मेरा गुप्त जीवन- 164

(Mera Gupt Jeewan- part 164 Train Me Mili Ritu Bhabhi Ki Chudai)

यश देव 2016-05-02 Comments

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ट्रेन में मिली रितु भाभी की चुदाई

मैं सिर्फ मुस्करा भर दिया और हल्के से अपनी बाईं आँख मार दी पूनम को!
उस रात मैंने फिर से भाभी और भैया के साथ चुदाई का खेल खेला।
कम्मो और मैंने मिल कर भाभी और भैया को कामशास्त्र के सारे आसन कर के दिखाए और फिर पुनः उन आसनों को भैया भाभी से भी करवाया।

उस रात मैंने भाभी को कम से कम चार बार चोदा जिनमें से तीन बार मेरा वीर्य स्खलन भाभी की चूत में हुआ।
उनके जाने से पहले कम्मो ने भाभी को चुप चाप यह बता दिया था कि वो गर्भवती हो चुकी हैं और यह सुन कर भाभी बहुत खुश हुई।

कम्मो भैया को इतनी ज़्यादा पसंद आई कि जब तक वो अपने घर नहीं लौटे, भैया उसको हर रात कई बार चोदते रहे।
उधर उनकी अनुपस्थति में मैं मौका देख कर दोनों भाभियों शन्नो और रश्मि को भी बारी बारी चोदता रहा।
तीनों कुंवारी कन्याओं और पूनम को भी बार बार चोदा।
यहाँ तक कि सब मेहमान आई स्त्रियों को इतना चोदा कि सबने कानों को हाथ लगाया और बार बार कहा- बस अब और नहीं सोमू!

फिर जब पूनम की शादी की पार्टी अपना काम पूरा कर चुकी और उनकी वापसी का प्रोग्राम अगले दिन का बन गया तो उस रात मैंने भी अपने कमरे में स्पेशल चुदाई दरबार लगा दिया जिसमें हर लड़की और औरत आकर चुदा सकती थी।
पूनम की भरपेट चुदाई तो होनी ही थी, साथ में उसके साथ आई उसकी सहेलियों की भी खूब चुदाई खातिर की गई।

उनके जाने के बाद घर कुछ सूना सूना लगने लगा और कम्मो के कहने पर मैंने अपने लौड़े को कुछ दिन पूरा आराम देना ठीक समझा और इस बीच कम्मो भी ख़ास किस्म के भोजन बना कर मुझको खिलाती रही।
कॉलेज में भी अब कोई ख़ास एक्टिविटी नहीं रह गई थी, वहाँ भी बोरियत थी।

फिर एक दिन मम्मी का फ़ोन आया कि मुझको कुछ दिनों के लिए दिल्ली जाना पड़ेगा क्यूंकि वहाँ मेरे एक दूर के चाचा के बड़े लड़के की शादी थी जो मुझको अटेंड करनी पड़ेगी।
हालांकि जाने का दिल तो नहीं था लेकिन मजबूरी थी।

अगली रात को जब मैं ट्रेन के फर्स्ट क्लास के डिब्बे में दाखिल हुआ तो वो एकदम खाली था और उसकी सारी 4 बर्थ खाली पड़ी हुई थी।
मेरी नीचे की बर्थ थी, मैंने उस पर अपना बिस्तर बिछा दिया और गाड़ी के चलने की इंतज़ार करने लगा।

गाड़ी चलने से कोई दस मिनट पहले ही एक जोड़ा आ गया डिब्बे में अपने सामान के साथ और दूसरी नीचे की बर्थ पर सामान रख दिया।
मैंने ध्यान से देखा तो आदमी कोई 40-45 के पास की उम्र का होगा और उस के साथ वाली औरत जो शायद उसकी बीवी थी, कोई 24-25 की सुंदर स्त्री लग रही थी।

उनके बैठते ही थोड़ी देर बाद गाड़ी चल पड़ी और साथ ही टिकट चेकर भी डिब्बे में आ गया।
उसके जाने के बाद पुरुष ने अपने बिस्तरबंद को नीचे की सीट पर बिछा दिया।
मैं भी कॉलेज की किताब निकाल कर पढ़ने की कोशिश करने लगा।

थोड़ी देर बाद मुझको लगा कि वो स्त्री मुझको छुप छुप कर देख रही है और एक दो बार हम दोनों की आँखें चार भी हुई और उसके होटों पर एक हल्की सी मुस्कान भी दिखी मुझ को!
तभी उस व्यक्ति ने मुस्करा कर मुझ से पूछा- क्या तुम दिल्ली जा रहे हो?
मैंने जवाब में कहा- जी हाँ और आप?

