चूत शृंगार-3

(Choot Ka Shringaar-3)

This story is part of a series:

वो समझ रहा था कि कमल मेरा पति है, मैंने भी नहीं बताया कि वो मेरा भाई है।
मैंने उससे पूछा- तेरा नाम क्या है?
उसने कहा- चोदू।

मैंने सोचा यह कैसा नाम है। शायद वो अपना नाम नहीं बताना चाहता। जो अपना नाम नहीं बताना चाहता, वो क्या चोदेगा? ऐसे ही हिम्मत दिखा रहा था।
मैं आकर भैया के पास अपनी जगह पर बैठ गई।

थोड़ी देर में पता लगा कि चोदू तो सचमुच बड़ी हिम्मत वाला चोदू है। थोड़ी देर में ही वो चोदू भैया के पास आया और कहने लगा- मैं एक होटल चलाता हूँ और आप अपनी पत्नी के साथ हमारे होटल में आइए। यह मेरा कार्ड है, आप इसको दिखा देना तो आपको रियायत भी मिलेगी।
भैया ने पूछा- इस मेहरबानी की वजह?
तो वो बोला- मेहरबानी तो आप करेंगे हमारे होटल में आकर ! आप जैसे अच्छे लोगों के आने से हमारे होटल का नाम बढ़ेगा।

भैया से अपने होटल आने की जिद करके और आने का वादा लेकर वो चला गया। मैं भी सोचने लगी बड़ा दिलेर है, यार बड़ा मजा आएगा इससे चुदने में। फिर दिल ने कहा ‘कमला अपनी हद में रह। मुश्किल से तू अपने घर से बाहर निकली है ज्यादा सपने मत देख।’
मैंने भैया से पूछा- इसका नाम क्या है?
भैया ने कार्ड देख कर बताया- इसका नाम चंदू है।

ओह तो मेरे ही कान बज रहे थे। जब उसने अपना नाम चंदू बताया तो मुझे ‘चोदू’ सुनाई दिया। चुदने के लिए तरस गई थी, शायद इसीलिए मुझे चोदू सुनाई दिया। खाना खाकर हम घर लौट आए। अरे भई, मैं और मेरे भैया, वो चोदू नहीं।
घर आकर भैया ने कहा- यार, एक काफी मिल जाती तो मजा आ जाता।

यह भैया का नया रूप था, जो दीदी की जगह ‘यार’ कह कर बात कर रहा था। मुझे तो भैया का यह अवतार बहुत अच्छा लगा। मैंने तो दिल से उसे ‘यार’ मान ही लिया।
मैंने भी उसी लहजे में जवाब दिया- पिलाती हूँ यार, जरा कपड़े बदल लूँ।
भैया ने हाथ थाम कर कहा- अभी से क्यों बदल रही हो? सोते समय बदल लेना।

भाई के उतावलेपन को मैंने उसकी आँखों में देखा तो समझ आया कि जनाब का दिल अभी मेरा जिस्म देख कर भरा नहीं है।
मैंने अपने दिल से कहा इसे शीशे में उतार ले ! लोहा गर्म है, मार दे हथौड़ा या अपनी भाषा में कहूँ तो चूत गर्म है, चूस ले लौड़ा।
मैंने कहा- भैया ठीक है, चूल्हे पर साड़ी परेशान करती है तो सिर्फ़ साड़ी उतार देती हूँ।
अंधा क्या माँगे दो आँखें। या लौड़ क्या मांगे दो जांघें !

