मासूम यौवना-6

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लेखिका : कमला भट्टी

तब मुझे पता चला कि मेरे जीजाजी में रीछ जैसी ताकत थी, मन ही मन में उनके प्रति प्रंशसा का भाव जगा।

कुछ देर मेरे बदन पर लेटे रहने के बाद वो उठ कर बाथरूम में चले गए, मैं उठी तो मुझे लगा मेरी चूत सुन्न हो गई है, टटोल कर देखा तो पता चला कि है तो सही।

फिर उनके आने के बाद मैं बाथरूम गई और वहा बैठ कर जब मैंने मूतना शुरु किया तो मेरी चूत जल उठी, मुझे पता चल गया कि आज मेरी चूत का बजा बज गया है।

पर अभी तो साढ़े तीन ही बजे थे, अभी रात बाकी थी और मेरी चूत का तो बाजा और बजना था।

मैं जब बाथरूम से वापिस आई तो जीजाजी लेटे हुए थे, लुंगी तो नहीं लगी हुई थी पर अंडरवियर पहना हुआ था।

मैं भी जाकर पास में लेट गई और अपनी एक टांग उनकी कमर पर रख दी।

उन्हें शायद नींद आ रही थे, वे कसमसाए और मुझे बांहों में भर कर बोले- अब सो जाओ।

मैंने उन्हें कहा- ऐसे मेरी नींद खुल जाती है तो फिर मुश्किल से ही आती है्।

तो उन्होंने मेरी तरफ मुँह करके मुझे चूम लिया और कहा- चलो अब नहीं सोते हैं, बातें करते हैं।

अब उन्होंने पूछा- तुम्हें कैसा लगा?

तो मैंने कहा- मुझे नहीं पता कि अच्छा हुआ या बुरा !

फिर उन्होंने मुझे कहा- मुझे डर लग रहा था कि कहीं तुम कोई उल्टा कदम न उठा लो लेकिन अब जब तुम्हें खुश देखा तो मेरी परेशानी ख़त्म हो गई !

फिर उन्होंने पूछा- तुम मान कैसे गई?

तो मैंने कहा- अगर मुझे पता होता कि आप ऐसा करोगे तो मैं आपको यहाँ बुलाती ही नहीं और यह अनजान शहर नहीं होता, मेरा या आपका घर होता तो मैं आपको भगा देती। पर खैर मेरी किस्मत में ही यही लिखा था। आप तो सो गए थे, फिर यह आपको क्या सूझा?

तो उन्होंने कहा- तुमने जो मैक्सी पहनी थी, उसकी बांहों के पास कट है, जब भी तुम मोबाईल पर बात करती वो कंधे नंगे हो जाते और मैं किसी के कंधे देखकर उत्तेजित हो जाता हूँ। पहले तो मैं सो गया पर रात को दो बजे मुझे पेशाब लगा, तब तुम नींद में मेरे नजदीक सो रही थी। फिर मेरी अन्तर्वासना जाग उठी और मेरे दिमाग में यही था कि इसका पति काफी समय से बाहर है, मुझे इसको संतुष्ट करना है। इसलिए मैंने तुम्हें पकड़ लिया।

फिर उन्होंने मुझे पूछा तो मैंने बताया कि पिछले छः माह से मेरे पति ने फोन नहीं किया इसका मुझे गुस्सा था और जब मैं नौकरी पर जाती हूँ तो सबकी नज़र मुझ पर होती है तो मैंने सोचा कि सेक्स करना ही है तो जीजाजी के साथ ही करूँ, कम से कम मेरे परिवार के तो हैं, मेरी बदनामी तो नहीं करेंगे। और जब आपने जबरदस्ती मेरी चूत चाटी तो मैं पागल हो गई और मैंने सारा विरोध छोड़ दिया। फिर जब आप अपना नहीं कर रहे थे तो मुझे आप पर दया आई कि बेचारे ने चाट कर इतना आनन्द दिया और इतनी दूर से आए हैं तो इन्हें भी इनाम मिलना चाहिए, इसलिए मैंने आपको अपने ऊपर खींचा।

