गुरु घंटाल चेला पहलवान

(Guru Ghantal Chela Pahalvan)

दोस्तो, मेरा नाम कृति वर्मा है, शादी शुदा हूँ। इससे पहले आप मेरी कहानी पढ़ चुके हो, कैसे मैंने एक साधु बाबा से अपने आप को संतुष्ट किया था।
अब पढ़िये क्या हुआ जब मैं दोबारा ऋषिकेश गई।
करीब 3 साल बीत चुके थे, हमारी ऋषिकेश वाली फ़ैक्टरी भी अच्छी चल रही थी, मैं तो वहाँ नहीं गई मगर पति अक्सर काम के सिलसिले में दिल्ली ऋषिकेश आते जाते रहते थे।

एक दिन वो आए और बोले- अरे कृति सुनो, मुझे एक हफ्ते के लिए ऋषिकेश जाना है, फ़ैक्टरी में कुछ कन्स्ट्रकशन वर्क है, तुम चलोगी साथ में?

मुझे पहले तो कोई इच्छा नहीं हुई, फिर एकदम से मन में बाबा का ख्याल आया, सोचा अगर जाऊँगी, तो बाबा से फिर से आशीर्वाद ले के आऊँगी।

और बाबा का लंड मन में आते ही मैंने हाँ कर दी।

दो दिन बाद हम ऋषिकेश के लिए चल पड़े। वहाँ पहुंचे, फ़ैक्टरी के पीछे ही हमारा छोटा सा घर था, मैं तो सीधे वहीं गई, नौकर ने पहले ही साफ कर रखा था, जाकर फ्रेश हुई, उसके बाद खाना खाया।

शाम को पति के साथ बाज़ार में टहलने चली गई।

अब बाहर आए थे तो रात को पतिदेव भी मूड बना कर आ गए, मगर वही 2-3 मिनट में ही अपना काम निपटा के सो गए।

मैं सोचने लगी ‘इनके बस का तो कुछ है नहीं, सुबह बाबा से ही तसल्ली होगी, अगर मिल गए तो…’

अगले दिन सुबह दस बजे के करीब मैं तैयार हुई, बढ़िया साड़ी पहनी, गोल्डन ब्लाउज़, गहरे गले का, ताकि साड़ी का पल्लू हटाते ही, बड़ा सा गहरा क्लीवेज दिखे।
वेक्सिंग तो मैं नियमित करवाती हूँ, इसलिए बदन पर बाल तो एक भी नहीं था।

सब तैयारी कर के मैंने पति को फोन पे ही कह दिया कि मैं घूमने जा रही हूँ।
और फिर मैं अपनी फ़ैक्टरी के पीछे, छोटी सी पगडंडी पे चल पड़ी।

दिल में सौ तरह के ख्याल रह रह कर आ रहे थे, बाबा अब कैसे दिखते होंगे, अगर आज प्रोग्राम बन गया, तो वो मेरे साथ कैसे करेंगे, क्या अब भी उनमें वही ताकत और जोश होगा?

फिर मन में और विचार भी आए, ये बाबा लोग तो चलते फिरते रहते हैं, अगर कहीं चले गए तो क्या होगा… मेरे तो सारे अरमानों पर पानी फिर जाएगा।

यही सोचती सोचती मैं चली जा रही थी।
थोड़ी दूर जाने पर मुझे वो जगह दिखाई दी, जहाँ पे मैंने पिछली बार बैठ कर पेशाब किया था। अब भी वो जगह वैसी ही थी… सुनसान।
मन में फिर विचार आया, चलो फिर से मूत के देखूँ।

बेशक पेशाब नहीं आ रहा था, मगर फिर भी मैं आस पास देख कर अपनी साड़ी और पेटीकोट ऊपर उठाया, पेंटी नीचे उतारी और मूतने बैठ गई, बहुत थोड़ा सा पेशाब आया।

मगर फिर भी मैं 2-3 मिनट बैठी रही, जैसे किसी का इंतज़ार हो कि कोई आए और मुझे नंगी बैठी देख कर मुझे चोद डाले।
मैंने बोला भी- अरे कोई है, देखो आज फिर मैं अपनी चूत खोल के बैठी हूँ, कोई तो आ कर चोद लो मुझे, या मेरी गांड ही मार लो, अरे
कोई तो आ जाओ कहीं से जो मुझे अपना लंड ही चुसवा जाओ।

