धोबी घाट पर माँ और मैं -13

(Dhobi Ghat Per Maa Aur Main-13)

जलगाँव बॉय 2015-08-02 Comments

This story is part of a series:

माँ एक बार जरा पीछे घूम जाओ ना!’
‘ओह, मेरा राजा मेरा पिछवाड़ा भी देखना चाहता है क्या? चल, पिछवाड़ा तो मैं तुझे खड़े खड़े ही दिखा देती हूँ। ले देख अपनी माँ के चूतड़ और गाण्ड को।’
इतना कह कर माँ पीछे घूम गई।

ओह, कितना सुन्दर दृश्य था वो। इसे मैं अपनी पूरी जिन्दगी में कभी नहीं भूल सकता।
माँ के चूतड़ सच में बड़े खूबसूरत थे, एकदम मलाई जैसे, गोल मटोल, गुदाज, माँसल… और उन चूतड़ों के बीच में एक गहरी लकीर सी बन रही थी, जो कि उसकी गांड की खाई थी।
मैंने माँ को थोड़ा झुकने को कहा तो माँ झुक गई और आराम से दोनों मक्खन जैसे चूतड़ों को पकड़ कर अपने हाथों से मसलते हुए, उनके बीच की खाई को देखने लगा।

दोनों चूतड़ों के बीच में गाण्ड का भूरे रंग का छेद फकफका रहा था, एकदम छोटा सा गोल छेद।
मैंने हल्के-से अपने हाथ को उस छेद पर रख दिया और हल्के हल्के उसे सहलाने लगा, साथ में मैं चूतड़ों को भी मसल रहा था।
पर तभी माँ आगे घूम गई- चल मैं थक गई खड़े खड़े, अब जो करना है बिस्तर पर करेंगे।’
और वो बिस्तर पर चढ़ गई।

पलंग की पुश्त से अपने सिर को टिका कर उसने अपने दोनों पैरों को मेरे सामने खोल कर फैला दिया और बोली- अब देख ले आराम से, पर एक बात तो बता, तू देखने के बाद क्या करेगा? कुछ मालूम भी है तुझे या नहीं है?
‘माँ, चोदूँगा… आअ…’
‘अच्छा चोदेगा? पर कैसे? जरा बता तो सही कैसे चोदेगा?’
‘हाय, मैं पहले तुम्हारी चूची चूस्स…ना चाहता हूँ।’

‘चल ठीक है, चूस लेना, और क्या करेगा?’
‘ओह और!!?? औररररर चूत देखूँगा और फिर मुझे पता नहीं।’
‘पता नहीं !! यह क्या जवाब हुआ? पता नहीं? जब कुछ पता नहीं तो माँ पर डोरे क्यों डाल रहा था?’
‘ओह माँ, मैंने पहले किसी को किया नहीं है ना, इसलिये मुझे पता नहीं है। मुझे बस थोड़ा बहुत पता है जो मैंने गांव के लड़कों के साथ सीखा था।’
‘तो गाँव के छोकरों ने यह नहीं सिखाया कि कैसे किया जाता है? सिर्फ़ यही सिखाया कि माँ पर डोरे डालो।’
‘ओह माँ, तू तो समझती ही नहीं। अरे, वो लोग मुझे क्यों सिखाने लगे कि तुम पर डोरे डालो। वो तो… वो तो तुम मुझे बहुत सुन्दर लगती हो इसलिये मैं तुम्हें देखता था।’

‘ठीक है, चल तेरी बात समझ गई बेटा कि मैं तुझे सुन्दर लगती हूँ। पर मेरी इस सुन्दरता का तू फायदा कैसे उठायेगा, उल्लू यह भी
तो बता देना कि सिर्फ़ देख कर मुठ मार लेगा?’
‘हाय माँ नहीं, मैं तुम्हें चोदना चाहता हूँ। माँ तुम सिखा देना, सिखा दोगी ना?’
कह कर मैंने बुरा सा मुंह बना लिया।

‘हाय मेरा बेटा, देखो तो माँ की लेने के लिये कैसे तड़प रहा है? आ जा मेरे प्यारे, मैं तुझे सब सिखा दूँगी। तेरे जैसे लंड वाले बेटे को तो कोई भी माँ सिखाना चाहेगी। तुझे तो मैं सिखा पढ़ा कर चुदाई का बादशाह बना दूँगी। आ जा, पहले अपनी माँ की चूचियों से खेल ले जी भर के, फिर तुझे चूत से खेलना सिखाती हूँ बेटा।’

मैं माँ की कमर के पास बैठ गया।

माँ पूरी नंगी तो पहले से ही थी, मैंने उसकी चूचियों पर अपना हाथ रख दिया और उनको धीरे-धीरे सहलाने लगा। मेरे हाथ में शायद दुनिया की सबसे खूबसूरत चूचियाँ थी। ऐसी चूचियाँ जिनको देख कर किसी का भी दिल मचल जाये।

