सुपर स्टार-2

(Super star-2 Hindi Sex Story)

This story is part of a series:

वो मेरे कान मरोड़ते हुए कहने लगी- कमीने.. मैं भैंस दिखती हूँ तुम्हें.. जो मेरे 42 के होंगे.. खैर.. इन सब बातों में मैं तुम्हें तुम्हारा गिफ्ट देना ही भूल गई।
वो उठी और अपनी अलमारी से एक पैक किया हुआ गिफ्ट ले आई। वो गिफ्ट मेरे हाथ में दे अपना गला साफ़ करने लग गई।

मैंने अपने कान पर हाथ रखा और उससे कहा- जान अब गाना भी सुनाओगी क्या..? आज के लिए वो रिजल्ट वाला सदमा ही काफी था। इससे तो कैसे भी उबर जाऊँगा.. पर तुम्हारे गाने को भूलने में सदियाँ बीत जायेंगी।
अब गुस्सा होती हुई वो बोली- एकदम चुप हो जाओ.. वर्ना हाथ-पैर सलामत नहीं बचेंगे.. गाने का मन तो नहीं था.. पर अब तो छोडूंगी नहीं.. तुम्हें अब सुनना ही पड़ेगा।

मैंने अपने होंठों पर ऊँगली रखी और उससे शुरू होने का इशारा किया।

कहते हैं कि आँखें कभी झूठ नहीं कहती हैं। उसकी आँखें ही काफी थीं.. हाल-ए-दिल बयाँ करने के लिए।

‘दिल में हो तुम.. आँखों में तुम… कैसे ये तुमको बताऊँ… पूजा करूँ.. सजदा करूँ जैसे कहो.. वैसे चाहूँ.. जानू.. मेरे जानू… जाने जाना.. जानू..’

वो अपनी आँखों में आते हुए आंसुओं को रोकते हुए मेरे सीने से लग गई।

‘और कहो मेरे बदमाश जानू.. कानों के परदे फटे या नहीं?’
मैंने उसके चेहरे को सामने किया और कहा- आई लव यू..
मेरे होंठ उसके होंठों से मिल गए।

काश.. ये पल यहीं रुक गए होते.. बस इन्हीं लम्हों में हम अपनी जिंदगी बिता देते।

मैंने उसे चूमते हुए बिस्तर पर लिटा दिया.. हम दोनों एक-दूसरे के आगोश में खो से गए थे.. हमें दुनिया का कुछ भी होश नहीं था। उसके सूट के चैन तो पहले से ही खुली हुई थी। अब मैंने उसके सूट को उसके बदन से अलग किया।

काले रंग की ब्रा और उसी रंग की लैगिंग उस पर बहुत जंच रही थी।

मैं उसके हर हिस्से को चूमता हुआ बारी-बारी से उसके कपड़े अलग करने लग गया। उसके ये रूप किसी अप्सरा को भी ईर्ष्या दिलाने के लिए काफी था।
मैं कुछ ज्यादा ही उत्तेजित हो चुका था। मैंने अपने कपड़े उतारे और तृषा को अपनी बांहों में भर लिया। उसके होंठों का रसपान करता हुआ उसके कूल्हों की दरार में मैंने अपनी ऊँगली फंसा दी।

एक बार तो मेरी इस शरारत से वो चिहुंक गई। मैंने उसकी टांगें ऊपर की और उसकी योनि को अपने लिंग से भर दिया। उत्तेजना की वजह से मेरे धक्के में रफ़्तार ज्यादा थी। थोड़ी देर वैसे ही धक्कों के बाद मैंने उसे गोद में उठाया और दीवार से सटा दिया। उसकी टांगें मेरे कंधे पर थीं और उसका पिछला छेद अब मेरे लिंग के निशाने पर था।

मैंने उसके होंठों को अपने होंठों से बंद किए और उसके पिछले छेद को एक धक्के से भर दिया।

उसकी आवाज़ घुट कर रह गई। अब मेरे धक्के तेज़ होते जा रहे थे। आखिरकार मैं उसी अवस्था में स्खलित हो गया।

हम दोनों फिर जल्दी-जल्दी कपड़े पहने और मैं जाने को हुआ.. तभी तृषा ने मुझे अपनी ओर खींच बिस्तर पर लिटा दिया और मेरे होंठों को अपने होंठों का जाम पिलाने लग गई।

