चूत एक पहेली -37

(Chut Ek Paheli-37)

पिंकी सेन 2015-11-16 Comments

This story is part of a series:

अब तक आपने पढ़ा..

भाभी- अर्जुन.. यहाँ नहीं.. तू निधि को अपने साथ खेत ले जा.. वहाँ तुम दोनों जितना मर्ज़ी ये खेल का मज़ा ले लेना.. यहाँ तो कोई ना कोई आ जाएगा.. वैसे सब घर वाले तो दूसरे गाँव शादी में गए हैं रात देर से आएँगे। तुम आराम से निधि को सब सिखा कर लाना।
अर्जुन- अरे सब बाहर गए हैं तो यहीं खेलता हूँ ना.. इसके साथ..
भाभी- नहीं अर्जुन.. बात को समझो.. यहाँ आस-पड़ोस की औरतें आती रहती हैं और ये एकदम कुँवारी है.. शोर भी ज़्यादा करेगी.. तू इसको खेत पर ही ले जा।

अब आगे..

निधि बेचारी कहाँ उनकी बातें समझ रही थी, उसको तो बस ये सब खेल ही लग रहा था।
निधि- चलो ना अर्जुन.. खेत में ही चलते हैं शाम तक मज़ा करेंगे.. यहाँ कोई आएगा.. तो अपना खेल रुक जाएगा।
अर्जुन ने ‘हाँ’ कह दी और निधि को ले जाने को तैयार हो गया।

भाभी- देखो अर्जुन.. अभी निधि बहुत छोटी है.. और तुम्हारा गन्ना बहुत बड़ा और मोटा है.. ज़रा संभाल कर करना कहीं कोई गड़बड़ ना हो जाए।
अर्जुन- डरो मत भाभी मेरा गन्ना बड़ा जरूर है.. मगर मैं बहुत आराम से करूँगा.. देखना शाम तक इसको ऐसा बना दूँगा कि ये तुमसे बड़ी खिलाड़ी बन जाएगी।
निधि- ओह्ह.. सच्ची… कहाँ है गन्ना..? मुझे चूसना है भाभी.. बताओ ना..
भाभी- अर्जुन के पास है.. इसके साथ जा.. वहाँ तुम्हारा जितना जी चाहे.. जाकर खूब चूसना..

अर्जुन चालक लड़का था उसने निधि को पहले बाहर भेज दिया और खुद बाद में निकला.. ताकि किसी को कोई शक ना हो।
आगे चलकर वो उसके साथ हो गया और अपने खेत पर ले गया।

अर्जुन की कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ रही थी.. मुनिया लौड़े को चूसने के साथ-साथ हाथ से आगे-पीछे भी कर रही थी।
अर्जुन- आह्ह.. चूस.. मेरी मुनिया.. आह्ह.. मज़ा आ रहा है.. उफ़फ्फ़.. तेरा मुँह भी किसी चूत से कम नहीं है आह्ह..

मुनिया ने लौड़ा मुँह से निकाल दिया और हाथ से मुठ्ठ मारने लगी।
मुनिया- उफ्फ.. तेरा लौड़ा तो बहुत पक्का है.. झड़ता ही नहीं.. मुँह दुखने लगा मेरा तो..
अर्जुन- अरे रानी इसे चूत में झड़ने की आदत है.. तू है कि चुदवाने को मानती नहीं।

मुनिया- बस बस.. आगे मत जा.. मेरे मुँह को थोड़ा आराम दे दे.. दोबारा चूस लूँगी.. तू आगे सुना.. निधि को पटाया कैसे?
अर्जुन- अरे पटाना क्या था.. वो तो आई इसी लिए थी.. कमरे में आते ही कहने लगी कि अब अपना गन्ना दिखाओ.. मुझे उसको चूसना है।

मुनिया- ऐसे नहीं.. पहले की तरह आराम से सब बता.. जैसा हुआ था।
अर्जुन- अच्छा मेरी रानी.. ठीक है.. वैसे ही बताता हूँ। तू अपना हाथ मत रोक और बीच-बीच में थोड़ा चूस भी ले.. ताकि मुझे भी बराबर मज़ा मिलता रहे.. समझी..
मुनिया- हाँ ठीक है.. मगर मुझे सब विस्तार से बताओ।

अर्जुन ने जो हुआ वैसे ही बताना शुरू कर दिया।

कमरे में आते ही निधि ने कहा- अब मुझे गन्ना दिखाओ.. कहाँ है.. मुझे उसको चूसना है।
अर्जुन- अरे दिखा दूँगा.. मगर पहले अपने कपड़े तो निकालो।
निधि- मुझे शर्म आती है.. पहले तुम अपने निकालो।

उसकी बात सुनकर मुझे अच्छा लगा मैंने अंडरवियर के अलावा सब कपड़े निकाल दिए। उसकी नज़र मेरे लौड़े के उभार पर टिक गई.. जो अभी आधा ही खड़ा था।
अर्जुन- ले मैंने तो निकाल दिए.. अब तेरी बारी है.. चल निकाल..
निधि- तुम अपनी आँख बन्द करो.. तब निकालूँगी मैं.. अपने कपड़े..
अर्जुन- अच्छा लो कर ली आँख बन्द.. अब जल्दी करो.. नहीं तो गन्ना नहीं दूँगा..

