जिस्मानी रिश्तों की चाह -42

(Jismani Rishton Ki Chah- Part 42)

जूजाजी 2016-07-26 Comments

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आपी नाश्ते के वक्त मेरी छेड़छड़ से इतनी गर्म हो गई कि उन्हें अपने हाथ से मज़ा लेने के लिये अपने कमरे में जाना पड़ा। मैंने आपी से गुजारिश की कि मैं उन्हें ऐसा करते देखना चाहता हूँ लेकिन उन्होंने मुझे अन्दर नहीं आने दिया।

मज़ीद 3-4 मिनट के बाद आपी बाहर निकलीं.. तो उनके बाल बिखरे हुए थे.. चेहरा चमकता हुआ सा लाल हो रहा था और पसीने के नन्हे-नन्हे क़तरे उनकी पेशानी पर साफ नज़र आ रहे थे।

आपी ने अपने दोनों हाथ अपनी क़मर पर टिकाए और नशीली आँखों से गुस्सैल अंदाज़ में मुझे देखा।

मैंने आगे बढ़ कर आपी के चेहरे को थामा और उनके होंठों को चूम कर कहा- तो मेरी बहना ने ये सब बहुत एंजाय किया है और मुझे खामख्वाह गुस्सा दिखा रही थीं।

आपी ने अपनी कमर से हाथ उठा कर मेरे सीने पर एक मुक्का मारा और फिर मेरे गले लगते हुए अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा कर बोलीं- जी नहीं.. मुझे शदीद गुस्सा आ रहा था तुम पर.. सगीर, प्लीज़ कुछ तो ख़याल किया करो.. ज़रा सोचो अम्मी-अब्बू को ज़रा सा भी शक़ हो जाता.. तो हमारा क्या होता?

मैंने आपी के कंधों को पकड़ कर उन्हें पीछे किया और उनके चेहरे को फिर से अपने हाथों में भरते हुए कहा- लेकिन आपी इस सबमें मज़ा भी तो बहुत आता है ना.. अकले में ये सब करने में मज़ा तो है.. लेकिन इतनी एग्ज़ाइट्मेंट नहीं है.. जितनी कि ऐसे टाइम पर आती है कि हम सबके सामने भी हैं और हमारी हरकतें सबसे छुपी हुई भी हैं। आप भी कितनी एग्ज़ाइटेड हो गई थीं ना..

‘हाँ तुम सही कह रहे हो.. लेकिन फिर भी सगीर.. प्लीज़ दोबारा ऐसा मत करना।’

‘ओके.. मेरी सोहनी बहना जी.. आइन्दा ख़याल रखूँगा… बस?’

यह कह कर मैंने मुस्कुरा कर आपी की आँखों में देखा और फिर एक बार आपी के होंठों को चूम कर बाहर निकल आया और आपी को सोचता हुआ ही कॉलेज को चल दिया।

दिन में कॉलेज से आ कर खाना खाया और आराम करने के बाद.. कमरे में ही अपना एक प्रॉजेक्ट खोल बैठा.. जो 2 दिन बाद लाज़मी कॉलेज में सबमिट करना था।

जब मैं अपना प्रॉजेक्ट पूरा करके उठा तो रात के 8 बज चुके थे।

मैं थोड़ी देर जेहन को फ्रेश करने के लिए बाहर निकल गया और दोस्तों के साथ कुछ टाइम गुजार कर घर वापस आया और खाना खा कर उठा तो आपी ने भी आज रात फिर आने का सिग्नल दे दिया।

मैं रूम में पहुँचा.. तो फरहान बाथरूम में था..
मैंने अपने कपड़े उतार कर ज़मीन पर फैंके और बिस्तर पर नंगा ही बैठ कर आपी के आने का इन्तजार करने लगा।

कुछ देर बाद फरहान बाथरूम से निकला तो मेरी हालत देख के खुश होता हुआ बोला- भाई.. मतलब आपी आएँगी आज भी?

मेरा जवाब ‘हाँ’ में सुनते ही उसने भी अपने कपड़े उतार कर वहीं ज़मीन पर फैंके और बिस्तर पर आकर बैठा ही था कि दरवाज़ा खुला..
आपी कमरे में दाखिल हुईं और अपनी क़मीज़ और सलवार उतार कर सोफे पर रख दी।

मैं और फरहान तो पहले से ही अपने कपड़े उतारे बैठे थे। आपी ज़मीन पर पड़े मेरे और फरहान के कपड़े उठाने लगीं और कपड़े उठाते हुए ही बोलीं- तुम लोग कुछ तो तमीज़ सीखो.. कितना टाइम लगता है इन्हें स्टैंड पर लटकाने में..

