मैं पूरे परिवार से चुदी-2

यश ठाकुर 2014-04-06 Comments

प्रेषिका : आशा

संजय अपनी टाँग फैला कर बिस्तर पर बैठ गया और मैंने अपनी सैंडल को उसके शॉर्ट्स के नज़दीक रख दिया और अपनी टाँगें थोड़ी सी फैला लीं। संजय धीरे-धीरे मेरे घुटनों के नीचे क्रीम लगा कर मालिश करने लगा। मैं अपने सैंडल के आगे वाले भाग से अपने पंजों के लम्बे नाखूनों से, जो कि लाल रंग की नेल पालिश से चमक रहे थे, उनसे धीरे-धीरे उसके शॉर्ट्स पर खुरचन देकर उसके लंड का कड़ापन महसूस करने की कोशिश करने लगी।

मुझे इंतज़ार करना था तब तक, जब तक की उसका लंड बिल्कुल लोहे के सरिये के जैसा कड़ा ना हो जाए।

मैंने संजय से बोला- थोड़ा और ऊपर लगा ना ! आगे सरक कर बैठ जा न थोड़ा !

संजय और आगे सरका और मैंने अपने पैर की उंगलियों से महसूस किया कि शॉर्ट्स के अन्दर उसका लंड खड़ा हो चुका था, मैंने घड़ी देखी और अभी दवाई देने के बाद आधा घंटा होने में 15 मिनट बाकी थे।

संजय के हाथ अब मेरी जाँघों के ऊपर क्रीम लगा रहे थे, संजय ने पूछा- और ऊपर आंटी?

मैंने बोला- हाँ, थोड़ा और ऊपर।

यह बोलते हुए मैंने अपनी टाँग हल्की सी और फैलाई और संजय को अपनी चिकनी चूत के दर्शन करा दिए। वो बिल्कुल फटी आखों से मेरी चूत जो मेरे शॉर्ट्-नाइटी के बीच में से बिल्कुल खुल गई थी, उसको घूरे जा रहा था।

मैंने मुस्कुराते हुए बोला- क्या हुआ ! लगा न ऊपर !

उसने मेरी आखों में देखा और मैंने अपनी जीभ अपने होंठों पर फिराते हुए और अपने नीचे के लाल होंठ को हल्के से दातों से दबाते हुए बोला- आगे से लगाएगा कि पीछे से?

वो सकपका कर बोला- क्या आंटी?

मैं मुस्कुरा कर बोली- अरे मेरा मतलब कि तू बोल तो मैं पलट कर लेट जाऊँ तो तू पीछे से भी मालिश कर सकता है। तो बोल ? आगे से करेगा या पीछे से ! आराम से कैसे कर सकता है मालिश?

वो बोला- हाँ, आप पलट कर लेट जाओ आंटी, मैं पीछे से करता हूँ।

मैं मुस्कुरा कर बोली- मुझे तो पता है आज कल के लड़के तो बस पीछे से ही…!

और जोर से हँसते हुए पलट गई। मेरी टाँग फैला कर उसने मेरी जाँघों के ऊपर मालिश करना शुरू किया, उसके ऊँगलियाँ मेरे चूत को कभी-कभी हल्का सा रगड़ देती थीं, जब उसका हाथ ऊपर आता था।

मैंने बोला- संजय थोड़ा और ऊपर कर बेटा।

उसके हाथों ने मेरे चूतड़ पकड़ लिए और वो बोला- यहाँ आंटी?

मैंने बोला- हाँ बेटा यहीं !

