साली का कौमार्य भेदन

Antarvasna 2012-12-06 Comments

प्रेषक : मयंक गर्ग

मेरी शादी को सवा साल हो चुका था जब मेरी बीवी गुंजन ने मुझे बताया कि उसकी माहवारी नहीं हुई है, तो मैं उस दिन बहुत ही खुश हो गया, आठ दस दिन बाद उसे लेकर लेडी डॉक्टर के पास गया, टैस्ट करवाया तो पूरा यकीन हो गया कि वो पेट से है।

अब बीवी का ख़याल रखना था और उसे कम से कम कष्ट पड़े इस लिए मैंने थोड़े दिन के बाद अपने ससुराल फोन करके अपनी साली रचना को यहाँ बुलवा लिया। रचना की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी और वह घर पर ही रहती थी। रचना मेरे साथ खूब हंसी मजाक कर लिया करती थी और वह दिखने में भी बहुत सेक्सी थी, बड़े विशाल चूचे, गोरे गाल, मस्त चाल और दो शब्दों में कहूँ तो एकदम तैयार माल !

रचना के यहाँ आने के बाद वो अपनी बहन का ख्याल रखने लगी थी, घर का सारा काम उसने सम्भाल लिया था। लेकिन मुझे तो उस दिन का इन्तजार था जब वो मेरे बिस्तर गर्म करने का काम अपनी दीदी से छुड़वा कर खुद सम्भालती।

उस दिन शनिवार था और गुंजन को बुखार हो गया था, गुंजन के लिए में डॉक्टर को घर लेकर आया। उसने कहा कि कुछ नहीं मामूली बुखार ही है ठीक हो जाएगा। उसने मेरी बीवी को नींद की गोली दे दी और कहा कि वह आराम करे।

शाम के खाने के बाद नींद की गोली असर दिखा गई और गुंजन सो गई। मैं और रचना बाहर के कमरे में थे।

शनिवार था इसलिए मैंने ठंडी बियर खोल रखी थी और हम दोनों ताश खेल रहे थे। बियर का ठंडा ठंडा नशा मुझे गर्म करने लगा था, रचना जब मुझसे मजाक करती थी तो मैं उसके उछलते कूदते स्तन देख कर मदहोश हुए जा रहा था। वैसे भी मेरे लंड को बीवी के गर्भवती होने की वजह से चूत या गांड की खुराक नहीं मिली थी। गांड और चूत के विटामिन ना मिलने से लंड की हालत पतली ही थी। रचना के दोनों उरोज जोर जोर से इधर उधर हो रहे थे इसका मतलब कि उसने अंदर ब्रा नहीं पहनी थी। मेरे लंड में तनाव आने लगा। मैंने भी बगैर अंडरवीयर के ही लाल रंग का बरमुडा पहेना था जिसके आगे मेरा लंड खड़ा होने से छोटी छतरी बन गई थी।

मैंने गौर किया कि रचना भी मेरे बरमुड की उठान की तरफ कभी कभी देख रही थी, 20 साल की जवानी शायद इस फ़ल का स्वाद अनुभव करना चाहती थी।रचना के हल्के टी-शर्ट और छोटे बरमुडे की वजह से उसकी गोरी मांसल जाँघें मुझे दिख रही थी और लौड़ा परेशान होने लगा था। मैंने रचना को कहा- यहाँ थोड़ी गर्मी है, चलो छत पर चलते हैं।

वह मेरे साथ ऊपर आ गई, वह प्लास्टिक की कुर्सी लेकर मेरे आगे चल रही थी, ऊपर एक कुर्सी पहले से थी इसलिए मैं केवल अपनी बोतल लेकर चढ़ा। रचना मेरे आगे सीढ़ियाँ चढ़ रही थी और मैं उसके मटकते हुए कूल्हे देख रहा था, मन तो कर रहा था कि उसके चूतड़ों को अपने हाथ से सहारा देकर उसे छत पर ले जाऊँ, पर मैं खुद पर काबू रखे था। तभी रचना का पाँव सीढ़ियों में रखे कुछ सामान से टकराया और वो लड़खड़ा गई।

रचना गिरे उससे पहले मैंने अपनी बाजू में उसे पीछे से थाम लिया। मेरा तना हुआ लण्ड उसके चूतड़ों को छू बैठा, उसे भी मेरे लंड की गर्मी का अहसास हो गया, वह संकुचाती सी मेरी बाजुओं से निकली और हम दोनों ऊपर आ गए।

छत पर हम दोनों आमने सामने कुर्सी डाल कर बैठ गए, अब उसकी नजर मुझ से मिल नहीं रही थी। मैं समझ गया कि उसके इरादे भी डगमगा गए हैं !

