औरत एक रहस्य: रीमा दीदी

(Aurat Ek Rahasya : Meri Reema Didi)

मैंने यह कहानी इंग्लिश में पढ़ी थी। यह कहानी मुझको तो बहुत अच्छी लगी। यह मेरे द्वारा लिखी हुई नहीं है, हाँ इसका अनुवाद जरूर मैंने किया है। इस कहानी को लिखने का सारा श्रेय इसको लेखक को जाता है।
अब मैं यह कहानी शुरू करता हूँ:

डिग्री करने के बाद वे दिन पूर्ण रूप में आलस से भरे थे। मेरा सारा दिन घर में टीवी देखने और किताबें पढ़ने में व्यतीत होता था।

मेरे परिवार ने धार्मिक यात्रा पर जाने का प्रोग्राम बनाया पर मेरी इस यात्रा में कोई दिलचस्पी नहीं थी।

मैंने घर वालों को बता दिया कि मैं घर में अकेला ही रहूँगा।

मुझको अकेले रहने में कोई परेशानी नहीं होती, क्योंकि मैंने बीते समय में बहुत सारा वक्त घर और हॉस्टल में अकेले रहते हुए व्यतीत किया था और मुझको गृहकार्यों में पूरी महारत हासिल थी।

रविवार को पूरा परिवार मुझको घर का ख्याल रखने का कहकर यात्रा के लिए चल दिया।

सोमवार को मैं एक दोस्त की बहन की शादी में था कि मुझको मेरी मौसी (मेरी मम्मी की बड़ी बहन) की कॉल आई।

मेरे रिजल्ट के बारे में पूछने के बाद वे मुझे कहने लगीं- अगले दो दिन तुम हमारे साथ रहो, तुम्हारी रीमा भाभी को अपने मायके जाना है।

मैंने मौसी को कहा- जी मौसीजी, मैं शाम तक पहुँच जाऊँगा।

मेरी मौसी मेरे घर से 8 किलोमीटर की दूरी पर अपने मकान में रहती थीं।

उनके तीन बच्चों में से उनके दो बेटे थे जो विदेश में रहते थे और एक बेटी थी जिसकी शादी हो चुकी थी।

मेरे मौसा जी का देहांत 2005 में हो चुका था। मेरी मौसी जी अब अपनी पुत्रवधू के साथ रहती थीं।

उन सास बहु में टीवी सीरियल की तरह की तरह की कोई अनबन नहीं थी।

यहाँ मैं आपको अपने मौसेरे भाई की बीवी यानि मेरी भाभी के बारे में बताना चाहता हूँ, उनका नाम रीमा है।

मैं उनकी फिगर के बारे में नहीं जानता, परन्तु यह कहानी आपको उनके बारे में सब बता देगी।
फिर भी आपको अंदाज देने के लिए बताने चाहूँगा कि वे बॉलीवुड की एक्ट्रेस सुष्मिता सेन जैसी दिखती थीं।

वे एक पढ़ी लिखी महिला हैं जिन्होंने अपनी सासू माँ की देखभाल के लिए अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था।

मैं उनका इस बात के लिए बहुत सम्मान करता था कि उन्होंने एक बहादुर फैसला करते हुए अपने परिवार के लिए अपनी नौकरी को कुर्बान कर दिया।

मैं उन्हें दीदी कहकर बुलाता था क्योंकि वे भी मुझको अपने छोटे भाई की तरह मानती थी क्योंकि उनका एक मेरी उम्र का एक भाई भी था।

मैंने अपनी मम्मी को बहुत बार कहा था कि मैं भी रीमा जैसी पत्नी चाहता हूँ ताकि मेरे घर में उनके घर जैसी शांति रहे और सास बहु वाला ड्रामा न हो।

अब मैं अपनी कहानी पर आता हूँ।

यह उस दिन की बात है जिस दिन रीमा दीदी को उनके पिता के अस्पताल में भर्ती होने की वजह से उनकी मिजाज पुरसी के लिए अपने मायके जाना पड़ा।

इस कारण मेरी मौसी घर में अकेली रह गई थीं, और जिस वजह से उन्होंने मुझे अपने घर बुला लिया।