बातें करते जा रहे थे और मेरे जीजाजी मुझे सहलाते भी जा रहे थे। हमें बाते करते करीब 20 मिनट हो गए थे कि अचानक वे उठे, अपनी चड्डी एक टांग से बाहर निकाली, अपने सुपारे के ऊपर थूक लगाया और मेरी चूत में डाल दिया।

मैं चिहुंक उठी क्योंकि सूजन से मेरी चूत का छोटा सा दरवाजा भी बंद हो गया था पर सुपारा घुसा तब ही दर्द हुआ, अन्दर जाने के बाद अच्छा लगा।

मैंने कहा- अभी तो आपने किया है ! फिर से?

उन्होंने कहा- मुझे सिर्फ़ तुम्हें आनन्द देना है, मेरे लिए जरुरी नहीं है !

और इस बार वो मेरे ऊपर आड़े लेट गए उनका लण्ड घुसा हुआ था और उनका सर और पांव मेरे ऊपर नहीं थे, वे मुझे टेढ़े होकर चोद रहे थे, उनके लण्ड का बीच का हिस्सा बार बार मेरे चूत के चने से घर्षण कर रहा था। मुझे फिर आनन्द आने लगा और मैंने उनको मेरी टांगें उठा कर चोदने को कहा।

फिर उन्होंने मेरे ऊपर चढ़ कर मेरी टांगें अपने कंधों पर रख ली और जोर-जोर से चोदने लगे।

मेरी सांसें तेज हो रही थी, मैं आनन्द से धीमे-धीमे चिल्ला रही थी, उन्हें पता था इसलिए वो बिना रहम किये जबरदस्त तरीके से धक्के मार रहे थे कि मेरी चूत से आनन्द का सोता उमड़ पड़ा और मैं ठंण्डी पड़ गई।

उन्होंने एक झटके से अपना लण्ड बाहर निकाल लिया।

मैंने पूछा- क्या हुआ? आपके भी आ गया?

तो उन्होंने कहा- नहीं, मुझे निकालना नहीं है, मैं तो तुझे आनन्द दे रहा था, मेरी जरुरत नहीं है।

मुझे पहली बार पता चला कि इस आदमी में कितना आत्मनियन्त्रण है !

हम फिर से लेट कर बातें करने लगे। करीब साढ़े चार बज गए थे। साथ ही साथ जीजाजी के हाथ मेरे पूरे बदन पर फिरा रहे थे, मैं पूरी बेशरम हो गई थी मेरी मैक्सी पूरी ऊपर थी, चड्डी का पता नहीं था और एक टांग उनके ऊपर रख कर अपनी नंगी चूत उनकी जांघ पर रगड़ रही थी।

सुबह के करीब पाँच बजे फिर जीजाजी ने मेरी चूत टटोलनी शुरू की और एक बार फिर मैं चुद रही थी। उन्होंने मुझे घोड़ी बनने को कहा पर मैंने मना कर दिया, मुझे डर था कि अब मकान मालिक आदि जागने वाले हैं।

उन्होंने कहा कि जैसे कुत्ता कुत्ती के पीछे पड़ता है, वैसे मैं तेरे पीछे पड़ा हूँ और जबरदस्ती चोद रहा हूँ !

मुझे भी ऐसे ख्याल आये और मैं बुरी तरह से उत्तेजित हो गई मैंने उनको बुरी तरह से जकड़ लिया और वो पूरे बीस मिनट तक मेरी चूत का बाजा बजाते रहे।

मैं इस बीच दो बार झड़ चुकी थी।

फिर उन्होंने अचानक अपना लण्ड बाहर निकाला और मेरे कमरे में जिस तरफ मटकी रखती हूँ, वहाँ पानी जाने की नाली है, वहाँ गए।

मैंने कहा- ऐसे क्यों निकाला? कंडोम तो होगा ना !