वो व्यक्ति बोला- हम भी दिल्ली ही जा रहे हैं। वहाँ हमारे एक रिश्तेदार के लड़के की शादी अटेंड करने जा रहे हैं हम दोनों। यह मेरी पत्नी है। क्या तुम कॉलेज में पढ़ते हो? क्या नाम है कॉलेज का?

मैंने बता दिया।
तब उन्होंने अपना परिचय दिया, वो लखनऊ के पास के गाँव के ज़मींदार थे और वो ज़्यादा टाइम लखनऊ में ही रहते थे।
थोड़ी देर चुप्पी के बाद उनकी पत्नी बोली- क्या आप फिल्मों में भी काम करते हैं?
मैंने हँसते हुए पूछा- आपको कैसे पता चला?
वो बोली- कुछ दिन पहले मैंने एक फिल्म देखी थी लखनऊ मेंम उसमें एक बहुत सुंदर डांस किया गया था और उस डांस में कई लड़कियाँ भी थी और सिर्फ एक ही लड़का था और उस डांस करने वाले लड़के की शक्ल आपसे बहुत मिलती है।

थोड़ी देर मैं सर झुका कर सोचता रहा कि क्या सच बता दूँ या फिर चुप रहूँ?
फिर मैंने उस स्त्री की तरफ देखा और वो बड़े ही गौर से मुझको देख रही थी।

मैंने मुस्कराते हुए कहा- हाँ जी, वो मैं ही था जिसने वो डांस किया था पिछले साल!
तभी वो विस्फारित नेत्रों से मुझको देखते हुए बोली- क्या आपका ही नाम सोमेश्वर है?
मैंने हामी में सर हिला दिया और इतना सुनते ही वो एकदम ख़ुशी से पागल हो गई और जल्दी से अपनी सीट से उठ कर मेरे पास आई और मुझसे अपना हाथ मिलाया।
उसके पति ने भी उठ कर मेरा हाथ मिलाया।

तब वो महिला बोली- मेरा नाम रितु सिंह है, यह मेरे पति है शाम सिंह। आप कहाँ रहते हो लखनऊ में?
मैंने अपना पता बता दिया और वो चहक के बोली- अरे, यह तो हमारे घर के बिल्कुल पास है, चलो अच्छा हुआ आपसे मुलाकात हो गई। मैंने सुना था कि सोमेश्वर सिंह जी यहीं लखनऊ में ही रहते है लेकिन यह उम्मीद नहीं थी कि आपसे मुलाक़ात इस तरह हो जायेगी।

तब शाम सिंह जी बोले- कौन से साल में हो कॉलेज में बरखुरदार?
मैंने बता दिया लेकिन रितु बहुत ज़्यादा चहक रही थी और बार बार वो मेरे डांस की बातें करने में ज़्यादा खुश थी।
मैंने भी बहुत बड़ा चढ़ा कर गाँव में हुए डांस की कथा को सुना दिया, सारी बातें सुन कर रितु का चेहरा खिल उठता था।

अब मैंने रितु को ध्यान से देखा, वो काफी सुंदर शक्लो-सूरत वाली थी, उसका शरीर भी बड़ा ही सुडौल और आकर्षक बनावट का था।
उसकी सुंदरता उसकी सिल्क की हल्की नीली साड़ी में और भी अधिक चमक रही थी।
उसकी साड़ी का पल्लू बार बार उस के वक्षस्थल से ढलक रहा था और वो कुछ जानबूझ कर भी उसको नीचे गिरा रही थी ताकि मैं उसके मोटे और सॉलिड मम्मों का दर्शन कर सकूँ।

उसका पति शाम सिंह इन सब बातों से बेखबर अखबार पढ़ने में व्यस्त था।
रितु ने एक दो बार अपनी साड़ी को उठा कर सीट पर बैठते हुए अपनी सेक्सी टांगों के दर्शन करवा दिए।