भैया की खुशी तो उछल कर बाहर आ रही थी, उसकी तो पूरी बांछें खिल गईं। मैंने भैया को इतना खुश कभी नहीं देखा।
मैंने सोचा कि इसकी खुशी को और बढ़ाया जाए। मैंने भीतर जा कर साड़ी उतारी और पेटीकोट को नाभि से बहुत नीचे बाँधा, बिल्कुल हड्डी के ऊपर जिससे चूत का उभार थोड़ा सा नजर आए और हड्डी और चूत के उभार के बीच की जगह खाली गढ्ढे की तरह नजर आए। बस नंगी सी ही नजर आ रही थी। थोड़ी सी ही कसर रह गई थी नंगी होने में।

मर्द अपने दिल की बात कह लेता है पर औरत को हिचकिचाहट होती है। इसीलिए भगवान ने औरत को मम्मे और चूत नाम के दो अस्त्र दिए हैं। वही दो अस्त्र लेकर मैं भैया को रिझाने जा रही थी।
कपड़ों के बीच से मम्मों को और चूत के उभार को जितना ज्यादा दिखा सकती थी, उतना खोल कर गई और भैया के पास जाकर बैठ गई।
बोली- भैया, बिना साड़ी के बुरी तो नहीं लग रही हूँ।
भैया ने मेरे कन्धों पर अपने हाथ रख कर कहा- अरे तू तो साड़ी से भी ज्यादा सुन्दर लग रही हो।

मैंने ब्लाउज तो पहना था मगर मेरे कन्धे तो नंगे थे और भाई का हाथ मेरे नंगे कंधों पर पड़ते ही मेरे जिस्म में कंपकपी सी दौड़ गई। बड़े समय के बाद मेरे नंगे जिस्म पर किसी मर्द के हाथ पड़े थे। मेरी तो साँसें फूल गईं। साँसों के फूलने का असर मम्मों पर साफ दिखाई दे रहा था। मम्मे हर साँस के साथ फूल कर उभरते और फिर वापिस जाते।

भैया मुझसे बात कर रहे थे और मुझे यह डर खा रहा था कि कही वो अपना हाथ मेरे नंगे कंधों से हाथ न हटा ले। मैंने अपना हाथ भैया के हाथों पर रख दिया और उसके हाथों को अपने कंधों पर दबा लिया।
मैंने कहा- भैया मैं बहुत डरा करती थी कि मैं तुम पर बोझ बन गई हूँ, कहीं तुम मुझे घर से ही ना निकाल दो।
भैय्य्या ने जोर से मेरा कंधा दबाया और कहा- हट पगली तूने ये कैसे सोच लिया?

भैया को कंधे दबाने में मजा आने लगा। वो बात बात पर मेरा कंधा दबाने लगे। मेरी साँसें और भी फूलने लगीं। मेरे कंधों में ‘कप’ तरह की एक गहरार्इ है। कंधे पर हाथ रखे-रखे भैया की एक उंगली उस ‘कप’ में हिलने लगी। उससे शरीर में एक करंट सा दौड़ गया, मेरी साँसें और तेज हो गईं, मेरे उरोज श्वास की गति के साथ और फूलने लगे।

अगर भाई इस तरह फूलते हुए मम्मों को देख ले तो जरूर मुझे चोद लेगा, पर भाई तो मेरी आँखों में आँखें डाल कर बात कर रहा था। वो तो मेरे मम्मे देख ही नहीं रहा था। कमला कुछ कर जिससे वो तेरे मम्मों की तरफ देखे।
मैंने कहा- भाई सच सच बताना, मैं तुम्हें सुन्दर नहीं लगती थी ना?
भाई ने कहा- नहीं, पहले मैंने कभी तुझे गौर से ही नहीं देखा। उस दिन तुम्हें बच्चे को मम्मे चुसवाते देखा तो अन्दाजा हुआ कि तू कितनी सुन्दर है।

मम्मों का नाम लेते ही भाई ने मम्मे देखे तो देखता ही रह गया। वो मम्मों पर से नजर ही नहीं हटा सका। उसकी आँखें मम्मों पर गड़ी की गड़ी ही रह गईं।
मैंने भी साँसें और गहरी भरनी शुरू कर दीं, जिससे मम्मे और ज्यदा उभरने लगे। मानो भैया से कह रहे हों- आओ, हमें चूस लो।
मैंने भैया से पूछा- अब तो अच्छी लगती हूँ ना?
भैया ने मम्मों से नजर उठाए बिना ही बोला- हाँ।
भैया की साँसें फूल रही थीं। फूलते हुए मम्मों का असर उनकी साँसों में साफ दिखाई दे रहा था।

