कुछ मनोरंजन हो जाये

shil912219 2007-10-18 Comments

प्रेषिका : शिल्पा त्रिपाठी

प्रिय पाठको, मैं शिल्पी उम्र बीस साल लक्ष्मीनगर, दिल्ली में रहती हूँ। जब मैं छटी कक्षा में थी तो मेरी माँ ने मुझे शिमला पढ़ने भेज दिया। ग्यारहवीं तक तो मैंने वहीं पढाई की लेकिन जब मैं बारहवीं में पहुँची तो मेरे साथ एक अजीब घटना घट गई। आज मैं आप सबको वही घटना बताने वाली हूँ।

शिमला में हमारा अपना एक छोटा सा घर था। मम्मी-पापा दिल्ली में रहते थे तो शिमला का घर खाली पड़ा था। ग्यारहवीं तक मैं हॉस्टल में थी लेकिन बारहवीं में जाने के बाद मैं अपने घर में रहने लगी। मैं खूबसूरत हूँ, कोई भी लड़का मुझे देख कर आह भरे बिना नहीं रह सकता, उस पर 32-25-32 की 18 साल की जवानी भी थी। मैं नए ज़माने की लड़की थी इसलिए कपड़े भी सेक्सी पहनती थी। मेरे घर के सामने एक और घर था उसमें चार लड़के रहते थे वो एक साथ बी.ए तृतीय में पढ़ते थे, उम्र में वो मुझसे लगभग चार साल बड़े थे।

जिस दिन से मैं अपने घर में रहने आई, उनकी नज़र मुझ पर रहती थी। मेरे घर के सामने एक बरामदा था जिसमें कुर्सी लगी थी। मैं अकसर शाम के समय वहाँ बैठ कर पढ़ती थी। घर में कोई और तो था नहीं, सिर्फ एक खाना बनाने वाली थी, समय से आती खाना बना कर और सफाई करके चली जाती।

एक दिन मैं स्कूल से घर आई तो देखा कि चार में से एक अपने घर के बाहर खड़ा होकर मेरे घर की तरफ देख रहा है। मैं उसका इरादा समझ गई। जवानी मेरी भी काबू में नहीं थी, घर में आकर मैं शीशे के सामने खड़ी हो गई और खुद को देखने लगी। मैंने जानबूझ कर दरवाजा खुला छोड़ दिया ताकि वो मुझे देख सके।

मैंने अलमारी से अपने लिए काले रंग की सिल्क की ब्रा और पैंटी निकली और फिर शीशे के सामने आ गई। वो अब भी लगातार मेरे कमरे में देख रहा था, शीशे में मुझे वो दिख रहा था।

मैंने अपने शर्ट के बटन खोल दिए और धीरे से उसे अपने शरीर से अलग किया। वो देख कर थोड़ा सजग हो गया, उसने अंदर से अपने तीनों दोस्तों को भी बुला लिया।

मैं स्कूल ड्रेस के नीचे ब्रा और पैँटी नहीं पहनती थी। मैंने पहले पैंटी पहनी और फिर स्कर्ट भी उतार दिया अब वो चारो मुझे पीछे से केवल पैंटी में देख रहे थे। फिर मैंने ब्रा पहनी और उसी तरह घूम कर शीशे की तरफ पीठ करके अपना हुक बंद किया। मेरी चूचियाँ और चिकनी नाभि देख कर वो चारों वासना के सागर में गोते लगाने लगे।

फिर मैंने अलमारी में से एक नीली स्कर्ट और गुलाबी टॉप निकाली और वापिस शीशे के सामने आ कर मैंने स्कर्ट पहना जो घुटने के कुछ ऊपर तक ही था। फिर टॉप जो चूचियों के कारण नाभि के ऊपर ही अटक जाता था। फिर मैं घूम के दरवाजे तक आई और ऐसा दिखाया कि मैंने उन्हें देखा ही नहीं।

थोड़ी देर बाद मैं किताब ले कर बाहर कुर्सी पर बैठ गई वो चारों अब भी वहीं थे, मेरी गोरी टांगें और चूचियाँ देख देख कर पागल हुए जा रहे थे।

तभी खाना बनाने वाली आ गई, लगभग डेढ़ घंटे तक वो घर में रही, खाना बनाया और फिर बाहर आकर बोली- मैंने खाना बना दिया है, खा लेना ! अब मैं जाऊँ?

