हवा में पहली काम-यात्रा -1

(Hawa Me Pahli Kam Yatra-1)

अवि बजाज 2015-06-26 Comments

This story is part of a series:

यह कुछ वक्त पुरानी बात है.. मुझे एक प्रोजेक्ट के लिए न्यूयॉर्क जाना पड़ा, यह मेरी पहली विदेश यात्रा थी। मैंने करीब एक साल पहले स्नातक करने के बाद एक सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी शुरू की थी.. मैं काफी खुश थी।

पहली बार अकेले विदेश जाते हुए थोड़ा डर भी लग रहा था। न्यूयॉर्क में मेरे प्रोजेक्ट के और भी लोग मेरे साथ थे इसलिए बहुत ज्यादा परेशानी की बात नहीं थी।

यात्रा आरंभ करने वाले दिन.. मैं अपने सामान के साथ एयरपोर्ट पहुँच गई, मुझे छोड़ने मेरे मम्मी-पापा भी एयरपोर्ट तक आए थे।
उनको ‘गुडबाय’ करके मैं अन्दर गई, बैगेज चैक-इन.. सिक्योरिटी चैक करते हुए जब तक मैं लाउंज में पहुँची तब तक फ्लाइट उड़ने का समय हो गया था।

मैं जल्दी से लाइन में लग गई, अंतर्राष्ट्रीय फ्लाइट में ज्यादा लोग होने के कारण लाइन बहुत लम्बी थी।

खैर.. धीरे-धीरे मैं प्लेन में अन्दर पहुँच गई और अपनी सीट पर बैठ गई। मुझे खिड़की के पास वाली सीट मिली थी.. जो कि मेरी पसंद वाली सीट थी। मैं आराम से व्यवस्थित हो गई। मैंने लम्बी यात्रा के अनुरूप आरामदेह कपड़े पहने थे, मेरी पसंद की सफ़ेद रंग की लम्बी स्कर्ट.. जो कॉटन की थी और एक ढीली सी टी-शर्ट पहनी हुई थी।
मुझे हल्के रंग के कपड़े बहुत पसंद हैं.. जो कि मेरे हल्के सांवले रंग पर बहुत अच्छे लगते हैं।

थोड़ी देर में मेरी बाजू वाली सीट वाला मेरा सहयात्री भी आ गया। वह मेरी ही उम्र का एक लड़का था। देर से आने के कारण उसको ऊपर सामान रखने की जगह नहीं मिल पाई.. इसलिए उसे अपना हैण्ड-बैग आगे वाली सीट के नीचे रखना पड़ा।

वो कद में थोड़ा लम्बा था.. इसलिए उसे बैग के साथ बैठने दिक्कत हो रही थी। बैग के कारण उसके पाँव दब रहे थे.. काफी देर कोशिश करने के बाद उसने सकुचाते हुए मुझसे पूछा- क्या मैं यह बैग आपके सामने की सीट के नीच रख सकता हूँ?

मेरी हाइट सामान्य होने की वजह से मेरे लिए कोई दिक्कत की बात नहीं थी, मैंने ‘हाँ’ कर दी, मैंने अपने पैर मोड़ कर सीट के ऊपर कर लिए और उसने अपना सामान मेरे सामने वाली सीट के नीचे रख दिया।

यह न्यूयॉर्क के लिए सीधी फ्लाइट थी.. व काफी लम्बी और उबाऊ यात्रा थी.. जिसका मुझे कोई अंदाजा भी नहीं था और जल्दबाजी में मैं कोई उपन्यास आदि भी नहीं रख पाई थी।
मैंने फ्लाइट में चल रही फिल्म देखनी शुरू कर दी। साथ वाली सीट वाला लड़का कान में ईयरफ़ोन लगा कर शायद कुछ संगीत आदि सुन रहा था।
साली फिल्म भी काफी उबाऊ किस्म की थी। थोड़ी देर बाद मैंने फिल्म देखना बंद कर दिया और आँखें बंद करके सोने की कोशिश करने लगी।

ए सी के कारण अन्दर थोड़ा ठंडक अधिक हो गई थी.. तो मैंने कम्बल ओढ़ लिया। मुझे जल्द ही एक गहरी झपकी आ गई.. शायद 15-20 मिनट के लिए.. फिर मेरी आँख खुल गई.. अब मेरे पास करने के लिए कुछ नहीं था।

