जिस्मानी रिश्तों की चाह-40

(Jismani Rishton Ki Chah- Part 40)

जूजाजी 2016-07-24 Comments

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सम्पादक जूजा

मैंने दो उंगलियाँ आपी की चूत में दाखिल की तो उन्होंने मुझे रोका, कहा कि दर्द होता है.. एक ही उंगली से करने को कहा।

आपी ने दर्द की वजह से फरहान के लंड से भी हाथ हटा लिया था.. मैंने अपनी उंगलियों को सख्त रखते हुए फरहान को इशारा किया कि वो आपी का हाथ अपने लण्ड पर रखवाए और उनके सीने के उभार चूसे..
और मैंने खुद आपी की चूत के दाने को मुँह में ले लिया ताकि उनके दर्द का अहसास खत्म हो जाए।

चंद ही लम्हों बाद आपी ने अपना हाथ फरहान के लण्ड पर चलाना शुरू कर दिया और अपनी गाण्ड को थोड़ा सा उठा कर अपनी चूत को मेरे मुँह पर दबाने लगीं..
जिससे मैं समझ गया कि अब आपी के दर्द का अहसास कम हो गया है।

फिर मैंने भी अपनी उंगलियों को हरकत देना शुरू कर दी। कुछ ही देर में मेरी दोनों उंगलियाँ बहुत आराम से अन्दर-बाहर होने लगीं।

कुछ देर बाद मैंने अपनी उंगलियों को तेजी से अन्दर-बाहर करना शुरू किया जिसकी वजह से मैं ये कंट्रोल नहीं कर पा रहा था कि उंगली एक इंच से ज्यादा अन्दर ना जाए..
और हर 3-4 स्ट्रोक में उंगलियाँ थोड़ा सा और गहराई में चली जातीं.. जिससे आपी के मुँह से तक़लीफ़ भरी ‘आह..’ खारिज हो जाती।

इसी तेजी-तेजी में मैंने एक बार ज़रा ताक़त से उंगलियों को थोड़ा और गहराई में दबाया तो आपी के मुँह से एक चीखनुमा सिसकी निकली ‘आआईयई.. ईईईईई.. सगीर.. कहा है ना.. आराम-आराम से करो.. लेकिन तुम लोग जंगली ही हो जाते हो.. हम ये सब मज़ा लेने के लिए कर रहे हैं.. लेकिन इससे मज़ा नहीं.. तक़लीफ़ होती है नाआ..’

‘अच्छा अच्छा.. अब आराम से करूँगा.. कसम से बस.. मैं अपनी बहन को तक़लीफ़ नहीं दे सकता.. बस गलती से हो गया था.. प्लीज़ सॉरी आपी..’

मैंने फिर से उंगलियों की हरकत को कुछ देर रोकने के बाद आहिस्ता आहिस्ता हरकत देनी शुरू कर दी।

चूत भी अजीब ही चीज़ है.. इसमें इतनी लचक होती है.. कि आज तक इस दुनिया के साइन्सदान इस दर्जे की लचक किसी चीज़ में नहीं पैदा कर सके हैं।

कुछ ही देर में आपी का जिस्म अकड़ना शुरू हो गया और आपी के हाथ की हरकत फरहान के लण्ड पर बहुत तेज हो गई।

मुझे अंदाज़ा हो गया था कि आपी की चूत अपना रस बहाने को तैयार है।
मैंने आपी की चूत के दाने को अपने दाँतों में पकड़ा और उंगलियों को तेज-तेज अन्दर-बाहर करने लगा.. लेकिन इस बात का ख़याल रखा कि उंगलियाँ ज्यादा गहराई में ना जाने पाएं।

आपी का जिस्म अकड़ गया था और उन्होंने अपने कूल्हे बेड से उठा लिए और फरहान के लण्ड को पूरी ताक़त से अपनी तरफ खींच लिया।

उसी वक़्त फरहान के मुँह से ‘आहह..’ निकली और उसके लण्ड का जूस आपी के पेट पर गिरने लगा।

बस 4-5 सेकेंड बाद ही आपी भी अपनी मंज़िल पर पहुँच गईं और उनकी चूत मेरी उंगलियों को भींचने लगीं।