मैंने कहा- ठीक है, जाओ !

अब मैं निश्चिंत थी। मेरे दिमाग में घूम रहा था कि मैं कैसे उनमें से किसी एक को कमरे में बुलाऊँ !

तो मैं थोड़ी देर बाद खुद ही उनके कमरे के तरफ चल पड़ी। वहाँ पहुँच कर मैंने उनमें से एक से कहा- सुनिए !

वो मेरी तरफ देखने लगा। उन्हें डर लगने लगा कि कहीं मैंने उन्हें देख तो नहीं लिया।

तभी मैंने कहा- जी मुझे एक सवाल नहीं आ रहा ! अगर आप में से कोई बता दे तो ?

मेरा इतना कहना था कि चारों एकदम खुश हो गए, लेकिन उनमें से एक राकेश मेरे साथ मेरे कमरे में आया। दरवाजे से अंदर आते ही उसने कहा- आप यहाँ अकेली रहती हैं क्या ?

मैंने कहा- हाँ ! क्यों ?

वो कहने लगा- नहीं, आप लड़की हैं और अकेली ?

मैंने दूरी कम करने के लिहाज से कहा- पहले तो आप मुझे आप नहीं कहेंगे क्योंकि मैं आप से छोटी हूँ ! और मैं छटी कक्षा से घर से बाहर रह रही हूँ इसलिए अब आदत हो गई है।

मैं उसे सीधे अपने सोने के कमरे की तरफ ले गई बिस्तर की तरफ इशारा किया और कहा- बैठिये !

और किताब ले आई। मैं उसके सामने पैर पर पैर चढ़ा कर बैठ गई। उसकी नजर मेरी गोरी टांगों पर थी। मैं समझ रही थी।

मैंने थोड़ा और नजदीक आकर पूछा- आप चारों एक साथ रहते हैं?

उसने कहा- हाँ !

उसकी नजर अब भी मेरी टांगों पर थी। फिर मैंने किताब का पन्ना पलट कर एक सवाल उसके सामने रख दिया। वो तेज था, उसने तुरंत सवाल हल कर दिया।

मैंने खुश होते हुए कहा- धन्यवाद, आपने मुझे कल टेस्ट में फ़ेल होने से बचा लिया ! अगर बुरा न माने तो क्या आप लोग आज रात का खाना मेरे साथ खाना पसंद करेंगे?

एक लड़की का सीधा आमंत्रण पा कर कोई जवान लड़का मना कैसे करता ! उसने कहा- लेकिन आपको तकलीफ होगी !

मैंने कहा- तकलीफ कैसी? नौकरानी खाना बना कर गई है। अपने मेरी इतनी मदद की है तो यह तो मेरा फ़र्ज़ है !

फिर उसने हाँ में सर हिला दिया। फिर वो बाहर की तरफ चल पड़ा। मैं उसे छोड़ने दरवाजे तक आई और जाते जाते उससे कहा- भूलिएगा मत ! ठीक नौ बजे !

उसने कहा- ठीक है !

मेरा मन जैसे झूम उठा, मेरी सहेलियाँ मुझे उनकी चुदाई की कहानियाँ बताती थी, मेरा भी मन करता था कि मेरे पास भी काश मुझे भी कोई चोदने वाला होता ! अब तक मैं बिलकुल कुँवारी थी, किसी ने हाथ भी नहीं लगाया था। लेकिन आज मेरी कुँवारी बुर हसीन सपने देख रही थी।

मैं बाथरूम गई और अपनी बुर को अच्छी तरह से साफ किया और उससे कहा- बस मेरी सहेली, आज तेरा इंतजार खत्म ! आज मैंने तेरे लिए चार-चार लौड़ों का इंतजाम किया है !

फिर मैं तैयार हो कर बाहर आकर कुर्सी पर बैठ गई और नौ बजने का इंतजार करने लगी। ठीक नौ बजे वो चारों घर से निकले, मैंने उन्हें घर से निकलते देख लिया था इसलिए मैं सोने का नाटक करने लगी।

वो चारों आये और मुझे सोता देख कर चुपचाप मेरे आसपास खड़े हो गए। नियत तो उनकी खराब थी लेकिन कुछ करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

तभी एक ने आवाज दी- सुनिए !

