प्रचण्ड मुसण्ड लौड़ा-1

रंगबाज़ 2014-03-16 Comments

समस्त पाठकगण को मेरा नमस्कार। आज आपको मैं एक ट्रेवल एजेंसी का किस्सा बताता हूँ। यह ट्रेवल एजेंसी हमारी माया नगरी मुम्बई के अँधेरी इलाके में थी।

इस ट्रेवल एजेंसी की ख़ास बात यह थी कि इसे एक गे (समलैंगिक) उद्यमी ने शुरू किया था व इसके सारे कर्मचारी चपरासी से लेकर मालिक तक सब ‘गे’ थे।

ईशान भी इसी ट्रेवल एजेंसी में काम करता था। उसका ज़िम्मा था ग्रुप टूअर्स करवाना। अब तक वो कई ‘गे’ लड़कों के ग्रुप टूअर्स करवा चुका था।

उसे इस ट्रेवल एजेंसी में उसके बॉयफ्रेंड विशाल ने नौकरी दिलवाई थी। वैसे तो उस ट्रेवल एजेंसी में हर कोई एक-दूसरे के बारे में जानता था, लेकिन ईशान और विशाल एक-दूसरे के बहुत करीब थे।

ईशान बहुत सुन्दर लड़का था, दुबला पतला, गोरा-चिट्टा, काली बड़ी-बड़ी आँखें और बहुत ही पतले-पतले नाज़ुक होंठ कि सामने वाले का मन करता था कि चूस ले, उम्र लगभग चौबीस साल, उसके पीछे बहुत लोग थे, उसके दफ्तर में भी और बाहर भी लेकिन ईशान किसी को घास नहीं डालता था। वो विशाल से बहुत प्यार करता था, सिर्फ उसी का लौड़ा चूसता था, उसी से गान्ड मरवाता था।

उस ट्रेवल एजेंसी का चपरासी अभिषेक था। पूरा नाम अभिषेक तिवारी था, लेकिन सब उसे ‘पिंकू’ कहकर बुलाते थे। उसकी उम्र लगभग छब्बीस साल थी, इकहरा बदन, लम्बा कद, रंग गेहुँआ, चेहरे पर हल्की-हल्की मूँछें।

पिंकू का सबसे बड़ा हथियार था उसका लण्ड। उस ट्रेवल एजेंसी में हर कोई उसका दीवाना था। यहाँ तक कि उसका मालिक भी पिंकू के लण्ड का कायल था। वहाँ जो लोग गान्ड मारते थे, वो भी उसके लण्ड का लोहा मानते थे।

पिंकू का लण्ड साढ़े दस इन्च का था और भयंकर मोटा था।

पिंकू ईशान को बहुत पसन्द करता था, उसका बड़ा मन था ईशान को चोदने का, उसको दफ्तर में रह-रह कर घूरा करता था। उसको लाइन मारता था, उसके सामने अपना लण्ड खुजाता था। लेकिन ईशान उसको बिल्कुल घास नहीं डालता था। वो सिर्फ विशाल का था। इसी बात को लेकर पिंकू परेशान रहता था।

इसके अलावा ईशान और पिंकू एक ही जगह के रहने वाले थे। ईशान फैज़ाबाद का था और पिंकू फैज़ाबाद के करीब एक छोटे से कस्बे गोशाईंगंज का था। लेकिन ईशान फिर भी पिंकू से दूर रहता था। इसका कारण यह भी था कि ईशान पिंकू को देहाती, गँवार समझता था। उसे मालूम था कि गोशाईंगंज महज़ एक छोटा सा क़स्बा था।

यद्यपि उसने पिंकू के ‘महा-प्रचंड’ लौड़े के बारे में सुन रखा था और वो ये भी जानता था कि पिंकू उसके पीछे था।

एक दिन की बात है, किसी ज़रूरी काम से ईशान और विशाल को किसी ज़रूरी काम से रविवार के दिन ट्रेवल एजेंसी आना पड़ा। दौड़-भाग करने के लिए पिंकू को भी बुलाया गया। बाकी लोग रविवार की वजह से छुट्टी पर थे। दफ्तर में उन तीनों के अलावा और कोई नहीं था।

विशाल थोड़ी देर बाद किसी काम से बाहर निकल गया। अब दफ्तर में सिर्फ पिंकू और ईशान थे।

पिंकू हमेशा की तरह ईशान को ताड़ रहा था। लेकिन ईशान पिंकू को नज़रअंदाज़ किये हुए, अपने लैपटॉप में मशगूल था।

“पिछली बार घर कब गए थे?” पिंकू ने बातचीत शुरू की।

“दीवाली पर !” ईशान ने बिना उसकी और देखे संक्षिप्त सा जवाब दिया।

पिंकू को मालूम था ईशान उस पर ध्यान नहीं दे रहा था, लेकिन फिर भी वो बातचीत में लगा रहा।

