मकान मालकिन और उसके बेटे की चुदास -3

(Makan Malkin Aur Uske Bete Ki Chudas- Part 3)

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अब तक आपने पढ़ा..

‘आहह.. मम्मी मैं तुम्हें बता नहीं सकता मुझे कैसा महसूस हो रहा है.. मैंने सोचा भी नहीं था कि इसमें इतना मज़ा आएगा..’ रवि अपनी मम्मी के सिर को दोनों हाथों से थामे हुए कांप सा रहा था।
‘इसे अपने मुँह में अन्दर तक डालो मम्मी.. चूसो इसे.. हाय मम्मी.. अच्छे से और ज़ोर से चूसो..’
दिव्या ने अपनी आँखें बंद कर लीं.. वो अपने दिमाग़ में गूँज रही उस आवाज़ को बंद कर देना चाहती थी.. जो उसे बता रही थी कि वो अब ऐसी माँ बन गई है.. जो अपने ही बेटे का लण्ड मुँह में लेकर चूसती है।
अब आगे..

धीरे-धीरे उसके होंठ अपने बेटे के लण्ड की कोमल त्वचा पर फिसलने लगे।

एक-एक इंच कर सुड़कते हुए वो उस विशालकाय धड़कते लण्ड को मुँह में भरती जा रही थी। जब एक तिहाई लण्ड उस कामुक माँ के मुँह में समा जाता है तो वो गहरी साँस लेते हुए रुक जाती है। अगर वो इससे ज्यादा लण्ड को अपने मुँह में लेने की कोशिश करती.. तो उसका गला रुक जाता या उसकी साँस ही बंद हो जाती।

उसके बाद कामोत्तेजित माँ अपने बेटे के लण्ड को अत्यधिक कड़ाई से चूसना चालू कर देती है.. आँखें बंद रखते हुए वो संतुष्टिपूर्वक उसके अकड़े हुए लण्ड को चूसती है। वो अपने दिमाग़ में एक बेतुके.. निरर्थक विचार से उस गुनाह को न्यायसंगत.. और उचित ठहरा रही थी। जो अपने सगे बेटे के साथ वो कर रही थी.. इस विचार के तहत कि वो अपने बेटे के सामने साबित कर रही थी कि उसे कितना घिनौना और बुरा महसूस होगा.. अगर वो अपनी ही मम्मी को अपना लण्ड चुसवाएगा।

दिव्या ने ज़ोर लगाते हुए.. पूरा ज़ोर लगाते हुए उस लण्ड को चूसा। उसे इस बात से झटका लगता है कि वो कितनी तत्परता से अपने ही बेटे के लण्ड सुड़कते हुए चूस रही थी। वो अपने मुँह को बलपूर्वक उस लण्ड की जड़ तक पहुँचने की कोशिश करती है।
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बुरी तरह से खाँसते हुए वो पूर्ण आत्मबल से पूरे लण्ड को एक ही बार में निगलने की कोशिश करती है। इतनी देर से चल रही उस कठोर और गीली चुसाई का असर उस लण्ड पर अब दिखाई दे रहा था। वो बढ़ते हुए और भी बड़ा और कठोर हो गया था। बेटे के लण्ड का सुपारा अश्लीलतापूर्वक घमंड से अपनी मम्मी के गले की गहराई में चोट मार रहा था।

‘उमल्ल्ल अप्प्प..’ दिव्या के मुँह से निकलने वाली संतुष्टिपूर्वक लण्ड चुसाई की आती कामुक और सुड़कने की आवाज़ें बहुत ज्यादा उँची हो चुकी थीं और पूरे बेडरूम में गूँज रही थीं। उत्तेजनापूर्वक अपने सिर को ऊपर-नीचे करते हुए वो अपने बेटे के विकराल लण्ड को अपने मुँह से आगे-पीछे चोदना चालू कर देती है।

उसकी उंगलियाँ उसके लण्ड की जड़ पर कस जाती हैं। फिर वो प्रगाड़ता के साथ सुपारा चूसते हुए लण्ड को मुठियाने लग जाती है। कुकरमुत्ते जैसे सुपारे पर उसकी जिव्हा गोल-गोल घूमते हुए उसे थूक से चिपड़ते हुए नमकीन रस को चाटती है.. जो उस विशाल अकड़े लण्ड से टपक रहा होता है।