मैंने चौंक कर जागने का नाटक किया- ओह, आप लोग ! सॉरी, मेरी आँख लग गई ! आईये !

मैं उन चारों को लेकर अंदर आई, वो चारों मेरे पीछे पीछे मेरी मस्त चूतड़ देखते हुए चलने लगे।

फिर राकेश ने पूछा- आपका नाम क्या है?

मैंने कहा- शिल्पी ! और आपका ?

उन्होंने बारी-बारी अपना नाम बताया- राकेश, अमित, दिलीप और अजय !

मैंने कहा- खाना अभी खायेंगे या थोड़ा ?

उन्होंने पूछा- मतलब?

मैंने कहा- मतलब कुछ मनोरंजन हो जाये तो !

उन्होंने फिर पूछा- मतलब?

मैंने कहा- आप लोग पीने का शौक रखते हैं?

तो राकेश ने कहा- पीने का ? आप पीती हैं क्या ?

मैंने कहा- कभी कभी ! आप लोग ?

उन्होंने हाँ में सर हिला दिया।

मैंने उनको सोफे पर बैठने का इशारा किया और एक वोदका की बोतल और पांच गिलास ले आई। अमित एक तरफ, अजय एक तरफ और राकेश और दिलीप एक सोफे पर बैठे थे। मैं जब आई तो राकेश और अमित दोनों उठने लगे।

मैंने कहा- बैठे रहिये ! आप लोग मेरे मेहमान हैं !

और मैं राकेश और दिलीप के बीच में आकर बैठ गई।

इतनी खूबसूरत लड़की को अपने साथ बैठे देख कर चारो के लण्ड उछलने लगे होंगे। मैंने पेग बनाया और सबने लिया। दो पेग के बाद हल्का हल्का नशा चढ़ने लगा और बातें खुलने लगी।

दिलीप जो एकदम मुझसे चिपक कर बैठा था, मैंने उसकी जांघ पर अपना हाथ रखते हुए कहा- और बताईये क्या खातिर की जाये आपकी?

दिलीप हल्का सा आगे सरकता हुआ बोला- अजी कुछ नहीं !

उन्हें लगने लगा था कि मुझे नशा हो रहा है और उन्होंने सोचा कि इसका फायदा उठाया जाये।

तभी राकेश ने पूछा- अच्छा शिल्पी, एक बात पूछूँ ? बुरा तो नहीं मानोगी ?

मैंने थोड़ा सा झूमते हुए कहा- नहीं ! पूछो ना !

उसने पूछा- डू यू हैव ए बॉयफ़्रेंड ?

मैंने कहा- था ! पर अब नहीं ! हम दोनों ने झगड़ा कर लिया।

इससे उनकी हिम्मत बढ़ी, अजय बोला- अच्छा तो केवल फ्रेंडशिप थी या ?

मैंने बात काटते हुए कहा- नहीं, हम रिलेशनशिप में भी थे !

राकेश बोला- तो सेक्स ?

मैंने कहा- हाँ !

अब तक मैं दिलीप की पैंट पर लगातार अपना हाथ बार बार हिला रही थी और दिलीप का लण्ड एकदम खड़ा हो गया था।

वो मेरी तरफ झुकते हुए बोला- तो अब ?

ऐसा करने से उसका पैर मेरे पैर से छूने लगा था और मेरा हाथ अपने आप हिल के और उपर आ गया।

मैंने कहा- अब कहाँ ? अब तो किसी का इंतजार है !

उसने तुरंत कहा- हमारे बारे में क्या ख्याल है ?

मैं उसकी तरफ झुकते हुए बोली- उम्मं ! ख्याल बुरा नहीं है !

मेरा इतना कहना था कि उसका हाथ बढ़ा और मेरे कन्धों पर आ गया। उसने मुझे गर्दन से पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और मेरे होंठों से अपने होंठ सटा दिए। मेरा हाथ बरबस ही उसके लंड की तरफ बढ़ गया। जैसे मेरी मुराद पूरी हो गई। उसी हालत में चूमते-चूमते राकेश ने मेरी कमर पर हाथ रखा। दिलीप अपने दाहिने हाथों से मेरी चूचियाँ दबा रहा था। थोड़ी देर बाद उसने मुझे छोड़ा और अपनी पैंट की जिप खोलने लगा। मेरा हाथ अब भी वहीं था।

वो चारों अब तक समझ चुके थे कि मैं क्या चाहती हूँ !

