मकान मालकिन और उसके बेटे की चुदास -5

(Makan Malkin Aur Uske Bete Ki Chudas- Part 5)

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अब तक आपने पढ़ा..
दिव्या की तड़पती चूत संकुचित होते हुए इतना रस उगलती है कि उसका लाड़ला दिल खोल कर चूत-रस को चूस और चाट सकता था। रवि मम्मी के दाने को लगातार चूसते हुए और उसकी चूत में उंगली करते हुए उसे स्खलन के शिखर तक ले जाता है। लगभग एक मिनट बीत जाने पर चूत का संकुचित होना कम होता है।

तब तक दिव्या को अपनी फुद्दी के भीतर गहराई में एक ऐसी तड़पा देने वाली कमी महसूस होने लग जाती है.. जैसी उसने आज तक महसूस नहीं की थी। वो चाहती थी कि उसका बेटा जितना जल्दी हो सके उसकी चूत में अपना मूसल जैसा लण्ड घुसेड़ दे। वो अपने बेटे के मोटे मांसल लण्ड से अपनी चूत ठुकवाने के लिए मरी जा रही थी।
अब आगे..

‘तु…तुम.. अब अपनी मम्मी को चोद सकते हो बेटा.. मैं जानती हूँ… असलियत में तुम यही चाहते हो.. है ना..? आगे बढ़ो बेटा.. इसे मेरी चूत में घुसेड़ डालो.. जल्दी बेटा जल्दी.. आह्ह..’

रवि अपनी मम्मी की जाँघों के बीच अपने लण्ड को रगड़ते हुए उसके ऊपर चढ़ जाता है। उसका विकराल लण्ड रस टपकाते हुए उसके पेट पर ठोकर मार रहा था। दिव्या अधीरता पूर्वक अपना हाथ नीचे लाती है और अपने बेटे के लण्ड को पकड़ कर उसके सुपारे को अपनी चूत के द्वार से लगा देती है।

दिव्या अपना निचला होंठ दांतों में दबाए हुए रिरियाती है.. जब उसे अपने बेटे का लण्ड उसकी चूत को भेदते हुए अन्दर दाखिल होता महसूस होता है। उसकी चूत के मोटे होंठ बेटे के आक्रमणकारी लण्ड की मोटाई के कारण बुरी तरह से फैल कर उसको कसकर जकड़ लेते हैं। दिव्या को ऐसा महसूस हो रहा था.. जैसे कोई मोटी लोहे की गरम-गरम रॉड उसकी चूत में जाकर फँस गई हो।

‘उबगघ.. हहाय.. रवि तेरा वाकयी में बहुत बड़ा है.. तुम इसे वाकयी में मेरे अन्दर ठूँसने जा रहे हो.. है ना..? उंगघ.. आगे बढ़ो मेरे लाल.. और ठूंस दो इसे अपनी मम्मी की चूत में.. जल्दी से.. जल्दी..’

रवि अपनी जांघें चौड़ा लेता है.. ताकि उसके कूल्हे चूत में लण्ड ठोकने के लिए सबसे बढ़िया स्थिति में हों। फिर वो अपने लण्ड को धीरे-धीरे आगे-पीछे करते हुए धक्के लगाना चालू कर देता है। हर धक्के के साथ वो अपना लण्ड अपनी माँ की चूत में गहरा और गहरा करता जाता है, लण्ड उसकी मम्मी की चूत की दीवारों से चिपकते हुए आगे बढ़ने लग जाता है।

दिव्या अपना सिर ऊपर उठाते हुए नीचे की ओर देखती है कि कैसे उसके बेटे का खौफनाक लण्ड जिस पर नसें उभर आई थीं.. उसकी संकरी चूत में आगे-पीछे हो रहा था।
चूत लण्ड के मिलन का यह नज़ारा देखने में बड़ा ख़तनाक.. मगर साथ ही साथ बेहद रोमांचित कर देने वाला भी था। दिव्या अपने कूल्हे हवा में उछालते हुए अपनी तड़पती चूत अपने बेटे के मोटे लण्ड पर दबाव देती है ताक़ि उसके बेटे का पूरा का पूरा मोटा लण्ड चूत की जड़ तक पहुँच सके।

‘रवि त..तुम मुझे गहराई तक चोद सकते हो..’ वो हाँफते हुए बोलती है, ‘आगे बढ़ो बेटा.. और अपनी मम्मी की चूत जितना गहराई तक हो सके.. चोदो.. आह्ह..’