तभी दरवाज़े की दस्तक ने हमें चौंका दिया।

‘हे भगवान्.. तुझे सारे सैलाब आज ही लाने थे मेरी जिंदगी में… बेहद गुस्से में तृषा की माँ दरवाज़े पे खड़ी थी।’

आंटी ने मेरी ओर देखते हुए कहा- तुम अपने घर जाओ।

मैं- आंटी मैं तृषा से शादी करना चाहता हूँ.. प्लीज हमें गलत मत समझिए।

आंटी ने इस बार लगभग चिल्लाते हुए कहा- मैंने कहा न तुमसे.. अपने घर जाओ… मतलब जाओ यहाँ से..

मैं बात ज्यादा बढ़ाना नहीं चाहता था। मैं बाहर दरवाज़े तक पहुँचा ही था कि किसी सामान के गिरने की आवाज़ आई, मैंने पलट कर देखा तो तृषा के दरवाज़े के बाहर तृषा के सेल फ़ोन के टुकड़े छिटक कर आए थे।

मतलब आंटी ने सबसे पहले उसका फ़ोन तोड़ दिया था। मैं अब दरवाज़े के बाहर आ चुका था।

ये बर्थ-डे तो मैं जिंदगी में कभी भूलने वाला नहीं था।

मैं यूँ तो तृषा के घर अक्सर जाया करता था। आज से लगभग दो साल पहले मैंने उसे प्रपोज किया था। तब से मैं अक्सर किसी न किसी बहाने से उसके घर आया जाया करता था। कभी भी किसी को हमारे बारे में शक़ तक नहीं होने दिया था।

आज तो दिन ही खराब था.. ऐसा लग रहा था कि जैसे हिरोशिमा और नागाशाकी वाले विस्फ़ोट आज मुझ पर ही कर दिया गया हो। पता नहीं तृषा को क्या-क्या झेलना पड़ रहा होगा.. वो भी मेरी वजह से..

एक बार तो मन कर रहा था कि अभी उसके घर जाऊँ और उसका हाथ पकड़ कर अपने साथ कहीं दूर ले जाऊँ.. पर मुझे पता था कि अभी सही वक़्त नहीं है। मेरे किसी भी कदम से दोनों परिवारों में तूफ़ान सा आ सकता था।

तृषा भी अपने माँ-बाप की अकेली बेटी ही थी। मेरे ऐसे किसी भी कदम से उसके मम्मी-पापा का खुद को संभालना मुश्किल हो जाता।
मैं वापिस अपने घर आ गया।

मम्मी- आ गए.. खाना खा लो, आज तुम्हारी पसंद के समोसे भी बनाए हैं।
मैं मम्मी के पास गया और उनके गले से लग गया।
कहते हैं न कि माँ को अपने बच्चे के दर्द का एहसास उससे पहले हो जाता है।

मम्मी- क्या हुआ..? परेशान से लग रहे हो?
मैं- वो ग्रेजुएशन में एक पेपर में फेल हो गया हूँ।
मैं तो तृषा वाली बात बताना चाह रहा था.. पर नहीं बोल पाया।

माँ- अगली बार ठीक से पढ़ाई कर के एग्जाम देना और ज्यादा परेशान मत हो.. खाना खा लो और आराम करो।

मुझे वैसे भी कुछ बोलने का मन नहीं कर रहा था। जैसे-तैसे खाना खा कर मैं अपने कमरे में आ गया।
अभी भी मैं तृषा को ही कॉल करने की कोशिश कर रहा था.. पर उसके सारे नंबर ऑफ आ रहे थे।

मन में एक साथ कितने ही सारे ख़याल आने लगे। ये सोचते हुए कब नींद आ गई.. मुझे पता ही नहीं चला।

अब 6 बज गए थे और पापा की आवाज़ से मेरी नींद खुली।
पापा- कितनी देर तक सोते रहोगे? जल्दी आओ.. केक आ गया है.. नहीं आए.. तो हम सब तुम्हारे बिना ही केक ख़त्म कर देंगे।

मैं ऊँघता हुआ उठा और चेहरे को धो कर हॉल में आ गया। मेरा सबसे पसंदीदा केक (चोकलेट केक) था। उस पर लिखा था ‘ हैप्पी बर्थ-डे टू माय लविंग सन..’