फिर दिलीप अपने पैंट की ज़िप खोलने लगा मेरा हाथ अब भी वहीं था, मैं यह सब पहली बार कर जरूर रही थी लेकिन मुझे अच्छी तरह पता था कि दाल में तड़का कब और कैसे मारना है।

मैंने इंटरनेट पर और सीडी पर भी कई ब्लू फिल्में देखी हैं। राकेश पीछे से मेरी दोनों चूचियाँ पकड़ कर रगड़ने लगा। दिलीप का लंड अब मेरे हाथ में था और मैं धीरे धीरे उसकी मुठ मारने लगी। उसका लंड लगभग 6 इंच लंबा था।

मैंने मुस्कुरा कर अजय की तरफ देखा, वो उठ कर मेरी तरफ आया और वो उठ कर मेरे पैरों के पास मेरे दोनों घुटनों को पकड़ कर अपने घुटनों के बल बैठ गया। मेरी सिल्की ब्लू स्कर्ट मेरी दूधिया टांगों पर घुटनों के ऊपर तक थी।

फिर मैंने दिलीप की ओर देखते हुए उसके लंड अपनी जीभ से एक बार चाटा और उसे ऊपर के हिस्से को दोनों होंटों के बीच में दांतों के पहले दबा कर चूसने लगी। दिलीप की सिसकारी छुट गई, राकेश ने मेरी टॉप ऊपर कर दी और मेरी ब्रा के हुक खोल दिए।

अजय ने मुझे कूल्हों से पकड़ कर आगे की तरफ खींचा और मेरी बुर की तरफ झुक गया। फिर उसने मेरी पैंटी खींच कर निकाल दी।

मैं दिलीप का लण्ड मुँह में लेकर जोर जोर से चूसने लगी। हालांकि उस समय मुझे उसका स्वाद कुछ अजीब लगा लेकिन जैसे जैसे मेरे जीभ का रस उस पर गिरता गया, फिर वही मुझे अच्छा लगने लगा।

अजय अब मेरी बुर को अपनी जीभ से चाटने लगा। उसने खींच कर मेरी स्कर्ट भी उतार दी और जीभ से कुत्तों की तरह कुरेद-कुरेद कर चाटने लगा जैसे मेरे तन की सारी आग मेरी बुर में जा समाई हो !

इसी आनंद में मैं दिलीप का लण्ड जोर-जोर से चूसने लगी। उसकी सिसकारियाँ बढ़ने लगी थी। मुझे आभास हुआ कि वो झड़ने वाला है। वो मेरा सर दोनों हाथों से पकड़ कर मेरे मुँह में जोर-जोर से चोदने लगा। तभी अचानक जब वो एकदम झड़ने वाला था वो मेरा मुँह हटाने लगा। मैंने उसे हटाने नहीं दिया और उसका लंड पागलों की तरह चूसती रही।

अजय मेरी बुर को रगड़-रगड़ कर बेहाल किये हुए था लेकिन मुझे मजा आ रहा था, मुझे नशा चढ गया था और मुझे यह नहीं पता था कि मैं क्या कर रही हूँ।

इधर दिलीप जोर जोर से सिसकारियाँ भरता हुआ मेरे मुँह में ही झर गया और इसी आवेश में मैं भी झर गई। मैंने सारा रस अपने मुँह में ले लिया और पी गई और उसका लंड चाट कर साफ कर दिया। उधर अजय मेरी बुर को अभी भी चाटे जा रहा था। दिलीप ने मुझे चूते हुए कहा- कहीं और चलें?

मैंने कहा- कहाँ चलेंगे? बेडरूम में चलें?

उसने कहा- यह ठीक रहेगा !

