मेरा गुप्त जीवन- 79

(Mera Gupt Jeewan-79 Mauseri Bahan Ki Chut)

यश देव 2015-10-13 Comments

This story is part of a series:

मेरी मौसेरी बहन की चूत

अभी हम यह बातें कर ही रहे थे की फ़ोन की घंटी बजी।
मैंने फ़ोन सुना और वो मम्मी जी का था।

हाल चाल पूछने के बाद वो बोली- सोमू, वो कानपुर वाली मौसी जी और उनकी दो बेटियाँ वहाँ लखनऊ आ रही हैं, वो कुछ दिन वहाँ ठहरने का प्रोग्राम बना रही हैं, कह रही थी कि वे हमारी कोठी में ठहरना चाहती हैं, बेटा, मैंने हाँ कर दी है, उनका ख़ास ख्याल रखना। वो कम्मो अगर तेरे नज़दीक है तो उसको फ़ोन देना, मैं उसको समझा देती हूँ।
मैं बोला- ठीक है मम्मी जी!
यह कह कर मैंने फ़ोन कम्मो को दे दिया।

फ़ोन पर बात करने के बाद कम्मो बोली- छोटे मालिक, आपने अपनी मौसी को पहले देख रखा है क्या?
मैंने कहा- हाँ देखा है कई बार, क्यों?
कम्मो बोली- मालकिन कह रही थी कि वो थोड़ी सनकी हैं, उनकी बातों का बुरा ना मानना आप सब!
मैं बोला- हाँ हैं तो थोड़ी सनकी लेकिन ऐसी डरने की को कोई बात नहीं, मैं उनको संभाल लूँगा। हाँ आज रात को तुम दोनों चुदवा लेना नहीं तो काफी दिन टाइम नहीं मिलने वाला। मैंने भी आज की चुदाई में नहीं छुटाया सो रात को तुम्हारी या फिर पारो की चूत को हरा करना है।

अगले दिन कॉलेज से वापस आया तो मौसी और उसकी बेटियाँ अभी तक नहीं आई थी। मैं खाने पर उनका इंतज़ार करने लगा।
थोड़ी देर बाद ही चौकीदार रामलाल मौसी जी और उनकी बेटियों का सामान ले कर अंदर आ गया।

मौसी जी से चरणवंदना के बाद उनकी दोनों बेटियों की तरफ देखा तो दोनों ही सुन्दर और स्मार्ट लगी, साड़ी ब्लाउज में दोनों ही काफी अछी लग रही थी।
मिल कर हेलो हॉय हुई और मैंने अपना नाम बताया और उन दोनों ने भी अपने नाम बताये, बड़की का नाम मिन्नी और छोटी का नाम टिन्नी था।

मिन्नी थोड़ी ठहरे हुए स्वभाव की थी और टिन्नी काफी चंचल थी लेकिन दोनों थी बहुत ही बातूनी। मिन्नी कानपुर में गर्ल्स कॉलेज में इंटर के फाइनल में थी और टिन्नी मेरी तरह फर्स्ट ईयर में थी।
मिन्नी उम्र में भी मुझ से साल दो साल बड़ी थीं। ये मौसी जी मेरी मम्मी के रिश्ते में बहन थी, मेरी सगी मौसी नहीं थी।

उन्होंने आते ही अपना सनकीपन दिखाना शुरू कर दिया।
वो रसोई में गई और पारो को बोली- जितने दिन हम यहाँ हैं, खाना हम से पूछ कर बनाया जायेगा और सिर्फ कुछ चुनी हुई सब्जियाँ ही बनेगी, मीट रोज़ बनेगा और वो भी सिर्फ बकरे का!
मौसी ने यह भी बताया कि कल मौसा जी भी आ रहे हैं तो उनका कमरा तैयार कर दिया जाये।

कम्मो ने मेरे साथ वाला कमरा लड़कियों को दिया था और उनसे काफी दूर वाला कमरा मौसी के लिए तैयार किया गया था।
वो मौसी को लेकर दोनों कमरे उनको दिखा आई और मौसी को दोनों ही कमरे पसंद आ गए थे।