मैंने इधर-उधर देखा.. बगल वाले लड़के ने भी अपने ईयरफ़ोन हटा दिए थे और कोई मैगज़ीन पलट रहा थ।
जब मैं उसे देख रही थी.. तभी उसने भी नजर उठाई और मेरी तरफ देखा.. मैंने लोकाचारवश में अपनी खींसें निपोर दीं।
उसने मुझे मुस्कुराते हुए देखा तो मुझसे कहा- ये फ्लाइट तो बड़ी लम्बी और पकाऊ है।
मैंने भी ‘हाँ’ में सर हिलाया।

उसने मुझसे पूछा- क्या आपको पुराने हिंदी गाने अच्छे लगते हैं?
मैंने कहा- नहीं..
तो उसने फिर पूछा- आपको क्या पसंद है?
मैंने कहा- फिल्म देखना और उपन्यास पढ़ना।
वो बोला- इसका मतलब आप सपनों की दुनिया में रहना पसंद करती हैं।
मैंने कहा- ऐसे आप किसी को कैसे परख सकते हैं?
उसने कहा- मैं तो आपके बारे में और भी बहुत कुछ बता सकता हूँ..।

मुझे उसकी इस बात पर थोड़ा गुस्सा सा आया और मैंने कहा- आप मेरे बारे में कैसे बता सकते हैं?

उसने कहा- आप एक बहुत ही गंभीर किस्म की लड़की हैं.. माँ-बाप की बात मानने वाली.. और पढ़ाई-लिखाई में कुशाग्र बुद्धि वाली हैं। में यह भी बता सकता हूँ.. कि आप सॉफ्टवेयर की फील्ड में हैं।
मैंने कहा- यह सॉफ्टवेयर वाली बात आपको कैसे पता?
वो मुस्कुराया और बोला- मैं तो हाथ देख कर और भी बहुत कुछ बता सकता हूँ।

मुझे लड़कों के द्वारा इस तरह हाथ देख कर लौंडिया पटाने वाली छिछोरी हरकत की जानकारी थी.. लेकिन यह लड़का जितने आत्मविश्वास से बोल रहा था.. उससे मुझे लगा कि इसे हाथ दिखाने में क्या दिक्कत है..? इस तरह थोड़ा समय भी व्यतीत भी हो जाएगा।

मैंने अपना हाथ उसके सामने फैला दिया। उसने अपने बाईं हथेली पर मेरा हाथ रखा और देखना शुरू कर दिया।

ठण्ड में उसकी हथेली गर्म लग रही थी.. उसने अपने दूसरे हाथ की ऊँगली मेरी हथेली की रेखाओं पर फेरनी शुरू की।

वो रेखाओं के बारे में मुझे कुछ-कुछ बता रहा था.. जैसे कि यह जीवन की रेखा है.. ये भाग्य की रेखा है। वो जब मेरी हथेली पर धीरे से ऊँगली चलाता था.. तो मुझे हल्की सी गुदगुदी हो रही थी।

मेरे हाथ के हिलने से.. शायद वो समझ गया कि मुझे सुरसुरी हो रही है।

फिर वो बोला- आप दूसरों पर बहुत जल्दी विश्वास कर लेती हैं।

उसके इस अनुमान पर जब मैंने उसकी तरफ प्रश्नवाचक नजरों से देखा.. तो वो बोला- देखिए.. कितनी आसानी से आपने अपना हाथ मेरे हाथ में दे दिया है।

यह बात उसने ऐसी अदा से कही कि मुझे शर्म सी आ गई.. मेरे गाल लाल हो गए और मैं नीचे को देखने लगी।

इससे पहले मैं कुछ बोलती.. वो हँसने लगा।

उसने आगे बोलना चालू रखा.. इस बीच पता नहीं क्यों.. मेरे दिमाग में हॉस्टल के दिनों में पढ़ी हुई अन्तर्वासना की कामुक कहानियाँ घूम गईं और कैडबरी चॉकलेट के विज्ञापन की तरह मेरे मन में पहला लड्डू सा फूटा.. मुझे हल्का सा पसीना आने लगा।

मैं थोड़ा सा कसमसाई और मैंने पीछे होकर बैठने की कोशिश की.. इस प्रयास में.. जो कम्बल मैंने ओढ़ा था.. उसका एक हिस्सा मेरे नीचे चूतड़ों के नीचे दबा हुआ था.. मैं पीछे खिसकने के लिए जब में आगे को झुकी.. तो मेरा ‘नाजुक अंग’ कम्बल से रगड़ खा गया। ‘नाजुक अंग’ से मेरा अभिप्राय आप समझ न पाए हों.. तो तो मैं खुल कर कहे देती हूँ कि मेरी चूत से कम्बल रगड़ गया था।