यह कह कर आपी ने हमारी तरफ पीठ की और अल्मारी की तरफ चल दीं।

आपी की पीठ हमारी तरफ हुई.. तो मेरी नजरें आपी के खूबसूरत कूल्हों पर जम कर रह गईं।

जब आपी अपना राईट पाँव आगे रखती थीं.. तो उनका लेफ्ट कूल्हा भी ऊपर की तरफ चढ़ जाता और जब लेफ्ट पाँव आगे रखतीं.. तो उसी रिदम में लेफ्ट कूल्हा नीचे आता और साथ ही राईट कूल्हा ऊपर की तरफ उठ जाता।

क़दम उठाने के साथ ही आपी की कमर का खम मज़ीद बढ़ जाता.. और कूल्हे बाहर की तरफ निकल आते।

आपी हमारे कपड़े स्टैंड पर लटका कर मुड़ीं.. तो हमारी शक्ल देख कर हँसते हुए बोलीं- अपने मुँह तो बंद कर लो ज़लीलो.. ऐसे मुँह और आँखें फाड़-फाड़ कर अपनी सग़ी बहन का नंगा जिस्म देख रहे हो.. कुछ तो शर्म करो।

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फरहान ने तो जैसे आपी की बात सुनी ही नहीं.. उसकी पोजीशन में कोई फ़र्क़ नहीं आया.. लेकिन मैंने एक़दम ही अपना खुला मुँह बंद किया और अपने सिर को खुजाते झेंपी सी मुस्कुराहट के साथ बोला- आपी कसम से अगर आप खुद अपने आपको ऐसे देख लो.. तो आपकी टाँगों के बीच वाली जगह भी गीली हो जाएगी.. हम तो फिर भी लड़के हैं।

आपी ने मुझे आँख मारी और बोलीं- अच्छा ऐसा है क्या?

और यह कह कर वे आईने की तरफ चल दीं।

आईने के सामने जा कर आपी ने पहले सीधी खड़ी हो कर अपने जिस्म को देखा और फिर एक हाथ कमर पर रखा
और दूसरे हाथ से अपने बालों को जूड़े की शक्ल में पकड़ते हुए साइड पोज़ पर हो गईं..
और खुद ही अपने जिस्म को आईने में निहारने लगीं।

फिर इसी तरह अपने हाथों को चेंज किया और दूसरे रुख़ पर हो कर फिर अपना साइड पोज़ देखा और आईने में ही से फरहान को देखा.. जो अभी भी मुँह खोले आपी के जिस्म को घूर रहा था।

फिर आपी ने मुझे देखा और नज़र मिलने पर आँख मार के.. एक किस कर दी।

मैंने भी अपने लण्ड पर अपना हाथ आगे-पीछे करते हुए आपी को जवाबी किस की.. और हम दोनों ही मुस्कुरा दिए।

फिर आपी अपनी पीठ आईने की तरफ करके अपनी गर्दन घुमा कर अपनी गाण्ड को देखने लगीं.. इसी पोजीशन में अपनी गाण्ड को देखते-देखते..
आपी अपने दोनों हाथों को पीछे ले गईं और अपने दोनों कूल्हों को पकड़ के चीरते हुए अलहदा किया
और अपनी गाण्ड का सुराख देखने की कोशिश करने लगीं।

इसमें उन्हें नाकामी ही हुई.. कुछ देर और कोशिश करने के बाद आपी ने दोबारा अपना रुख़ घुमाया और अपने सीने के दोनों उभारों को हाथों में पकड़ कर आईने में देखने लगीं।

आपी ने अपने दोनों उभारों को बारी-बारी दोनों साइड्स से देखा.. फिर अपने दोनों उभारों को आपस में दबाते हुए आईने में से ही मेरी तरफ नज़र उठाई और मेरी आँखों में देखते हुए अपनी ज़ुबान निकाली और सिर झुका कर अपने खूबसूरत.. गुलाबी खड़े निप्पल्स पर अपनी ज़ुबान फेरने लगीं।

मेरी बर्दाश्त अब जवाब दे गई थी।
मैं अपनी जगह से उठा और आपी के पीछे जाकर उनके नंगे जिस्म से चिपक गया।