और अपने हाथों से अपने चूतड़ फैला कर अपनी गांड की दरार को खोल कर बोली- थोड़ी क्रीम यहाँ भी लगा दे।

यह सुन कर संजय की हिम्मत थोड़ी बढ़ गई और मैंने महसूस किया कि उसका लंड शॉर्ट्स के बाहर निकल चुका था और उसका छोटा लंड बिल्कुल लोहे के छोटे से सरिये जैसा कड़ा था। वो अपनी टाँगें फैला कर मेरे खुली हुई जाँघों के ऊपर बैठ गया और उसने क्रीम मेरी गांड के छेद पर और चूत के ऊपर धीरे-धीरे लगाना शुरू कर दी। मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था और अब दवाई का पूरे असर दिखने में सिर्फ 3 मिनट बाकी थे।

लेकिन मुझे अंदाजा नहीं था कि संजय को उत्तेजना इतनी ज्यादा हो जाएगी कि उसकी पिचकारी बिना लंड घुसाए ही छूट जाएगी। उसका लंड बस मेरे मांसल चूतड़ से रगड़ खाते ही झड़ गया और वो वो जोर से चीखा- आह, आंटी यह क्या हुआ?

उसकी मलाई मेरी गांड पर फ़ैल गई थी।

मैंने बोला- हट मेरे ऊपर से, यह क्या किया?

वो हट के सर झुका कर खड़ा हो गया। मैंने उसकी छूटी हुई मलाई अपने हाथों से उठाई और चाटने लगी। उसकी मलाई चाटते हुए बोली- कोई बात नहीं ऐसा हो जाता है बेटा।

और उसका 5 इंच के लंड को पकड़ के उसकी बची हुई मलाई निचोड़ते हुए बोली- क्यों मज़ा आया तुझे? क्या तूने पहले कभी चोदा किसी लड़की या औरत को?

संजय की सांस तेज़ चल रही थीं पर उसका लंड दवाई के असर की वजह से अभी भी बिल्कुल तना हुआ था।

वो बोला- नहीं आंटी पहले कभी नहीं, मुझे तो पता भी नहीं कैसे चोदते हैं। आप सिखाओगी तो आपको चोद लूँगा।

मैंने सोचा हे भगवान्, एक मेरा बेटा खिलाड़ी था और एक यह अनाड़ी।

लेकिन क्या करती 5 महीने बाद ये 5 इंच का लंड भी मज़ा दे रहा था।

मैंने बोला- देख सिखाआऊँगी सब कुछ, पर जल्दबाजी नहीं, जैसे-जैसे बोलूंगी.. बस वैसे-वैसे करना।

संजय ने हाँ में सर हिला दिया।

फिर मैंने बिना देर किए, संजय को फिर से तैयार करने के लिए, उसका लंड जो अभी भी खड़ा हुआ था उसको पूरा मुँह में ले लिया और चूसने लगी।

मैंने उसकी आखों में देख कर उसके लंड के सुपारे पे अपने लाल-लाल होंठों से पप्पी ले ली। उसके लंड के सुपारे के चारों तरफ अपनी जीभ घुमाते हुए मैंने उसको पूछा- मज़ा आ रहा क्या तुझे? मेरे मुँह में लंड चुसवा के?

वो बोला- हाँ आंटी, बहुत मज़ा आ रहा है।

उसका लंड चूसते हुए मैंने उसके टट्टे अपने लाल नाखूनों, पौरों से मसलने शुरू कर दिए और दूसरे हाथ से अपनी चूत पर लगी हुई क्रीम थोड़ी उँगलियों में लगा ली और अपना हाथ पीछे ले जा कर संजय के चूतड़ फैला के एक उंगली उसकी गांड में डाल दी।

उसके मुँह से ‘आह’ निकल पड़ी। मेरी एक उंगली जिसमे क्रीम लगी थी, मैं उसको संजय की गांड में घुमाते हुए उसके प्रोस्टेट को मसलते हुए उसका लंड चूसती रही। कभी उसके टट्टे चूसती कभी उसका लंड और उसकी गांड में मेरी उंगली उसके प्रोस्टेट को मसल रही थी।

उसका लंड फिर से मुझे सिकुड़ता और फैलता महसूस हुआ, मैं समझ गई कि यह फिर झड़ने वाला है। मैंने उसका लंड पूरा मुँह में भर लिया और उसने फिर से गर्म-गर्म गाढ़ी मलाई से मेरा मुँह भर दिया। मैं पूरी मलाई गटागट पी गई। मैं सोच रही थी, अच्छा हुआ इसको दवाई खिला दी नहीं तो यह तो बिना मुझे चोदे ही निढाल हो जाता। मुझे उत्तेजना बढ़ाने वाली अपनी इस गोली पर पूरा भरोसा था, मैं राहुल की बेदर्द चुदाई देख चुकी थी और मुझे पूरा भरोसा था कि अब यह भी मुझे बहुत देर तक चोदने वाला है।