मेरे जिस्म में एक झटका सा लगा.. और मैंने एक गहरी सांस ली। अब मैं थोड़ी सी उत्तेजित हो उठी थी.. मेरी सांसें तेज चलने लगी थीं।
उस लड़के के ऊँगली फिराने से मुझे झुरझुरी सी हो रही थी।

लड़के ने शायद मेरी बैचनी समझ ली थी.. अब उसने मेरी कलाई को हल्के से पकड़ लिया और दूसरे हाथ से मेरा हाथ सहलाने लगा।
मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था… और मेरा सारा ध्यान मेरे अन्दर होने वाली हलचल पर हो गया था।

पिछली बार पीछे खिसकने से जो रगड़ लगी थी.. उसकी वजह से नीचे चूत के पास हल्की सी खुजलाहट सी होने लगी थी.. और थोड़ा पानी आ गया था।

मेरा मन कर रहा था कि किसी चीज को अपने पैरों के बीच में दबा लूँ। मैंने उसी कम्बल का फायदा उठाने की सोची।

अपने पैर हिला कर मैंने कम्बल का एक ढेर सा बनाते हुए अपनी जाँघों के बीच में समेटा और धीरे-धीरे अपनी कमर को हिलाने लगी।

कम्बल की सिलवटें मेरी चूत की दरार में.. यद्धपि मुझे उस जगह का नाम लेने में शर्म आ रही है.. लेकिन आप शायद समझ गए होंगे.. कि कम्बल की परतें मेरी चूत की दरार में घुस गई थीं।

हालांकि स्कर्ट और पैंटी की वजह से चूत की भरपूर घिसाई नहीं हो पा रही थी.. लेकिन फिर भी कम्बल के खुरदुरे रेशों का अहसास मेरे उस कोमल अंग को हो रहा था।

इस तरह बुर रगड़ने से मैं इतनी मस्त हो गई थी.. कि मुझे ये ख्याल ही नहीं रहा था कि कोई मेरे बगल में भी है।
मेरी उत्तेजना चरम सीमा पर पहुँच गई थी.. कि अचानक मेरी नजर बगल वाले लड़के पर पड़ी.. जो मुझे घूर कर देख रहा था।

मैंने घबरा कर ठीक से बैठने की कोशिश की.. तो एक बार फिर चूत रगड़ खा गई।
मेरे मुँह से एक दबी सी ‘आह’ निकल गई।

मैंने किसी तरह अपने आपको संभाला। फिर मैंने उस लड़के के हाथों से अपना हाथ वापस खींच लिया और बाथरूम जाने के लिए उठ गई।

बाथरूम में जाकर मैंने ठन्डे पानी से मुँह धोया.. पैन्टी उतार कर नीचे चूत के आस-पास थोड़ी सफाई की.. फिर टिश्यू पेपर से सब सुखाया.. चेहरा एक सा किया.. सर के बाल ठीक किए।

मेरी पैन्टी गीली हो गई थी.. इसलिए मैंने तय किया कि अब इसको नहीं पहनूँगी और मैं बिना पैन्टी पहने ही बाथरूम से बाहर आ गई।

मैं चुपचाप अपनी सीट पर आकर बैठ गई। पता नहीं उस लड़के को कुछ समझ में आया या नहीं.. लेकिन उसने मुस्कुरा कर मुझे बैठने के लिए जगह दे दी।

तब तक एयरहोस्टेस खाना ले आई थी और प्लेन में सब लोग खाना खाने लगे।

दोस्तो, यह कहानी नहीं है.. मेरे जीवन की एक सच्ची घटना है.. जिसको मैंने कहानी के रूप में पिरो कर आप सभी के सामने पेश करने की कोशिश की है.. हो सकता है कि मुझसे कोई भूल हुई हो पर तब भी आपसे विश्वास के साथ कह रही हूँ कि इस घटना में एक रत्ती भी झूठ नहीं है। आप सभी से मेरा निवेदन है कि मुझे अपने ईमेल जरूर लिखें पर प्लीज़ सभ्य भाषा में ही लिखेंगे तो मेरा हौसला बढ़ेगा।
कहानी अभी जारी है।
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