उस रात कुछ नहीं हुआ सिवाय इसके कि हम तीनों काफी देर मेरे कमरे में बैठ कर गपशप करते रहे।
मिन्नी ने कई बार कोशिश कि वो मेरी आँखों में आँखें डाल कर बात कर सके लेकिन मैंने उसको ज़्यादा छूट नहीं दी।

अगले दिन जब मैं कॉलेज से लौटा तो मौसा जी भी पहुँच चुके थे, उनसे मिल कर चरण स्पर्श किया और पूछा- आपको अपना कमरा पसंद आया है न?
तब मौसी ने बताया कि वो बड़की मिन्नी की सगाई पक्की करने आये हैं, यहीं लखनऊ का लड़का है और अपना कारोबार है।
मैंने ख़ुशी का इज़हार किया और फिर हम सबने मिल कर खाना खाया।

आते जाते दो बार मिन्नी से मेरी टक्कर होते होते रह गई और हर बार वो मेरी बाँहों में आकर झूल जाती थी।
मैं समझ गया कि मिन्नी टक्कर के अलावा भी कुछ और चाहती है।
अगली बार जब वो मेरे रास्ते से गुज़री तो मैं सावधानी से एक साइड हो गया लेकिन वो जानबूझ कर मेरे लौड़े को हाथ से छूते हुए निकल गई।
अब जब मौका लगा तो मैं भी साइड से निकलते हुए उसके चूतड़ों को हाथ लगाता गया।

थोड़ी देर बाद वो फिर मुझको रास्ते में मिली और इस बार उसने जानबूझ कर अपना बायां मुम्मा मेरी बाज़ू से टकरा दिया।
मैंने मुड़ कर उसको देखा और फिर अपने कमरे में चला गया।
वो भी इधर उधर देखती हुई मेरे पीछे मेरे कमरे में घुस आई और आते ही मुझको कस के जफ़्फ़ी मार दी और लबों पर चुम्मी जड़ कर फ़ौरन भाग कर कमरे से बाहर निकल गई।

मैं कुछ हैरान था, फिर मैं सोचने लगा कि यह तो गेम खेल रही है, मैंने भी सोचा कि चलो इसके साथ गेम ही खेल लेते हैं।

खाने के समय भी हम दोनों डाइनिंग टेबल पर आमने सामने बैठे हुए थे, टेबल पर टेबल क्लॉथ पड़ा हुआ था, मिन्नी उसके नीचे से मेरी जांघों में अपना पैर टिका कर बैठी हुई थी और बार बार मेरे लंड को पैर से छू रही थी।

खाना खाकर हम जब अपने कमरे में आये तो पता चला कि मौसा मौसी कहीं बाहर जा रहे थे।
जैसे ही वो गेट के बाहर हुए तो मिन्नी और टिन्नी दोनों दौड़ कर मेरे कमरे में आ गई और मेरे कमरे का निरीक्षण करने लगी। मैं भी उनको बहुत मना कर रहा था लेकिन वो मान ही नहीं रही थी।

तब मैं मिन्नी के पीछे अपना पैंट में से खड़े लंड को उसके साड़ी से ढके चूतड़ों में टिका कर खड़ा हो गया। वो भी मेरे लंड को महसूस कर रही थी और उसने भी धीरे धीरे अपने चूतड़ों को हिलाना शुरू कर दिया।
उधर टिन्नी हम दोनों के खेल से अनजान मेरी किताबों को देख रही थी।

मिन्नी ज़्यादा भरे हुए शरीर वाली और उभरे चूतड़ों और मोटे सॉलिड मुम्मों वाली लड़की थी। मिन्नी ने इस लंड चूत के घर्षण का आनन्द लेना शुरू कर दिया, अब उसने अपना बायां हाथ मेरे लंड पर रख दिया और सहलाने लगी।

