शीला का शील-13

(Sheela Ka Sheel- Part 13)

This story is part of a series:

चंदू ने एक हाथ से उसके नितम्ब को दबोचते हुए दूसरा हाथ शीला के सर के पीछे दबाव बना कर उसे अपने बिल्कुल पास कर लिया, दोनों की सांसें एक दूसरे के नथुनों से टकराने लगीं।

और तभी शीला ने लपक कर चंदू के होंठों को पकड़ लिया और खुद से उन्हें चूसने लगी।
उसका समर्पण देख चंदू ने भी उसके होंठों को चूसना शुरू कर दिया।
इस प्रगाढ़ चुम्बन की अवस्था में वे आसपास से बेखबर हो गये थे।

जहाँ अब रानो को चित लिटा कर भुट्टू अब उसका योनिभेदन करने लगा था और बाबर अभी उसके मुख को भोग रहा था।

होंठ चूसते चूसते दोनों एक दूसरे के मुंह में जीभ घुसाने लगे।

उसे इसी अवस्था में रखे हुए चंदू ने दोनों हाथ नीचे ले जा कर अपने लिंग को उसकी योनि पर इस तरह सेट किया कि शीला ने ज़रा सा योनि को नीचे दबाया तो वो प्रवेशद्वार में फँस गया।

अब ज़ाहिर है कि यह उस लिंग से मोटा था जिसे लेने की वह आदी थी तो मांसपेशियों पर खिंचाव तो पड़ना ही था लेकिन इतनी देर की गर्माहट अच्छा खासा लुब्रीकेंट बना चुकी थी तो वह योनि की कसी हुई दीवारों पर ज़ोर डालता अंदर सरकने लगा।

चंदू इस बीच एक हाथ से उसके नितम्ब को दबाते दूसरे हाथ की बीच वाली उंगली से फिर उसके गुदा के छेद को खोदने लगा था।

ऐसा नहीं था कि इस लिंग प्रवेश पर उसे दर्द की अनुभूति नहीं हो रही थी मगर जो रोमांच उसे मिल रहा था वह उस दर्द पर हावी था। वह और आक्रामक अंदाज़ में चंदू के होंठ चूसने लगी थी।

और धीरे-धीरे चंदू का पूरा लिंग उसकी योनि में जा समाया।

इसके बाद वह स्थिर हो गई… उसने अपना चेहरा चंदू के चेहरे से हटा लिया और अपनी एक चूची पकड़ कर उसे चंदू के मुंह पर रगड़ने लगी।

चंदू ने होंठ खोले तो उसने चूचुक उसके होंठों में दे दिया और वह ज़ोर से उसे चूसने, खींचने लगा।

बीच बीच में दांत से कुतर लेता था और वह एक ‘आह’ के साथ लहरा जाती थी।

उसे फीड कराते वह अपनी कमर को एक लयबद्ध लहर तो दे रही थी लेकिन इस लहर को धक्कों में नहीं गिना जा सकता था।

जबकि चंदू ने अपने हाथों को नहीं रोका था और जो कर रहा था वही करने में अब भी लगा हुआ था और शीला एक हाथ से उसके सर को संभाले दूसरे हाथ से उसे चूची चुसा रही थी।

थोड़ी देर एक को अच्छी तरह से पीने के बाद चंदू ने मुंह हटाया तो शीला ने दूसरा स्तन उसके मुंह से लगा दिया और अब अपनी कमर को इस अंदाज़ में ऊपर नीचे करने लगी जैसे धक्के लगा रही हो।

अब चंदू ने दोनों हाथों को उसके नितंबों के निचले सिरे पर एडजस्ट कर लिया था और उसे ऊपर नीचे होने में सपोर्ट करने लगा था।

इधर उसके दोनों चेलों ने अपनी पोज़ीशन बदल ली थी और अब बाबर योनिभेदन कर रहा था जबकि भुट्टू मुख मैथुन और दोनों ही बेदर्दी से रानो के चूचों को मसल रहे थे।