दो बार झड़ने के बाद उसका लंड हल्का सा ढीला पड़ा, मैं उसके लंड से बची हुई मलाई चाटते हुए बोली- तो मज़ा आया ना संजय ?अब जैसे मैंने तेरा लंड चूसा वैसे ही तू मेरी चूत चाट। बोल ना बेटा, चाटेगा ना अपने आंटी की चूत?

संजय बोला- हाँ आंटी।

मैंने फ्रिज से फ्रूट-क्रीम की एक शीशी निकाल ली और फिर मैं अपनी टाँगें फैला कर बिस्तर पर लेट गई क्योंकि संजय ने चूत कभी चाटी नहीं थी तो उसको सिखाने के लिए मैंने फ्रूट-क्रीम अपने चूत के ऊपर और थोड़ी चूत के अन्दर भी लगा ली।

और बोली- देख संजय, तुझे मेरी चूत से यह फ्रूट-क्रीम पूरी चाट-चाट कर खानी है, जब यह साफ़ हो जाएगी, तब तेरा लंड मैं चूत में अन्दर लूँगी।

संजय ने मेरी सैंडल को चूमते हुए धीरे-धीरे उन्हें निकाल दिया और फिर मेरे हाथों से फ्रूट-क्रीम की शीशी लेकर फ्रूट-क्रीम मेरे पंजों और मेरी टाँगों पर भी लगा दी, फिर वो अपने जीभ से मेरी पाँव की उँगलियों को चूस और चाट-चाट कर क्रीम साफ़ करने लगा। मुझे भी बड़ा मज़ा आ रहा था, उसने मेरे पैरों से धीरे-धीरे क्रीम चाटते हुए मेरी चूत की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया दिया था।

वो मेरी चिकनी मांसल जाँघों से क्रीम चाट रहा था। चाटते हुए वो मेरी आँखों में देख रहा था जैसे मुझे दिखा रहा हो कि चाटते हुए उसको कितना मज़ा आ रहा है। मैं भी अपनी जीभ होठों पर फिरा कर अपनी उत्तेजना दर्शा रही थी। उसने अब मेरी चूत के चारों तरफ अपनी जीभ से क्रीम चाटना शुरू कर दिया। उसने मेरी चूत की पंखुड़ियों को खोल कर उसके अन्दर जीभ घुसा कर क्रीम चाटी।

थोड़ी क्रीम मेरी गांड के छेद पर भी लगी हुई थी, उसने अपने जीभ मेरी गांड के छेद से धीरे-धीरे चाटना शुरू कर के, वो मेरी चूत तक बार बार चाटने लगा।

मुझे बहुत आनन्द आ रहा था। मैंने अपने चूत की पंखुड़ियों को खोल कर अपनी गुलाबी चूत खोल कर संजय को अपनी चूत के ऊपर का दाना दिखाया और बोली- यह चूत के ऊपर का दाना देख संजय, यहाँ चाटने से औरतों को बहुत उत्तेजना होती है और अगर तू अपने हाथ की बीच की 2 ऊँगलियाँ चूत के अन्दर डाल कर उन्हें ऊपर की तरफ मोड़ दे चूत के अन्दर तो तुझे एक बिल्कुल गुदगुदी सी जगह महसूस होगी। शाबाश तूने क्रीम तो साफ़ कर दी अब तू मेरी चूत में दो उंगलियाँ डाल और मेरी चूत का दाना अपने मुँह में ले कर चूस। हो सकता है मैं उत्तेजना बर्दाश्त ना कर पाऊँ, मेरी टाँग की नसें खिंच जाएँ, मैं तुझे रुकने के लिए बोलूँ, पर तू बिल्कुल रुकना नहीं, जब तक मेरी चूत से तू पानी छूटता हुआ ना देखे। बोल करेगा जैसे बोला तुझे?