मैंने आपी के हसीन और नर्म ओ नाज़ुक बदन को अपने बाजुओं के आगोश में ले लिया और एक तेज सांस के साथ अपनी बहन के जिस्म की महक को अपने अन्दर उतार कर बोला- आपी ये मक्खन नहीं है.. मैं कसम खा कर कहता हूँ कि मैंने आज तक आप से ज्यादा हसीन जिस्म किसी लड़की का नहीं देखा.. आप बहुत खूबसूरत हो।

फिर मैंने आपी की गर्दन को चूमा और कहा- आपका चेहरा.. आपके सीने के उभार.. आपके बाज़ू.. पेट.. खूबसूरत गोल गोल कूल्हे.. खम खाई हुई कमर.. आपकी खूबसूरत जाँघें.. हर चीज़ इतनी हसीन और मुकम्मल है कि हर हिस्से पर शायरी की जा सकती है।

आपी ने मुस्कुरा कर अपने दाहिने हाथ को मेरे और अपने जिस्म के दरमियान लाकर मेरे खड़े लण्ड को पकड़ा और अपने दूसरे बाजू को उठाया
और मेरे सिर के पीछे से गुजार कर मेरे सिर की पुश्त पर रख कर मेरे गाल को चूम कर कहा- मेरा भाई भी किसी से कम नहीं है.. और मेरा जिस्म जितना भी हसीन है.. इस पर पहला हक़ मेरे प्यारे भाई का ही है।

आपी ने यह कह कर मुहब्बत भरी नज़र से मेरी आँखों में देखा और फिर मेरे गाल पर चुटकी काट ली।

‘सस्स्स्स्स्सीईईईई.. आअप्प्पीईईईई कुत्ती..’ मैंने तक़लीफ़ से झुंझला कर कहा।

तो आपी ने मेरे कान की लौ को अपने दाँतों में पकड़ का काटा और शरारत और मुहब्बत भरे लहजे में सरगोशी करते हुए मेरे कान में बोलीं- हाँ हूँ कुत्ती.. अपने कुत्ते भाई की कुत्ती..

और इसी के साथ ही उन्होंने मेरे लण्ड को भी अपनी मुठी में ताक़त से भींच दिया।

मैंने थोड़ा सा पीछे हट कर अपने हाथ से आपी की टाँगों को खोला और अपना खड़ा लण्ड आपी के हाथ से छुड़ा कर अपने हाथ में पकड़ लिया और आपी की रानों के दरमियान में रख कर अपने लण्ड की टोपी को आपी की चूत की लकीर पर रगड़ा.. तो आपी के मुँह से बेसाख्ता ही एक सिसकी खारिज हुई और वो बोलीं- अहह सगीर.. नहीं..

फिर उसी पोजीशन में रहते हुए मेरे गाल पर अपना हाथ रख कर मेरी आँखों में देख कर संजीदा लहजे में कहा- इसका सोचो भी नहीं सगीर.. प्लीज़..

मैंने अपने हाथ से पकड़ कर आपी का हाथ अपने गाल से हटाया और उनके हाथ की पुश्त को चूम कर कहा- आपी मैं ऐसा कुछ नहीं कर रहा.. जो आपको तक़लीफ़ दे.. आप क्यों परेशान होती हो.. मैं बस ऊपर ही रगडूंगा प्लीज़..

यह कहकर मैंने फिर से अपने फुल खड़े लण्ड को अपनी बहन की रानों के बीच में फँसाया और आपी से कहा- अपनी टाँगों को बंद कर लो..

आपी ने मेरे कहने के मुताबिक़ मेरे लण्ड को अपनी रानों में सख्ती से दबा लिया और मेरा लण्ड आपी की नर्म हसीन रानों के दरमियान दब गया।

मैंने अपने लण्ड को आपी की रानों में ही आगे-पीछे करना शुरू किया.. लेकिन 2-3 बार ही आगे-पीछे करने से मेरा लण्ड बाहर निकल आया।

मैं दोबारा अपना लण्ड को आपी की रानों में फँसा ही रहा था कि आपी ने कहा- सगीर एक मिनट रूको यहीं.. मैं ये सब देखना चाहती हूँ..

आपसे अनुरोध है कि अपने विचार कहानी के अंत में अवश्य लिखें।

कहानी जारी है।
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