सोमवार की दोपहर के बाद में मौसी के घर पहुँच गया और रीमा दीदी अपने 18 माह के बच्चे के साथ मेरा इंतज़ार कर रही थी कि जब मैं वहाँ पहुँचूँ तो वो रवाना हो सकें।

मेरे जाते ही वो मुझको घर में आम सावधानियों के बारे में बताने लगीं।

मैं यह सुन कर मुस्कराने लगा, मैंने उन्हें बताया कि इन सबके बारे में मुझको पूरी तरह पता है।

इसके बाद वो मुझको मौसी की दवाई के बारे में बताने लगीं।

रीमा दीदी ने मुझे कहा कि वो दो दिन बाद लौट आयेंगी और फिर तुम अपने घर जा सकते हो।

मैं उनसे पूरी तरह सहमत था।

रात को खाने खाने के बाद मैं और मौसी बातें करने लगे।

मौसी मुझसे मेरे भविष्य के बारे में पूछने लगीं।

मैंने उन्हें बताया कि मैं नौकरी की तलाश मैं हूँ।

उन्होंने कहा कि वो अपने विदेश में रहते बेटों से मेरी नौकरी की बात करेंगी।

फिर वो कहने लगीं कि वो रीमा को अपनी बेटी से ज्यादा प्यार करती हैं।

मैंने उनसे अपनी सहमति जताई और कहा- आप बड़ी भाग्यशाली हो कि आपको रीमा दीदी जैसी पुत्रवधू मिली।

उस घर में नीचे और ऊपर की मंजिल पर दो दो बेडरूम थे। ऊपर के दोनों बेडरूम बिल्कुल खाली और धूल से अटे पड़े थे इसलिए मौसी ने मुझे रीमा दीदी के बेडरूम में सोने को कहा।

यह मेरी जिंदगी का पहला मौका था जब में अपनी मम्मी के अलावा किसी स्त्री के बेडरूम में सोने जा रहा था।

बेड शीट से उठने वाली मादक सुगंध मुझको पागल किये जा रही थी और मेरे मन में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे।

मैंने अपने आप पर काबू पाने की कोशिश की क्योंकि मैं रीमा दीदी की बहुत इज्ज़त करता था।

अगली सवेरे मैंने मौसी को कहा- मैं अपने घर पेड़ पौधों को पानी देने जा रहा हूँ और दोपहर होते ही लौट आऊँगा।

ऐसे ही दो दिन बीत गए और मैं रीमा दीदी का इंतज़ार कर रहा था कि कब रीमा दीदी आएँ और कब मैं अपने घर जाऊँ।

ट्रैफिक के कारण रीमा दीदी को आने में देर हो गई और रात करीब 7.30 बजे वे घर पहुँची।

मैं बहुत जल्दी में था और उनके आते ही मैंने उन्हें कहा- मैं जा रहा हूँ।

मेरी बात सुन कर वो बहुत हैरान हुईं, कहने लगीं- तुम वहाँ अकेले हो और वहाँ खाना बनाने वाला भी कोई नहीं है।

रीमा दीदी ने मुझे कहा- आज रात यहीं रुक जाओ, सुबह जल्दी चले जाना।

मौसी ने भी रीमा की हाँ में हाँ मिलाई और मुझे घर जाने के लिए मना कर दिया।

आखिर में मुझे मानना ही पड़ा और मैं बेमन से बैठ गया।

रीमा दीदी ने अपने कपड़े बदले, बच्चे को पालने में बिठाया और रसोई में खाना बनाने के लिए चली गईं।

रीमा दीदी ने नीले रंग की नाइटी पहनी हुई थी।

जब वो रसोई में घुसीं तो यह देख कर काफी हैरान हुई कि वस्तु अपनी जगह पर टिकी हुई थी और रसोई पूरी तरह साफ़ सुथरी थी।

उन्होंने मुझे बुलाया और पूछने लगी- यह सब किसने किया है?