मगर उस उजाड़ बियाबान में कौन था जो मेरी पुकार सुनता।
उठ कर खड़ी हुई, पेंटी ऊपर की और साड़ी ठीक कर के फिर आगे चल पड़ी।

मगर एक बात मैं देख रही थी कि ज्यों ज्यों मैं आगे बढ़ती जा रही थी, मैं और चुदासी होती जा रही थी।

थोड़ी आगे कुछ भेड़ बकरियाँ चर रही थी, मैं उनके पास जा कर खड़ी हो गई, शायद कोई चरवाहा इनके पास हो, जान बूझ कर मैंने अपना पल्लू नीचे गिरा दिया, आधी के करीब मेरी गोरी छातियाँ मेरे ब्लाउज़ के बाहर झांक रही थी।

मगर वहाँ कोई आदमजात नहीं था, सिर्फ भेड़ बकरियाँ थी, और वो भी चरने में लगी थी, मुझे तो कोई देख ही नहीं रहा था।
जब आस पास कोई नहीं दिखा तो मैं आगे बढ़ गई।

चलते चलते, मन में अजीब अजीब कल्पनाएँ करती करती मैं बाबा की कुटिया तक जा पहुंची। मगर कुटिया से पहले अब एक मंदिर सा बन गया था, कुटिया थोड़ा नीचे करके मंदिर के पीछे की तरफ बनी थी।

मंदिर भी खाली था, अभी कोई मूरत नहीं लगी थी। मैं मन ही मन मुसकुराती, कुटिया में दाखिल हुई।

देखा तो तो कुटिया खाली थी, मगर कुटिया के भी पीछे एक और छोटा का कक्ष बना था, उसमे झांक कर देखा, तो बाबा उस कक्ष में एक चारपाई पे लेटे थे, सूख कर काँटा हुआ बदन, बाल सफ़ेद, बहुत ही कमजोर और दयनीय हालात हो गई थी बाबा की।

मैंने पास जाकर प्रणाम किया- प्रणाम बाबा!
उन्होंने आँखें खोल कर मुझे देखा, जैसे पहचानने की कोशिश कर रहे हों, हाथ उठा कर धीरे से बोले- कल्याण हो!

मैंने कहा- बाबा पहचाना मुझे? मैं कृति, तीन साल पहले आई थी, हमारी दवाइयों फ़ैक्टरी है, बाहर बड़ी सड़क पर!
मगर अपनी पहचान में मैंने बाबा को अपने साथ सेक्स की बात नहीं कही।

बाबा ने फिर मुझे ध्यान से देखा, उनके चेहरे पे एक मुस्कान और आँखों में चमक आ गई, बोले- हाँ, याद आया, कैसी हो पुत्री?
मैंने कहा- मैं तो ठीक हूँ, बाबा, पर आपको क्या हुआ, इतनी बुरी हालत, इतने कमजोर?

बाबा बोले- बेटी, शुगर की बीमारी हो गई है, इसी वजह से यह हालत हो गई है।

मैंने पूछा- तो बाबा आप यहाँ अकेले पड़े हैं, आपका ध्यान कौन रखता है?
बाबा बोले- है एक चेला, मेरे गुरुजी ने भेज दिया, मेरी सेवा के लिए।
मैंने पूछा- कहाँ है वो?
बाबा बोले- शहर गया है, मेरी दवाई लाने, अभी आ जाएगा थोड़ी देर में।

मैंने सोचा के अभी तो थोड़ी देर है, तो क्यों न थोड़ी देर बाबा से ही ठरक मिटाई जाए, जब चेला आएगा तो देख लूँगी, अगर ठीक लगा तो बाबा से साफ कह दूँगी कि जैसे आपने मेरी तसल्ली कारवाई थी, वैसे ही इससे कहो कि मेरी अच्छी तरह तसल्ली करवाए, अगर हुआ ही सड़ा हुआ, तो फिर मैं वापिस चली जाऊँगी।

