मैं रिश्ते-नाते भूल कर चुद गई-2

सारिका कँवल
मैं लगभग नींद में थी कि मुझे कुछ एहसास हुआ मेरी टांगों में और मेरी नींद खुल गई। मैं कुछ देर यूँ ही पड़ी रही और सोचने लगी कि क्या है, तो मुझे एहसास हुआ कि वो अपना पैर मेरे जाँघों में रगड़ रहे हैं।

मैं एकदम से चौंक गई और उठ कर बैठ गई।

मैंने कहा- आप यह क्या कर रहे हैं?

फिर उन्होंने जैसे ही कहा- कुछ नहीं।

मैंने बत्ती जला दी।
मेरे बत्ती जलाते ही उन्होंने मुझे पकड़ लिया और अपनी और खींचते हुए बिस्तर पर लिटा दिया और मेरे ऊपर आ गए।

मैं बस चीखने वाली थी कि उन्होंने मेरा मुँह दबा दिया और कहा- क्या कर रही हो… बाहर लोग हैं सुन लेंगे, क्या सोचेंगे।

मेरे दिमाग में घंटी सी बजी और एक झटके में ख्याल आया कि बाहर सबने मुझे इनके साथ अन्दर आते देखा है और अगर मैं चीखी तो पहले लोग मुझ पर ही शक करेंगे।

सो मैंने अपनी आवाज दबा दी, तब उन्होंने अपना हाथ हटाया और कहा- बस एक बार… किसी को कुछ पता नहीं चलेगा, मैं बहुत भूखा हूँ।

मैं अपनी पूरी ताकत से उनको अपने ऊपर से हटाने की कोशिश कर रही थी, पर उनके सामने मेरी एक नहीं चली।

मैं उनसे अब हाथ जोड़ कर विनती करने लगी- मुझे छोड़ दें.. हमारे बीच बाप-बेटी जैसा रिश्ता है।

मैं उन्हें अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश करने लगी। पर वो मेरे ऊपर से हटने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

मेरी दोनों टाँगें आपस में चिपक सी गई थीं और वे अपने एक पैर से मेरे पैरों के बीच में जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे।

उन्होंने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए और उन्हें मेरे सर के ऊपर दोनों हाथों से दबा दिया, मैं किसी मछली की तरह छटपटा रही थी और वो अपने टांगों से मेरी टांगों को अलग करने का पूरा प्रयास कर रहे थे।

मुझे उनका लिंग अपनी जाँघों पर महसूस होने लगा था कि वो कितना सख्त हो चुका है।

हालांकि मुझे चुदवाए हुए काफ़ी दिन हो चले थे, मेरे अन्दर भी चुदने की इच्छा थी पर मैं तब भी अपनी पूरी ताकत से उनका विरोध कर रही थी, ऐसे कैसे किसी गैर मर्द से एकदम बिना किसी विरोध के चुदवा लेती?

तब उन्होंने मेरे दोनों हाथों को साथ में रखा और एक हाथ से दोनों कलाइयों को पकड़ लिया।

उनमें पता नहीं कहाँ से इतनी ताकत आ गई थी कि मैं अपने दोनों हाथों से उनके एक हाथ को भी नहीं छुड़ा पा रही थी।

तभी उन्होंने अपने कमर का हिस्सा मुझसे थोड़ा अलग किया और दूसरे हाथ से मेरी साड़ी को पेट तक ऊपर उठा दिया।

मेरी पैंटी अब साफ़ दिख रही थी, मैं अब पतली डोरी वाली पैंटी पहनती थी जिसमें सिर्फ योनि ही ढक पाती थी।

अब उन्होंने मेरी पैंटी की डोरी पकड़ ली। उनका हाथ पड़ते ही मैं और जोर से छटपटाई, पर उनके भारी-भरकम शरीर के आगे मेरी एक न चली।

मैं अब रोने लगी थी और रोते हुए विनती कर रही थी, पर मुँह से विनती तो वो भी कर रहे थे और शरीर से जबरदस्ती में लगे थे।
उन्होंने मेरी पैंटी उतारने की कोशिश की, पर मैंने अपनी टाँगें आपस में चिपका ली थीं सो केवल जाँघों तक ही उतरी, पर वो हार मानने को तैयार नहीं थे।

मेरे मन में तो अजीब-अजीब से ख्याल आने लगे थे कि आज ये मेरे साथ क्या हो रहा है। मैं सोच भी रही थी कि चिल्ला कर सबको बुला लूँ पर डर भी था कि लोग पहले एक औरत को ही कसूरवार समझेंगे, सो मैं चिल्ला भी नहीं पा रही थी।

तभी उन्होंने मेरी पैंटी की डोरी जोर से खींची और डोरी एक तरफ से टूट गई। अब उन्होंने मेरी टांगों को हाथ से फैलाने की कोशिश करनी शुरू कर दी, पर मैं भी हार नहीं मान रही थी। तब उन्होंने अपने कमीज को ऊपर किया और पजामे का नाड़ा ढीला कर अपने पजामे और कच्छे को एक साथ सरका कर अपनी जाँघों तक कर दिया।