‘मम्मी.. आह्ह.. मैं जल्द ही.. आहह.. झड़ने वाला हूँ..’ रवि करहता हैं उंगग्घ.. मम्मी.. मुझे एहसास हो रहा है.. मेरे टट्टे भारी माल से पूरी तरह भर गए हैं.. आह्ह.. और चूसो इसे.. मेरे लण्ड को ज़ोर से चूसो मम्मी.. तुम वाकयी में ग़ज़ब का लण्ड चूसती हो..’

बेटे की वो शर्मनाक.. घृणित टिप्पणी सुन कर दिव्या के कानों में रस सा घुल जाता है। उसकी चेहरा लाल हो जाता है और वो जितनी कठोरता से उस लण्ड को चूस सकती थी.. चूसना चालू कर देती है।

कामरस से भरे उस लण्ड के उसके मुँह में होने के कारण उसके गाल शीघ्रता से फैलते और सिकुड़ते हैं। वो बेताब थी एक बहुत भारी फुव्वारे के फूटने के लिए। उसके मन में एक नई इच्छा ने जन्म ले लिया था कि उसका बेटा उसे उसका पूरा वीर्य निगलने के लिए बाध्य कर दे।

‘आह्ह.. पी जाओ इसे मम्मी.. मैं आ रहा हूँ.. आहह आ रहा हूँ.. आअहहह..’

वो उचक कर उसका सिर पकड़ लेता है और धक्का मारकर चोदते हुए अपने लण्ड को एक इंच और उसके होंठों के अन्दर पहुँचा देता है। धक्के के कारण वो बिस्तर से नीचे उतर जाता है। दिव्या की साँस रुक जाती है.. मगर आख़िरकार उसकी इतनी जबरदस्त.. कामुक लण्ड चुसाई की मेहनत का फल उसे मिला था।

लण्ड के सूजे हुए सुपारे से वीर्य की एक तेज पिचकारी फूटती है.. जो उस कामरस की प्यासी उस माँ के गले की गहराई में थरथराहट से चोट करती है।

‘उम्म्म अल्ल्लप्प्प्प.. गुडुप.. पप..’ दिव्या के मुँह से ‘गलाल.. गलाल..’ की आवाज़ आती है।

लण्ड उसके मुँह में रस उगलने लगता है। उसके गले में रस की तेज़-तेज़ धाराएँ फूटती हैं.. जो गले में अन्दर की ओर बहने लगती हैं। उत्तेजनावश वो उस विशाल गाढ़े रस फेंक रहे लौड़े से चिपक जाती है। उसे अपने नवयुवक बेटे के वीर्य का स्वाद अत्यधिक स्वादिष्ट लगता है।

कामोत्तेजित माँ पूरी बेशरमी से लण्ड को चूसने का.. उसे मुठियाने का.. और उसका रस पीने का.. तीनों काम एक साथ शुरू कर देती है। वो अपने बच्चे के लण्ड को तब तक छोड़ना नहीं चाहती थी जब तक कि वो उससे निकलने वाले नमकीन रस की आख़िरी बूँद तक ना पी जाए।

कुछ देर बाद वीर्य का विस्फोट रुक जाता है और पतली सी कमर की उस अत्यधिक सुंदर माँ को अपना पेट लण्ड-रस से पूरा भरा हुआ महसूस होता है.. जिसकी उसने मन ही मन में लालसा पाल रखी थी।
वो अपने सिर को अपने बेटे के लण्ड से ऊपर उठाती है। स्तब्ध और अपरचित उत्तेजना में वो अपनी जिव्हा को अपने मुँह के चारों ओर घुमा कर बाकी की क्रीम भी चाट लेती है।
दिव्या की साँसें बहुत भारी हो गई थीं और उसकी चूत तो इतनी गीली हो उठी थी कि उसकी कच्छी सामने से पूरी तरह गीली हो गई थी।