अजीब ही हरकत थी चूत की.. कभी मेरी उंगलियों को मज़बूती से भींच लेती थी.. तो अचानक ही चूत की ग्रिप लूज हो जाती और अगले ही लम्हें फिर भींचने लगती।

इस तरह 4-5 झटके खाने के बाद आपी भी पुरसुकून हो गईं और मैंने अपनी उंगलियाँ आपी की चूत से बाहर निकालीं और उनकी चूत को चाटने और चूसने के बाद खड़ा हो गया।

मैंने आपी पर नज़र डाली.. तो उनका चेहरा बहुत पुरसुकून नज़र आया.. जैसे कि वो पता नहीं कितनी लंबी मुसाफत तय करके मंज़िल तक पहुँची हों।

आपी ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा कर उठ बैठीं और कहा- ऊओ.. मेरा शहज़ादे भाई का ‘वो’ तो अभी तक फुल जोश में ही है।

आपी ने एक नज़र मेरे सीधे खड़े लण्ड पर डाली और फिर फरहान की तरफ देख कर बोलीं- फरहान उठो.. सगीर का ‘वो’ चूसो.. आज बहुत दिन हो गए हैं मैंने तुम लोगों को ये करते नहीं देखा।

मैंने आपी की बात सुनी तो वहीं खड़ा हो गया और मुस्कुरा कर आपी को देखते हुए कहा ‘वो’ क्या आपी.. नाम लेकर बोलो ना?

आपी ने शर्मा कर मुझसे नज़र चुराईं और बोलीं- ज्यादा बकवास नहीं करो.. कह दिया मैंने.. जो कहना था।

फिर उन्होंने फरहान को देख कर कहा- उठो ना जाओ सगीर के पास..

फरहान आ कर मेरी टाँगों में बैठा तो मैंने उससे रोकते हुए आपी को देखा और बोला- आपी प्लीज़ यार.. बोलो ना.. मज़ा आएगा ना सुन कर.. अब बोलने में भी क्या शर्मा रही हो..

आपी कुछ देर रुकीं और फिर मुस्कुरा कर बोलीं- अच्छा बाबा.. फरहान चलो सगीर का.. लण्ड चूसो.. अपने बड़े भाई का लण्ड चूसो..

और यह कह कर वे हँसने लगीं।

यह कोई इतनी बड़ी बात नहीं थी.. लेकिन पता नहीं क्यूँ आपी के मुँह से ‘लण्ड’ लफ्ज़ सुन कर बहुत मज़ा आया और लण्ड को एक झटका सा लगा।

फरहान ने मेरे लण्ड को अपने दोनों हाथों में पकड़ा और एक बार ज़ुबान पूरे लण्ड पर फेरने के बाद उसे अपने मुँह में भर लिया।

लेकिन सच यह है कि अब फरहान के चूसने से इतना मज़ा भी नहीं आ रहा था कि जितना अपनी बहन के हाथ में पकड़ने से ही आ जाता था।

मैंने आपी की तरफ देखा.. वो बिस्तर पर बैठी थीं.. उन्होंने अपने दोनों घुटने मोड़ करके अपने सीने से लगाए हुए थे और अपने घुटनों से बाज़ू लपेट कर अपना चेहरा घुटनों पर टिका दिया था।

आपी की दोनों टाँगों के दरमियान से उनकी क्यूट सी गुलाबी चूत नज़र आ रही थी।

आपी की नज़र मुझसे मिली तो मैंने आपी को आँख मारी और कहा- आपी अगर फरहान की जगह आप का मुँह होता.. तो क्या ही बात थी।

आपी ने बुरा सा मुँह बनाया और हाथ से मक्खी उड़ाने के अंदाज़ में कहा- हट.. चालू गंदे.. मैं ऐसा कभी नहीं करने वाली..