इधर चंदू जब अच्छे से उसका दूसरा दूध भी पी चुका तो उसने एक पलटनी लेते हुए शीला को अपने नीचे कर लिया और खुद उस पर इस तरह लद गया कि उसका वज़न उसकी कुहनियों और घुटनों पर रहे।

बावजूद इसके मर्द का काफी वज़न इस अवस्था में औरत भी महसूस करती है जैसे शीला को लग रहा था कि वो चंदू के नीचे पिसी जा रही है, उसके बोझ से दबी जा रही है।

लेकिन इस दबने में उसका दम नहीं घुट रहा था बल्कि यह दबाव चंदू के हर धक्के के साथ इस वज़न में और बढ़ोत्तरी करके उसे और ज्यादा आनन्द दे रहा था।

चंदू इस अवस्था में अपनी लंबाई के कारण उसके सर से पार चला जाता अगर उसने खुद को सिकोड़ा न होता, अपनी पीठ को थोड़ा मोड़े हुए वह उसके होंठों को भी चूसने लग गया था।

इस तरह के तूफानी धक्कों से न सिर्फ पूरा बेड हिलने लगा था बल्कि कमरे में वो संगीतमय आवाज़ भी गूंजने लगी थी जो उसे और रोमांचित कर देती थी।

तभी जैसे भुट्टू ने उसके आनन्द में व्यधान डाला- भाई… मज़ा नहीं आ रहा। बहुत ढीली है… एकदम भककोल है। आप इधर आओ न! आप को तो फिर चल जायेगा।

उसके शब्द चाबुक से चले शीला के दिमाग पर… वह किसी भी हालत में इस वक़्त चंदू को नहीं छोड़ना चाहती थी।
पर चलनी तो चंदू ही की थी… उसने उन दोनों की मिस्कीन सूरत देखी और खुद शीला के ऊपर से हट गया।

‘चल आ जा बेटा… तू भी क्या याद करेगा।’

शीला को सख्त नागवार गुज़रा मगर कर भी क्या सकती थी।
यह और बात थी कि उसकी उत्तेजना एकदम ठंडी पड़ गई थी।

इस वक़्त रानो चौपाये की पोजीशन में झुकी हुई थी और दोनों उसके आगे पीछे लगे थे। चंदू का आदेश होते ही उन्होंने रानो को छोड़ा और शीला के पास आ गये।

और चंदू ने उसी पोजीशन में रानो को दबोच लिया।

वह उसे बिस्तर के किनारे करते खुद नीचे उतर कर खड़ा हो गया और रानो की कमर को दबाते हुए उसके नितंबों को पीछे से इस तरह खोल लिया कि उसकी योनि पूरे आकर में उभर आई।

वह उसकी योनि पर ढेर सा थूक उगलता हुआ बोला- है तो वाकई भककोल… पर उस लौंडे का सामान तो इतना बड़ा नहीं था, होता तो गुठली की भी इतनी ढीली होती। तेरी कैसे हो गई?

रानो कुछ न बोल सकी।

उसने ज्यादा ज़ोर भी न दिया और अपना लिंग पकड़ कर अंदर ठूंस दिया।

चाचा के लिंग से उसकी योनि की यह हालत हुई थी मगर चंदू का लिंग भी कम नहीं था।

इसलिये चंदू को उतना ढीलापन न महसूस हुआ जिसकी शिकायत दोनों चेले कर रहे थे और वह रानो की कमर को मुट्ठियों में भींच कर ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगा।

भुट्टू शीला के साइड में बैठ कर उसके मुंह में लिंग घुसाये उसके वक्ष को मसलने लगा था और बाबर नीचे उसके पैरों के बीच बैठ कर अपना लिंग अंदर घुसाने लगा था।

उसे कोई तकलीफ न हुई और आराम से अंदर चला गया। बाबर भी उसके ऊपर लद गया लेकिन उसकी लंबाई कम थी जिससे वह स्तंभन करते हुए उसके वक्षों को चूस चुभला सकता था।

अब फिर दोनों तरफ आघात होने लगे और कमरे में सहवास की मधुर ध्वनि गूंजने लगी।
यह और बात थी कि शीला अब उस यौन आनन्द को नहीं महसूस कर पा रही जो उसे चंदू से मिल रहा था।