मैंने भी आज अपनी साली की चूत मार लेने का मन बना ही लिया। दारु चढ़ी तो थी लेकिन फिर भी मैं होश में था। रचना भी बीच बीच में मेरी जांघों की तरफ देख रही थी, मैंने अब धीरे धीरे रोमाँटिक बातें चालू की बोयफ्रेंड वगैरह की।

थोड़ी देर में ही वह पूरी खुल गई और सारी बातें करने लगी मुझसे। रचना को मैंने बताया कि मैं कैसे कॉलेज में लड़कियों से मस्ती करता था।मैंने अपना पैर सामने रचना की कुर्सी पर रख दिया जो उसकी जाँघ के बाहरी हिस्से को छू रहा था, वह कुछ नहीं बोली !

हम दोनों बातें करते गए और मैं अपना पाँव उसकी जांघ पर रख कर सहलाने लगा, उसने कोई आपत्ति नहीं की।

मेरी हिम्मत अब खुल गई थी और मैंने अपनी कुर्सी उसके बगल में सरका ली, उसके कन्धे पर हाथ रख कर बात करने कगा। धीरे धीरे मैंने अपना हाथ रचना के वक्ष पर सरका दिया तो वह बोली- जीजू, यह क्या कर रहे हैं?

उसके आवाज में परेशानी से ज्यादा खुशी छिपी थी, मैंने दूसरा हाथ भी उसकी जांघ पर रखा और नीचे से उसके बरमुडा में जरा सा सरका कर दबा दिया।

रचना की आँखें बंद हो गई और वह सिसकारी भरने लगी। दोस्तो, सिसकारी का मतलब होता है मजा आना, तो रचना को गर्म देख मैंने भी हथौड़ा मार देने की ठान ली। मैंने रचना का हाथ पकड़ कर उसे खड़ी किया और अपनी जान्घों पर बिठा कर उसकी शर्ट में एक साथ दोनों हाथ घुसा दिये, उसके चूचे मेरे अनुमान के मुताबिक बगैर ब्रा के ही थे। नीचे मेरा लौड़ा उसके चूतड़ों की दरार में रास्ता खोजने में लग गया। कुछ देर बाद मैंने उसकी टीशर्ट उतारने की कोशिश की तो रचना ने मेरे हाथ रोक मेरी जाँघों से उठ कर नीचे आ गई। उसके पीछे मैं भी नीचे आ गया और आते ही सबसे पहले अपने बेडरूम के दरवाजे को बाहर से कुण्डी लगा दी ताकि नींद की गोली के नशे में सोई गुंजन जागे तो भी हम पकड़े तो ना जाएँ।

रचना दूसरे बेडरूम में आकर बेड पर बैठ गई थी, मैंने वहाँ आकर रचना को दबोच लिया और उसे लिटा कर उसके ऊपर आ कर होंठ उसके लबों पर टिका दिए।

कुछ देर उसके साथ प्रगाढ़ चुम्बन के बाद मैंने उसकी टी-शर्ट उसके गले से खींच ली तो उसके मस्त गुलाबी चुचूकों वाले चूचे मेरे सामने नुमाया थे। मैंने अपने अधर इन देसी दुग्ध कलशों पर रख दिए और रचना के दोनों हाथ स्वतः मेरी पीठ के ऊपर हाथ आ गए।

रचना के चुचूकों को काफ़ी देर चूसा और फ़िर मैंने उसके बरमुडा का बटन खोल दिया, उसे उसकी चिकनी जंघाओं पर से फ़िसलाते हुए उतार फेंका।

ओह क्या जवान चूत थी !