थोड़ी देर बाद शाम सिंह जी उठे और अपना बिस्तर रितु के ऊपर वाली सीट पर बिछा दिया और एक डब्बी से कुछ निकाल कर मुंह में डाल लिया और पानी पी कर ऊपर वाली सीट पर चढ़ गए, जाते जाते मुझ को कह गए कि मैं कूपे को लॉक कर दूँ।

अब रितु भाभी मुझ को बड़ी बेबाकी से घूरने लगी और कई बार अपने पल्लू को नीचे गिराने लगी।
कोई आधा घंटा ऐसा ही चलता रहा और मैं अपने बिस्तर से चादर निकाल कर अपनी सीट पर लेट गया।

थोड़ी देर मेरे लेटने के बाद मैंने महसूस किया कि रितु भाभी मुझको इशारे से अपने पास बुला रही है लेकिन मैंने आँखों के इशारे से ऊपर लेटे हुए शाम सिंह जी की तरफ रितु का ध्यान आकर्षित किया।
तब रितु ने मुझको अपने पास फिर बुलाया और मैं आखिर में उठ कर उसके बिस्तर पर चला गया।

रितु ने मेरे कान में फुसफुसा कर कहा- शाम सिंह जी तो अफीम की गोली खाकर बेसुध होकर सो रहे हैं।
फुसफुसाने के बाद रितु ने मुझको कन्धों से पकड़ लिया और मेरे होटों पर अपने मादक रसीले होंठ रख दिए।

मैं अकचका गया लेकिन फिर भी मैंने रितु का मुंह अपने हाथों में ले लिया और उसके पूरे मुंह पर चुम्मियों की बौछार लगा दी।
फिर मैंने उसको रोक दिया और ध्यान से शाम सिंह को देखने लगा और जब मुझको पक्का यकीन हो गया कि वो बेसुध सोया है तो मैंने कूपे की लाइट बंद कर दी और सिर्फ हल्की नीली नाईट लाइट को जलाये रखा।

अब मैं रितु भाभी के साथ लेट गया और सीधे अपने हाथ को उसके सॉलिड मम्मों के ऊपर रख दिया।
भाभी ने भी बिना देरी किये अपना हाथ मेरी पैंट पर लौड़े के ऊपर रख दिया और पैंट के बटन खोलने लगी।

मैंने भी भाभी की साड़ी और पेटीकोट के अंदर अपना एक हाथ डाल दिया और उसकी बालों से भरी चूत को सहलाने लगा, रितु भाभी की चूत एकदम पानी से सराबोर हो रही थी.
रितु भाभी ने खुद ही अपने ब्लाउज के बटन खोल दिए और अपनी ब्रा को भी ऊपर कर दिया और मैं उसके मम्मों को बड़े मज़े से चूसने लगा और रितु भाभी मेरे एकदम अकड़े हुए लौड़े से खेलने लगी।

कुछ देर की भाभी की भग की घिसाई के बाद भाभी ने मेरे लौड़े को खींचना शुरू कर दिया और मैं मजबूरन भाभी की साड़ी पेटीकोट को पूरा पेट के ऊपर उठा कर अपने लंड को उसकी चूत के बाहर थोड़ा रगड़ कर पूरा अंदर धकेल दिया।
मेरे लंड के साइज से भाभी थोड़ी बिदकी लेकिन जब लंड पूरा उसकी चूत के अंत तक पहुँच गया तो वो थोड़ी रिलैक्स हुई और फिर मैं धीरे धीरे उसकी चुदाई करने लगा।

मैं अपना मुंह भाभी के लबों को चूसने के बाद उसके गोल सॉलिड मम्मों के चूचुकों को मुंह में ले कर गोल गोल घुमाने लगा।
रितु भाभी अब नीचे से मस्त थाप देने लगी, उसने मुझको अपनी बाहों में कस के बाँध रखा था और पांच छः मिनट की ऐसी ही चुदाई में भाभी एकदम से मुझ से चिपट कर स्खलित हो गई।