मगर वह दोनों फिर भी थोड़े थोड़े धक्कों में जगह बदल बदल कर लगे हुए थे।

फिर दोनों की ही पोजीशन चेंज हो गई… जहाँ चंदू ने रानो को पलट कर चित लिटा लिया था और सामने से धक्के लगा रहा था वहीं शीला को अब चौपाया बना लिया गया था।

और एक पीछे से लिंग घुसाये नितंबों को मसलता सम्भोग कर रहा था तो दूसरा उसके सामने मौजूद उसके मुंह में लिंग घुसाये उसके मुंह को ही भोग रहा था।

नये-नये जिस्म थे इसलिये स्खलन भी जल्दी ही हो गया।
पहले चंदू ही रानो के ऊपर पसर गया था और बाद में ये दोनों!

बाबर तो शीला की योनि में ही स्खलित हुआ मगर भुट्टू ने उसके मुंह में वीर्य उगल दिया था।
अंतिम क्षणों में उसने मुंह हटाना चाहा था लेकिन भुट्टू ने उसका सर ऐसे पकड़ लिया था कि वह मुंह हिला भी न सकी थी और मुंह में ही वीर्य भर गया था।

यह उसके लिये पहली बार था और उसे अजीब सा सड़े आटे जैसा स्वाद लगा था।
जैसे ही उसके मुंह से लिंग निकला था उसने मुंह में भरा वीर्य बिस्तर के किनारे उगल दिया था।

उसे बड़े ज़ोर की उबकाई आई थी और वह तड़प के दोनों की पकड़ से निकल गई थी और उठ कर नंगी ही कमरे से बाहर निकल कर गलियारे की नाली में उलटी करने लगी थी।
जो पेट में था वह सब निकल गया था और पीछे से उसने चंदू को सुना था जो अपने चेले पर बरस रहा था कि उसने मुंह में ही क्यों निकाल दिया, वह कोई अंग्रेज़ थोड़े थी।

बहरहाल पेट खाली करके वह अंदर घुसी और कमरे में रखे पानी से गला तर कर के अपनी तबियत को संभाला।

इतनी देर में कमरे में मौजूद चारों लोग अपनी सफाई कर चुके थे और अब उसे देख रहे थे.. तीनो मर्द स्खलित हो गये थे, रानो का पता नहीं मगर वह नहीं हुई थी।

हो गई होती तो शायद उसे खुद को सँभालने में वक़्त लगता मगर नहीं हुई थी तो जल्दी ही संभल गई और उम्मीद भरी नज़रों से चंदू को देखने लगी।

कोई और वक़्त होता तो यूँ एक बार स्खलन काफी था लेकिन आज उनके सामने नये जिस्म थे। वह थोड़ी देर तो सुस्त पड़े रहे मगर फिर उनमें जान पड़ने लगी।

‘अबे कमीनो, सालो, मैंने पहले ही कहा मुझे ये झल्ली जैसी लौंडिया नहीं पसंद… जो पसंद है उसे तो खुद चोद लिये और मुझे यह पकड़ा दी। सालों, खबरदार जो इस बार डिस्टर्ब किया। मुझे गुठली को चोदने दो और तुम लोग इसे ही पेलो। आगे ढीली लगती है तो गांड मारो। समझ में आया कि नही।’

रानो अचकचा कर उन्हें देखने लगी।

हालांकि ऐसा नहीं था कि वह पहले इस अनुभव से न गुज़री हो… साल भर में शायद तीन बार ऐसा मौका आया था जब सोनू ने एक नये प्रयोग के तौर पर उसके साथ गुदामैथुन किया था।

सोनू का तो पता नहीं मगर उसे खास मज़ा नहीं आया था और दर्द अलग से झेलनी पड़ी थी।

इतना तो था कि उसपे कोई क़यामत तो न टूटती मगर उसे पसंद नहीं था।

यह और बात थी कि यहाँ उसकी पसंद नापसंद की परवाह कौन करने वाला था। वो खुद को मानसिक रूप से गुदामैथुन के लिये तैयार करने लगी।