रवि और भी कठोरता से धक्के लगाना चालू कर देता है। वो वाकयी में अपना विशाल लण्ड माँ की संकरी.. काँपती चूत में इतने बलपूर्वक ठोकता है कि अपने बेट के हर धक्के पर दिव्या का जिस्म कांप उठता है।

आख़िरकार वो अपना पूरा लण्ड अपनी मम्मी की चूत में डालने में सफल हो जाता है। दिव्या ने पूरी जिंदगी में.. खुद को किसी कठोर लण्ड द्वारा इतना भरा हुआ कभी महसूस नहीं किया था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था.. जैसे उसकी चूत को पूरा का पूरा भर दिया गया हो।

उसकी चूत बुरी तरह ऐंठने लगती है और उस विशाल लण्ड को, जो उसकी बच्चे-दानी पर ठोकर मार रहा था.. को चारों और से भींचते हुए मम्मी की चूत में अपना पूरा लण्ड ठोक कर रवि अपना तगड़ा लण्ड मम्मी की चूत में डाले हुए कुछ पलों के लिए स्थिर हो जाता है। वो अपनी कोहनियों को मोड़कर अपने जिस्म सहित अपनी माँ के ऊपर पसर जाता है, दिव्या के मोटे-मोटे चूचे अपने बेटे की छाती के नीचे दब जाते हैं।

‘चोद अपनी माँ को.. रवि.. माँ की चूत फाड़ दे.. मादरचोद..’

अनैतिक व्याभिचार की उसकी कामना और भी प्रबलता से स्पष्ट हो जाती है। दिव्या अपनी टांगें ऊपर की ओर जितना उठा सकती है.. उठाती है और फिर अपने पैर अपने बेटे की पीठ पर कैंची की तरह लगा कर बाँध लेती है। फिर वो व्यग्रता से अपने कूल्हे हिलाते हुए अपनी गीली और कसी चूत से अपने बेटे के लण्ड को किसी कामोत्तेजित रंडी की तरह चोदने लग जाता है।

‘मैंने कहा चोद मुझे.. मम्मी अब बहुत चुदासी है बेटा.. मुझे अब बस चोद डाल.. फाड़ दे मेरी.. मेरी चूत में अपना घोड़े जैसा लण्ड घुसा डाल्ल.. फाड़ डाल.. अपनी माँ की चूत.. अपने गधे जैसे लण्ड से..’

रवि लण्ड बाहर निकालता है.. तब तक बाहर खींचता है.. जब तक सिर्फ़ लण्ड का गीला और फूला हुआ सुपारा उसकी माँ की फुद्दी के होंठों के बीच रह जाता है.. वो पूरे ज़ोर से अपने कूल्हे नीचे की और लाते हुए एक जोरदार धक्का मारता है और उसका विकराल लण्ड उसकी माँ की चूत में जड़ तक घुस जाता है। अपनी माँ की चूत में लगाया यह पहला घस्सा उसे इतना मजा देता है कि उसका पूरा जिस्म काँप जाता है।

तब तक दिव्या किसी बरसों की प्यासी, अतिकामुक औरत की तरह अपने कूल्हे उछालते हुए चुदती रहती है। जब वो अपनी चूत अपने बेटे के लण्ड पर मारती है.. तो उसके मोटे चूचे कंपन करते हुए बुरी तरह से उछलते हैं। रवि अपनी मम्मी की ताल से ताल मिलाते हुए अपना मोटा हल्लबी लण्ड उसकी मखमली चिकनी चूत में पूरी गहराई तक पेल डालता है।