फिर हम सब बेडरूम की तरफ चल दिए। मैं आगे आगे चल रही थी मेरा टॉप और ब्रा अब भी मेरे कन्धों में फंसा हुआ था। मैंने चलते में ही उन्हें उतार कर जमीन पर गिरा दिया। बेडरूम में आकर मैं बिस्तर पर बैठ गई।

राकेश ने अपनी पैंट खोल दी और मेरी तरफ आया। मैं पीछे सरकते हुए बिस्तर के दूसरे कोने पर पहुँच गई। राकेश मेरे पीछे-पीछे ठीक मेरे ऊपर से होता हुआ मेरे चेहरे तक आया और मुझे चूम कर कहने लगा- हाय मेरी जान ! आज तो तूने रात बना दी !

और धीरे धीरे नीचे सरकने लगा और मेरी चूचियाँ चूसने लगा। बाकी भी अब तक अपने कपड़े उतार कर मेरे अगल-बगल आकर खड़े हो गए।

अब मुझे चार-चार लण्ड एक साथ देख कर भय हुआ कि अब मेरी कुँवारी बुर का क्या होगा !

दिलीप अब मेरी बुर को जोर जोर से उँगलियों से छेड़ने लगा, राकेश मेरी चूचियाँ चूस रहा था और अमित जो अब तक कुछ नहीं कर रहा था, वो अपना लण्ड लेकर मेरे मुँह के सामने खड़ा था।

मेरे दाहिने हाथ में अजय का लंड था।

और सबकी तो कोई बात नहीं लेकिन अमित का लण्ड देख कर मुझे डर लगने लगा। उसका लंड लगभग 8 इंच लंबा था !

खैर जैसे तैसे मैं उसके लंड को चूसने लगी और अजय के लंड की जोर-जोर से मुठ मारने लगी। पूरा कमरा सिसकारियों से गूंज रहा था।

राकेश लगातार कभी चूचियाँ तो कभी नाभि चूस रहा था। लेकिन अमित का लण्ड मेरे मुँह में ठीक से जा नहीं रहा था, उसके बार-बार आने जाने से मेरे मुँह के किनारे फट गए थे।

अब राकेश ने मुझे चोदने के लिए अपना लण्ड ले जा कर मेरी कुँवारी बुर पर लगा दिया। पहली बार बुर पर लण्ड लगते ही ऐसा लगा मानो अब बस स्वर्ग मिलने वाला है।

मैंने अपनी दोनों टांगे फैला दी और उसने लण्ड का दबाव देना शुरू कर दिया।

मुझे दर्द महसूस होने लगा, मैं भीतर से एकदम सिहर गई और उसका लंड फिसल गया।

मैंने अमित का लण्ड मुँह से निकालते हुए कहा- बहुत दर्द हो रहा है !

दिलीप तुरंत ड्रेसिंग टेबल से हैण्ड-लोशन ले आया। अमित ने दोबारा अपना लंड मेरे मुँह में डाल दिया। दिलीप ने अपने हाथों से लोशन निकाल कर मेरी बुर में अंदर तक लगाया और राकेश ने अपने लण्ड पर ! फिर राकेश मेरी बुर से अपना लंड लगा कर दबाव देने लगा। दर्द अब भी हो रहा था लेकिन लोशन की वजह से उसका लंड अचानक फिसल कर मेरी बुर को चीरता हुआ अंदर आधा घुस गया।

मेरी चीख निकल गई होती अगर अमित का लण्ड मेरे मुँह में नहीं होता तो !

मुझे बहुत तेज दर्द हो रहा था, ब्लीडिंग हो रही थी।

यह देख कर राकेश ने कहा- यह देख यार ! यह तो कोरी है !

दिलीप ने कहा- सच? उसने कहा- हाँ ! देख खून बह रहा है !

यह सुन कर मुझे लगा कि पता नहीं क्या हो गया, मुझे दर्द का एहसास और तेज होने लगा, मैं छटपटाने लगी।

लेकिन राकेश ने मुझे कमर से पकड़ कर धक्के मारना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद ही मेरा दर्द कम हो गया और मुझे मजा आने लगा। उसके धक्के अब तेज हो गए थे। अजय का लण्ड मेरे मुँह में था और दिलीप मेरी गांड में लोशन लगा कर एक ऊँगली डाल कर अंदर-बाहर करने लगा। थोड़ी देर बाद राकेश अपना लण्ड निकाल कर मेरे मुँह की तरफ आ गया और मैं उसका लण्ड चूसने लगी।