मैंने पूछा- भैया मेरे मम्मे तो अच्छे हैं ना?
भैया ने मम्मों पर आँखें गड़ाए हुए ‘हाँ’ बोला।
मैंने कहा- ऐसे नहीं भैया, सच बताओ खाओ मेरी कसम !
जवाब मिला- तेरी कसम !
पर मम्मों से नजर नहीं हिली।

मैंने सोचा सही मौका है, मैंने भैया से कहा- ऐसे नहीं भैया, मेरे दिल की कसम खाओ।
और मैंने भैया का हाथ पकड़ कर अपने मम्मों पर रख लिया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
भैया ने कहा- सच, तेरे दिल की कसम।
और उसके यह कहते ही मैंने उसका हाथ जोर से अपने मम्मों पर दबा कर आँखें बन्द कर लीं और कहा- थैंक यू भैया।
मैंने अपना हाथ हटा लिया पर भाई ने अपना हाथ मेरे मम्मों से नहीं हटाया।

फिर मैंने पूछा- आज होटल की बात से लग रहा था, तुझे मेरी चूची अच्छी नहीं लगी।
‘अरे नहीं बाबा ! वो मम्मे दबा कर बोला- तेरी चूची बहुत सुन्दर है। तेरे दिल की कसम तेरे दिल की कसम तेरे दिल की कसम।
भैया ने तीन बार कसम खाई और तीनों बार मेरा मम्मा दबाया। भाई को यह दिल की कसम का आइडिया बहुत पसंद आया और अब वो हर बात पर कहता ‘तेरे दिल की कसम’ और मेरा मम्मा दबा लेता।
मुझे भी बहुत मजा आ रहा था। छोटी-छोटी बात पर कसम खाने को कहती और वो मेरा मम्मा दबा कर कहता- तेरे दिल की कसम !

जैसे ही वो मम्मा दबाता, उसका हाथ फिसल कर थोड़ा नीचे खिसक जाता। ऐसा करते-करते उसका हाथ ब्लाउज के अन्दर जाने लगा। थोड़ी ही देर में उसकी एक उंगली मेरी चुचूक को छू गई, मेरे सारे शरीर में सनसनी छा गई।
मुझे जाने क्या हो गया, सोचने की शक्ति जाती रही। सोच-सोच कर कसमें खिला रही थी और मम्मे दबवा रही थी। अब कुछ नहीं सूझ रहा था कि किस बात की कसम खिलाऊँ।
बिना किसी बात के मैं बोली- खा कसम।

भैया ने भी बिना किसी बात के कहा- तेरे दिल की कसम ! और जोर से मेरा मम्मा दबाया।
शायद भैया का भी वही हाल था जो मेरा था। दोनों की बातें खत्म हो गईं। बस कसमें चलती रहीं और वो मेरा मम्मा दबाता रहा। थोड़ी देर में मैंने ये कहना भी बन्द कर दिया कि खा कसम। बस हम एक-दूसरे की आँख में आँख डाल कर देखते और वो मेरा मम्मा दबाता और हम दोनों मजा लेते रहे।

फिर अचानक जैसे नींद से उठे हों। हम दोनों एक साथ बोले- ‘काफी’
हम भूल ही गए थे कि मैंने साड़ी काफी बनाने के लिए उतारी थी ना कि मम्मे दबवाने के लिए और मैं काफी बनाने चली गई।
काफी बनाते-बनाते मैं सोच रही थी, लड़का तो पट गया है, मम्मे तो खूब दबा गया, अब चूत मरवाना मुश्किल नहीं होगा।
कहानी जारी रहेगी।
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