मैंने उसके कान में कहा- अगर तुम चाहो तो और भी ज़्यादा आनन्द लिया जा सकता है।
उसने बगैर मुड़े ही फुसफुसा दिया- कैसे और कहाँ?
मैं बोला- मैं जा रहा हूँ और तुम थोड़ी दूर से मेरे पीछे आना शुरू कर दो और टिन्नी को भी बता आना कि तुम यहीं हो।

उसने हामी में सर हिला दिया और मैं चुपके से बाहर निकल आया और चलते चलते पीछे मुड़ कर भी देखता रहा कि मिन्नी आ रही है न!
मैं चुपके से चलते हुए पीछे के एक कमरे में चला गया जिसका दरवाज़ा खुला रहता था।
थोड़ी देर बाद मिन्नी भी वहाँ आ गई और मैंने झट से उसको अंदर खींच लिया और दरवाज़ा बंद कर दिया।

अब मैंने उसको कस कर आलिंगन में ले लिया और उसके लबों पर एक बहुत ही हॉट किस करने लगा और अपने हाथों को उसके मोटे चूतड़ों पर फेरने लगा, ब्लाउज के बाहर से ही मैं उसके मुम्मों को किस करने लगा।

वो भी मेरे लौड़े पर टूट पड़ी और पैंट के बटन खोलकर मेरे खड़े लौड़े को अपने हाथ में लेकर मुठी मारने लगी।
अब मैं और बर्दाश्त नहीं कर सका और मिन्नी की साड़ी को ऊपर कर के उसकी चूत को सहलाने लगा, उसकी बालों से भरी चूत एकदम रंगारंग हो रही थी।

मैंने भी पैंट को नीचे सरकाया और लाल मोटे लंड को निकाल लिया और मिन्नी को पलंग पर हाथ रखवाकर खड़ा किया और उसकी चूत को सामने कर लिया और अपने लंड का निशाना साध कर उसकी चूत में पूरी ताकत से डाल दिया।
जैसे ही लंड चूत में गया, मिन्नी का मुंह खुल गया और वो आँखें बंद कर चुदाई का मज़ा लेने लगी।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

मैंने भी लंड की धक्काशाही तेज़ कर दी और अँधाधुंध लंडबाज़ी शुरू कर दी।
इस धक्कमपेल में मिन्नी दो बार छूट गई और दूसरी बार छूटने के बाद उसने खुद ही जल्दी से चूत पर पर्दा गिरा दिया यानि साड़ी नीचे कर के बाहर की तरफ भागी।

यह कमरा असल में हमारा स्पेयर गेस्ट रूम था लेकिन पूरी तरह से सामान से सुसज्जित था। इस कमरे के बारे में सिर्फ मैं और कम्मो ही जानते थे।
जब मैं कमरे में वापस पहुँचा तो टिन्नी वहीं बैठी हुई मेरी किताब को पढ़ रही थी।
मैं पलंग पर लेट गया और सोच ही रहा था कि अच्छा हुआ मिन्नी की चुदाई का किसी को पता नहीं चला।

तभी टिन्नी बोली- दीदी का काम कर दिया सोमू?
मैं घबरा कर बोला- दीदी का कौन सा काम?
मिन्नी बोली- वही… जिसके लिए तुम पर दीदी बार बार दाना फैंक रही थी?
मैं बोला- कौन सा दाना और कैसा दाना? बताओ न प्लीज?
टिन्नी बोली- तुम मेरे सामने प्लीज वलीज़ ना करो और सीधे से बताओ कि मेरी बारी कब की है?
मैं बोला- कौन सी बारी और कैसी बारी?

टिन्नी चेयर से उठी और मेरे बेड पर आ कर बैठ गई और आते ही मेरे लंड को पैंट के बाहर निकाल कर उसको घूरने लगी और फिर बोली- अच्छा है मोटा भी है और लम्बा भी है, मुझको कब चखा रहे हो यह केला?
मैं चुप रहा और फिर ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा, हँसते हुए बोला- तुम दोनों बहनें कमाल की चीज़ हो।
टिन्नी बोली- मैं रात को आपका केला खाने आ रही हूँ।
कहानी जारी रहेगी।
[email protected]

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top