प्रशंसिका ने दिल खोल कर चूत चुदवाई-12

(Prashansika Ne Dil Khol Kar Chut Chudwayi- Part 12)

This story is part of a series:

दूसरे दिन रात की हम लोगों की ट्रेन थी। सुबह को हम लोग उठे, एक दूसरे के ही सामने टट्टी पेशाब किये और एक दूसरे को नहलाकर कपड़े पहनाये।
मैंने रचना को रात में लाई हुई गाउन दी और फिर बाहर आकर एक रेस्टोरेन्ट में नाश्ता किया।
रचना कमरे वापस चली आई क्योंकि उसे अपना सामान पैक करना था और मैं ऑफिस चला गया।

दो घंटे काम निपटाने के बाद जब वापस मैं कमरे में लौटा तो रचना ने वही गाउन पहन रखा था जो मैंने सुबह उसे गिफ्ट दिया था। मोटी होने के बावजूद वो बहुत ही सेक्सी लग रही थी, खास तौर से उसके उठे हुए चूतड़।

मैंने उसको पीछे से पकड़ लिया और उसकी चूचियो को दबाते हुए और गालों को चूमते हुए पूछा- क्या हो रहा है?
बहुत ही उदास होते हुए बोली- तैयारी कर रही हूँ जाने की, जो तीन दिन और रात मजे लिये वो अब खत्म हो गए, अब अपने-अपने घर!

‘अरे जानेमन, अभी कहाँ खत्म हुआ, अभी तो मजा ले ही सकते हैं।’
वो तुरन्त मेरी तरफ घूमी और मेरी आँखों की तरफ देखते हुए बोली- हाँ यार, कम से कम चार पाँच घंटे हैं ही अपने पास जिसमें तुम्हारा लण्ड मेरी चूत की गुफा में एक बार और घूम कर आ सकता है और गांड की भी सैर कर सकता है। हुम्म?
कहकर मुस्कुराई और तुरन्त अपने गाउन को उतार कर एकदम नंगी हो गई।

‘अर र र्र र्र र्र रूको तो सही…’ मैं बोला।
‘क्या हुआ?’ मैं उसकी तरफ देखते हुए बोला- अरे यार, प्यास लगी हुई है, पानी तो पी लेने दो।
‘ओ.के.’ कहकर वो कमरे में पानी की बोतल लेने गई, मैं उसके पीछे-पीछे चलने लगा, उसकी मटकती हुई गांड बड़ी ही मदमस्त लग रही थी।

कमरे में चार-पाँच बोतल पड़ी थी, पर किसी में पानी ही नहीं था।
‘सॉरी यार, मैंने पैकिंग करने के चक्कर में बोतल पर ध्यान ही नहीं दिया।’
‘कोई बात नहीं…’
जल्दी बाजी मैं मैंने अपने कपड़े नहीं उतारे, नहीं तो पानी कहाँ से पीता।
‘मैं पानी लेकर आता हूँ।’ कहकर मैं चलने लगा तो मुझे रोकते हुये वो बोली- कहाँ जा रहे हो? डायरेक्ट नल का तो पानी पिया ही जा सकता है।

मैं उसकी तरफ देखने लगा।
तभी मुझे ध्यान आया और मैं बाथरूम की ओर गया, वहाँ का नल चलाया तो वो भी सूखा पड़ा हुआ था।
‘पानी आ ही नहीं रहा इस नल में?’ मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा।

वो मुस्कुराई और अपनी चूत की फांकों को हाथों से फैलाती हुई बोली- इस नल में है पानी?
मैं थोड़ा नाराज होते हुए बोला- क्या यार हर समय…?
‘ओह ओह… गुस्सा मत हो, क्या है न कि तुम्हें प्यास लगी है और मुझे मूतास इसलिये मैं बोल रही थी, फिर मुझे कहाँ मौका मिलेगा तुमसे अपनी बात मनवाने का?’ वो मुझसे चिपक कर बोली- यह लास्ट है और फिर कभी हमारी मुलाकात हो, न हो? तुमने अभी तक मेरी हर इच्छा मानी है, यह भी पूरा कर दो।’

‘कैसे पिलाओगी?’ मैंने उससे पूछा तो बोली- आधा बोतल से और आधा सीधे!
‘ठीक है।’ उसकी बात को रखते हुए मैंने भी अपने कपड़े उतार दिये, मेरा लंड तो रचना की नंगी चूत और गांड को देखते ही खड़ा हो गया था।

वो बोतल लेकर आई और चूत से सटा कर मूतने लगी। आधा मूतने के बाद उसने बोतल एक किनारे रखा और मुझे लेटने के लिये बोली।
मैं जमीन पर लेट गया और रचना सीधे मेरे मुँह में इस तरह बैठी कि मेरे मुँह और उसकी चूत का फासला एक या दो अंगुल रहा होगा। मैंने अपना मुँह खोला और उसने अपना नल खोला और वो धीरे-धीरे अपना गर्म पानी मुझे पिलाने लगी।