“मैं नए साल पर गया था। बहुत ठण्ड थी।”

ईशान ने कोई जवाब नहीं दिया।

पिंकू आकर उसकी डेस्क पर खड़ा हो गया, “चाय पियोगे?” उसने पूछा।

ईशान ने उसी तरह, बिना उसे देखे ‘ना’ बोल दिया।

पिंकू की समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। उसका लण्ड मचल रहा था। इतना सुन्दर, चिकना लड़का उसके सामने अकेला था, लेकिन वो कुछ नहीं कर पा रहा था।

न जाने पिंकू के दिमाग में क्या आया, उसने दफ्तर का दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया। वैसे भी रविवार के दिन कोई नहीं आने वाला था। उसे मालूम था कि विशाल लम्बे काम से बाहर गया हुआ है और देर से लौटेगा।

ईशान इससे अनभिज्ञ अपने काम में जुटा हुआ था। तभी पिंकू आकर उसके करीब खड़ा हो गया। ईशान चौंक गया।

पिंकू ने अपनी जींस और चड्डी नीचे खींची हुई थी। वो अपना लण्ड खोलकर ईशान के सामने खड़ा था। ईशान बुरी तरह सकपकाया। एक पल उसने पिंकू के महा भयंकर लौड़े को देखा और एक पल पिंकू को, ठिठक कर पीछे खिसक गया।

“इसे एक बार चूस दो ईशान…” पिंकू ने बड़े दयनीय लहज़े में कहा। उसकी आवाज़ में बेइन्तहा हवस की वजह से बेबसी का पुट था। जैसे कोई बहुत भूखा आदमी किसी खाना खाते हुए आदमी के सामने रोटी के एक टुकड़े के लिए भीख माँग रहा हो।

ईशान स्तब्ध था। वो इसकी उम्मीद नहीं कर रहा था, दूसरे वो पिंकू का लण्ड-मुसंड देख कर हिल गया था। उसने उसके लौड़े के बारे में सुन तो रखा था, लेकिन देख अब रहा था और वाकयी में अचम्भित था।

पिंकू का विकराल लण्ड साढ़े दस इन्च लम्बा था और ज़बरदस्त मोटा था, जितना पिंकू की अपनी कलाई। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी जांघों के बीच से काले-गेहुँए रँग का मोटा सा खीरा लटका हो।

ईशान उसका लण्ड-मुसंड देखता ही रह गया।

उसकी तोप पर मोटी-मोटी नसें उभर आई थीं, रंग गहरे सांवले से अब काला पड़ने लगा था। उसका सुपारा बड़े से गुलाब जामुन की तरह फूल कर मोटा हो गया था और उसमें से प्री-कम चू रहा था। उसके मोटे-मोटे गोले, उसके पीछे उगी हुई झाँटों में उलझे लटक रहे थे।

ईशान सोच रहा था- इतना बड़ा तो सिर्फ ब्लू फिल्मों में अफ्रीकियों का होता है। इतना बड़ा मुसंड गोशाईंगंज में कहाँ से आ गया?

एक पल को ईशान को घिन आई ‘साला गँवार अपनी झाँटे भी नहीं साफ़ करता था, न ही काट कर छोटा करता था।’ लेकिन इससे वो और मर्दाना और रौबीला लग रहा था।

ईशान उसके प्रचण्ड मुसंड को घूर ही रहा था कि पिंकू उसके और करीब आ गया। ईशान के चेहरे और उसके लण्ड में कुछ ही इंचों का फैसला था। लण्ड की गन्ध ईशान के नथुनों में भर गई थी, पिंकू का तो मन था कि अपना लौड़ा सीधे उसके मुँह में घुसेड़ दे। उसने देखा जितना लम्बा उसका लण्ड था, उतना लम्बा तो ईशान का सर था। लेकिन उसके लिए यह कोई नई बात नहीं थी।

“चूसो…” पिंकू ने ईशान का ध्यान भंग करते हुए कहा, उसके लहज़े में हवस की बेबसी थी।

“पिंकू… कोई आ गया तो?” ईशान उसका विकराल लण्ड देख कर पिंघल चुका था, उसके मुँह में पानी आ गया था।

“अरे कोई नहीं आएगा। मैंने दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया है।”

“और विशाल?” ईशान ने पूछा।

“अरे वो देर से आयेगा। ओबेरॉय (होटल) गया हुआ है क्लाइंट से मिलने। देर से लौटेगा।” उसकी लहज़े में अब बेसब्री थी। वो जान गया था कि ईशान अब पिंघल गया है।

