औरत की चूत की कामुकता-3

(Aurat Ki Choot Ki Kamukta-3)

This story is part of a series:

दोस्तो
आपने मेरी कहानी ‘औरत की चूत की कामुकता’ के पिछले दो भाग पढ़ कर जो अपने प्यार दिखाया उसके लिए आप सभी का शुक्रिया… और मुझे खेद है कि मैं सभी दोस्तों को जवाब नहीं दे सकी और बहुत से दोस्तों ने अपने लंड की फोटो भी भेज दी जो मुझे बहुत अच्छी लगी, उन सभी लंडों को मेरी चूत की तरफ से धन्यवाद!

अब अपनी कहानी तरफ बढ़ते हैं।

पिछले भाग में आपने पढ़ा होगा कि जब मैं बाबूजी के खाने के बर्तन उठा रही थी तब बाबूजी को मेरे मम्मे के दर्शन हुये थे। मैं तो शर्मा कर भाग गई, बाद में विलास और मेरी जमकर चुदाई हुई, विलास चार दिन के बाद वापस कम्पनी के काम से 15 दिन के लिए कोलकाता गये, घर में मैं, बाबूजी और मेरा बेटा सोनू ही थे, सोनू तो सुबह उठते ही दोस्तों के साथ खेलने जाता था, बाबूजी सुबह ही स्नान करके अखबार पढ़ते थे, बाद में मैं नहाने चली जाती थी।

एक दिन मैं अंदर नहा रही थी और नहाते समय मैं पूरे कपड़े निकाल कर नंगी होकर नहाती हूँ, तभी बाथरुम का दरवाजा थोड़ा सा हिल गया, मुझे शक हुआ कि कोई मुझे देख रहा है, मैंने झरोखे से बाहर देखा तो मुझे बाबूजी दिखाई दिये।

मैंने तुरंत अपनी ब्रा और कच्छी पहन ली और जल्दी से नहा कर कपड़े पहन कर बाहर आई, देखा तो बाबूजी फिर से अपनी जगह पर जाकर अखबार पढ़ रहे थे।
मैं हमेशा की तरह बर्ताव करती रही, उन्हें मालूम नहीं होने दिया कि उनकी चोरी मैंने पकड़ी है।

मैं तो अपको बाबूजी के बारे बताती हूँ, बाबूजी एक रिटायर्ड आर्मी आफिसर है, एकदम गठीला और तंदुरुस्त शरीर है, छाती चौड़ी है, ऊँचाई भी 6 फुट होगी मैं तो उनके सामने बहूत छोटी लगती हूँ क्योंकि मेरी ऊँचाई 4’6″ है वैसे मैं भी शरीर तंदुरुस्त हूँ, मेरे साईज 32- 30-34 है, इससे आप को पता लग ही जायेगा।

मैं बाबूजी की बड़े मन से सेवा करती थी, उनके हाथ पैर दबाना, सर की मालिश करना, उनको जो भी चाहिये, वो फौरन मैं लाकर देती थी।
वो मेरा बहुत ख्याल रखते, मेरे को कभी नाराज नहीं करते थे, लेकिन पिछले कई दिनों से उनके स्वाभाव में बदलाव आया था, वो जानबूझ कर मुझको यहाँ वहाँ छूने की कोशिश करते थे, कभी कोई मेरे से अच्छा काम हुआ तो मेरे चूतड़ों के ऊपर चपत मारते और बोलते- वाह बहू!
कभी कभी अपने कोहनी से मेरे मम्मों को दबाते!

एक दिन बाबूजी सोनू को स्कूल छोड़कर आये और कपड़े बदल कर हाल में बैठे थे, काम खत्म करके मैंने बाबूजी को कहा- खाना लगा दूँ क्या?
बाबूजी बोले- अभी नहीं, थोड़ी देर बाद में खायेंगे।
मैं बोली- तब तक मैं कांबले आंटी (हमारे पड़ोसी) के पास जाकर आती हूँ।
उन्होंने कहा- ठीक है।

और मैं चली गई।

थोड़ी देर बाद मैं आई तो देखा कि बाबूजी विहस्की पी रहे थे। वैसे बाबूजी कभी कभी पीते हैं लेकिन रोज नहीं पीते, वो पीने के बाद खाना खाते हैं और सो जाते हैं, किसी को तकलीफ नहीं देते।

