, मुझे उससे आपत्ति है। आप आज भी साज श्रृंगार करोगी तो इस गुड़िया की तरह ही खूबसूसरत दिखोगी।’
‘अब किसके लिये श्रृंगार करूँ?’ अब तो नाते पोती भी आ गये।
‘आने दो, उनके आने से आपकी खूबसूरती कम नहीं हुई।’
‘अरे पगले! पर अब श्रृंगार कर के क्या करुँगी? किस को दिखाऊँगी?’
‘मैं जो हूँ, देखने वाला!’
‘हट पगले, कुछ भी पागलों जैसा बड़बड़ा रहा है तू!’

‘ये देखो!’ मैंने उसे बैग दिखाते हुये कहा।
‘क्या?’ उसने आश्चर्य से पूछा।
‘इस बैग में वैसे ही कपड़े और जेवर हैं जैसे इस गुड़िया के हैं।’

‘तुम सच में पागल तो नहीं हुये ना?’ उसने उन कपड़ों को और जेवरों को देखते हुये पूछा।
‘मेरे लिये एक बार इसे पहनो, फिर देखो खुद को, प्लीज!’

उसने हँसते हुये मेरे हाथ से कपड़ों का बैग लिया और बेडरूम में चली गई।
जब वो लौटकर वापस हॉल में आई तो बिल्कुल उस गुड़िया की तरह ही लग रही थी जो मैंने उसे दिखाई थी।

वो शर्माती हुई मेरे पास आकर खड़ी हो गई। इस उम्र में सिर्फ मेरा दिल रखने के लिये उसने श्रृंगार किया था। मैंने सोफे पर रखी गुड़िया उठाई और उसके आँखों के सामने पकड़ ली, मान लो मैं बोलना चाह रहा हूँ कि ‘देखो खुद को और इस गुड़िया को!’

वो गुड़िया को देख लज्जित हुई और गालों में ही हँसने लगी।
‘हाय, जो भी इस शर्म को और इस स्माईल को देखेगा वो अपना दिल निकाल के आपके क़दमों में रख देगा।’
‘एक बात कहूँ?’ मैंने उसकी तारीफ करते हुये पूछा।
‘कहो!’ धीमे स्वर में वो लज्जाती हुईई बोली।

‘आप इस गुड़िया से भी ज्यादा सुंदर लग रही हो।’
वो हँसी- आज बड़े दिनों के बाद मैं खुद को तरोताजा महसूस कर रही हूँ, तुम्हारी बदौलत!
कहते कहते उसकी आँखें भर आई।

‘हे गुड़िया! रो मत!’ कहते हुये मैंने उसके आँसू पोछे और उसे अपने सीने से लगा लिया।
‘मुझे ख़ुशी हुई कि आप मेरी वजह से फिर एक बार जवान हो गई।’
‘हट…’ कहते हुये उसने मेरे सीने पर अपना हाथ मारा।

उसके उसी हाथ पर मैंने अपना हाथ रखा और पूछा- आपको जवान करने की बक्शीश नहीं मिलेगी?
‘क्या बक्शीश दूँ?’ उन्होंने हंसते हुये पूछा।
‘सुंदर गुड़िया के सुंदर गालों की पप्पी…’ मैंने शरारत करते हुये कहा।
‘जाओ ले लो, सोफे पर ही पड़ी है!’ मुझे चिढ़ाती हुई वो बोली।

‘लकड़ी की गुड़िया की नहीं इस चमड़े की गुड़िया की!’ कहते हुये मैंने उनके गालों की पप्पी ले ली।
‘ये क्या किया तुमने? तुम जवान हो, मैं बूढ़ी हूँ। यही हमारे जीवन की सच्चाई है!’ उसने मायूसी में कहा।

मैंने उसकी थोड़ी को ऊपर उठा कर कहा- इस वक्त आप जितनी सुंदर लग रही हो ना, उस सुंदरता को देखकर आपके चाहने वालों की लाइन लग जाएगी।
‘कुछ भी?’ वो शर्माते हुये बोली।
‘कुछ भी नहीं, मेरा तो दिल कर रहा है कि मैं आपको प्रपोज करूँ!’ मैंने हँसते हुये कहा।

‘तो करो, मैं भी देखूं कि तुम मुझे कैसे प्रपोज़ करते हो?’
‘मेरा प्रपोज करने का स्टाइल औरों जैसा नहीं होगा, बिल्कुल हट के होगा।’
‘करो तो सही, देखूँ तो तुम्हारा हट के वाला स्टाइल?’