पहले मैं खड़ी थी, मगर फिर मैं बाबा के बिल्कुल पास उनकी चारपाई पर ही बैठ गई।
बाबा के एक लंगोटी ही बांधी हुई थी, ऊपर बदन पे कुछ नहीं था।

मैंने अपना हाथ बाबा के सीने पे रखा और बोली- बाबा आप तो बीमार ही हो गए, मैं तो बहुत कुछ सोच कर आई थी।

बाबा बोले- बेटी अब मैं क्या करूँ, गाँव के लोग जो भोजन भेजते थे, उसमें मीठा बहुत होता था, तो धीरे धीरे वही मीठा मेरे लिए जहर बन गया, अब तो मैं तुम्हारे किसी भी काम नहीं आ सकता।

बाबा ने भी इशारे में अपनी बात समझा दी, मगर मैं भी ढीठ थी, मैंने कहा- अगर मैं कोशिश करूँ, तो क्या तब भी नहीं?
कह कर मैंने अपनी साड़ी का पल्लू सरका दिया, पल्लू नीचे गिरा तो मेरे दोनों गोरे गोरे बोबे मेरे ब्लाउज़ में क़ैद बाबा के सामने प्रकट हो गए।

बाबा ने बड़े ध्यान से मेरा क्लीवेज देखा, मैंने बाबा की आँखों में देखा, एक लालच मुझे उनकी आँखों में दिखा, कुछ पाने की चाहत दिखी।
‘तुम बहुत सुंदर लग रही हो!’ बाबा धीरे से फुसफुसाये।

मैं थोड़ा सा बाबा के ऊपर झुकी, मेरे मन में तो यह चल रहा था कि बाबा एकदम से उठें और मुझे नीचे पटक दे और मुझे पर सवार हो जाये और मेरी रेल बना दें।
मगर बाबा में इतनी ताकत लग नहीं रही थी।

मैंने बाबा का हाथ पकड़ा और और अपने क्लीवेज पे रखा, बाबा बेशक बिस्तर पर बीमार पड़े थे, मगर फिर भी उन्होने मेरे क्लीवेज पर हाथ फेर कर देखा।

सच में पराये मर्द के स्पर्श ने मुझे रोमांचित कर दिया।

क्लीवेज पे हाथ फेरते फेरते बाबा ने मेरा दायाँ बूब अपने हाथ में पकड़ कर हल्के से दबाया।

मैंने मुस्कुरा कर पूछा- बाबा, अच्छा लग रहा है क्या?
बाबा बोले- मन बहुत चंचल हो रहा है, मगर तन इतना क्षीण हो चुका है कि तुम्हारी इच्छा पूरी नहीं कर सकता।

मैंने लंगोट के ऊपर से ही बाबा का लंड अपने हाथ से पकड़ के देखा, कोई 3-4 इंच का मुरझाया सा लंड एक तरफ को मुँह किए लेटा था।

मैंने बाबा की लंगोट के अंदर हाथ डाल कर बाबा का लंड अपने हाथ में पकड़ा, उसे दबाया, सहलाया, मसला, उसको आगे पीछे किया, मगर उसमें कोई तनाव नहीं आया।

मैं बाबा का लंड सहला रही थी और बाबा मेरे स्तनों को दबा दबा कर देख रहे थे, मगर फिर भी बाबा का लंड ढीला ही रहा।

हार कर मैंने कहा- बाबा ये तो कोई बात नहीं बनी, मैं तो सोच कर आई थी कि आप पिछली बार की तरह मेरी अच्छी तरह से तसल्ली करोगे, मगर आपका यह तो खड़ा ही नहीं हो रहा।

बाबा बोले- बेटी, अब मेरी बीमारी के कारण यह ऐसा ही ढीला ही रहता है, पर अगर तुम चाहो तो मैं अपने शिष्य से पूछ लेता हूँ, वो जवान है, अगर वो मान गया, तो शायद तुम्हारी इच्छा पूरी हो जाए।

मैंने कहा- देखने में कैसा है आपका शिष्य?
बाबा बोले- अभी आने ही वाला होगा, खुद ही देख लेना।

अब बाबा के बस का तो कुछ था नहीं, सो मैं वैसे ही गिरे हुये आँचल के साथ, बाबा के पास बैठी इधर उधर की बातें करती रही।

थोड़ी देर बाद एक 30-32 साल का नौजवान अंदर दाखिल हुआ, साधु वेश, हाथ में सामान, सबसे पहले उसने मुझे देखा, बाबा के पास उनकी चारपाई पे बैठी, आँचल ढलका हुआ, बड़ी हैरानी से उसने मेरे क्लीवेज को घूरते हुये पूछा- आप कौन?

