चाचा का उपहार-1

(Chacha Ka Uphar- Part 1)

हाय दोस्तो.. कैसे हैं आप सब। आप सबका मैं बेहद शुक्रगुजार हूँ कि आपने मेरी कहानियों को सराह कर मेरा हौंसला और मान दोनों बढ़ाया।

आज मैं फिर से एक रोमांचक किस्सा आप सब को बताने जा रहा हूँ।

यह कहानी तब शुरू हुई थी जब मुझे लण्ड और नुन्नी का मतलब सही से मालूम भी नहीं था। मेरे चाचा सुशील मुझे बेहद प्यार करते थे। जब मैं छोटा था तो वो मुझे अपने कंधो पर बैठा कर पूरे गाँव में घुमाते रहते थे। तब तक वो कुँवारे थे और गाँव मस्त अल्हड़ जिंदगी का मजा ले रहे थे। गाँव के सभी निखट्टू लड़कों का लीडर था मेरा चाचा। दसवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ कर खेत का काम संभाल रहे थे। क्यूंकि मेरे पिता जी भी खेत का काम देखते थे तो चाचा के करने के लिए कुछ ज्यादा बचता नहीं था। इसका एक कारण यह भी कह सकते हो की पिताजी अभी चाचा पर बोझ डाल कर उसकी मस्ती के दिनों को खराब नहीं करना चाहते थे।

क्यूंकि मैं चाचा के साथ ही रहता था ज्यादा समय तो चाचा की कुछ बातें भी पता लगनी शुरू हो गई थी। चाचा मुझे डाकिये के रूप में इस्तेमाल करता था और गाँव की सुन्दर सुन्दर लड़कियों को चिट्ठी देकर आने का काम मेरे ही जिम्मे था। जिस कारण मुझे बहुत बार प्यार तो बहुत बार मार और गालियाँ भी मिल चुकी थी। पर चाचा बदले में मुझे खाने को चीज़ देता और मेरी हर मांग को पूरा करता था सो मुझे भी इस सब से कोई ऐतराज़ नहीं था।

मुझे चाचा के बहुत से गुप्त राज पता लग गए थे।

वक्त गुज़रता गया। मैं भी अब जवान हो गया था। चाचा की भी शादी हो गई थी और चाची भी एकदम मस्त और खूबसूरत औरत है। सच कहूँ तो चाचा जैसे निठल्लू को संगीता जैसी खूबसूरत बीवी मिलना सौभाग्य की ही बात है। चाची बहुत खुशमिजाज थी और घर के काम में एकदम निपुण।

सब कुछ सही चल रहा था पर बस एक कमी थी कि चाचा की आदतों में कुछ भी सुधार नहीं हुआ था जिस कारण सभी घर वाले परेशान थे। वैसे अब एक बात तो थी कि पिता जी ने भी अब थोड़ी सख्ती करनी शुरू कर दी थी जिसके चलते अब चाचा खेत में कुछ न कुछ मेहनत तो करते ही थे पर हमेशा इस ताक में रहते थे कि कब भागने का मौका मिले और जैसे ही मौका मिलता चाचा छूमंतर हो जाते।

और फिर मैं तो चाचा का सबसे नजदीकी दोस्त और लाडला भतीजा था।

कुछ और समय बीता अब मैं अट्ठारह साल का हो गया था और चाचा की संगत और सीख की मेहरबानी से कुछ मज़े लूट भी चुका था। और एक बार…

चाचा ने मुझे बुलाया और बोला- राज… वो जो गाँव में सुमेर लुहार की लड़की है ना.. मेरा दिल आ गया है उस पर… कुछ मदद कर ना…!

‘अरे चाचा! क्या बात कर रहे हो? अभी तो वो छोटी है और तुम… तुम मरवाओगे एक दिन..’

‘बेटा तू तो पागल है! जो मज़े इस कच्ची उम्र की लड़की के साथ है, वो दूसरी किसी में कहाँ?’

‘नहीं चाचा… वो तो तुम्हारे बच्चो जैसी है और तुम… चाचा आजकल तुम बहुत ठरकी होते जा रहे हो।’

‘बेटा, अगर तूने मेरा यह काम करवा दिया तो तुझे एक ऐसा तोहफ़ा दूँगा कि पूरी जिन्दगी में चाचा को नहीं भूलेगा।’

‘हाँ…मुझे मालूम है कि बदले में क्या मिलने वाला है… पिटाई मिलने वाली है वो भी सारे गाँव की..’