मैंने उन्हें बताया कि टीवी देखने के बाद मेरे मन में आया कि कुछ काम किया जाये तो मैं घर के काम काज में लग गया।

यह सुन कर रीमा दीदी ने मेरी पीठ थपथपाई और कहने लगीं- तेरी पत्नी बड़ी भाग्यशाली होगी जो उसको तेरे जैसा पति मिलेगा।

रीमा दीदी ने कहा- खाना बनने में आधा घंटा लग जायेगा, तब तक तुम फ्रेश हो लो। तब तक तुम आराम कर लो।

मुझे इस समय टीवी देखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी क्योंकि यह समय टीवी सीरीयल्ज़ का था और मैं यह सब देखता नहीं।
इसलिए मैं रसोई में खड़ा होकर दीदी को काम करते हुए देखने लगा और उनके परिवार के बारे में पूछने लगा।

उन्होंने पूछा- आजकल तुम कर क्या रहे हो?

तो मैंने उत्तर दिया- कुछ खास नहीं।

अगले आधे घंटे तक हम अलग अलग विषयों पर चर्चा करते रहे।

यह मेरी जिंदगी का पहला मौका था कि जब मैं किसी स्त्री के साथ इतने लम्बे समय तक बात कर रहा था।

मैंने महसूस किया कि स्त्री को प्रभावित करना कोई खास बात नहीं होती, बस स्त्री को यह लगना चाहिए कि आप उसकी बात ध्यान से सुन रहे हो और उसका ख्याल रख रहे हो।

फिर हमने डिनर किया और बातों में मशगूल हो गए।

मैं धीरे धीरे सहज हो रहा था और बात करते करते चुटकले भी सुना रहा था।

सोने के समय यह मुश्किल आई कि मुझे सुलाया कहाँ जाये।

मैंने कहा कि मैं ऊपर की मंजिल पर बने एक बेडरूम में सो जाऊँगा।

मौसी कहने लगी- वो कमरे तो धूल से भरे पड़े हैं।

रीमा दीदी ने कहा कि वो बहुत थक चुकी हैं और उनमें अब इतनी शक्ति नहीं कि वो इस समय कमरे को साफ़ कर सकें।

उन्होंने मुझे सुझाव दिया कि मैं उनके कमरे में उनके बेड पर सो जाऊँ और वे बच्चे के पालने के पास नीचे फर्श पर सो जाएँगी।

मैंने उन्हें कहा- नहीं फर्श पर मैं सो जाऊँगा।

तो उन्होंने कहा- तुम हमारे मेहमान हो और हम तुम्हें फर्श पर सोने नहीं दे सकते।

मौसी ने भी दीदी की बात का समर्थन किया।

इसके बाद दीदी ने मुझे कहा- तुम जाकर सो जाओ, मैं बर्तन साफ़ करके सो जाऊँगी।

मैं बेड पर लेट तो गया पर मुझे नींद नहीं आ रही थी।

यह पहली बार था कि मैं किसी स्त्री के कमरे में उसके होते हुए सो रहा था।

मेरे मन में बुरे ख्याल आने लगे पर मैं अपने आप पर काबू पाने की कोशिश कर रहा था।

जल्दी ही रीमा दीदी ने दरवाजा खोला और कमरे में दाखिल हो गईं।

आते ही औपचारिक तौर पर उन्होंने पूछा- क्या तुम सो गये?

मैंने कोई जवाब नहीं दिया और ऐसा प्रकट करने लगा कि मैं गहरी नींद में हूँ।

इसके बाद उन्होंने तौलिया लिया और नहाने के लिए बेडरूम के साथ ही बने बाथरूम में घुस गईं।
पानी के गिरने की आवाज़ मुझे पागल कर रही थी। मैंने उनके नग्न शरीर पर पानी बहने की कल्पना करने की कोशिश की और सोचने लगा कि अगर मैं पानी होता तो इस समय उनके शरीर पर बह रहा होता।

पर मैं इतना बहादुर नहीं था कि कुछ कर सकूँ।

लगभग 5 मिनट के बाद रीमा दीदी नहा कर बाहर निकली।

मैं यह देखना चाहता था कि वे कैसी लग रही हैं लेकिन आँखें खोलने का साहस नहीं कर पा रहा था।

उन्होंने अपने कपड़े बदले और लाइट बंद कर दी।

अचानक बच्चे ने रोना शुरू कर दिया और वे उसे अपना दूध पिलाने लग गई।

मैं महसूस कर रहा था कि जैसे यह दूध मैं ही पी रहा था।

बच्चे को दूध पिलाने के बाद वो फर्श पर सोने की बजाये बेड पर सोने की तैयारी करने लगीं।