मैं उठ कर खड़ी हुई, बड़े आराम से मैंने उसकी घूरती आँखों के सामने मैंने अपने आँचल से अपना नंगापन ढका और बोली- मेरा नाम कृति है, तीन साल पहले यहाँ आई थी, तब मैंने बाबा की खूब सेवा की थी, आज फिर आई, तो देखा कि बाबा तो बहुत बीमार हैं।

उसने अपना सामान रखा और झोले में से दवा निकाल कर बाबा के पास रखी।

मैंने ध्यान से उस साधु को देखा, कद काठी और हर लिहाज से मुझे वो ठीक लगा क्योंकि मुझे कौन सा उससे शादी करनी थी, जो ज़्यादा पूछ पड़ताल करती।

जब वो बाबा को दवा खिला रहा था तो मैंने बाबा को इशारे में बता दिया कि मुझे यह साधु पसंद है।

अब दिक्कत यह कि बाबा भी कैसे उससे कहें कि चल भाई चेले चढ़ जा इस औरत पर…

पर दवा खाने के बाद बाबा बोले- पुत्र यह तो बता कि तुम्हारी शादी हुई है?
वो बोला- नहीं बाबा, मैं तो साधु हूँ, मैं शादी नहीं कर सकता।

बाबा बोले- तो स्त्री सुख से वंचित रहे हो अब तक?
उस साधु ने बड़े गौर से मेरी तरफ देखा, मैं उसे देख कर मुस्कुरा दी।

बाबा बोले- यह मेरी बड़ी प्यारी भक्त है, एक बार पहले भी आई थी तो अपनी इस कुटिया से तृप्त हो कर गई थी, मगर अब मुझमें वो क्षमता नहीं रही, और यह आज भी तृप्त होने आई है, क्या तुम यह कठिन कार्य कर सकते हो?

वो साधु बोला- मगर बाबा मैं कैसे?

बाबा बोले- पहली बार मैंने भी ऐसा ही सोचा था, मगर स्त्री को अतृप्त छोड़ना बहुत बड़ा पाप है, मेरी यह इच्छा है कि मेरी जगह तुम इस स्त्री की काम पिपासा शांत करो, मेरा आदेश है।

बाबा की बात सुन कर पहले तो साधू बड़ी असमंजस की स्थिति में पड़ गया, फिर बोला- गुरुदेव जो आपकी आज्ञा, परंतु मैं इस कार्य से अंजान हूँ, सो इस देवी को ही मुझे पारंगत करना होगा।

मैंने कहा- कोई बात नहीं, मैं सब बता दूँगी।

वो साधु उठ खड़ा हुआ, सबसे पहले उसने अपने प्रभु को हाथ जोड़ कर प्रार्थना की, फिर बाबा के पाँव छूये, फिर मेरे सामने भी दंडवत प्रणाम किया, मैंने उसे कंधों से पकड़ कर उठाया तो मेरा आँचल फिर से ढलक गया।

वो उठ कर सीधा खड़ा हो गया, उसकी नज़रें फिर से मेरे क्लीवेज में फंस गई।

मैंने आगे बढ़ कर उसको अपनी बाहों में भर लिया, और उसके दोनों बाजू भी अपने इर्द गिर्द लिपटा लिए।
उसके बदन से पसीने की और मुँह से चिलम की गंध आ रही थी, जो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं थी, मगर मुझे उससे कोई खास दिक्कत महसूस नहीं हुई।