दोनों जमूरे फिर आकर उससे लिपट गये और उसे जहाँ-तहँ से मसलने, रगड़ने और उंगली करते फिर से लिंग चुसाने लगे जबकि चंदू शीला के पास गया।

‘एक इल्तेजा करूँ, मानोगे?’ शीला ने चंदू की आँखों में झांकते हुए कहा।
‘बोल… लेकिन यह मत कहना कि चला जाऊँ, अब जाना तो सुबह ही होगा।’ चंदू उसे पीठ की तरफ से अपने सीने से लगाते, अपनी गोद में बिठाता हुआ बोला।

‘नहीं… यह नहीं कहूंगी, मगर इन दोनों को तो भेज सकते हो। इनके होते मैं सहज नहीं हो सकती।’
‘ऐसा क्या… मेरे मर्डर का प्लान तो नहीं है। चल तू कहती है तो दफा कर देता हूँ। अबे ओये… चल जल्दी से गांड मारते माल निकालो और फूटो यहाँ से।’

दोनों चेले इशारा पाते ही रानो पर टूट से पड़े।
भुट्टू का लिंग पूरी तरह तैयार हो चुका था तो उसने रानो को तिरछा लिटाते हुए उसके पैर मोड़ कर इस तरह कर दिये कि रानो के नितम्ब उसके सामने आ गये।
उसने पहले थूक से गीली करके एक उंगली उसके गुदा के छेद में घुसाई और अंदर बाहर करने लगा। जबकि उधर बाबर अभी भी रानो के मुंह में लिंग घुसाये उसे चुसा रहा था।

जब एक उंगली सुगमता से अंदर बाहर होने लगी तो उसने दो उंगलियां करनी शुरू कीं… और थोड़ी देर में जब दो उंगलियां भी ठीक से चलने लगीं तो उसने थूक से गीला करके लिंग घुसा दिया।

हल्के दर्द का अहसास तो ज़रूर हुआ उसे मगर उसने बर्दाश्त कर लिया और पूरा अंदर तक धंसा कर भुट्टू धक्के लगाने लगा।

बेड की पुश्त से पीठ टिकाये अधलेटा सा बैठा चंदू शीला को अपनी गोद में किये उसके वक्ष सहला रहा था और बीच-बीच में उसके होंठ भी चूसने लगता था जबकि शीला एक हाथ पीछे किये उसके मुरझाये लिंग को सहला रही थी।

दोनों अपने सामने उपलब्ध नज़ारे के रूप में रानो के साथ होता गुदामैथुन को देख रहे थे, जो उनमे भी उत्तेजना का संचार कर रहा था।
‘अबे निकलने वाला है, कहाँ निकालूं?’ थोड़ी देर बाद भुट्टू बोला।
‘अंदर ही निकाल ताकि चिकनाई हो जाये वर्ना मेरा और टाइट चलेगा तो मज़ा भी नहीं आएगा।’ बाबर रानो के मुंह से लिंग निकालते हुए बोला।

फिर ‘आह-आह’ करते भुट्टू उसके अंदर ही स्खलित होने लगा।
अंतिम झटका लेके जब वह हटा तो उन्हें उसका थोड़ा खुल गया छेद और उसमे से बाहर आता भुट्टू का वीर्य दिखा।

वह किनारे पड़ कर हाँफने लगा और बाबर ने उसकी जगह ले ली। उसने रानो की पोजीशन चेंज कर ली थी। अब उसे तिरछा लिटाने के बजाय डॉगी स्टाइल में ले आया था।
और उसके नितंबों को गुदाद्वार के हिसाब से नीचे दबाते एडजस्ट कर लिया था और एकदम गीले और थोड़े ढीले पड़ गए छेद में अपना लिंग जड़ तक ठूंस दिया।

अब वह उसी पोजीशन में उसपे आघात लगाने लगा जैसे पहले चंदू कर रहा था। फर्क यह था कि चंदू आगे घुसाये था जबकि बाबर पीछे।