मेरा दिल जोर जोर से ऐसे धड़क रहा था कि जैसे वो मेरी छाती से बाहर निकल आयेगा।

मैं अपने पर काबू पाने की भरपूर कोशिश कर रहा था कि वो मुझे भाई के जैसे मानती हैं और अपनी मासूमियत की वजह से ही बेड पर सो रही हैं।

रीमा अपनी पीठ मेरी ओर करके सो रही थी, इसलिए मैं चोर आँख से उन्हें देख रहा था।

उसकी बाईं बाजू उनके पेट के ऊपर थी और दाईं बाजू बच्चे के सर को आसरा दे रही थी।

उसकी बाईं बाजू उसके सांस लेने के साथ साथ ऊपर नीचे हो रही थी।
उनके बालों में से आ रही मादक सुगंध मुझे पागल करे जा रही थी।
उनके बाल नितम्बों तक पहुँच रहे थे और तकिये के ऊपर बिखरे पड़े थे।

मैंने हल्के से अपने आपको एडजस्ट किया और उसके बालों की अच्छे से सुंगंध लेने लगा।

मैं बिल्कुल पागल हुए जा रहा था और अपने आप से बेकाबू हो रहा था।

मेरी मासूमियत और डर पूरी तरह से खत्म हो गए थे, मैं रीमा दीदी को जुनून के साथ देख रहा था।

मैंने हल्के से अपने हाथ को उसके नितम्बों से दबाया।
हाँ मेरे रब !
कितने कोमल थे ये।

मैंने धीरे से अपने हाथ को उनकी गांड की तरफ सरकाया।

अचानक मुझे लगा कि वो जाग रही थीं और मैंने अपना हाथ पीछे खींच लिया।

मैं पूरी तरह से तनाव में था।

कुछ समय बाद रीमा दीदी ने मेरी तरफ अपना चेहरा घुमाया।
मैंने जल्दी से अपनी आँखें बंद कर लीं और शांत बना रहा।

उन्होंने अपना दायाँ हाथ मेरे सर के पास किया और मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ चलानी शुरू कर दीं।
फिर अपनी उँगलियों से मेरे माथे, नाक और मेरे लबों पर छेड़छाड़ करने लगीं।

मेरे हालात पूरी तरह से काबू से बाहर हो रहे थे।

उन्होंने मेरी शर्ट के अंदर हाथ डाल कर मेरी छाती पर फेरना शुरू कर दिया।

मैंने लुंगी पहन रखी थी और मेरा लिंग पूरी तरह से सख्त हो चुका था।

उन्होंने अपना हाथ मेरे पेट पर फेरना शुरू कर दिया तो मैं शर्मा गया क्योंकि मैं एक दुबला पतला आदमी था।
उनका हाथ आगे जा रहा था, मैं नहीं चाहता था कि उन्हें मेरे लिंग की स्थिति का पता चले, इसलिए मैं जानबूझ कर खांसा।

इससे उन्होंने अपना हाथ घबरा कर पीछे हटा लिया।

मैं इन्तजार कर रहा था कि वो फिर अपना हाथ मेरे जिस्म पर रखेंगी।

पर वो पूरी तरह डर चुकी थी और गहरे गहरे से सांस ले रही थी।

अब मैं आगे बढ़ने का फैसला कर चुका था, मैंने अपना हाथ उसके शरीर पर ऐसे रखा कि मैं गहरी नींद मैं हूँ।

जब मैंने अपना हाथ उनके शरीर पर रख रहा था तो यह सीधे उसके स्तन पर चला गया।

मैंने महसूस किया कि उन्होंने ब्रा नहीं डाली हुई थी और बच्चे को दूध पिलाने के वजह से उनके निप्पल गीले थे।

मैंने उसकी नाइटी के ऊपर से ही उसके निप्पल को मसलना आरम्भ कर दिया।

उन्हें पता चल चुका था कि मैं नींद में नहीं हूँ। उन्होंने मेरी तरफ अपना मुँह किया और पूछा- क्या तुम जाग रहे हो?