उनका पीना होने के बाद बाबूजी मुझे बुलाया और कहा- सुरेखा, मेरे पांव में दर्द हो रहा है, जरा दबा दो।
मैं हमेशा की तरह तेल की बोतल लेकर बाबूजी के पास गई, बाबूजी ने लुंगी और बनियान पहनी थी, मैंने बाबूजी को बेड पर सीधे लेटने को कहा और बाबूजी के पैर पर तेल डालकर मालिश करने लगी।

मैं उनके पैर के पास बैठी थी, इतने में बाबूजी ने अपना एक पैर घुटने से मोड़ लिया उसके साथ उनकी लुंगी भी ऊपर हो गई। मैंने देखा कि बाबूजी अंदर कुछ नहीं पहना था और उनका लंड मुझे साफ दिखाई दे रहा था।

मैं उनका लंड देखकर बहुत हैरान हो गई, उनका लंड बहुत बड़ा था और काला था, इतना बड़ा लंड मैं तो पहली बार देख रही थी, मेरी नजर बार बार बाबूजी के लंड पर जा रही थी और मेरी जीभ अपने होठों पर घूम रही थी जैसे कि कोई अपने सामने इमली खा रहा हो वैसे ही मेरे मुँह में पानी आ रहा था।

उनका लंड अपने आप ऊपर नीचे हो रहा था मानो कि वो मुझे सलामी दे रहा हो।
मैंने बाबूजी के तरफ देखा तो वो मुझे ही देख रहे थे।

मैं उनके पैर भी दबा रही थी और चोरी से उनका लंड भी देख रही थी, ऐसा लग रहा था कि उनका लंड हाथ से पकड़ू और चूस लूँ लेकिन डर भी लग रहा था मुझे तो कुछ समज में नहीं आ रहा था कि बाबूजी जानबूझकर कर रहे या उनसे अनजाने में हो रहा है फिर भी मैंने कोई पहल नहीं की और बाबूजी के पैर दबाती रही।

थोड़ी देर बाद मैं बोली- बाबूजी अब कैसा लग रहा है?
बाबूजी बोले- तुम्हें कैसा लगा?

मैं समझ गई कि बाबूजी किस बारे बोल रहे हैं, फिर भी नासमझ बनते हुए मैंने कहा- मैं कुछ समझी नहीं बाबूजी?

तो बाबूजी ने मेरा हाथ पकड़ा और अपने तरफ मुझे खींचा तो मैं सीधे उनके सीने पर गिर गई, आज पहली बार मैं बाबूजी के इतने करीब आ गई थी।
उन्होंने मेरे हाथ अपने लंड पर रखा और बोले- इसके बारे मैं बोल रहा था, कैसा लगा सुरेखा तुम्हें मेरा लंड?

मैंने झटसे अपना हाथ हटाया और कहा- यह क्या कर रहे हो बाबूजी? छोड़ो मुझे!

तो उन्होंने मेरी गर्दन पकड़ी और मेरा मुंह अपने लंड के पास लेकर गये और बोले- अभी चोरी चोरी तो देख रही थी, देख कितना कड़क हो गया है।

मैंने देखा तो सचमुच मेरे आँखों के सामने एक बड़ा सा काला नाग जैसा उनका लंड था।

तभी उन्होंने मेरे बाल पकड़कर खींचे, मुझे दर्द हुआ इसलिए मैं चिल्लाई- आआअअह…
मेरा मुंह खुल गया, तभी बाबूजी ने मेरा सर दबाया उनका लंड सीधे मेरे मुंह के अंदर घुस गया, मेरा मुंह पूरा भर गया उनका लंड था ही इतना बड़ा !