जी हाँ ! बिना किसी आन्तरिक आवरण के यारो ! फूली हुई, छोटे छोटे बालों वाली चूत के लाल लाल होंठ ऐसे बन्द थे मानो सुहागरात को शरमाती हुई दुल्हन अपना मुंह खोलने से कतरा रही हो !

मैंने अब निप्पल चूसते चूसते चूत के ऊपर हाथ फेरना शुरु किया, रचना की चूत अब गीली होने लगी थी। मुझे इस देसी सेक्सी चूत चूसने की तलब लगी और मैंने रचना के एक पाँव को बेड के सिराहने पर रखा और दूसराअपने बायें हाथ में पकड़ कर ऊपर उठा दिया। अब चूत के ऊपर मैं अपना मुँह रख के उसकी चूत के होंठों को हल्के हल्के जीभ से चाटने लगा, रचना की सिसकारियाँ बढ़ गई और एक तीव्र झटका लगा जब मेरी जीभ उसकी चूत के होंठों को पार करके अन्दर घुसी। उसकी चूत का रस खारा खारा था और चूत के अंदर जीभ जाते ही रचना ने दोनों हाथों से मेरा सिर कस कर पकड़ लिया।

पहली बार की चूत चुसाई उसको बहुत उत्तेजित कर रही थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

तीन चार मिनट रचना की चूत चूस और चाट कर मैं खड़ा हुआ और मैंने अपनी बनियान निकाली। मेरी छाती के बालों को देख उसके होंठों पर मुस्कान छा गई।

मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसे बेड पर बैठाया और उसके हाथ अपने बरमुडा की इलास्टिक पर रख दिए। बिना कुछ कहे वो समझ गई कि मैं क्या चाह रहा हूँ पर वो उसे नीचे खिसकाने का साहस ना कर पाई। मैंने उसका सिर पकड़ कर अपने बरमुडा में छिपे लिंग कर उसका चेहरा दबा दिया, कहा- रचना जी इसे उतारने पर ही आपको असली चीज के दर्शन हो पाएँगे।

उसने शरमा कर निगाहें ऊपर करके मेरी आंखों में देखा तो मैंने अपनी एक आँख दबा दी और खुद ही अपना बरमुडा नीचे सरका दिया।

लंड की लम्बाई देख कर रचना डर सी गई !

मैंने अपना 7 इंच लम्बा लंड पकड़ा और उसका अग्र भाग उसके अधरों पर फ़िराने लगा।जैसे ही उसके लब कुछ खुले, मैंने लण्ड को उसके मुख में पेल दिया।

रचना मुश्किल से आधा लंड ले पाई होगी कि मैं उसका मुखचोदन करने लगा। रचना को लण्ड चूसना नहीं आ रहा था, मैं लंड हिला हिला कर उसको चुसाने लगा पर सच कहूँ मुझे उसके लंड चूसने में बिलकुल मजा नहीं आया, शायद गुंजन लंड चूसने में सबसे बढ़िया है।

मैंने रचना के मुँह से अपना लंड और अपने चूतड़ों से लिपटे उसके हाथ दूर किये, रचना चुदने जितनी गर्म तो हो ही चुकी थी। मैंने रचना को धक्का देकर बिस्तर पर गिराया और उसके पैर पकड़ कर अपने कन्धों पर रख कर अपना लंड उसकी बिन खुली चूत की पंखुड़ियों पर रख दिया। रचना की चूत बहुत गीली हो चुकी थी।

मैंने बिना जल्दबाजी किये धीमे धीमे पहले लंड को उसकी चूत के ऊपर रगड़ा साथ ही उसके कूल्हों को सही एडजस्ट किया और फिर सही अवसर देख कर एक धीमा झटका मारा।

रचना चिल्ला पड़ी- ओह ओह्ह्ह्हह्ह अई माँ ! मर गई मैं !

इसके साथ ही मैंने बिना समय गंवाए अपने अगले झटके से उसका कौमार्य भेदन कर दिया।

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top