मेरे घर में हम किसी का जन्मदिन ऐसे ही मनाते थे। दिन में पूजा कर सभी रिश्तेदारों को मिठाई दे देता था और रात में बस हम घर के चारों लोग केक काटते.. गाने गाते और खूब डांस करते।

पापा का फेवरेट गाना बजा, ‘जुम्मा चुम्मा दे दे…’ और फिर वो शुरू हो गए और मम्मी ने पापा को डांटना शुरू कर दिया, ‘बच्चे बड़े हो गए हैं.. कुछ तो शर्म करो..’
मम्मी जितना गुस्सा होतीं.. पापा और एक्सप्रेशन देने लग जाते।
कुछ पलों के लिए तो मैं अपने सारे दर्द भूल ही गया था।

खैर.. सबसे आखिर में हमने डिनर किया.. वो भी एक-दूसरे की प्लेट से खाना लूट-लूट कर और फिर हम सोने चले गए।

अगले तीन दिनों तक मैंने बहुत कोशिश की.. पर तृषा की कोई खबर नहीं मिल पा रही थी।

जब से तृषा से दूर हुआ था.. किसी काम में मन ही नहीं लगता था। बस उसी की यादों में खोया-खोया सा रहता था।

बस.. हर वक़्त उसी की यादें.. वो कैसे हम छुपते-छिपाते मिलते थे। हमने एक साथ ना जाने कितने ही लम्हे गुज़ारे थे। हमारे घरों की छत एक साथ लगी हुई थीं.. सो मैं अक्सर मेन गेट से जाने के बजाए छत से कूद कर चला जाता था।

जब से तृषा की माँ ने हमें पकड़ लिया था.. तब से ज्यादातर छत पर.. दरवाज़े में ताला लगा रहता था।
तृषा के पापा शहर के जाने-माने वकील थे और उस काण्ड के बाद जब भी मुझे देखते तो ऐसे घूरते मानो बिना एफ आई आर के ही उम्र कैद दे देंगे।

आज उस बात को एक लंबा अरसा बीत चुका था.. मैं तृषा की हालत जानने के लिए हर तरीका अपना चुका था।

उसके घर जिनका आना-जाना लगा रहता था.. हर किसी से पूछ कर थक चुका था।
सब यही कहते कि अभी तृषा घर पर नहीं थी।
मेरा मन किसी अनजान आशंका से घिर गया था। पता नहीं.. तृषा के साथ कुछ अनहोनी तो नहीं हो गई..

मैं उसी शाम को छत पर गया.. ये तृषा के यहाँ काम करने वाली के आने का वक़्त था। ठीक समय पर वो छत पर आई.. छत का दरवाज़ा खोल कर कपड़े समेटने लग गई।

मेरे लिए यही सही वक़्त था। मैं उनकी नज़रों से बचता हुआ धीरे-धीरे दरवाज़े तक पहुँचा और सीढ़ियों से होता हुआ नीचे तृषा के कमरे के बाहर आ गया।

उसके कमरे का दरवाज़ा अन्दर से बंद किया हुआ था।

मेरे दिल की धड़कन अब आसमान पर पहुँच चुकी थी। उसके घर में तीन बेडरूम थे.. तीनों हॉल से जुड़े थे। मैं जहाँ खड़ा था.. वहाँ पर बाथरूम था और मेरे ठीक सामने तृषा की माँ सोफे पर बैठ टीवी देख रही थीं। मैं हल्की सी आवाज़ भी नहीं कर सकता था.. और उधर कामवाली कभी भी सीढ़ियों से नीचे आ सकती थी।

उधर पास में ही हाथ धोने के लिए बेसिन लगा था और वहाँ पर टिश्यू पेपर पड़े थे।
मैंने एक पेपर लिया और उस पर पानी से लिखा, ‘निशु’ और उसे दरवाज़े से नीचे सरका दिया।
अब तो मैं बस दुआ ही कर सकता था कि ये तृषा को मिले और वो दरवाज़ा खोल दे।

अभी मैं सोच ही रहा था कि छत पर दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई। मेरी तो धड़कन रुकने वाली थी।

कहानी पर आप सभी के विचार आमंत्रित हैं।
कहानी जारी है।
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