चाचा मेरी बहुत मिन्नत करने लगा तो मैंने बोल दिया- मैं बात तो कर लूँगा उससे! पर पहले यह बताओ कि तोहफ़े में क्या मिलेगा मुझे?

चाचा बोला- तू भी उसके साथ मज़े ले लेना।
पर मैंने मना कर दिया।

कुछ दिन बीते पर चाचा सुमेर की लड़की की चूत का कुछ ज्यादा ही प्यासा होता जा रहा था। वो हर रोज मुझे सुमेर की लड़की पूजा से बात करने को बोलता और उपहार का लालच भी देता।

मैंने एक दो बार कहा भी- तुम खुद क्यों नहीं बात कर लेते?

पर पूजा उससे बात ही नहीं करती थी। और सच कहूँ तो शादी के बाद अब चाचा की भी फटने लगी थी। अब वो मेरे कंधे पर रख कर बन्दूक चलाना चाहता था।

एक दिन मैंने उसको बोल ही दिया- चाचा तोहफ़ा बताओ और काम करवाओ।
चाचा बोला- तू ही बता, क्या चाहिए?
‘चाचा! बुरा तो नहीं मान जाओगे?’
‘अरे राज तू बोल तो बस एक बार…पूजा की चूत के बदले कुछ भी…’
‘क्या चाची की एक पप्पी दिलवा सकते हो होंठो पर?’ मैंने मजाक में बोल दिया।

चाचा पहले तो एकदम से गुस्सा हो गया पर फिर एकदम से उफनते दूध की तरह नीचे हो गया और बोला- अगर मैं तुझे तेरी चाची की एक पप्पी दिलवा दूँ तो क्या तू मुझे पूजा की चूत दिलवाने में मदद करेगा?

‘हाँ चाचा क्यों नहीं… अगर तुमने अपना वादा पूरा कर दिया तो जो तुम कहोगे कर दूंगा मेरे चाचा!’
‘चल मैं कोशिश करता हूँ!’ कह कर चाचा चला गया।

चाचा के जाते ही चाची मेरी नज़रों के सामने घूमने लगी। आज तक मैंने चाची को इस नज़र से नहीं देखा था और ना ही चाची के बारे में मेरे दिल में कुछ कभी ऐसा कुछ ख़याल आया था। पर जब चाचा ने कहा कि वो कोशिश करेगा तो मेरा दिल उछल कर बाहर आने को हो गया, मेरा जवान दिल धड़क उठा, दिमाग में हथोड़े से बजने लगे थे। चाची के गुलाबी होंठों के बारे में सोचते ही लण्ड देवता हलचल करने लगे थे पजामे में।

हाय क्या रसीले और गुलाबी गुलाबी होंठ थे मेरी चाची के… चाचा के दोस्तों में कोई ही ऐसा होगा जो चाची के इन रसीले होंठो को चूसना नहीं चाहता होगा। ऐसा मुझे उन कमीनों के बीच में बैठ कर उनसे बात कर कर के पता लग ही गया था।

उस दिन के बाद से मैं चाचा के पीछे पड़ गया। चाचा जब भी मिलते मैं पूछ ही लेता- चाचा, कब तक इंतज़ार करवाओगे… अब चुसवा भी दो चाची के होंठ…

फिर हम दोनों में पहले तुम-पहले तुम की बहस शुरू हो जाती। चाचा कहता कि पहले तू पूजा की चूत के दर्शन करवा फिर तेरी चाची के होंठ। और मैं कहता पहले चाची के होंठ फिर पूजा की चूत।

चाचा शायद सोच रहे थे कि मैं मजाक कर रहा हूँ पर मैं अब सच में चाची के होंठो का रसपान करने को उतावला हो रहा था।

कुछ दिन फिर ऐसे ही बीत गए। चाचा का लण्ड पूजा की चूत पाने को ललक के चलते एक दिन चाचा बोला- आज शाम को तू मेरे कमरे में आना।