अब वो मेरा सर ऊपर नीचे करने लगे वो इतने जोश और पूरी ताकत लगाकर मुझे दबोच रहे थे, मेरा उनके सामने कुछ बस नहीं चल रहा था, मैं हार गई थी।

फिर मैंने सोचा कि ऐसा ही चलता रहा तो बाबूजी गुस्सा हो जाएँगे और उन्हें कंट्रोल करना बहुत मुश्किल हो जाएगा इसलिए मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया और उनका लंड हाथ से पकड़ लिया।
वो इतना बड़ा था कि मेरी मुठ्ठी में बैठ गया, वैसे ही पकड़कर मैं लंड के ऊपर की चमड़ी ऊपर नीचे करने लगी और उसके ऊपर जीभ से चाटने लगी।
अब बाबूजी की पकड़ ढीली हो गई थी वो ‘अअहह हह…’ कर रहे थे, तभी मैंने उनके लंड का टोपा फैलाया और उसके छेद के अंदर अपनी जीभ घुसाने लगी।

बाबूजी को भी मजा आ रहा था, वो बोले- सुरेखा, तुम तो लौड़ा बहुत अच्छी तरह से चूसती हो, चूसो !

और मैं भी अब बिना डर के और नारी लज्जा शर्म एक बाजू में रखकर बाबूजी का लंड बड़े मजे के साथ चूस रही थी क्योंकि बाबूजी का लंड था ही इतना प्यारा !
पंद्रह मिनट तक मैं चूसती रही, उनका लंड मेरे थूक से पूरा गीला हो गया था।

फिर बाबूजी उठ गये और मेरा गाऊन उतार दिया, मुझे अपने बाहों में ले लिया और मेरे ब्रा के हुक खोल कर मेरी ब्रा निकाल कर फेंक दी। मेरे मम्मे को देखकर वो पगला गये और जोर जोर से मेरे मम्मों को दबाने लगे।
मुझे दर्द हो रहा था फिर भी मैंने बरदाश्त किया।

फिर उन्होंने मुझे बेड पर लेटा कर मेरी चड्डी निकाल दी और मेरे दोनों पैर फैला दिया और बोले- सुरेखा तुम्हारी चूत तो एकदम रसीली है, मैं तो इसका पूरा रस पीना चाहता हूँ।

मैं कुछ नहीं बोली, वैसी ही लेटी रही, वो मेरे पैरों के बीच में आये और मेरी जांघ चाटने लगे, मेरे को बहुत गुदगुदी होने लगी, वो मेरी जांघ को चाटते तो मैं अपनी कमर उठा कर अपनी चूत उनके सामने लेकर जाती थी लेकिन वो चूत को मुंह ही नहीं लगाते थे, ऐसा तीन चार बार हुआ फिर मैंने उनका सर पकड़ा और सीधे मेरी चूत पर दबाकर रखा, फिर उन्होंने अपनी जीभ मेरे चूत के अंदर घुसाई और नीचे से ऊपर तक चाटने लगे, फिर मैंने उनका सर छोड़ दिया।

अब वो मस्त मजे से मेरी चूत चाटने लगे, मेरे मुंह से ‘ससस्स ससहह’ आवाज आने लगी, वो अपने दोनों हाथों की ऊँगलियों से मेरी चूत का दरवाजा खोलकर अंदर जीभ घुमा रहे थे। सच में बाबूजी के जैसे मेरे पति विलास ने भी मेरी चूत नहीं चाटी।

थोड़ी ही देर में मेरा पानी निकल गया वो भी बाबूजी ने पूरा चाटा, मेरी चूत ने तो पानी छोड़ दिया था इसलिए मैं शांत हो गई थी। बाबूजी ने मेरी चूत चाट कर पूरी साफ कर दी थी।

बाबूजी उठ गये अपना लौड़ा हिलाते मेरे पैरों के बीच आकर अपना लंड मेरी चूत पर रगड़ने लगे और रगड़ते रगड़ते एक जोरदार धक्का मारा।
मैं चिल्लाई ‘ऊई माँ…’ मर गई !
और झट से उनका लंड मैंने हाथों से पकड़ा। मुझे महसूस हुआ कि आधे से ज्यादा लंड तो बाहर ही था, बस थोड़ा ही लंड मेरी चूत के अंदर गया था।
मैं बोली- बाबूजी प्लीज अपना लंड बाहर निकाल दो, आपका लंड बहुत ही बड़ा है, मैं सह नहीं पाऊँगी।