‘ऐसे ही.. हाँ.. हाआँ.. ऐसे ही चोद अपनी मम्मी को.. जियो मेरे लाल.. हाय.. मैं मरीईई.. उंगघ… और ज़ोर लगा बेटा.. मम्मी की चूत जितने ज़ोर से चोद सकता है.. चोद दे.. आह्ह..।’ दिव्या अपनी बाँहें उसके कंधों पर लपेटे हुए उसे ज़ोर से गले लगा लेती है। गहरी साँसें लेते हुए उसका कराहना अब चीखने में बदल जाता है।
जब वो अपनी चूत से उसके लण्ड को ज़ोर से भींचती है तो उसकी मादक चीखें कमरे को रंगीन बना देती हैं।
‘चोद बेटा.. चोद.. अपनी मदर को चोद.. मादरचोद..’

रवि अपनी माँ के कंधे पर सिर रखकर एक गहरी साँस लेता है और फिर अपने जिस्म की पूरी ताक़त लगाते हुए अपनी मॉम की चुदाई करने लगता है, उसके कूल्हे अति व्यग्रता से अपनी माँ की जाँघों में ऊपर-नीचे होते हैं। वो किसी घोड़े या गधे की तरह हुंकार भरते हुए अपने भालेनुमा लंबे और मोटे लण्ड को मॉम की मलाईदार चूत में पेलता है।

दिव्या को अपने अन्दर फिर से रस उमड़ता हुआ महसूस होता है और लौड़े से पूरी भरी पड़ी उसकी प्यारी चूत बुरी तरह संकुचित होते हुए.. बेटे के लण्ड को और भी कस लेती है।

‘मैं फिर से झड़ने वाली हूँ बेटा.. चोद मम्मी को.. मार मेरी चूत.. उंगघ.. हाय मैं आ रही हूँ बेटा.. ओह्ह..’
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उसकी चूत मन्त्रमुग्ध कर देने वाले स्खलन के सुखद अहसास से फूट पड़ती है और उससे चुदाई का गाढ़ा रस बहकर बाहर आने लगता है, चूत की संकरी गुलाबी दीवारें बेटे के उस भयंकर लण्ड को कसते हुए उसे भींचती हैं, दिव्या का पूरा शरीर काँपने लगता है। रवि भी अपना पूरा लण्ड मम्मी की चूत में जड़ तक पेलते हुए उस पर ढेर हो जाता है।

उसके लण्ड से दूसरी बार गाढ़ा रस फूट पड़ता है। दिव्या अपनी चूत की गहराई में वीर्य की भारी बौछार गिरती हुई महसूस करती है और उसकी चूत गरम और गाढ़े रस से लबालब भर जाती है।

अति कामोत्तेजित मॉम अपनी चूत की मांसपेशियों को बेटे के लण्ड पर ढीला करते हुए.. उसे अपने टट्टों में भरे हुए रस का भंडार.. अपनी चूत में खाली करने में मदद करती है। लेकिन वो अपने मन में अभी से अपराध बोध.. शर्म और घृणा लौटते हुए महसूस कर रही थी कि उसने खुद पर नियंत्रण रखने की बजाए अपने बेटे से अपनी चूत चुदाई की जबरदस्त इच्छा के आगे घुटने टेक दिए थे।

‘यह पहली और आख़िरी बार था…’ वो अपने मन में सोचती है।
वो इस तरह खुद के साथ जिंदगी नहीं जी सकती थी कि जब भी उसके बेटे का लण्ड खड़ा होगा.. तो वो उसे चूस कर जा अपनी चूत में लेकर शान्त करेगी।
‘नहीं में दोबारा ऐसा हरगिज़ नहीं होने दूँगीं..’ वो सोचती है।

दोस्तो, आपको यह कहानी कैसी लगी.. जो भी मैं इसमें लिख रहा हूँ.. अक्षरश: सत्य है.. आप इसकी कामुकता को सिर्फ कामक्रीड़ा के नजरिए से पढ़िए.. और आनन्द लीजिए।
मुझे अपने विचारों से अवगत कराने के लिए मुझे ईमेल अवश्य कीजिएगा।
आपका अपना देवराज
[email protected]

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