और अजय अपना लण्ड मेरी बुर में डालने की कोशिश करने लगा लेकिन मेरा डर अभी बाकी ही था। फिर दिलीप ने अजय के कान में कुछ कहा और वो हट गया।

दिलीप ने मुझे उठने का इशारा किया और मैं उठ गई। वो मेरी जगह जा कर लेट गया और मुझसे अपने ऊपर आने के लिए कहा।

मैं समझ गई कि वो मेरी गांड मारने के लिए कह रहा है लेकिन मैं फिर भी उसकी तरफ बढ़ गई और अपनी गांड उसकी तरफ करके कुतिया बन गई। वो मेरी गांड से अपना लंड सटा के जोर लगाने लगा। अचानक उसका लंड मेरी गांड में घुस गया। अब मैं दर्द से चीख पड़ी और आगे की तरफ बढ़ गई। दिलीप ने मेरी कमर पकड़ कर मुझे रोक लिया और धक्के देने लगा। कुछ देर उसी तरह धक्के लगाने के बाद मेरा दर्द जब कुछ कम हुआ तो मुझे उसी तरह उठाया कर पीछे की तरफ लेट गया।

अब मैं उपर थी और मेरी बुर के ठीक अमित अपना लंबा लंड लिए खड़ा था। उसने झुक कर अपना लण्ड मेरी बुर पर लगा लिया और अजय का लंड मेरे हाथों में था, मैं उसे चूस रही थी।

लेकिन तभी अमित ने एक जोर का झटका मारा, जुल्मी ने पूरा लण्ड एक बार में अंदर डाल दिया। मैंने अजय के लंड को काट ही लिया था। वो जोर जोर से धक्के देने लगा। मुझे दर्द तो बहुत हो रहा था लेकिन मजा भी बहुत आ रहा था।

दिलीप नीचे से मेरी गांड में और अमित ऊपर से मेरी बुर में जोर जोर से धक्के मार रहे थे। अचानक धक्के मारते-मारते दिलीप मेरी गांड में ही झर गया और अपना सारा रस मेंरी गाण्ड में डाल दिया। उसके रस मेरी गांड गीली हो गई थी।

वो हटा और तुरंत राकेश जाकर वहाँ मेरी गांड के नीचे अपना लंड लगा कर लेट गया। मैं जैसे ही उस पर बैठी, वो अंदर घुस गया। अब जब राकेश और अमित मुझे धक्के लगा रहे थे तो मुझे बहुत मजा आ रहा था।

लगभग 10 मिनट के बाद अमित मेरी बुर में और अजय मेरे मुँह में झर गया। मैंने अजय का सारा रस पी लिया और दिलीप भी अपना लंड लेकर मेरे मुँह की तरफ आ गया। मैं उसका लण्ड लेकर चूसने लगी। जल्दी ही वो भी मेरे मुँह में झर गया। इस बीच मैं लगभग तीन बार झर चुकी थी।

फिर मैं जाकर वोदका और गिलास ले आई। पेग बनाते हुए मैंने उनसे पूछा- मजा आया ?

उन सबने खुश होते हुए कहा- बहुत मजा आया !

मैंने कहा- अब खाना खा लें?

उन्होंने कहा- हाँ !

मैं कुछ खाने का सामान बाज़ार से खरीद कर लाई थी और कुछ मेरी नौकरानी बना गई थी। मैं वैसे ही नंगी रसोई में चली गई और खाना लेकर वापस आई।

हमने वैसे ही नंगे खाना खाया। खाने के बाद वो सब अपने अपने कपड़े पहनते हुए मुझ से अलविदा लेने लगे और अपने घर चले गए।

वो तो चले गए लेकिन मुझे रात भर नींद नहीं आई।

मेरे दोस्तो, जब मैंने यह सब किया तो मैं सिर्फ 18 साल की थी और आज बीस साल की ! लेकिन इन दो सालों में मैं आज जिंदगी के ऐसे मोड़ पर हूँ जहाँ से अब मैं वापस नहीं जा सकती। इन दो सालों में मेरे साथ क्या क्या हुआ, यह मैं आप सबको जरूर बताउंगी ….

[email protected]

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top