मैं दोनों चूचियों की पूरी गोलाई पर हाथ फेर रहा था, चूचियाँ मेरी हथेली में नहीं समा रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं ज़न्नत में घूम रहा हूँ। माँ की चूचियों का स्पर्श गजब का था, मुलायम, गुदाज और सख्त गठीलापन, यह सब एहसास शायद अच्छी गोल मटोल चूचियों को दबा कर ही पाया जा सकता है। मुझे इन सारी चीजों का एक साथ आनन्द मिल रहा था।

ऐसी चूची दबाने का सौभाग्य नसीब वालों को ही मिलता है। इस बात का पता मुझे अपने जीवन में बहुत बाद में चला, जब मैंने दूसरी
अनेक तरह की चूचियों का स्वाद लिया।

माँ के मुख से हल्की हल्की आवाजें आनी शुरु हो गई थी और उसने मेरे चेहरे को अपने पास खींच लिया और अपने तपते हुए गुलाबी होंठों का पहला अनूठा स्पर्श मेरे होंठों को दिया।
हम दोनों के होंठ एक दूसरे से मिल गये और मैं माँ की दोनों चूचियों को पकड़े हुए उसके होंठों का रस ले रहा था। कुछ ही सेकन्ड में हमारी जीभ आपस में टकरा रही थी।
मेरे जीवन का यह पहला चुम्बन करीब दो तीन मिनट तक चला होगा।
माँ के पतले होंठों को अपने मुख में भर कर मैंने चूस चूस कर और लाल कर दिया। जब हम दोनों एक दूसरे से अलग हुए तो दोनों हाँफ रहे थे।

मेरे हाथ अब भी उसकी दोनों चूचियाँ पर थे और मैं अब उनको जोर जोर से मसल रहा था। माँ के मुख से अब और ज्यादा तेज सिसकारियाँ निकलने लगी थी, माँ ने सिसकारते हुए मुझसे कहा- ओह… ओह… सिस्स… सी… सी… सश्सह्… शाबाश, ऐसे ही प्यार कर मेरी चूचियों से। हल्के हल्के आराम से मसल बेटा, ज्यादा जोर से नहीं, नहीं तो तेरी माँ को मजा नहीं आयेगा, धीरे धीरे मसल!

मेरे हाथ अब माँ की चूचियों के निप्पल से खेल रहे थे, उसके निप्पल अब एकदम सख्त हो चुके थे, हल्का कालापन लिये हुए गुलाबी रंग के निप्पल खड़े होने के बाद ऐसे लग रहे थे जैसे दो गोरी, गुलाबी पहाड़ियों पर बादाम की गिरी रख दी गई हो।
निप्पलों के चारों ओर उसी रंग का घेरा था।
ध्यान से देखने पर मैंने पाया कि उस घेरे पर छोटे-छोटे दाने से उगे हुए थे। मैं निप्पलों को अपनी दो उंगलियों के बीच में लेकर धीरे धीरे मसल रहा था और प्यार से उनको खींच रहा था।
जब भी मैं ऐसा करता तो माँ की सिसकारियाँ और तेज हो जाती थी।

माँ की आँखें एकदम नशीली हो चुकी थी और वो सिसकारियाँ लेते हुए बड़बड़ाने लगी- ओह, बेटा ऐसे ही… ऐसे ही, तुझे तो सिखाने की भी जरूरत नहीं है रे। ओह क्या खूब मसल रहा है मेरे प्यारे… ऐसे ही… कितने दिन हो गये जब इन चूचियों को किसी मर्द के हाथ ने मसला है या प्यार किया है। कैसे तरसती थी मैं कि काश कोई मेरी इन चूचियों को मसल दे, प्यार से सहला दे, पर आखिर में अपना बेटा ही काम आया। आजा मेरे लाल।
कहते हुए उसने मेरे सिर को पकड़ कर अपनी चूचियों पर झुका लिया।

मैं माँ का इशारा समझ गया और मैंने अपने होंठ माँ की चूचियों से भर लिये। मेरे एक हाथ में उसकी एक चूची थी और दूसरी चूची पर मेरे होंठ चिपके हुए थे।
मैंने धीरे धीरे उसकी चूचियों को चूसना शुरु कर दिया था, मैं ज्यादा से ज्यादा चूची को अपने मुँह में भर कर चूस रहा था। मेरे अन्दर का खून इतना उबाल मारने लगा था कि एक दो बार मैंने अपने दाँत भी चूचियों पर गड़ा दिए थे जिससे माँ के मुँह से अचानक चीख निकल गई थी।

पर फिर भी उसने मुझे रोका नहीं, वो अपने हाथों को मेरे सिर के पीछे ले जाकर मुझे बालों से पकड़ कर मेरे सिर को अपनी चूचियों पर और जोर जोर से दबा रही थी और दाँत से काटने पर एकदम घुटी घुटी आवाज में चीखते हुए बोली- ओह धीरे बेटा, धीरे से चूस चूची
को। ऐसे जोर से नहीं काटते हैं।