संजय बोला- हाँ आंटी, नहीं रुकूँगा.. चाहे आप कितना भी चिल्लाओ।

मैं मुस्कुरा दी और बोली- अच्छा चल अब अपनी दो उंगलियाँ मेरी चूत में डाल, बीच की दो उंगलियाँ और उनको चूत के अन्दर ऊपर की तरफ मोड़ लेना। वहाँ औरत का जी-स्पॉट होता है, वहाँ पे मसलने से औरत की चूत का पानी छूट जाता है। मैंने तेरी मलाई छुड़ा दी है दो बार, अब तेरी बारी है।

संजय ने बिना देर किए मेरी चूत में बीच की दो उंगलियाँ घुसा दीं और उन्हें मेरी चूत के अन्दर ऊपर की तरफ मोड़ते हुए पूछा- यहाँ है क्या जी-स्पॉट आंटी?

मैंने बोला- अरे नहीं रे, 45 डिग्री का कोण पढ़ा है गणित में? बस अपनी उँगलियों को 45 डिग्री के कोण पर मोड़ दे, मिल जाएगा वो जी-स्पॉट !

उसने इस बार उंगली बिल्कुल ठीक से मोड़ी और उसकी उंगलियों का स्पर्श ‘जी-स्पाट’ पर हुआ।

मेरी ‘आह’ निकल गई.. जैसे ही उसकी उँगलियों ने मुझे वहाँ पर छुआ।

मैंने बोला- हाँ… संजय बस वहीं पर बेटा, अब धीरे-धीरे उंगली से मसल वहाँ.. और मेरी चूत का दाना मुँह में लेकर चूस, जब मेरी जाँघों में थिरकन बढ़ने लगे, तब जितनी जोर से उंगली को अन्दर-बाहर कर के वहाँ ऊपर की तरफ रगड़ सकता है, रगड़ देना। मैं चीखूँगी, चिल्लाऊँगी, पर तू रहम बिल्कुल मत करना, जितनी ताकत है बस मेरी कमर पकड़ के चोद देना मेरी चूत अपनी उंगली से।

संजय मुस्कुराया और बोला- समझ गया आंटी।

और उसने मेरी चूत का दाना चूसते हुए मेरी चूत में उंगली करने शुरू कर दी। वो मेरी चूत की पंखुड़ियों को बीच-बीच में अपने होंठों में दबा कर खींच भी देता था, जिससे मुझे और भी मज़ा आ रहा था। मेरी प्यासी चूत गीली हो गई थी और मेरी जांघ की नसों में खिंचाव होने लगा, मैं चिल्लाई- बस कर संजय, अब लंड घुसा दे अपना चूत में मेरी !

पर संजय को याद था, मैंने उसको क्या बोला था, जैसे ही उसने मेरी जाँघों में थिरकन बढ़ते देखी, उसने मेरी कमर को पकड़ कर टाँग पूरी फैला कर अपने उंगली बिल्कुल 100 की स्पीड से अन्दर-बाहर कर के मेरी बच्चे-दानी के छेद के ऊपर मसलना शुरू कर दिया।

मैं चीख रही थी- नहीं, मत कर, रुक जा, भगवान् के लिए, छोड़ दे मुझे, मैं मर जाऊँगी… मेरी चूत फट जाएगी…!

मैं चीखती रही लेकिन संजय नहीं रुका और मेरी चूत का दाना एक हाथ की उंगली से मसलते हुए दूसरे हाथ की दो उँगलियों को मेरी चूत में इतनी जोर से हिलाया कि मेरा मूत निकलने लगा।

मेरी टाँग की नसें खिंच रही थीं, ऐसा लगा शरीर से आधी जान निकल गई। मैं बिल्कुल निढाल हो गई और मेरी साँसें तेज़ चल रही थीं। मेरी पेशाब ने संजय को और बिस्तर को पूरा गीला कर डाला था।

कहानी जारी रहेगी।

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