मैं उस से लिपटी हुई थी, मगर वो वैसे ही खड़ा रहा, सच कहूँ तो मुझे उसके होंठ चूमने की कोई इच्छा नहीं हुई, सो मैंने उसके दोनों हाथ पकड़े और अपनी छाती पर रख लिए।

जैसे उसे कोई करंट लगा हो, पहले तो उसने हाथ उठा लिए, मगर मेरे कहने पर उसने मेरे दोनों स्तन अपने हाथों में पकड़ कर देखे और दबाया, उसके चेहरे पे ऐसी खुशी आई, जैसे किसी छोटे बच्चे को कोई नया खिलौना देख कर होती है।

मैंने कहा- ऊपर से ही दबाओगे, ब्लाउज़ तो खोलो!
मगर उसने नहीं खोला, तो मैंने खुद ही अपने ब्लाउज़ के हुक खोले और ब्लाउज़ उतार दिया।

अब मैं उसके सामने ब्रा में खड़ी थी, मैंने अपनी साड़ी भी खोल दी, वो मुझे नंगी होते देख रहा था, और उधर बिस्तर पर लेटे बाबा भी मुझे ही देख रहे थे।

मैंने अपना पेटीकोट भी खोल दिया, अब सिर्फ ब्रा और पेंटी रह गए थे।

मैंने उससे पूछा- कैसी लग रही हूँ?
वो बोला- आज अपने जीवन में पहली बार किसी स्त्री को नग्न देखा है, आप बहुत ही सुंदर हो।

मैंने कहा- तुम भी तो अपना चोगा उतारो!
तो उसने अपना लंबा सा चोगा उतारा।

नीचे उसने लंगोट पहनी थी, मैंने कहा- यह भी उतार दो।
वो बोला- नहीं मुझे शर्म आती है, आज पहली बार किसी स्त्री के सामने लंगोट में आया हूँ, पहले आप उतारो, फिर मैं अपना लंगोट खोलूँगा।

मैंने अपनी ब्रा खोली और उतार दिया और अपनी पेंटी भी उतार दी।
पूरी तरह नंगी होकर मैंने घूम कर उसको अपनी अगली पिछली सब दिखा दी।

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मैंने देखा के लंगोट में ही उसका लंड तन चुका था।
मेरे इशारा करने पर उसने अपना लंगोट खोला, नीचे झांट का पूरा जंगल उगा था, मगर उसी जंगल में करीब 7 इंच का मोटा काला लंड पूरा तना हुआ खड़ा था, एकदम सीधा।

‘वाह…’ मेरे मुँह से निकला, मैंने आगे बढ़ कर उसका लंड अपने हाथ में पकड़ा, मगर जब उसकी आगे वाली चमड़ी पीछे हटानी चाही तो वो पीछे नहीं गई, बल्कि उसको थोड़ी सी तकलीफ हुई।

मैंने बाबा से कहा- बाबा, आपका यह चेला तो अभी तक कच्चा है।
फिर मैंने उससे कहा- क्या कभी आज तक इसको छेड़ा नहीं?

वो बोला- नहीं, इसको क्या छेड़ना?
मैंने कहा- जाओ इसको अच्छी तरह से पानी से धोकर आओ।

वो बाहर गया अपने लंड और झांट को अच्छी तरह से धो कर आया।

मैं नीचे बैठ गई और उसके लंड को हाथ में पकड़ कर देखा, लोहे के तरह से सख्त, मगर उसकी चमड़ी मैं फिर भी पीछे नहीं हटा सकी, तो मैंने पहले उसके लंड चूमा और फिर अपने मुँह में ले लिया।

‘ओह देवी…’ उसके मुँह से निकला।
मैंने उससे पूछा- क्यों बहुत मज़ा आया क्या?
वो बोला- अद्भुत आनन्द आया।

मैंने फिर से उसका लंड चूसना शुरू कर दिया और खूब मज़े मज़े ले ले कर चूसा।
जितना मैं चूस रही थी, उतना वो तड़प रहा था, मेरे सर को अपने हाथों से पकड़ कर वो मेरे मुँह में अपना पूरा लंड ठूंस रहा था और ‘आह, ओह, उफ़्फ़, नहीं देवी, मत करो, मैं मर जाऊंगा, बस करो देवी, बस करो!
और भी बहुत कुछ बोल रहा था।