और वह दोनों उन्हें देखते एक दूसरे के अंग सहलाते उत्तेजित हो रहे थे। जहाँ अब चंदू का लिंग तनने लगा था वहीं शीला की योनि भी फिर से गीली हो गई थी।

भुट्टू के मुकाबले बाबर काफी देर चला और जब धक्के खाते रानो की हालत ख़राब होने लगी तब जा के वह स्खलित हुआ।
स्खलित होने के बाद वह दोनों पड़ कर हाँफने लगे।

‘चलते हैं भाई। कल मिलते हैं अड्डे पे।’ थोड़ी देर बाद बाबर ने उठते हुए कहा और अपने कपड़े पहनने लगा।

भुट्टू ने पहले ही कपड़े पहन लिये थे।

उन्हें देख रानो ने भी कपड़े पहन लिये।
वे दोनों दरवाज़ा खोल के बाहर निकले तो वह भी यह कहते निकल गई कि वह चाचा के कमरे में सो जायेगी।

उन्होंने बाहर का दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ सुनी और फिर सन्नाटा छा गया। रानो भी शायद चाचा के कमरे में चली गई होगी।

शीला ने उठ कर न सिर्फ कमरे का दरवाज़ा ही बंद किया बल्कि लाइट भी बुझा दी और बिस्तर पर आ कर चंदू के ऊपर चढ़ गई।

‘क्यों, वैसे तो बड़ी नफरत थी मुझसे? अब क्या हुआ?’ चंदू जैसे उसे चिढ़ाता हुआ बोला।
‘हाँ थी। नहीं है अब… पता नहीं क्यों?’

वह भद्दे ढंग से हंसने लगा और शीला ने उसके मुंह में अपना एक चुचुक ठूंस दिया और उसके पेट पर बैठ कर अपनी गीली योनि से उसके अर्ध उत्तेजित लिंग को मसलने लगी।

‘तेरे करम ही ऐसे हैं। कौन नहीं नफरत करता मोहल्ले में तुझसे? मैं करती थी तो कौन सा गलत था। यह तो मेरी मज़बूरी है… क्या करूँ और? कोई रास्ता है हमारे पास जो हम यह सुख हासिल कर सकें?’

‘जो रास्ता नैतिक है, नियमानुसार है, उससे तो कुछ मिलना नहीं और जिन रास्तों से सुख मिलना है वह सब अनैतिक ही हैं, फिर क्या सोनू क्या चंदू… सब एक बराबर!’

‘मुझे उस लौंडे के साथ मत तौल… उसके साथ चुदाती पकड़ी गई तो दुनिया थूकेगी! मेरे साथ सब जान भी जायेंगे, तो भी किसी माई के लाल में इतनी हिम्मत नहीं कि कुछ बोल सके।’

‘यही सोच कर समर्पण कर दिया वर्ना बेजान लाश की तरह पड़ जाती। कर लेते अपने मन की… अच्छा एक बात बता… यह सुनयना वाला क्या किस्सा था?’

वह जवाब देने के बजाय हंसने लगा- छिनाल है साली। एक लौंडे के साथ पकड़ा था तो घर जा के बोल दिया कि मैंने उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की और उसका बाप पांडे चला गया पुलिस के पास!

पुलिस अपुन का क्या बिगड़ेगी भला पर उन बहन के लौड़ों को सबक सीखना ज़रूरी था इसलिये उसके घर घुस के उसकी लौंडिया चोदी थी।

और लौंडिया भी कैसी- जब खींच के कमरे में ले जा रहा था तो गिड़गिड़ा के छोड़ देने को बोल रही थी और जब अंदर जाके नंगी किया तो आ गई औकात पे… खुल के चुदवाई… और जब जाने लगा तो ऐसे रोने धोने लगी जैसे मैंने देह शोषण किया हो।
साली नौटंकी… पता है, उसके बाद खुद बुरका पहन के आती थी चुदने।

यहाँ तक कि प्रेग्नेंट भी हो गई थी तो पांडे ने पैसे के दम पे कहीं गाँव में शादी करा दी उसकी।
जो बच्चा ले के आती है न, वह उसके खसम का नहीं मेरा है। अब भी आ जाती है चुदने।’