मैं भाभी के ऊपर से उठने लगा लेकिन भाभी ने मुझको अभी भी बाहों में बाँध रखा था और अपनी दोनों टांगों को मेरे इर्दगिर्द कमर से लपेट रखा था ताकि मैं भाभी के ऊपर से हिल ना सकूँ।
मैंने दुबारा भाभी को चोदना शुरू किया, आहिस्ता आहिस्ता रेलगाड़ी की चलने की लय से अपने धक्कों को मिलाते हुये भाभी की प्यारी सी चुदाई जारी रखी।

उसके लबों को चूमते और मम्मों की चूचियों को चूसते हुए एक बार फिर भाभी को कामुकता के शिखर पर लाकर ज़ोरदार रेल के इंजिन के समान लंड को अंदर बाहर करते हुए भाभी को फिर से छूटने के लिए मजबूर कर दिया।
भाभी का दुबारा छूटना काफी तीव्र था और वो काफी देर तक सारे शरीर के साथ कांपती रही।

लेकिन भाभी ने मेरे दोबारा उसके ऊपर से उठने की कोशिश को फिर नाकाम कर दिया तब मैंने एक झटके से भाभी के ऊपर से उठा और भाभी को अपने ऊपर लिटा लिया बिना लंड चूत का साथ छोड़े हुए!
भाभी को यह पोज़ बड़ा ही पसंद आया और वो उछल उछल कर मुझको चोदने लगी।

भाभी की चुदाई का आलम यह था कि ना वो खुद आराम कर रही थी और ना ही वो मुझको आराम करने देना चाहती थी।
थोड़ी बहुत उछल कूद के बाद भाभी फिर से झड़ गई और मुझको एक गर्म चुम्बन देते हुए बोली- सोमू यार, तुमने मेरी कई महीनों की चूत की प्यास को शांत कर दिया। मेरी चूत में तो काम वासना की आग लगी हुई थी लेकिन यह अफीमची उसका कुछ नहीं कर पाता था, आज तुमने मेरी आग कुछ हद तक बुझा दी!

‘अरे, तुम्हारा लंड तो अभी भी खड़ा है?’ भाभी ने मेरे खड़े लंड के साथ खेलना शुरू कर दिया और थोड़ी देर बाद वो झुकी और उसको चूसने लगी।
मैं भी उसके गोल गुदाज चूतड़ों के साथ मस्ती से खेलने लगा।

जब रितु भाभी लंड के साथ खेल चुकी तो मैंने उसको घोड़ी बना कर चोदना शुरू किया और शायद यह पोज़ भाभी ने पहली बार देखा था, वो बार बार मुड़ मुड़ कर देख रही थी कि मैं क्या कर रहा हूँ।
रितु भाभी बहुत ही ज़्यादा कामुक हो चुकी थी, वो अपने चूतड़ों को भी आगे पीछे कर रही थी ताकि वो घुड़चढ़ी का पूरा आनन्द ले सके!

जब मेरे धक्कों की स्पीड बहुत तेज़ हो गई तो भाभी ने हिलना बंद कर दिया और मेरे लण्ड की करामात का आनन्द लेने लगी।
घुड़चढ़ी पोज़ में भाभी 2 बार स्खलित हो गई तो मैं अब उसके पीछे से हट कर उसके साथ बिस्तर पर लेट गया।
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रितु भाभी मेरे साथ प्रगाढ़ आलिंगन डाल कर अपना सर मेरी छाती पर रख कर आँखें बंद कर के लेट गई।
अभी हमको ऐसे लेटे हुए कुछ क्षण ही हुए थे कि ऊपर वाली बर्थ से आवाज़ आई- हेलो… अगर आप दोनों का काम हो गया हो तो मैं नीचे आ जाऊँ?

मैं एकदम से उठा और हड़बड़ी में अपनी पैंट ठीक करने लगा लेकिन रितु भाभी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझको अपनी बर्थ पर जाने से रोक दिया और ऊपर मुंह कर के आवाज़ देने लगी- नीचे आ जाओ ठाकुर साहिब, हमारा तो हो गया कभी का!

शाम सिंह जी नीचे उतर आये और मैं यह देख कर हैरान हो गया कि उनकी पैंट के बटन खुले हुए थे और उनका लंड पैंट से निकल कर बाहर लटक रहा था।
सबसे ज़्यादा हैरानगी की बात तो यह थी कि रितु भाभी ज़रा भी घबराई नहीं थी और वो हल्के से मुस्करा रही थी।

कहानी जारी रहेगी।
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