मुझे तब मालूम नहीं था कि चाचा मुझे अपने कमरे में क्यों बुला रहे हैं।

मैं शाम होते ही चाचा के कमरे में पहुँचा तो चाचा और चाची बिस्तर पर बैठे थे।

तभी चाचा ने कुछ जो बोला उसको सुनकर मैं हैरान हो गया।

चाचा ने चाची को कहा- राज तुम्हारे होंठो पर एक चुम्बन करना चाहता है अगर तुम्हें कोई ऐतराज़ ना हो तो।

यह सुन कर चाची का मुँह खुला का खुला रह गया और वो हैरान परेशान सी चाचा के मुँह की तरफ देखने लगी। फिर चाचा ने चाची के कान में कुछ कहा और फिर चाची ने बोला- बस एक बार कर सकता है और वो भी मुझे छुए बिना।

यह सुन कर तो मैं ऊपर से नीचे कच्छे के अंदर तक हिल गया।

‘चाचा मैं तुम्हारे सामने नहीं करूँगा… पहले आप बाहर जाओ!’
‘अच्छा जी! मेरी बीवी का चुम्मा लोगे और हम ही बाहर जाएँ?’
‘देख लो! तुम्हारी मर्ज़ी।’

‘ठीक है बेटा… पर सिर्फ एक… मुझे मालूम है कि तू बहुत बदमाश हो गया है आजकल!’
कहकर चाचा बाहर चले गए। मैं शर्माता हुआ सा जाकर चाची के पास बिस्तर पर बैठ गया।

‘क्यों रे… इतना बड़ा हो गया तू कि अपनी चाची को ही किस करने का मन करने लगा तेरा?’
‘वो चाची…बस ऐसा कुछ नहीं है…’
मैं हकलाता हुआ सा बोला।

चाची हँस पड़ी, फिर मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोली- कोई बात नहीं राज… ऐसा होता है इस उम्र में!
‘तो क्या आप सच में मुझे अपने होंठो पर किस करने देंगी?’
‘हाँ क्यों नहीं..’

चाची को नहीं पता था कि मैं छुपा-रुस्तम हूँ और पहले भी कई लड़कियों का यौवन-रस चख चुका था अपने गुरु चाचा की मदद से।

मैंने चाची का खूबसूरत चेहरा अपने हाथो में लिया तो मेरे हाथ थोड़े कांप रहे थे पर चाची मुस्कुरा रही थी। मुस्कुराती हुई चाची के गुलाबी होंठ देख कर मैं अपने काबू में नहीं रहा था।

मैंने चाची को अपनी तरफ खींचा और अपने होंठ चाची के होंठों पर रख दिए। मैं आनन्दित होकर चाची के रसीले होंठो का रसपान करने लगा।

चाची भी ‘किस’ का भरपूर मजा ले रही थी और मेरा पूरा साथ दे रही थी। किस करते करते ना जाने कब मेरे हाथ चाची की मदमस्त जवानी की निशानी यानि चाची की चूचियों पर चले गए और मैंने चाची की एक चूची पकड़ कर दबा दी।

चाची के मुँह से ‘आह्ह’ निकल गई और चाची ने मुझे अपने से अलग कर दिया।

‘तू तो कुछ बड़ा बेशर्म हो गया हैं रे… शक्ल से तो कितना भोला लगता है और अपनी ही चाची की चूची दबा रहा है?’

‘चाची… तुम्हारी चूचियाँ हैं ही इतनी मस्त कि इनको देखते ही कुछ कुछ होने लगता है।’
‘अच्छा..क्या होता है..?’
‘वो..वो…मुझे नहीं पता पर कुछ कुछ होता जरूर है।’

मेरे पजामे में तम्बू बन चुका था, चाची ने देखा और हँस कर बोली- तो यह होता है..

कहकर चाची ने अपने हाथ से मेरे लण्ड को हल्के से छू लिया। मैं तो सीधा जन्नत में पहुँच गया। मैंने एक बार फिर चाची को अपनी बाँहों में भर लिया और अपने होंठ एक बार फिर चाची के होंठो पर रख दिए। चाची गर्म होने लगी थी और उसके मुँह से मादक सीत्कारें निकलने लगी थी। मैं किस करते करते चाची की चूची को मसल रहा था। तभी चाचा ने दरवाज़ा खटखटा दिया और…

अगले भाग में!
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चाचा का उपहार-2

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