तो वो उसी हालत में खड़े रहे और बोले- बहू, एक बार मेरा लंड तुम्हारी चूत के अंदर पूरा जाने दो, फिर देख लेना तुम्हारी चूत अपने आप मेरे लंड के लिए जगह बना देगी।
फिर उन्होंने मेरे दोनों हाथ मेरे सर के पास लेकर पकड़ के रखे और फिर जोर से धक्का मारा।
मैं फिर चिल्लाई- आआह… आआआई…
मेरी चूत फट गई थी, चूत में जलन होने लगी थी।
मैंने बाबूजी को बताया भी लेकिन उन्होंने मेरी बात टाल दी और फिर से धक्का मारा, अबकी उन्होंने ऐसा जोरदार धक्का मारा कि उनका लंड सीधे मेरे बच्चेदानी पर टकरा गया, मेरा तो दर्द के मारे बहुत बुरा हाल हो रहा था, कुछ देर रूकने के बाद बाबूजी ने धीरे से अपना लंड बाहर निकालने लगे, मुझे अच्छा लग रहा था।
तभी बाबूजी ने फिर से एक जोरदार धक्का मारा, मैं फिर से चिल्लाई लेकिन इस बार एक ही धक्के में लंड पूरा अंदर गया।

उन्होंने पांच छह बार ऐसा किया, उसके बाद मेरा दर्द थोड़ा कम हुआ लेकिन मजा भी आ रहा था, मैं तो सोच ही नहीं सकती थी कि इतना बड़ा लंड मेरी छोटी सी चूत के अंदर जा पायेगा।

धीरे धीरे बाबूजी ने अपनी स्पीड बढ़ाई, मैं भी अपनी कमर उठा कर उनका साथ देने लगी।
वो धक्के पे धक्के मार रहे थे और मैं उनके हर धक्के को आराम से झेल रही थी।
कुछ देर बाद वो शांत हो गये, तभी मेरे चूत के अंदर गरम गरम लगने लगा।

बाबूजी कुछ देर वैसे ही पड़े रहे, मैंने उठकर अपना गाऊन उठाया और बाथरुम में चली गई।
फिर बाबूजी के पास जाकर उन्हें खाना खाने को बुलाया, तभी बाबूजी बोले- सुरेखा बेटी, मुझे माफ कर देना, मैं नशे में अपने आपको रोक नहीं पाया और वासना की वजह से तुम्हें चोद डाला!

मैं बोली- नहीं बाबूजी, इसमें पूरी गलती आप की नहीं, मैंने जब आपका लंड देखा तो मेरी चूत में खुजली होने लगी और इसी कारण मैं भी आपसे चुदवाने के लिए राजी हो गई।

बाबूजी बोले- कैसा लगा तुम्हें?
मैं बोली- आप तो एक नंबर के खिलाड़ी हो!

बाबूजी और मैं हंसने लगे।
फिर हम दोनों ने खाना खाया, बाद में बाबूजी थोड़ी देर के लिए सो गये, बाद में वो सोनू को स्कूल से लाने गये, आते वक्त उन्होंने बाजार से मेरे लिए ब्रा और पैंटी की मैचिंग जोड़ी लाकर मेरे हाथ में देकर बोले- इसे रात को पहन लेना!

हमने रात का खाना जल्दी खाया और सोनू को लेकर मैं सो गई, सोनू जल्दी ही सो गया।

मैं उठी और दरवाजा बंद करके बाबूजी के पास गई, बाबूजी मेरी ही राह देख रहे थे, मैंने अंदर से बाबूजी ने लाई हुई ब्रा और पैंटी का सेट पहना था।
बाबूजी ने मेरा गाऊन उतार दिया और बोले- सुरेखा कितना अच्छा लग रहा है यह सेट तुम्हारे बदन पर…

मैंने तो पहले देख लिया था, इतना मंहगा सेट मैंने पहली बार पहना था, सच में उस सेट में मैं बहुत अच्छी लग रही थी।
फिर उन्होंने मुझे अपने बाहों में लिया और बेड पर लेकर गए।
उस रात बाबूजी ने मेरी दो बार जबरदस्त चुदाई की, सुबह जब मैं उठी तो मेरे से चला भी नहीं जा रहा था।
उस दिन के बाद जब विलास घर पर रहते तो मैं विलास से चुदवाती थी और जब विलास टूर पे जाते थे तब बाबूजी से चुदवाती !
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