फिर उसने अपनी चूची को अपने हाथ से पकड़ा और उसको मेरे मुँह में घुसाने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे वो अपनी चूची को पूरी की पूरी मेरे मुँह में घुसा देना चाहती हो और सिसकार कए बोली- ओह राजा बेटा, मेरे निप्पल को चूस जरा, पूरे निप्पल को मुँह में भर कर कस कस के चूस राजा। जैसे बचपन में दूध पीने के लिये चूसता था।

मैंने अब अपना ध्यान निप्पल पर कर दिया और निप्पल को मुंह में भर कर अपनी जीभ उसकी चारों तरफ गोल गोल घुमाते हुए चूसने लगा।
मैं अपनी जीभ को निप्पल के चारों तरफ के घेरे पर भी फिरा रहा था। निप्पल के चारों तरफ के घेरे पर उभरे हुए दानों को अपनी जीभ से कुरेदते हुए निप्पल को चूसने पर माँ एकदम मस्त हुए जा रही थी और उसके मुख से निकलने वाली सिसकारियाँ इसकी गवाही दे रही थी।

मैं उसकी चीखें और सिसकारियाँ सुन कर पहले पहल तो डर गया था। पर माँ के द्वारा समझाये जाने पर कि ऐसी चीखें और सिसकारियाँ इस बात को बता रही हैं कि उसे मजा आ रहा है तो फिर मैं दोगुने जोश के साथ अपने काम में जुट गया, जिस चूची को मैं चूस रहा था, वो अब पूरी तरह से मेरी लार और थूक से भीग चुकी थी और लाल हो चुकी थी, फिर भी मैं उसे चूसे जा रहा था।

तब माँ ने मेरे सिर को वहाँ से हटा के अपनी दूसरी चूची की तरफ करते हुए कहा- हाय, केवक इसी एक चूची को चूसता रहेगा, दूसरी को भी चूस, इसमें भी मज़ेदार स्वाद है।
फिर अपनी दूसरी चूची को मेरे मुँह में घुसाते हुई बोली- इसको भी चूस चूस कर लाल कर दे मेरे लाल, दूध निकाल दे मेरे सैंय्या। एकदम आम जैसे चूस और सारा रस निकाल दे अपनी माँ की चूचियों का। किसी काम की नहीं हैं ये, कम से कम मेरे लाल के काम तो आएँगी।

मैं फिर से अपने काम में जुट गया और पहली वाली चूची दबाते हुए, दूसरी को पूरे मनोयोग से चूसने लगा।

माँ सिसकारियाँ ले रही थी और चूची चुसवा रही थी, कभी कभी अपना हाथ मेरी कमर के पास लेजा कर मेरे लोहे जैसे तने हुए लंड को पकड़ कर मरोड़ रही थी। कभी अपने हाथों से मेरे सिर को अपनी चूचियों पर दबा रही थी।
इस तरह काफ़ी देर तक मैं उसकी चूचियों को चूसता रहा।

फिर माँ ने खुद अपने हाथों से मेर सिर पकड़ के अपनी चूचियों पर से हटाया और मुस्कुराते मेरे चेहरे की ओर देखने लगी।
मेरे होंठ मेरे खुद के थूक से भीगे हुए थे, माँ की बांयी चूची अभी भी मेरे लार से चमक रही थी, जबकि दाहिनी चूची पर लगा थूक सूख चुका था पर उसकी दोनों चूचियाँ लाल हो चुकी थी और निप्पलों का रंग हल्के काले से पूरा काला हो चुका था (ऐसा बहुत ज्यादा चूसने पर खून का दौर भर जाने के कारण हुआ था।

माँ ने मेरे चेहरे को अपने होंठों के पास खींच कर मेरे होंठों पर एक गहरा चुम्बन लिया और अपनी कातिल मुस्कुराहट फेंकते हुए मेरे
कान के पास धीरे से बोली- सिर्फ़ दूध ही पीयेगा या मालपुआ भी खायेगा? देख तेरा मालपुआ तेरा इन्तजार कर रहा है राजा।

मैंने भी माँ के होंठो का चुम्बन लिया और फिर उसके भरे-भरे गालों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा और फिर उसके नाक को चूम और फिर धीरे से बोला- ओह माँ, तुम सच में बहुत सुन्दर हो।
इस पर माँ ने पूछा- क्यों, मजा आया ना चूसने में?

‘हाँ माँ, गजब का मजा आया, मुझे आज तक ऐसा मजा कभी नहीं आया था।’
तब माँ ने अपने पैरों के बीच इशारा करते हुए कहा- नीचे और भी मजा आयेगा। यह तो केवल तिजोरी का दरवाजा है, असली खजाना तो नीचे है। आ जा बेटे, आज तुझे असली मालपुआ खिलाती हूँ।
कहानी जारी रहेगी।
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