अर्जुन के आँख बन्द करते ही निधि ने अपने कपड़े निकाल दिए ब्रा वो पहनती नहीं थी.. उसने अपने जिस्म पर बस चड्डी बाकी रखी..

जब अर्जुन ने आँख खोली तो निधि को देख कर उसकी वासना जाग गई। लंड चड्डी में अकड़ने लगा.. क्योंकि निधि के छोटे-छोटे नीबू किसी टेनिस बॉल की तरह उसके सामने थे और चड्डी में छुपी उसकी चूत का उभार साफ नज़र आ रहा था।

अर्जुन- अरे वाह.. तू तो बहुत सुन्दर है.. ये चड्डी क्यों नहीं निकाली?
निधि- तुमने भी तो नहीं निकाली ना..
अर्जुन- अरे पगली.. इसमे. एक जादू छुपा है.. जो तुम्हें बाद में दिखाऊँगा.. तू पहले अपनी चड्डी निकाल। देख हम खेल शुरू करते हैं बड़ा मज़ा आएगा..

निधि बेचारी कहाँ जानती थी कि आज उसके साथ क्या होने वाला है। उसने अपनी चड्डी भी निकाल दी, अब उसकी बिना झांटों की फूली हुई चूत अर्जुन के सामने आज़ाद थी।

अर्जुन- देख निधि तू यहाँ लेट जा.. मैं तुझे ऐसा मज़ा दूँगा कि तू मुझे हमेशा याद करेगी।
निधि- ठीक है.. मगर मुझे अब तक गन्ना नहीं दिखाया।
अर्जुन- अरे उसका समय नहीं आया अभी.. पहले तुझे स्वर्ग तो दिखा दूँ.. उसके बाद गन्ना भी देख लेना।

निधि कुछ नहीं समझी और चुपचाप लेट गई। अब बारी अर्जुन की थी.. वो उस कमसिन कली के ऊपर चढ़ गया। उसके पतले होंठों को चूसने लगा.. उसके छोटे-छोटे अनारों को सहलाने लगा। कभी उसके एक मम्मे को मुँह में लेकर चूसता.. कभी दबाता.. इस सारे खेल में निधि बस सिसकारियाँ लेती रही।
अब जवानी जब उफान पर हो.. तो ऐसी हरकतें मज़ा देती ही हैं तो निधि भी मज़ा लूट रही थी।

निधि- आह.. ससस्स.. अर्जुन उफ़फ्फ़ गुदगुदी हो रही.. आह.. लेकिन आह्ह.. बड़ा मज़ा आ रहा है.. आह्ह.. ऐसे ही करते रहो आह्ह.. ये खेल तो बड़ा मजेदार है.. आह्ह.. आह्ह..
अर्जुन कहाँ कुछ बोलने वाला था वो तो नशे में खो गया था.. जैसे कच्ची शराब आदमी के होश उड़ा देती है.. वैसे ही कच्ची कली भी आदमी को वहशी बना देती है.. वो अपना मानसिक संतुलन खो देता है।

अर्जुन भी पागल हो गया था। अब वो निधि के दोनों मम्मों को बुरी तरह चूसने और दबाने लग गया था.. जिससे निधि को थोड़ी तकलीफ़ होने लगी थी।
निधि- आह्ह.. अर्जुन उफ्फ.. दुख़ता है.. आह्ह.. आराम से दबाओ ना.. आह्ह.. उई..

अर्जुन अब उसकी नाभि पर जीभ फिराने लगा और उंगली से उसकी चूत को रगड़ने लगा। वो तो हवा में उड़ने लगी.. उसको बड़ा मज़ा आने लगा। मगर जब अर्जुन ने अपने होंठ उसकी सुलगती चूत पर रखे.. तो वो सिहर गई और जल्दी से उठ कर बैठ गई..
निधि- सस्स.. आह्ह.. अर्जुन ये क्या कर रहे हो.. ये गंदी जगह है.. यहाँ से सूसू लगता है.. यहाँ मत करो.. अहह..

अर्जुन- अरे मेरी कच्ची कली.. तुझे क्या पता.. यही तो वो जगह है.. जहाँ से अमृत निकलता है.. तू चुप करके देख.. मज़ा आता है या नहीं.. बाद में कुछ बोलना.. सही बता मैंने यहाँ चूमा तो मज़ा आया ना?
निधि के गाल शर्म से लाल हो गए थे। उसने धीरे से ‘हाँ’ में गर्दन हिलाई।
अर्जुन- ये हुई ना बात.. चल लेट जा अब तेरी फुद्दी को चाट कर तुझे मज़ा देता हूँ।

अर्जुन निधि की चूत के होंठों को मुँह में दबा कर चूसने लगा.. साथ ही उसकी जाँघों को मसलने लगा।
निधि- आह्ह.. सस्सस्स अईह्ह.. अर्जुन आह.. ये खेल तो आह्ह.. बहुत मजेदार है.. आह्ह.. उफ़फ्फ़ मज़ा आ रहा है.. आह्ह.. ज़ोर से करो ना.. आह्ह.. ससस्स करते रहो..
निधि नादान थी.. मगर चूत की चटाई उसको उत्तेजित कर रही थी.. उसकी वासना बढ़ने लगी थी। इधर अर्जुन भी पूरा चाटू था.. वो चूत को हर तरीके से चूस और चाट रहा था..