रवि का लण्ड अभी भी बहुत सख्ती से खड़ा हुआ था और उसकी मम्मी के मुँह के आगे फड़फड़ा रहा था। दिव्या ने जब कल्पना की कि उसके बेटे का विकराल.. मोटा.. चूत खुश कर देने वाला लण्ड.. उसकी चूत में गहराई तक घुस कर.. अन्दर-बाहर होते हुए.. कैसे उसकी चूत की चुदाई करेगा.. तो उसने अपनी चूत में एक मस्त ऐंठन महसूस की।

‘वेल.. मुझे उम्मीद है बेटा कि अब तुम पूरी तरह से संतुष्ट हो गए होगे..?’ दिव्या हाँफते हुए बोलती है।
‘तुम वास्तव में मम्मी से अपना विशाल लण्ड चुसवाने में कामयाब हो गए.. मेरा अनुमान है.. अब तुम अपनी मम्मी के साथ और गंदे काम करने के तमन्ना भी रखते होगे..’

रवि दाँत निकालते हुए ‘हाँ’ में सिर हिलाता है।
दिव्या अपने पाँव पर खड़ी होती है.. उसके हाथ अपनी शर्ट के बटनों को बेढंग तरीके से टटोलते हैं.. क्यों उसकी आँखें तो अपने बेटे के विशालकाय लण्ड पर जमी हुई थीं। वो चाह कर भी उससे नज़रें नहीं हटा पा रही थी।

‘तो फिर मेरे ख्याल से अच्छा होगा कि अगर तुम अपने बाकी के कपड़े भी उतार दो। रवि अब जब हमने शुरूआत कर ही ली है.. तो यही अच्छा होगा कि तुम्हारे दिमाग़ से ये घृणित हसरतें हमेशा हमेशा के लिए निकाल दी जाएँ।’

रवि बेशर्मी से हँसता है और अपने जूते उतार कर.. अपनी पैंट भी उतार देता है.. जो उसके घुटनों में इतनी देर से फंसी हुई थी। अब उसके जिस्म पर केवल एक कमीज़ बची थी। उसकी नज़र में मम्मी की जोरदार ठुकाई करने के लिए उसे अपनी कमीज़ उतारने की कोई ज़रूरत नहीं थी। ऐसी ठुकाई.. जिसकी शायद उसकी मम्मी तलबगार थी। वो नीचे फर्श पर बैठ जाता है और अपनी मम्मी को कपड़े उतारते हुए देखता है।

दिव्या के गाल शरम से लाल हो जाते हैं जब वो अपनी कमीज़ उतार कर अपने उन मोटे-मोटे गोल-मटोल मम्मों को नंगा कर देती है। वो चूचे.. जिन पर उसे हमेशा गुमान था और हो भी क्यों ना.. इस उम्र में भी उसके चूचे किसी नवयुवती की तरह पूरे कसावट लिए हुए थे..। उसके पूरी तरह तने हुए चूचे.. जो बाहर से जितने मुलायम और कोमल महसूस होते थे.. दबाकर मसलने पर उताने ही कठोर लगते थे।

दूधिया रंगत लिए हुए चूचे कश्मीर की चोटियों के समान जन्नत थे.. उस पर सजे हुए गहरे लाल रंग के चूचुक.. जो इस वक्त तन कर पूरी तरह से उभरे हुए थे। मम्मी की पतली और नाज़ुक कमर के ऊपर झूलते हुए वो विशालकाय चूचे.. किसी अखंड ब्रह्मचारी का ब्रह्मचर्य भी भंग करने के लिए काफ़ी थे।

‘तुम्हारे चेहरे के हावभाव को देखकर लगता है.. तुम्हें अपनी मम्मी के ये मोटे चूचे बहुत भा गए हैं। रवि मैं सच कह रही हूँ ना..? दिव्या बेशरमी से अपने बेटे को छेड़ती है।

दोस्तो, यह कहानी सिर्फ और सिर्फ काम वासना से भरी हुई.. जो भी मैं इसमें लिख रहा हूँ.. अक्षरश: सत्य है.. आप इसकी कामुकता को सिर्फ कामक्रीड़ा के नजरिए से पढ़िए.. और आनन्द लीजिए।
मुझे अपने विचारों से अवगत कराने के लिए मुझे ईमेल अवश्य कीजिएगा।

कहानी जारी है।
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