हेड गर्ल बनने के लिए-3

(Head Girl Banne Ke Liye- Part 3)

निधि सेठ 2009-09-10 Comments

This story is part of a series:

सर ने मेरी कमीज उतारी, मैंने भी धीरे धीरे उनकी शर्ट के बटन खोले, उनकी छाती पर होंठ रगड़ दिए।
‘वाह मेरी जान, तुम्हें तो बहुत कुछ आता है!’
‘क्या सर? आप भी ना! अपनी पत्नी से मजा नहीं मिलता क्या आपको?’
‘उसमें और तुझ में कितना अंतर है! वो उमरदराज़, तुम हसीन कलि हो!’

मैंने उनकी शर्ट पूरी अलग कर दी। उन्होंने मुझे दबोच लिया, मेरी ब्रा खोल मेरे बड़े बड़े मम्मों से खेलने लगे, दबाने लगे, चूसने लगे। बीच बीच कभी हल्का सा काट भी लेते।
मैंने हाथ नीचे ले जा उनके लण्ड को थाम लिया। पूरा खड़ा था उनका!

उन्होंने अपनी पैंट भी उतार फेंकी, मैंने उनका अंडरवीयर उतार फेंका। उनका लण्ड काफी दमदार दिखता था।
‘कैसा लगा मेरी जान?’
‘बहुत प्यारा!’
बोले- जो चीज़ प्यारी लगे, उसको उसी पल चूम लेना चाहिए, प्यार बढ़ता है!’
मैंने आँख मारी- सही कहा सर आपने!

मैंने झट से उनका लण्ड मुँह में भर लिया और मजे ले लेकर चूसने लगी।
‘हाय मेरी जान, लण्ड चुसवाने में इतना मजा मिलता है!’
उन्होंने मेरे मम्मे दबा दबा कर लाल कर दिए थे।
‘सर, धीरे दबाओ! भाग नहीं रही हूँ मैं!’

फिर वो मेरी चूत को चाटने लगे, जुबां को घुमा घुमा नज़ारे देने लगे। मैं भी गाण्ड उठा उठा कर चूत चटवा रही थी।
‘सर अब रहा नहीं जा रहा, जल्दी से इसको मेरी चूत में घुसा डालो!’
‘यह ले मेरी रानी!’ उन्होंनें टांगें पकड़ ली और लण्ड घुसा दिया। जोर जोर से पेलने लगे तो अह अह उह उह और और अह अह उह उह कर उनको और उकसाने लगी। ‘साली रंडी घूम जा! घोड़ी बन जा! तेरी माँ की चूत! साली रंडी कहीं की!’
‘मादरचोद, कमीने और फाड़ मेरी! बेटी की उम्र की लड़की की चूत को उधेड़ डाल! फाड़ डाल!’
‘तेरी माँ का भोसड़ा! कुत्ती कमीनी! झेल मेरा लण्ड!’
‘हाय-हाय!’
‘झेल! यह ले!’

जोर जोर से झटके लग रहे थे। जैसे ही मैं झड़ी, उनका भी लण्ड भी पिंघल गया और पूरा निचोड़ कर हाँफने लगे।
‘मजा आया सर?’
‘हाय बिल्लो, तुमने इतना सुख दिया है, क्या बताऊँ! ऐसी गर्म औरत नहीं मिल रही थी जो गाली दे दे कर चुदवाये!’
‘चलें सर?’
‘नहीं रानी, दिल अभी भरा नहीं!’

कुछ ही देर में मैंने उनका लण्ड चूस कर तैयार कर दिया। मेरी गाण्ड को चाटने लगे, उंगली घुसाने लगे।
‘क्या इरादा बना बैठे हो जनाब?’
बोले- घोड़ी बन!
जैसे ही मैं घोड़ी बनी, गीला लण्ड मेरी गाण्ड में घुसाने लगे।
लण्ड मजे से घुस गया और चुदने लगी मैं।
‘वाह! क्या गाण्ड भी मरवा रखी है?’
‘क्या कहूँ सर! अब लड़के कहाँ छोड़ते हैं?’

उस दिन सर को जवानी के ऐसे जलवे दिखाए कि सर ने मुझे फर्स्ट मॉनीटर और उसको सेकंड मॉनीटर बना दिया।
‘क्या हुआ? कहा था ना मुझे चुनौती बहुत पसंद है!’
‘उतरवा दिया ना ओहदे से!’
‘कोई बात नहीं! सर को तुमने रिझा लिया लेकिन दो हफ़्तों बाद स्कूल की हेड गर्ल चुननी है, उसमे प्रिंसीपल सर की चलेगी। वो जानते हैं कि मैं कितनी होशियार और सही लड़की हूँ।’
‘ओह! तो अब तुम मुझे नई चुनौती देने लगी हो? शुक्रिया बताने के लिए! अब तेरी हेकड़ी फिर उतारूँगी। वो कौन सा खुदा है? है तो वो भी इंसान! चाहे प्रिंसीपल है, चाहे टीचर!’

एक दिन सर ने मुझे अपने कमरे में बुलाया, बोले- कितने दिन हो गए रानी तेरी चूत मारे! कोई जगह ही नहीं मिलती, होटल में खतरा है दोनों के लिए। आज यहाँ ही मजे लेंगे, ज्यादा कपड़े नहीं उतारेंगे।’

कमीज़ उठा कर सर मेरे मम्मे दबाने लगे, फिर मेज़ पर लिटाया, सलवार उतारी, सीधे लण्ड को घुसा दिया। झटके देने लगे। साथ में मेरे चुचूक चूसे जा रहे थे।
दोनों का काम तमाम हुआ ही था कि दरवाज़ा खटका।
हमने जल्दी से कपड़े दुरुस्त किये लेकिन सलवटें रह ही गई।
दरवाज़ा खोला तो बाहर प्रिंसिपल सर थे- तुम यहाँ?
‘हम पहले सेमेस्टर का पेपर सैट कर रहे थे।’
‘दरवाज़ा बंद करके?’ बोले- देखो, अगर ऐसा वैसा काम करना हो तो यहाँ मत किया करो।
बोले- बेटी, सलवार का नाड़ा लटक रहा है।
शायद जल्दी में लटका ही रह गया है। शर्म से मेरी गालें लाल हो गई।
‘क्या हुआ? चेहरा झुक क्यूँ गया? सुखदेव सिंह जी, बच्ची है, जरा ध्यान रखा करो।’

बाकी अगले भाग में ज़ारी रहेगा।
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