कुछ देर तक ही ये खेल चला.. क्योंकि ऐसी ज़बरदस्त चुसाई से निधि अपना संतुलन खो बैठी।
निधि- आह्ह.. आईईइ.. ससस्स.. अर्जुन हटो आह्ह.. मेरा ज़ोर से आह्ह.. सूसू आ रहा है.. आह्ह.. नहीं.. उफ़फ्फ़.. हटो.. नहीं तो तुम्हारे मुँह में कर दूँगी.. आह्ह.. अईह्ह…

कुछ पल के लिए अर्जुन ने अपना मुँह हटाया और उंगली से चूत के दाने को रगड़ता हुआ बोला।
अर्जुन- मेरी रानी ये सूसू नहीं.. अमृत है.. आने दे.. कर दे.. तू बस अपना जिस्म ढीला छोड़ दे.. देख कैसा मज़ा आता है।

इतना कहकर वो दोबारा चूत को होंठों में लेकर चूसने लगा। यही वो पल था कि एक अनछुई कली पहली बार ओर्गसम पर थी.. उसका रस चूत को चीरता हुआ बाहर आने को बेताब था। उसकी साँसें फूलने लगी थीं..
निधि सर को इधर-उधर पटकने लगी थी। चारपाई की रस्सी को उसने ज़ोर से पकड़ लिया था। मानो उसके जिस्म का सारा खून तेज़ी से चूत के रास्ते निकल रहा हो.. वो ऐसा महसूस कर रही थी।

वो झड़ने लगी और अर्जुन उसे आइसक्रीम की तरह चाटने लगा।
काफ़ी देर तक चूत को चाटने के बाद अर्जुन सीधा हुआ, तब तक निधि भी बेहाल सी हो गई थी, वो लंबी-लंबी साँसें ले रही थी.. उसके मासूम चेहरे पर जो मुस्कान उस वक़्त थी.. वो देखने काबिल थी। अर्जुन उसको देखता ही रह गया..

निधि- ऐसे क्या देख रहे हो.. मुझे शर्म आती है..
अर्जुन- अच्छा.. अभी फुद्दी चटवाने के समय तो बहुत चिल्ला रही थीं.. ज़ोर से चाटो.. मज़ा आ रहा है.. अब कैसी शर्म आ रही है..
निधि- मैं ऐसे बिना कपड़ों के तेरे सामने हूँ ना.. इसलिए.. और तू बड़ा गंदा है मेरा सारा सूसू पी गया..
अर्जुन- अरे पगली.. मैंने कहा ना.. वो सूसू नहीं रस था। अब तू देख अगर सूसू होता तो ये चारपाई पर थोड़ा तो गिरता.. वो तो बस थोड़ा सा निकलता है.. इसे फुद्दी रस कहते हैं।

निधि बैठ गई और चारों तरफ़ देखने लगी.. सच में वहाँ कुछ नहीं था.. वो हैरान हो गई।
निधि- अरे सच्ची.. कुछ नहीं है.. मगर ये रस पहले कभी क्यों नहीं निकला मेरी फुद्दी से?
अर्जुन- ये अपने आप नहीं निकलता.. इसे निकालना पड़ता है.. जैसे मैंने आज निकाला है.. समझी..
निधि- हाँ समझ गई.. तभी भाभी को मज़ा आता है.. वो छुप कर आपसे रस निकलवाने आती हैं मगर उस दिन आप भाभी के ऊपर लेटे हुए हिल रहे थे.. वो कौन सा खेल है।

अर्जुन- वो रस निकालने का दूसरा तरीका है.. जो फुद्दी में गन्ना घुसा कर निकाला जाता है..
निधि- अच्छा… कैसे कैसे.. मुझे बताओ ना.. और ये गन्ना है कहाँ.. कब से बस बोल रहे हो.. दिखाते ही नहीं हो..
अर्जुन- अब समय आ गया है मेरी रानी.. चल अपनी आँख बन्द कर और खोलना मत.. ये भी एक खेल है.. बहुत मज़ा आएगा..

दोस्तो, उम्मीद है कि आपको कहानी पसंद आ रही होगी.. तो आप तो बस जल्दी से मुझे अपनी प्यारी-प्यारी ईमेल लिखो और मुझे बताओ कि आपको मेरी कहानी कैसी लग रही है।
कहानी जारी है।
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