‘शायद उसकी गलती नहीं, तू है ही ऐसा। गुंडा, बदमाश, करम ऐसे कि सिर्फ नफरत ही की जा सके मगर एक वासना की भूखी, प्यासी औरत के लिये… कमाल है… तेरा जिस्म, तेरा यह, सब जादू है… एक बार तेरे साथ लेट के कोई औरत तुझसे नफरत नहीं कर सकती। बाकी दुनिया चाहे कुछ भी सोचे।’

वह हंसने लगा और शीला फिर नीचे हो कर उसके लिंग को मुंह में लेकर अच्छी तरह चूसने लगी।

जब अच्छे से उसके लिंग में तनाव आ गया तो उसने शीला को उठा के लिटा लिया और उसके पैरों को पीछे करके उसके हाथों में उसकी जांघें फंसा दीं।

अब वह सामने बैठ कर उसकी योनि के भगोष्ठ और भगांकुर को मसलने सहलाने लगा। उत्तेजना से उसकी योनि की मांसपेशियां फैलने सिकुड़ने लगीं।

थोड़ी देर की ऊपरी छेड़छाड़ के बाद उसने दो उंगलियां योनि में गहरे तक उतार दीं और पहले धीरे-धीरे, बाद में तेज़-तेज़ अंदर बाहर करने लगा।

शीला की सिसकारियां कमरे में गूंजने लगीं, जल्दी ही वह चरम की तरफ पहुंचने लगी।
‘डालो।’ सीत्कारों के बीच उसके मुंह से निकला।

और वह उसकी जाँघों के बीच में बैठ गया।
शिश्नमुंड को थूक से गीला किया और छेद पर रख कर दबाव डाला तो मांसपेशियों को खिसकाता वह अंदर धंस गया।

मस्ती और मादकता से भरी एक ज़ोर की ‘आह’ उसके मुख से निकली।
चंदू ने उसकी जांघों के निचले हिस्से पर पकड़ बनाईं और उकड़ूं बैठे बैठे लिंग को अंदर बाहर करने लगा। शीला को ऐसा लगा जैसे उसके दिल दिमाग में एक अजीब किस्म का नशा छा रहा हो।

जैसे वो आसमान में उड़ने लगी हो।

थोड़ी देर बाद वह ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगा। बेड हिलने लगा और कमरे में ‘फच-फच’ की कर्णप्रिय ध्वनि गूंजने लगी।

वह ‘आह-आह’ के रूप में सीत्कारें भरती माहौल को और उत्तेजक कर रही थी।

फिर वह इस मुद्रा में थक गया तो पहले की तरह उसके ऊपर लद गया और उसके होंठ चूसते तेज़ तेज़ धक्के लगाने लगा।

उसके भारी वज़न के नीचे दब के यूँ ज़बरदस्त ढंग से आघातों को सहने में उसे अकूत आनन्द आ रहा था। वह जल्दी ही चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई।

और चरमानन्द की प्राप्ति के समय उसकी नसों में एकदम खिंचाव आ गया, उसने चंदू की पीठ में नाखून तक गड़ा दिये और उसे पूरी ताक़त से भींच लिया।

उसे स्खलित होते महसूस करके चंदू रुक तो गया था लेकिन वह अभी स्खलित नहीं हुआ था और जैसे ही शीला थोड़ी शिथिल पड़ी उसने फिर धक्के लगाने शुरू कर दिये।

योनि की दीवारों से जारी हुआ रस और संकुचन फिर जल्दी ही चंदू को भी चरम पर ले आया और वह भी कुछ अंतिम ज़ोरदार धक्कों के साथ स्खलित हो गया।

स्खलन के उपरान्त वह उससे अलग होकर हाँफने लगा।

फिर उसी अवस्था में दोनों बेसुध हो गये।
सुबह आस पास के पूजा घरों की आवाज से शीला की आँख खुली थी और उसने चंदू को उठा के रुखसत किया था।

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