उनके जबाब से मेरा कलेजा धक से रह गया कि कंडोम तो दोनों बार लगाया ही नहीं, अँधेरे में मिला ही नहीं ! कहाँ गया पता नहीं !

मुझे फिकर हुई तो उन्होंने कहा- मैंने पहले भी बाहर ही निकाला है, चिंता मत करो !

तब तक पौने छः हो गए और मैं नित्य-क्रिया के लिए उठ गई।

सुबह का प्रकाश फैला तो मैं जीजाजी से और जीजाजी मुझसे नज़रें चुराने लगे।

फिर मैंने जीजाजी को चाय पिलाई, मैं जीजाजी से आँखें चुरा रही थी, वे भी मुझसे आँखें चुरा रहे थे।

मैंने चाय बनाई और उनकी तरफ सरका दी। उन्होंने भी चुपचाप चाय उठाई और पी ली। फिर वो अपने कपड़े उठा कर बाथरूम में चले गए और वहीं से शर्ट और जींस पहन कर ही आये। मैंने भी उन्हें कंघा, तेल आदि दिए और अपने कपड़े उठा कर बाथरूम में चली गई, अपने पाप धोने पर वहाँ मल-मल कर नहाने के बाद भी सोच रही थी कि सिर्फ तन ही धुल रहा है मन नहीं।

मैं सब घटनाओं को सोच रही थी कि यह क्या हो गया? मैंने अपने जिंदगी में पहली बार दूसरे मर्द के साथ सेक्स किया, वो भी अपने जीजाजी के साथ !

मैं सोच रही थी कि मैंने अपनी दीदी की अमानत पर डाका डाला है।

पहले मैंने सोचा था कि जीजाजी को अपने साथ में काम करने वालों से मिलवाऊँगी पर अब मन में अपराध की भावना आ गई और सोचा अब तो कमरे से बाहर ही कैसे जाऊँगी। मैंने सोच लिया अब किसी को कहूँगी ही नहीं कि जीजाजी आये थे।

मैं विचार कर रही थी कि इसमें मेरी कोई गलती नहीं है, मैंने तो उनको बहुत रोका पर एक तरह से तो उन्होंने मेरा देह शोषण ही किया था।

मैंने सब इश्वर की इच्छा मान ली कि उसकी मर्जी थी कि तीस साल की उम्र में मेरा धर्म भ्रष्ट होना था, मुझे जीजा अच्छे भी लगे थे कि काश ये मेरे जीजाजी नहीं होते तो दीदी के बारे में तो सोचना नहीं पड़ता।

फिर मैंने सोच लिया कि जो हो गया सो हो गया, अब नहीं होना चाहिए, रात गई और बात गई।

ऐसा सोचते मैं नहा कर अपने कमरे में आ गई।

जब मैं नहा कर कमरे में गई तो मैंने देखा कि मेरे कमरे दूसरा गेट जो बाहर गली में खुलता है उसमें से एक कुत्ता कमरे में घुस गया है और कमरे में रखे बर्तनों को सूंघ रहा है।

मैं जोर से कुत्ते पर चिल्लाई तो कुत्ता तो भाग गया और जीजाजी हड़बड़ा कर उठ गए।

उन्होंने कुत्ते को भागते देखा तो लजा कर कुछ डर के साथ बोले- सॉरी ! मुझे नींद आ गई !