उसके लण्ड से इतना प्री-कम टपक रहा था कि अब ईशान की जींस पर गिरने लगा था।

इससे पहले कि ईशान उसका लण्ड मुँह में लेता, पिंकू ने खुद ही उसका सर पकड़ कर अपना लंड उसके मुँह में घुसेड़ दिया और ईशान मानो सहजवृत्ति से, अपने आप ही फ़ौरन उसका गदराया लण्ड-मुसंड चूसने लगा, जैसे कोई बच्चा माँ का दूध पीता हो। पिंकू के लण्ड से वीर्य और मूत की तेज़ गंध आ रही थी, लेकिन बजाये घिन आने के यह गंध ईशान को और आकर्षित कर रही थी।

ईशान मस्त होकर पिंकू का लौड़ा चूसने लगा। वैसे इतना भीमकाय लौड़ा किसी को भी मिल जाये तो मस्त होकर चूसेगा।

“आज चूस लो गोशाईंगंज का लण्ड …” पिंकू बोला।

ईशान अपनी कुर्सी पर बैठा, अपने सामने खड़े पिंकू का लण्ड ऐसे चूस रहा था जैसे उसे दोबारा कभी लण्ड चूसने को मिलेगा। कभी उसको अगल-बगल से चाटता, कभी उसका सुपारा चूसता, कभी पूरा मुँह में लेने की कोशिश करता (हालांकि पिंकू का पूरा लण्ड मुँह में लेना असम्भव था।)

इधर पिंकू अपने हाथ कमर पर टिकाये, ईशान के सामने खड़ा लण्ड चुसवाने का आनन्द ले रहा था और ईशान को अपने सामने झुके हुए लण्ड चूसता हुआ देख रहा था।

“एक मिनट रुको !” पिंकू ईशान की मेज़ पर बैठ गया, “अब चूसो।”

ईशान कुर्सी सरका कर पिंकू की जांघों तक आ गया और फिर से चुसाई में लग गया। इतना मस्त, सुन्दर, लम्बा, मोटा और रसीला लण्ड लाखों में एक होता है, अपने मन में सोच रहा था और लपर-लपर उसका लण्ड चूस रहा था। उसका मन था कि वो पिंकू के लण्ड के हर एक कोने का स्वाद ले, पूरा का पूरा अपने मुँह में भर ले, लेकिन इतना बड़ा लण्ड किसी के भी मुँह में लेना असम्भव था।

पिंकू भी इसी चेष्टा में था कि ईशान के मुँह पूरा घुसेड़ दे, लेकिन उसका गला चोक हो रहा था। ईशान ऊपर से नीचे तक, अगल-बगल, हर जगह से, यथा सम्भव उसके लौड़े को चूस रहा था और चाट रहा था। जब पिंकू अपना लौड़ा लेकर ईशान के सामने आया था, लण्ड आधा खड़ा था। अब उसके मुँह की गर्मी पाकर पूरा का पूरा तनकर कर खड़ा हो गया था।

पिंकू का तो मन था कि अभी ईशान को पकड़ कर चोद दे। विशाल ने उसे ईशान की गाण्ड के बारे में बता रखा था। बहुत मुलायम, चिकनी गोल-गोल और कसी हुई थी साले की।

लेकिन पिंकू अभी थोड़ी देर लौड़ा चुसवाने का आनन्द लेना चाहता था। एक पल को पीछे झुक कर ईशान को अपना लण्ड चूसता हुआ देखने लगा। उसने ईशान के पतले-पतले नाज़ुक होंठों के बीच अपने सांवले साण्ड-मुसण्ड को देखा।

बहुत मज़ा आ रहा था उसे। उसने ईशान के हलक में लण्ड और अंदर घुसेड़ने की कोशिश की, लेकिन बेचारे का गला चोक होने लगा। उसका पूरा लण्ड ईशान के थूक से सराबोर हो गया था।

ईशान एक हाथ से उसका लण्ड थामे और दूसरा उसकी जाँघ पर टिकाए चूसे पड़ा था। उस साले को बहुत मज़ा आ रहा था। ईशान की नरम मुलायम गीली जीभ उसके लण्ड का दुलार कर रही थी। उसके मुँह की गर्मी पाकर पिंकू का लण्ड ऐश कर रहा था।

“इसे होंठों से दबा कर ऊपर-नीचे करो न !”

पिंकू अब ईशान आदेश देने लगा था और ईशान मानने भी लगा था। ट्रेवल एजेंसी के बाकी लोगों की तरह वो भी उसके लौड़े का गुलाम बन चुका था। पिंकू अपनी आँखें बंद किये, ईशान के बाल सहलाता, लण्ड चुसवाने का आनन्द ले रहा था और ईशान भी अपनी आँखें बंद किये, दोनों हाथों से पिंकू का हथौड़े जैसा लंड चूसने का आनन्द ले रहा था।

दोनों आँखें बंद किये आनन्द के सागर में डूबे जा रहे थे।

कहानी जारी रहेगी।

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