मुझे पता था कि जिसने पहले कभी नंगी औरत नहीं देखी वो तो क्या मेरी चूत चाटेगा तो सीधे चुदाई ही करवानी पड़ेगी।

थोड़ा सा और लंड चूसने के बाद मैं नीचे ही लेट गई और उसे इशारे से अपने ऊपर बुलाया।

जब वो मेरे ऊपर आ कर लेट गया तो मैंने उसका लंड पकड़ कर अपनी चूत पर रखा और बोला- अब थोड़ा सा ज़ोर लगा कर अपना लंड मेरी चूत में डालो।

उसने थोड़ा सा ज़ोर लगाया, मगर नहीं डाल पाया, हर बार वो डालने की कोशिश करता और दर्द के साथ पीछे हट जाता।

मैंने कहा- रहने दो, तुमसे नहीं होगा।

मैंने उसे नीचे लेटाया और खुद उसके ऊपर चढ़ बैठी, फिर उसका लंड पकड़ कर अपनी चूत पर रखा और अपने दोनों हाथों से उसके सीने को दबा कर रखा और नीचे बैठने लगी।

जैसे जैसे मैं बैठ रही थी, उसका लंड मेरी चूत में अंदर घुसता जा रहा था, मगर उसका दर्द तो चीख़ों में बदल गया- आह, नहीं देवी, उठो, मुझे बहुत दर्द हो रहा है, मैं नहीं कर पाऊँगा, रहने दो, उठ जाओ, उठ जाओ।

मगर मुझे उसके दर्द से या चीख़ों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, आज मुझे ऐसे लग रहा था, जैसे मैं कोई मर्द हूँ और वो साधु कोई कुँवारी कन्या, आज मैं समझी कि पुरुषों को हमेशा कच्ची कली सी लड़की ही क्यों चाहिए होती है, क्यों उनको लड़की के दर्द में मज़ा आता है।

मैंने अपनी पूरी ताकत से उसको दबा के रखा और जितना हो सकता था उसका उतना लंड अपनी चूत में ले लिया।

फिर मैं रुकी, तो वो बोला- देवी, दया करो मुझ पर, ये पीड़ा तो असहनीय है।

मैंने कहा- पहली बार तो सब को थोड़ा दर्द होता है, मगर तुम चिंता मत करो, मैं सब ठीक कर दूँगी, बस तुम आराम से लेटे रहो, अपना काम मैं खुद कर लूँगी।

कह कर मैंने फिर से ऊपर नीचे होना शुरू किया और उसका पूरा लंड अपने अंदर ले लिया।
बेशक मेरी चूत से भी बहुत पानी निकल रहा था, मगर फिर भी पानी की पिच पिच कुछ ज़्यादा ही हो रही थी, मुझे पता था के बेचारे की सील टूटी है तो दर्द भी होगा और लहू भी निकलेगा।

मगर मैंने उसके दर्द की चिंता नहीं की, बल्कि अपने आनन्द को आगे रखा, अब 8 इंच का मोटा, सख्त लंड मेरी चूत में चढ़ा था, मैं कैसे निकाल देती, मेरी तो इच्छा यह थी कि मेरे झड़ने के बाद ही मैं नीचे उतरूँ।

मगर उसके कहने पर मुझे नीचे उतरना ही पड़ा, जब मैंने देखा तो उसकी जांघें, मेरी चूत और आस पास का सब उसके लहू से लाल हो गया था।

‘आपने तो मेरा कौमार्य भंग कर दिया!’ वो बोला।
मैंने कहा- कुछ नहीं हुआ है, जाओ इसे धो कर आओ, और वापिस आकर यह अधूरा काम पूरा करो।

वो उठ कर बाहर चला गया, बाबा चारपाई पे लेटे मुझे देख रहे थे, मैं नंगी ही उठ कर बाबा के पास गई, और धोती में से ही उनका लंड पकड़ कर बोली- बाबा अगर आपका दिल कर रहा हो तो आप भी आ जाओ।