जब उसका गर्म पानी खत्म हो गया तो फिर मेरी जीभ उसकी चूत से जा लगा और जो एक दो बूँद उसकी चूत में बची थी उसे भी मैंने अपने अंदर ले लिया।
उसके बाद वो उठी और बोतल का आधा गर्म पानी उसने मुझे पिला दिया और आधा वो पी गई और फिर अपना मुँह खोल कर बोली- अभी मेरी प्यास नहीं बुझी है।

मेरा लंड तना हुआ था और मुझे भी पेशाब जोर से आ रही थी, मैंने उसके मुँह का निशाना बना कर धीरे से धार छोड़नी शुरू की।
थोड़ा मूत पिलाने के बाद मैंने रचना को कुतिया स्टाईल में खड़ा होने के लिये बोला और जब कुतिया स्टाईल में रचना घूम कर खड़ी हुई तो उसकी गांड को फैला कर उसके लंड सटाते हुए उसकी गांड में पेशाब करना शुरू किया उसके बाद बचा खुचा उसकी चूत खोल कर उसकी भग को निशाना बनाते हुए उसमें अपनी धार छोड़ दी।

हम लोगों ने गन्दगी की हर हद को पार कर दिया था।

फिर रचना ने मुझे छत पर चलने के लिये बोला। हम दोनों ही छत पर चल दिये और उस पत्थर पर मैं बैठ गया और रचना मेरे लंड को पकड़ कर अपने चूत में सेट करते हुए बैठ गई।
थोड़ी देर उसने उछल कूद मचाई, उसके बाद वो लंड पर बैठे ही बैठे घूमी और मेरी चुदाई शुरू कर दी।

फिर थोड़ी देर बाद मैंने उसे अपने ऊपर से हटाकर उसे उसी पत्थर पर लेटाया और उसकी एक टांग को अपने कंधे पर रखा और उसकी चूत पर लंड टिका कर एक जोरदार धक्का दिया।
हालाँकि इन दिनों में उसके चूत इतनी बार चुद चुकी थी कि जोर से धक्का देने का कोई फ़ायदा नहीं रहा, आसानी से चूत ने गपक लिया और अब चूत और लंड की थाप सुनाई दे रही थी और दोनों के मुँह से आह-ओह आह-ओह की आवाज आ रही थी।

रचना की चूत पनिया गई थी। मैंने तुरन्त ही उसकी चूत से लंड निकाला और उसकी चूत को चाटने लगा और उसके चूत के अन्दर बीच-बीच में उंगली डालकर उसकी चूत के अन्दर हिलाता और उसका जो माल उंगली में लगता, मैं उसके मुँह में उंगली डाल देता।
कभी मैं उसकी चूत को चाटता तो कभी उसकी गांड को।

जब उसकी गांड भी अच्छी तरह से गीली हो गई तो लंड को उसके छेद में पेल दिया।
एक बात तो सही है, रचना ने मेरा हर चीज में मेरा भरपूर साथ दिया, उसने जम कर जहाँ एक ओर अपनी चूद चुदवाई वहीं उसने अपनी गांड भी खूब मरवाई।

मुझे उसे चोदते काफी देर हो गई थी, मेरा माल भी बाहर आने वाला था, मैंने लंड को उसकी चूत से निकाला और उसके मुँह के पास ले गया उसने अपना मुँह खोल दिया।
मेरा कुछ माल उसके मुँह के अन्दर गिरा और कुछ माल उसके चेहरे पर… वो मेरे माल को अपने चेहरे पर ऐसे मल रही थी मानो कि वो कोई क्रीम लगा रही हो।

ऐसे करने के बाद उसने मेरे मुरझाये हुए लंड को चूमा और हम दोनों फिर कमरे में आ गये।
शायद रचना के साथ यह मेरी अन्तिम चुदाई थी।

फिर हम लोग नहा धोकर खाना खाने गये और बाकी की पैकिंग की और स्टेशन की ओर गाड़ी पकड़ने के लिये चल दिये और घर वापस लौटने के 10 दिन के बाद जब मैं इस एक्सपिरियेन्स को लिखने बैठा ही था कि रचना का फोन मेरे पास आया, हाल चाल पूछा और बोली कि अगर मुझे ऐतराज न हो तो वो सोमवार को गुड़गांव निकल रही है और वो चाहती है कि इस रविवार को मैं उसके घर मैं उसके साथ लंच शेयर करूँ!

मुझे क्या ऐतराज होता, मैं तो खाली ही बैठा था, मैंने हामी भर दी।
कहानी जारी रहेगी।
आपका अपना शरद
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