इस सारे घटनक्रम पर मेरी हंसी छुट गई। मुझे यह अच्छा लगा कि शेरदिल जीजाजी जो किसी से नहीं डरते हैं, मुझसे डर रहे हैं, आज तक मुझे उनसे डर लगता था।

मुझे हँसता देख कर वो भी मुस्कुरा दिए और कमरे का वातावरण कुछ हल्का हो गया।

फिर मैं नाश्ता बनाने की तैयारी करने लगी और वो बाज़ार चले गए। मैंने खाना बनाया तब तक वो भी बाज़ार से मिठाई, नमकीन और फल लेकर आ गए।

अब हम दोनों कुछ राहत महसूस कर रहे थे।

फिर मैंने उन्हें कहा- नाश्ता कर लो !

तो उन्होंने कहा- हम साथ ही खायेंगे !

फिर हम दोनों ने नाश्ता किया, ज्यादा बातचीत नहीं की और नाश्ते के बाद फिर दूर दूर लेट गए। मेरे कमरे का घर के अन्दर वाला गेट खुला था और मकान मालिक की बहू एक दो बार देख कर भी जा चुकी थी।जीजाजी सो गए जींस शर्ट पहने हुए ही। और ऐसे सोये कि शाम को चार बजे जगे।

तो मैंने चाय बना कर पिलाई फिर मैं अपने ऑफिस का काम करने लगी। एक दो बातें उन्होंने मेरे काम के बारे में पूछी फिर उन्होंने अपना बटुआ निकाला और दो हज़ार हज़ार के नोट मुझे देने लगे।

मैंने मना किया तो कहा- अच्छी सी साड़ी ले लेना !

बहुत कहने पर मैंने ले लिए। उनके पास दस दस के नोट थे तो मैंने कहा मुझे सौ रूपये खुले दे दो !

उन्होंने दे दिए, मैंने सौ का नोट देना चाहा तो उन्होंने मना कर दिया।

मैंने कहा- इतने दिलेर हो तो पाँच-दस हज़ार और दे दो !

वो सचमुच देने लगे तो मैंने उन्हें रोक दिया।

वो कहने लगे- जो तुमने मुझे दिया है वो अनमोल है, तुम्हारे लिए रूपये तो क्या जान भी हाजिर है।

मैं इतना सुनकर भावविभोर हो गई और कहा- नहीं मुझे जान नहीं आप जिन्दे ही चाहिएँ।

तभी दीदी का फोन आया, उन्होंने बात की, उसने पूछा- कब आ रहे हो?

तो जीजाजी बोले- शाम को छः बजे गाड़ी है, वो गाँव रात बारह बजे पहुँचेगी।

तो दीदी ने कहा- स्टेशन गाँव से इतनी दूर है, रात को कौन लेने आएगा? आप फिर सुबह ही आना !

जीजाजी ने कहा- ठीक है !

फिर दीदी ने मुझसे बात की, मैंने उन्हें कहा- तुम चिंता मत करो, आज उसी होटल में रह जायेंगे, कल आ जायेंगे।

तो दीदी ने कहा- अपने जीजाजी को सब जगह घुमा देना !

मैंने कहा- तुम चिंता मत करो !

फिर फोन रख दिया। अब मैंने सोचा कि आज फिर जीजाजी रुकेंगे !

इस बात की ना तो ख़ुशी हो रही थी ना दुःख।

तभी होटल वाले का फोन आ गया- मैडम जी, आपके जीजाजी यहीं हैं क्या? या चले गए?

मैंने कहा- यहीं हैं।

तो उन्होंने कहा- खाना यहीं खाना है !

मैंने कहा- ठीक है, पर ये प्याज-लहसुन नहीं खाते !