मुझे थोड़ा साहस हुआ लेकिन मैं नहीं चाहता था कि वो कोई सवाल करें, इसलिए मैं अपना मुँह उनके मुँह के पास ले गया और उनके लबों को पागलपन से चूसने लगा।

पहली बार मैं एक महिला की गंध का आनन्द ले रहा था। मैंने वास्तव में उस खुशबू का आनन्द लिया और उनके माथे को चूमा।

वो बिना किसी विरोध के मेरे सामने पड़ी थी और मुझे मालूम था कि यह मखमली बदन पूरी रात मजे करने के लिए सिर्फ मेरा है।

मैंने उसके बदन के हर हिस्से से मस्ती करने का फैसला किया।

मैं उनकी आँखों, नाक और गालों को चूमने लगा।
वो अपने हाथ से मेरे बालों को सहला रही थी, कंघी सी कर रही थी।

मैं पूरे आनन्द से उसको गर्दन और गालों को चूम रहा था।

इसके बाद मैं अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी और और एक दूसरे को अपने रस का आदान प्रदान करने लगे।

मैंने धीरे से उसके सर को आसरा देकर ऊपर किया और उसके निचले होंठ को हल्के से काट दिया।

मैं उनके कानों को उनको दर्द दिए बिना अपने दांतों से काट रहा था।

फिर मैंने उनकी गर्दन को चाटना शुरू कर दिया। उनके शरीर की मादक सुगंध मुझे पागल किये जा रही थी।

मैं यह सारा कुछ बड़ा आहिस्ता आहिस्ता कर रहा था।
चूंकि मैं चाहता था कि यह रात उनके लिए (और मेरे लिए भी) यादगार बन जाये।

फिर मैंने उनकी उँगलियों की ओर विशेष ध्यान देते हुए उनको अपने होटों के बीच ले लिया।

रीमा दीदी पूरी तरह से मज़ा ले रही थी, उन्होंने मुझे धीमे स्वर में रुकने को कहा।

इतनी देर में बच्चे के रोने की आवाज सुन कर उन्होंने मुझे हटाया और बेड के एक किनारे पर बैठ कर बच्चे को दूध पिलाने लग गई।
इस समय हम दोनों में कोई शर्म नहीं थी। मैं उनके स्तन देखने की असफल कोशिश कर रहा था।
उनका एक स्तन बच्चे के मुँह में था और दूसरा उसकी नाइटी में था।

उन्होंने मेरी ओर देखा और मेरी हालत देखकर मुस्काने लगी।

मैं उनका पाँव को पकड़ कर उससे खेलने लगा।

मैं उनके पैर के निचले भाग को सहला रहा था।

उन्होंने धीरे से अपनी नाइटी को ऊपर किया तो मैं उनकी टांगों को चाटने लगा।
मेरा हाथ उनकी जांघों पर रेंग रहा था और मैं बेकाबू होकर अपनी जीभ और हाथ जल्दी जल्दी चलाने लगा।

उन्होंने मुझे कहा- जो करना है, धीरे करो क्योंकि मैं बच्चे को दूध पिला रही हूँ।

जल्द ही उन्होंने बच्चे को दूध पिला कर पालने में लिटा दिया।

पालने में लिटाने के तुरन्त बाद मैंने उनको पीछे से ही पकड़ लिया और उनकी पीठ को चूमने लगा।

मेरा पूरी तरह अकड़ चुका लंड उनके चूतड़ों की दरार के बीच में था और मैं इस स्थिति का पूरी तरह से आनन्द ले रहा था।

मेरे हाथ उनके स्तनों को सहला रहे थे।

फिर मेरा हाथ उनकी नाभि के ऊपर से होता हुआ ‘त्रिवेनी संगम’ पर पहुँच गया।

मैं उनकी चूत के मखमली बाल नाइटी के ऊपर से ही महसूस कर रहा था।

इसके बाद मैंने उनकी नाइटी को खोलना चालू कर दिया।

नाइटी उतरने के बाद मैंने उसकी पीठ चूमनी शुरू कर दी।

अब रीमा केवल पेंटी में खड़ी थी, उनकी पीठ को चूमते हुए मैंने रीमा की पीठ पर आपने नाखूनों से सर्कल बनाने चालू कर दिए।