उनका कच्छा हटते ही उनका लिंग ऐसे बाहर आया जैसे कोई काला नाग पिटारे के ढक्कन खुलते ही बाहर आता है। मैंने एक झलक नीचे उनके लिंग की तरफ देखा तो मेरी आँखें देखते ही बंद हो गई, पर मेरे दिमाग में उसकी तस्वीर छप सी गई। काला लम्बा लगभग 7 इंच, मोटा करीब 3 इंच, सुपाड़ा आधा ढका हुआ, जिसमें से एक बूंद पानी जैसा द्रव्य रोशनी में चमक रहा था।

वो अब पूरी तरह से मेरे ऊपर आ गए और एक हाथ से मेरी जांघ को पकड़ कर उन्हें अलग करने की कोशिश करने लगे, पर मैं अब भी अपनी पूरी ताकत से उन्हें आपस में चिपकाए हुए थी।

हम दोनों एक-दूसरे से विनती कर रहे थे कि वो मुझे छोड़ दे और मैं उन्हें उनके मन की करने दूँ। हमारे जिस्म भी पूरी ताकत से लड़ रहे थे, मेरा जिस्म उनसे अलग होने के लिए लड़ रहा था और उनका जिस्म मेरे जिस्म से मिलने को जिद पर अड़ा था।

तभी उन्होंने अपना मुँह मेरे एक स्तन पर रखा और ब्लाउज के ऊपर से ही काट लिया। मुझे ऐसा लगा जैसे करेंट लगा और मेरी टांगों की ताकत खत्म हो गई हो। मेरी टांगों की ढील पाते ही वो मेरे दोनों टांगों के बीच में आ गए। मैंने अपनी योनि के ऊपर उनके गर्म लिंग को महसूस किया उनके नीचे के बालों को मेरे बालों से रगड़ते हुए महसूस किया। अब मेरी हिम्मत टूटने लगी थी, पर मैं फिर भी लड़ रही थी।

तभी उन्होंने मेरे दोनों हाथों को एक-एक हाथ से पकड़ लिया, फिर अपनी कमर को मेरे ऊपर दबाते हुए लिंग से मेरी योनि को टटोलने लगे। मेरी आँखों में आँसू थे और मैं सिसक-सिसक कर रोने लगी थी, पर उन पर कोई असर नहीं हो रहा था।

मैं अब पूरी तरह से उनके वश में थी मैं बस अपने हाथों को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी, तभी उन्होंने एक हाथ छोड़ दिया और अपने लिंग को पकड़ मेरी योनि में घुसाने की कोशिश करने लगे। मैंने भी अपने एक हाथ को आजाद पाते ही उससे उन्हें रोकने की कोशिश करने लगी।

मैंने उनका हाथ पकड़ लिया था, पर तब तक उन्होंने अपने लिंग को मेरी योनि की छेद से भिड़ा दिया था। तब तक उन्होंने अपने कमर को मेरे ऊपर दबाया, मैंने महसूस किया कि उनका लिंग मेरी योनि में बस इतना ही अन्दर गया है कि उनके सुपारे का चमड़ा पीछे की तरफ खिसक गया।

अब उन्होंने अपना हाथ हटा लिया और मेरे हाथ को पकड़ने की कोशिश की, पर मैंने झटका देते हुए अपना हाथ नीचे ले गई और उनके लिंग को पकड़ कर घुसने से रोक लिया। मैंने उनके लिंग को पूरी ताकत से अपनी मुठ्ठी में दबा लिया और वो मेरे हाथ को छुड़ाने की कोशिश करने लगे।

हम दोनों की हालत रोने जैसी थी हालांकि मैं तो रो ही रही थी, पर उनके मुँह से ऐसी आवाज निकल रही थी कि जैसे अगर नहीं मिला तो वो मर ही जायेंगे।

किसी तरह उन्होंने मेरा हाथ अपने लिंग से हटा लिया और फिर मेरे दोनों हाथों को एक हाथ से पकड़ लिया। अब तो मैं और भी टूट चुकी थी क्योंकि अब मैं हार चुकी थी, पर मेरा विरोध अभी भी जारी था।

तभी उन्होंने अपने लिंग को पकड़ कर फिर से मेरी योनि टटोलने लगे, पर शायद मेरी आधी फटी पैंटी बीच में आ रही थी। सो उन्होंने उसे भी खींच कर पूरा फाड़ दिया और नीचे फेंक दिया।

उन्होंने फिर से अपने लिंग को पकड़ा और फिर मेरी योनि की दरार में ऊपर-नीचे रगड़ा और फिर छेद पर टिका कर हल्के से धकेला तो उनका मोटा सुपाड़ा अन्दर घुस गया।
मैंने और तड़प कर छटपटाने की कोशिश की, पर उनकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि मेरा हिलना भी न के बराबर था।

इसके बाद उन्होंने अपना हाथ हटा लिया और फिर एक-एक हाथ से मेरे हाथ पकड़ लिए और अपने लिंग को धीरे-धीरे अन्दर धकेलने लगे। करीब पूरा सुपाड़ा घुस चुका था और मुझे हल्का दर्द भी हो रहा था, शायद उनका मोटा था इसलिए या फिर मेरी योनि गीली नहीं थी।

कुछ देर ऐसे ही धकेलने के बाद उन्होंने एक झटका दिया और मेरे मुँह से निकल गया- हाय राम मर गईई…ईई… नहीं.. नहीं.. छोड़ दीजिए.. मैं मर जाऊँगी.. ओह्ह माँ..।

मेरी सांस दो पल के लिए रुक गई थी।
कहानी जारी रहेगी।
अपने प्यार भरे ईमेल मुझे भेजें।

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