उसने कहा- आप चिंता न करें, हम जैन खाना बना देंगे।

शाम सात बजे हम होटल के लिए रवाना हुए। आज मैंने सलवार-कुर्ती पहनी थी जब मैं कपड़े बदलने के लिए बाथरूम जा रही थी तब जीजाजी ने कहा था- अब तो मेरे सामने ही बदल लो !मैंने शरमा कर मना कर दिया और मैं बाथरूम से ही कपड़े बदल कर आई थी।

सलवार कुर्ती में मैं कम से कम दस साल छोटी लग रही थी, मैं वैसे ही पतली हूँ इसलिए कॉलेज की छात्रा सी लग रही थी, जीजाजी तो देखते ही रह गए और उनकी निगाहें मुझ से हट ही नहीं रही थी, वो मेरी तारीफ पर तारीफ किये जा रहे थे।

मैं काफी कुछ करीना की तरह लगती ही हूँ, ऐसा कई लोगो ने मुझे कहा था, जीजाजी की तारीफें सुन कर मुझे ख़ुशी हो रही थी और मैं शरमा भी रही थी। 99 प्रतिशत औरतें तारीफ पर खुश होती हैं, भले ही झूठी ही हो, वैसे मेरी तो वो सच्ची तारीफ ही कर रहे थे।

वो अवाक से थे सलवार कुर्ती में मेरी जवानी देख कर !

और हम बाज़ार में चल रहे थे मुझे लग रहा था कि अकेले होते तो वो मुझे मसल देते। सारे समय उनकी निगाहें मुझ से हट नहीं रही थी।

होटल पहुँचे तो वहाँ साहब भी आये हुए थे, वो होटल के लॉन में कई लोगों से घिरे हुए बैठे थे।

मैं सीधे होटल के अन्दर आ गई और जीजाजी के साथ कुर्सी पर बैठ गई।

होटल वाले ने आकर कहा- मैडम जी, साहब भी आये हुए हैं।

मैंने कहा- मैंने देख लिया है और उन्होंने भी हमें देखा है।

थोड़ी देर में साहब भी अन्दर आ गए और मेरे जीजाजी से हाथ मिला कर अपना परिचय दिया। जीजाजी ने भी अपना परिचय दिया और वे बातें करने लगे, मैं सिर्फ सुन रही थी। आज मुझे पता चला कि जीजाजी बोलने में कितने होशियार हैं। उन्होंने साहब को भी प्रभावित कर दिया, मैं भी उनकी तरफ प्रशंसात्मक दृष्टि से देखती रही।

तब होटल वाले ने कहा- आप सब खाना खा लीजिए।

तो साहब बोले- मैंने खाना अपने बंगले में बनवा लिया है, आप भी चलो, वहीं खाना खाते हैं।

मैंने मना कर दिया, मुझे पता है कि वे मांस-मच्छी खाते हैं, मीणा हैं और जीजाजी तो प्याज भी नहीं खाते।

फिर साहब चले गए और हम खाना खाने बैठे।

होटल मालिक भी हमारे साथ ही बैठा, उसने जीजाजी को बीयर को पूछा। मैंने जीजाजी की तरफ देखा, जीजाजी ने मना कर दिया।

होटल वाला हंसा- कहीं आप साली जी से तो नहीं डर रहे हैं?

उन्होंने कहा- नहीं !

होटल वाला भी बड़ा आदमी था, उम्र में भी मुश्किल से 25 साल का था और मेरी बहुत इज्जत करता था।

खाना खाने के बाद उसने पान का पूछा, उसको भी हमने मना कर दिया।

फिर उसने कहा- जीजाजी, आप मैडम के जीजाजी हैं तो हमारे भी जीजाजी हैं आप आज यहीं सो जाओ मेरे होटल में ! मैडम का कमरा तो छोटा है !

तब मैं बीच में बोली- नहीं, वहाँ मकान मालिक का कमरा ख़ाली है, ये वही सोते हैं।

तो उसने कहा- ठीक है।

उसने खाना खाने आने के लिए जीजाजी को धन्यवाद दिया और कहा- कभी इधर आना हो तो यहीं आना, आपका स्वागत है।

मुझे भी बड़ी ख़ुशी हुई उसका व्यवहार देख कर ! भले ही वो साहब के कारण था।

फिर हम वापिस अपने कमरे में आ गए।

कहानी चलती रहेगी।

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