मैंने रीमा को पीछे से ही अपनी गिरफ्त में ले लिया।

मैंने अपने हाथ की उँगलियों से उनके स्तनों के निपल्स को मसलना चालू कर दिया।

रीमा के मुख से आनंद भरी सीत्कारें निकलने लगीं।

मैंने रीमा की पैंटी उतरने की कोशिश करी तो उन्होंने हल्का सा विरोध जताया पर मैं इस समय किसी भी विरोध के लिए तैयार नहीं था।
मैंने थोड़ा झुकते हुए रीमा के नितम्बों को चूमना शुरू कर दिया, फिर चाटना और फिर काटना।

फिर मैंने उनको अपने दोनों बाँहों में कैद कर लिया और अपने हाथों से उसके नितम्बों की नरमाई को महसूस करने लगा।
उनके गालों को चूमते हुए मैं उनको बिस्तर पर ले गया।

फिर मेरे मन में विचार आया, मैं रौशनी में उनको नग्न देखना चाहता था।

मैंने बिजली का स्विच ऑन कर दिया, जिससे रीमा दीदी शर्मा गई और तकिये से अपने आप को छुपाने लगी।

मैंने तकिये को हटा दिया और उनको निहारने लगा।
उनकी नाभि बहुत खूबसूरत लग रही थी, छोटे छोटे सुनहरी बाल नाभि से नीचे की ओर जा रहे थे, घुंघराले बाल और लाल होंठ उनकी चूत को और भी सुन्दर बना रहे थे।

मैंने रीमा की चूत को सूंधने के साथ साथ उसके घुंघराले बालों को चूमना चालू कर दिया।

मैंने अपनी निगाह उनके स्तनों पर डाली और फिर उनसे खेलने लगा।

यह एक बहुत ही सुन्दर एहसास था।
मैं उनके निपल्स से बचते हुए उनके स्तनों को चाटने लगा ताकि वो अपने चरमोत्कर्ष की बढ़ने लगें।

जब मैं उनके स्तनों को चाट रहा था तब मेरा लिंग उसकी चूत पर मालिश कर रहा था।

उनके स्तनों से खेलने के बाद मैंने उनके निपल्स को चूसना चालू किया।
मेरे मुंह में दूध का स्वाद घुल गया।

फिर मैं उनकी नाभि को चूमते हुए बालों के शुरू होने तक नीचे जाने लगा।
इसके बाद मैंने अपनी जीभ से उसकी जांघों को चाटते हुए अपने एक ऊँगली रीमा की चूत में घुसा दी जहाँ मुझे जेली के जैसे महसूस हुआ।

मैं महसूस कर रहा था कि वे स्वर्ग के जैसे महसूस कर रही हैं।
उन्होंने अपने पास पड़े तकिये को जोर से पकड़ रखा था तो मैं समझ गया कि वो चरमोत्कर्ष की ओर बढ़ रही हैं।

अब मुझसे भी रहा नहीं जा रहा था, मैंने धीरे से उसकी टांगों को चौड़ा किया और अपना लिंग उसके अंदर डाल कर उस पर सवारी करने लगा।

यह मेरी जिंदगी का सबसे बेहतरीन पल था।

मैं अपना पूरा दवाब अपने लिंग पर डाल रहा था।

कुछ देर बाद हम दोनों चरमोत्कर्ष पर पहुँच गए।

मैंने उसको होठों को धीरे से चूमा और धीरे से उसके कान में कहा ‘धन्यवाद’।

हमें पता ही नहीं चला कि कब हम एक दूसरे के साथ लिपटे हुए उसी मुद्रा में कब सो गये।

परन्तु अगली सुबह हर रोज़ की तरह उसने सवेरे 7 बजे मुझे चाय के लिए आवाज़ दी और नहाने के लिए कहने लगी।
मैं पूरी तरह हैरान था कि उनका व्यवहार हर रोज़ की तरह सामान्य था।

मैंने उठने की कोशिश की तो महसूस किया कि मैं पूरी तरह नग्न हूँ।

उन्होंने मेरी ओर देखा और ज़मीन पर पड़ी मेरी लुंगी उठा कर मुझे दे दी।

उन्हें देख कर नहीं लग रहा था कि हम दोनों के बीच रात में कुछ हुआ है।

हे रब, कोई आदमी औरत को कैसे समझ सकता है?
औरत एक रहस्य से भरी पुस्तक है, इस पुस्तक के व्यावहारिक अध्ययन के लिए हमारी पूरी जिंदगी भी कम है।

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