कुछ देर आपी हमें देखती रहीं और फिर उठ कर मेरे पीछे आ कर चिपक गईं..
आपी के सख़्त निप्पल मेरी पीठ पर टच हुए.. तो मज़े की एक नई लहर मेरे जिस्म में फैल गई।

आपी ने अपने सीने के उभारों को मेरी कमर से दबाया और अपने निप्पल्स को मेरी कमर पर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर रगड़ने लगीं।

आपी के निप्पल्स मेरी कमर पर रगड़ खा कर मेरे अन्दर बिजली सी भर रहे थे और एक बहुत हसीन अहसास था नर्मी का और शहवात का।

मैंने मज़े के असर में अपने सिर को एक साइड पर ढलका दिया और आँखें बंद करके अपनी बहन के निप्पल्स का लांस महसूस करने लगा।

आपी ने अपने उभारों को मेरी कमर पर रगड़ना बंद किया और ज़रा ताक़त से मेरी कमर से दबा कर अपने दोनों हाथ मेरे कंधों पर रखे और मेरे बाजुओं पर हाथ फेरते हुए.. मेरे हाथों पर आ कर मेरे हाथों को अपने हाथों से दबाया.. और अपने दोनों हाथ मेरे पेट पर रख कर मसाज करने लगीं।

पेट पर हाथ फेरने के बाद आपी अपने हाथ नीचे ले गईं और मेरे बॉल्स को अपने हाथों में लेकर सहलाने लगीं।

फरहान मेरा लण्ड चूस रहा था और आपी मेरे बॉल्स को अपने हाथों से सहलाते हुए अपनी सख़्त निप्पल मेरी कमर पर चुभा रही थीं।

अचानक आपी ने मेरी गर्दन पर अपने होंठ रखे और गर्दन को चूमते और चाटते हो मेरे कान की लौ को अपने मुँह में ले लिया और कुछ देर कान को चूसने के बाद आपी ने सरगोशी और मज़े से डूबी आवाज़ में कहा- कैसा लग रहा है मेरे प्यारे भाई को..?? मज़ा आ रहा है ना?

मैंने अपनी पोजीशन चेंज नहीं की और नशे में डूबी आवाज़ में ही जवाब दिया- बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा है आपी.. बहुत ज्यादा!

आपी ने मेरे चेहरे को अपने हाथ से पकड़ कर पीछे की तरफ किया और मेरे होंठों को चूसने लगीं।

आपी ने मेरे मुँह से मेरी ज़ुबान को अपने मुँह में खींचा ही था कि मेरे जिस्म को भी झटका लगा और मेरे लण्ड का पानी फरहान के मुँह में स्प्रे करने लगा।

कुछ देर बाद मैंने अपनी आँखें खोलीं तो आपी मेरी आँखों में ही देख रही थीं और मेरी ज़ुबान को चूस रही थीं।

मैंने नज़र नीचे करके फरहान को देखा तो फरहान बस आखिरी बार मेरे लण्ड को चाट कर पीछे हट ही रहा था।

मैंने अपने हाथ से फरहान को रोका और उसके होंठों के साइड से बहते अपनी लण्ड के जूस को अपनी उंगली पर उठा लिया।

आपी मेरी पीठ पर थीं जिसकी वजह से उन्होंने भी यह देख लिया था कि मैंने अपनी उंगली पर अपने लण्ड का जूस उठाया है।

मैंने अपनी उंगली आपी के मुँह के क़रीब करते हुए शरारती अंदाज़ में कहा- आपी एक बार चख कर तो देखो.. मज़ा ना आए तो कहना।

आपी जल्दी से पीछे हटते हुए बोलीं- नहीं भाई.. मुझे माफ़ ही रखो.. मैंने नहीं चखनी..

यह कह कर आपी पीछे हटते हुए बाथरूम में चली गईं और मैं और फरहान भी अपने जिस्म को साफ करने लगे।

कुछ देर बाद आपी बाथरूम से बाहर आईं तो फ़ौरन ही फरहान बाथरूम में घुस गया।

मैं बिस्तर पर ही लेटा था.. आपी ज़मीन से अपने कपड़े उठा कर पहनने लगीं।

वाकिया मुसलसल जारी है, आपसे गुजारिश है कि अपने ख्यालात कहानी के आखिर में जरूर लिखें।
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