मैंने फ़ौरन उसे अपनी गोदी में उठाया और कहा- गुड़िया, मेरा दिल तुम पर आ गया है, मेरा प्यार तुम्हें स्वीकार है या नहीं?
गर्दन ना में हिलाती उसके मुँह से हाँ जैसी आवाज निकली, जैसे कोई लड़की हाँ करना चाहती हो पर नखरे दिखाकर ना कहे- तुम तो फेल हो गये, तुम्हारा प्रपोज तो किसी काम नहीं आया। और बोल रहे थे मेरा प्रपोज करने का स्टाइल बिल्कुल हट के होगा।
उसने ताना कसते हुये कहा।

‘अलग स्टाइल दिखाया कहाँ है अभी?’ मैंने कहा।
‘तो दिखाओ ना, रोका किसने है?’ वो चिढ़ाते हुये बोली।
‘हे, गुड़िया मैं तुम्हें तहे दिल से चाहता हूँ, इस लिये मैं चाहता हूँ कि तुम भी मुझसे प्रेम करो। अगर तुम मेरा प्रेम स्वीकार करोगी तो मैं तुम्हें जन्नत की सैर कराऊँगा। और अगर प्रेम अस्वीकार करोगी तो कमर के नीचे का हाथ हटा कर तुम्हे जमीन पर गिरा दूँगा फिर जन्नत की बजाय हॉस्पिटल की सैर कराऊँगा। अब तुम कहो कि तुम्हें कहाँ जाना है? जन्नत या हॉस्पिटल?’

‘जन्नत… जन्नत…’ कहते हुये गिरने से बचने के लिये उन्होंने मेरे गले में हाथ डाल दिये।
मैंने फट से झुककर उनके होठों में अपने होंठ डाले और उन्हें किस करने लगा। वो खुद को दूर करने की कोशिश करने लगी पर मैंने ऐसा होने नहीं दिया।

‘यह तुमने क्या किया?’ जब मैं रुका तो उन्होंने नाराज होते हुये पूछा।
‘क्या हुआ?’
‘मैं इसे बस एक खेल समझ रही थी।’
‘आप इसे खेल समझो या हकीकत, पर मैं सच में आपका कायल हो गया हूँ।’
‘लेकिन ये गलत है।’

‘क्या मेरा आपको चाहना गलत है?’
‘हाँ, क्योंकि मैं एक बूढ़ी विधवा हूँ, और तुम एक कुँवारे नौजवान हो।’
‘प्यार उम्र देखकर नहीं होता।’
‘इसीलिए तो अंधा होता है।’
‘आप भी अंधी हो जाओ और डूब जाओ इसमें!’

‘क्यों ऐसी जिद कर रहे हो, जिससे तुम्हारा नुकसान होगा। तुम जवान हो, खूबसूरत हो, कोई भी अच्छी लड़की तुम्हें चाह सकती है। मैं तुम्हें क्या सुख दूँगी?’
‘आप वो सुख दे सकती हो, जो शायद एक जवान लड़की ना दे सके।’
‘ये वहम है तुम्हारा!’
‘नहीं, यह वहम नहीं हकीकत है।’ कहते हुये मैंने फिर से उन्हें किस करना शुरू कर दिया।

सालों से उसके बदन को किसी ने प्यार से छुआ नहीं था, आज मेरे छूने से उसके शरीर में फिर से यौवन रस दौड़ने लगा था। बरसों का अनछुआ बदन आज जवान बाहों में फिर एक बार उत्तेजित हो रहा था।
इसी का असर था कि इस बार उसने मेरे किस का विरोध नहीं किया बल्कि वो भी मेरे बालों को सहलाती हुई मेरा साथ देने लगी।

मैं वैसे ही उसे गोदी में किस करते हुये उसके बेडरूम में लाया, वहाँ उसे बेड पर लिटाकर खुद उस पर इस तरह लेट गया कि उसके योनि प्रदेश पर मेरा तना हुआ लंड रगड़ खाये।
फिर मैंने उसे माथे पर, भवों पर, आँखों पर, नाक पर, गाल पर, सीने पर हर जगह चूमा, साथ ही अपनी कमर को उसकी कमर पर दबाये मैं लंड को चूत में गड़ाने की कोशिश कर रहा था।

अब वो मस्त हो चुकी थी, मैंने धीरे धीरे उसे नंगी कर दिया, उसने भी वही मेरे साथ किया, हमारे नंगे बदन आपस में रगड़ने लगे।

थोड़ी ही देर में मैंने अपना लंड उसकी चूत में धक्के के साथ घुसा दिया।
‘आ आ आ…’ दर्द के मारे वो कराह उठी।
सालों से उसकी चूत में किसी का लंड नहीं गया था, दर्द तो होना ही था उसे!

‘बस थोड़ा सह लो, गुड़िया!’ कहते हुये मैं धक्के मारने लगा।
वो थोड़ी देर दर्द में कराहती रही पर बाद में रिलैक्स हो गई, उसका दर्द कम होकर उसे मजा आने लगा। वो भी नीचे से कमर उचकाने लगी।, धक्के पर धक्के लगते रहे तब तक जब तक सब कुछ शांत नहीं हुआ।

हम दोनों भी एक दूसरे को लिपटकर पड़े रहे।
कहानी काल्पनिक है पर इसके बारे में आपके जो भी अच्छे सुझाव हों, आप मुझे मेल कर दीजिये।
फालतू मेल में आपका और मेरा कीमती वक्त जाया मत होने दीजिये।

मेल करते वक्त कहानी आपने किस साइट से पढ़ी, कहानी का टाइटल क्या है, आपको उसका कौन सा हिस्सा पसंद आया यह बता देंगे तो मेल का उद्देश्य समझ में आयेगा।
रवीराज मुंबई
[email protected]

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