बाबा बोले- दिल तो बहुत कर रहा है, पर ये ही सर नहीं उठा रहा, तो मैं क्या करूँ।

मैंने पकड़ के बाबा के लंड को कई झटके दिये, मगर उनका लंड तो जैसे सदा की नींद सो गया था।

इतने में बाबा का चेला वापिस अंदर आ गया, उसके हाथ में एक डब्बा पानी का था, मैंने भी अपनी चूत और जांघें धो ली।
धोने के बाद मैं नीचे ही लेट गई और बाबा के चेले को अपने ऊपर आने को कहा।

वो मेरे ऊपर आया तो मैंने देखा कि उसके लंड की अकड़ ठंडे पानी से धोने के बाद भी कम नहीं हुई थी।

मैंने उसका लंड पकड़ के अपनी चूत पे रखा और कहा- चल डाल अंदर!
उसने धक्का मारा, तो हल्की सी तकलीफ के साथ उसके लंड का टोपा मेरे अंदर चला गया।

मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी कमर पकड़ ली और उसे अपनी तरफ खींचा, वो मेरे ऊपर ही लेट गया, और अपने दोनों हाथों से उसने मेरे दोनों बोबे पकड़ लिए।

‘देवी, आपके तो ये बहुत नर्म नर्म हैं।” वो बोला।
मैंने पूछा- नर्म हैं, क्यों पहले किसी के सख्त भी दबाए हैं क्या?’ मैं हंस पड़ी।

मगर वो बोला- नहीं आज तक किसी के नहीं दबाये, परंतु मन में कभी कभी विचार आता था, कोई कोई स्त्री के तो बहुत बड़े होते हैं, सोचता था, इतना भार ये कैसे उठा लेते होंगी।

मैंने अपनी टाँगें उसकी कमर के गिर्द लपेट ली और बोली- जैसे तुम इसका भार लिए फिरते हो!

वो भी मेरी बात सुन कर मुस्कुरा दिया।

4-5 बार करने से उसका पूरा लंड मेरे अंदर तक चला गया था।

मैंने उसको खूब शाबाशी दी, उसका हौंसला बढ़ाया- अरे अब तुम मर्द बन गए हो, और मर्द को कभी दर्द नहीं होता, डरो मत, घबराओ मत, पूरे ज़ोर से करो, ऐसी तसल्ली करवा दो मेरी के बस ज़िंदगी का मज़ा आ जाए!

और मेरी बातें सुन कर वो और ज़ोर से मेरी चुदाई करने लगा।

बाबा बिस्तर पे लेटे सब देख रहे थे, और उन्होने भी अपनी धोती खोल कर अपना मरा हुआ लंड बाहर निकाल लिया था, और हम दोनों की काम क्रीड़ा देख कर हाथ से अपनी मुट्ठ मार रहे थे।

देखने में तो चेला बलिष्ठ था, ही लंड का भी ताकतवर था।
7-8 मिनट की धुआंधार चुदाई के बाद मेरा तो पानी निकल गया और इसी जोश में मैं उसके होंठ भी चूस गई, जिसने चिलम के गंदी से बदबू आ रही थी।

मैं निढाल होकर लेट गई मगर वो लगा रहा, और करीब 3-4 मिनट और मुझे चोदता रहा।

और इसी दौरान मेरा फिर से मूड बनने लगा, मैंने कहा- तुम्हारी इस शानदार चुदाई से मेरा फिर से मन कर रहा है, अब जल्दी मत झड़ जाना, मुझे एक बार और संतुष्ट होना है।

वो बोला- देवी आप चिंता मत करो, मैंने बहुत जड़ी बूटियाँ खाई हैं, जब तक मैं न चाहूँ न तो मैं ढीला पड़ूँगा, न ही स्खलित होऊँगा।
उसकी बात ने मुझे खुश कर दिया।

सच में उसने तो कमाल कर दिया, लगातार पिछले 15 मिनट से वो मुझे एक ही रफ्तार से चोद रहा था, मैं एक बार स्खलित हो चुकी थी, दूसरी बार फिर तैयारी थी।
मैं भी नीचे से अपनी कमर उचका उचका कर उसका साथ दे रही थी।

बाबा आराम से लेटे हम दोनों को देख रहे थे, उनके लंड से वीर्य नीचे ज़मीन पर चू रहा था, मतलब बाबा मुट्ठ मार कर अपना माल झाड़ चुके थे।

इस बार मुझे ज़्यादा समय लगा, मैं करीब दस मिनट बाद स्खलित हुई, मगर बाबा का चेला तो वैसे ही लगा था, पसीने से भीगा बदन, और उसके बदन के सभी मसल उभर आए थे।

स्खलित होने के बाद मैंने कहा- अब तुम भी स्खलित हो जाओ, और अपना माल मेरे सारे बदन पर छुड़वाना।

उसके बाद तो उसने इतनी ज़ोर से मेरे साथ सेक्स किया कि मेरे सारे अंजर पंजर हिला कर रख दिये, इतना जोश तो मैंने कभी किसी ब्लू फिल्म के हीरो में नहीं देखा होगा, इतनी ताक़त, इतना स्टेमिना, मेरी तो आंतड़ियाँ इकट्ठी कर दी उसने।

मगर उसके बाद जब वो झड़ा, कम से कम 10 पिचकारियाँ तो उसके वीर्य की मैंने अपनी चूत के अंदर महसूस की।
और जब उसने अपना लंड मेरी चूत से बाहर निकाल कर मेरे पेट पे रखा, तब भी उसमें से बहुत सा वीर्य निकला और मेरे मुँह, छाती, पेट, जांघें सब भर गए।

उसके जीवन का यह पहला वीर्यपात था।

वो भी साइड में लेट गया, मगर उसका लंड झड़ने के बाद भी अब भी पूरा तना हुआ था और कोई कोई बूंद वीर्य की अभी भी उसके लंड से निकल रही थी, थोड़ा खून भी लगा हुआ था।

‘तुम तो बहुत ज़बरदस्त झड़ते हो!’ मैंने कहा।
वो बोला- आज पहली बार इतना संतुष्ट, इतना हल्का महसूस कर रहा हूँ, मैं तो खामख्वाह 32 साल सेक्स को गंदा काम समझता रहा, इसमे तो मज़ा ही बहुत है।

मैं उठी और पास में ही पड़ी बाल्टी में से पानी लेकर नहाने लगी।

नहा कर मैंने कपड़े पहने, पर्स से निकाल कर मेकअप किया जब जाने लगी तो बाबा बोले- फिर आओगी?
मैंने कहा- मैं जाती ही नहीं।

बाबा बोले- नहीं अभी जाओ, अभी गाँव वाला कोई हमें भोजन देने आएगा, कल आना।

मैंने कहा- बाबा आप मुझे बुला कर क्या करोगे, आपका खड़ा तो होता नहीं”।

बाबा बोले- कल मैं तुम्हारे दूध पीते हुये स्खलित होना चाहूँगा।
मैंने फिर से अपना ब्लाउज़ खोला और अपने दोनों बोबे निकाल कर बाबा के सामने कर दिये- लो अभी चूस लो और कर लो अपने दिल की।

बाबा थोड़ा सा उठे और मेरे दोनों बोबे पकड़ लिए और एक को मुँह में लेकर चूस लिया, चूसा क्या काट खाया।

थोड़ा चूसने के बाद बोले- बस अब जाओ, बाकी काम कल करेंगे।

बाबा का चेला अभी भी नंगा ही फर्श पर लेटा पड़ा था, अब उसका लंड थोड़ा ढीला पड़ गया था।

मैंने उससे कहा- ओ के बाय, अब कल आऊँगी।
वो लेटा लेटा मुस्कुरा दिया और मैं वापिस अपने घर की ओर चल पड़ी।

और वापसी का रास्ता मुझे इतना हसीन लगा, इतना मन खुश था कि पूछो मत।

मैं 10 दिन वहाँ रही और 10 दिन हर रोज़ उससे चुदी।
पहले बाबा ने मेरी तसल्ली कारवाई थी, मगर उनका चेला तो उनसे भी चार कदम आगे निकला। आज भी मेरा दिल करता है कि उड़ के ऋषिकेश चली जाऊँ उस बाबा के चेले से रोज़ मज़े करूँ!
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