और प्यार हो गया-1

(Aur Pyar Ho Gaya-1)

सोनाली 2014-08-21 Comments

सोनाली
हैलो फ्रेंड्स, मेरा नाम सोनाली है (बदला हुआ) मेरी शादी को डेढ़ साल हो गया है और मैं गाज़ियाबाद में हाइराइज़ बिल्डिंग के एक 2 BHK फ्लैट में रहती हूँ। शादी से पहले मेरे पति एक तलाकशुदा थे। मेरे पापा के पास पैसा ना होने की वजह से मेरी शादी ऐसी जगह करवा दी गई थी। मैंने भी पापा की मजबूरी की वजह से इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया था।

अब मैं कुछ अपने बारे में आपको बताना चाहूँगी (वैसे अपनी तारीफ खुद करना मेरी आदत नहीं है लेकिन फिर भी बता रही हूँ) मैं बला की खूबसूरत हूँ। कॉलेज टाइम में ना जाने कितने ऑफर्स आए थे, पर मैंने सिर्फ़ अपने पापा की इज़्ज़त रखने के लिए ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे उन्हें नीचा ना देखना पड़े।
मैं अपने पापा की लाड़ली रही हूँ।
खैर… छोड़िए अब आगे बढ़ते हैं।

शादी होने के बाद मैं 4 महीने तक तो अपनी सुसराल में रही। फिर हम गाज़ियाबाद अपने पति के फ्लैट में शिफ्ट हो गए।
मेरे पति की अच्छी जॉब है और बहुत अच्छी सैलरी भी है लेकिन वो मेरा ना तो ख्याल रखते हैं और ना ही मेरी सेक्सुअल इच्छा का ध्यान रख पाते हैं, अन्दर डालते ही झड़ जाते हैं और सो जाते हैं।

अगर इस बारे में बात करती हूँ तो कह देते हैं कि मेरा सेक्स में इंटरेस्ट नहीं है, उन्होंने दोबारा शादी सिर्फ़ इसलिए की थी कि समाज में उनकी इज़्ज़त बनी रहे, कहीं आएँ-जाएँ तो अटपटा ना लगे।
पर मैं अन्दर ही अन्दर तड़पे जा रही थी, रोज़ अपनी किस्मत को कोसती थी।
फ़िर धीरे-धीरे खुद से ही समझौता करने लगी कि अब यही मेरी जिन्दगी है।

मैं खुद को फिट रखने लगी और अपना ध्यान खुद रखने लगी। अभी बच्चा हमने प्लान नहीं किया था रोज़ सोसाइटी में सुबह-शाम सैर करनी शुरु कर दी, एक से एक सेक्सी ड्रेस पहनती। मुझे स्लीव-लैस ड्रेसेज़ पहनने का बहुत शौक है। सूट तो मैंने पहनना छोड़ सा ही दिया था।

सुबह घर के काम निपटा कर बाल्कनी में बैठ जाती और आते-जाते लोगों को देखती या फिर कुछ भी पढ़ कर अपना समय व्यतीत करती।

एक दिन मेरी नज़र एक खूबसूरत बंदे पर पड़ी, देखने में वो बहुत सीधा-सादा और बहुत क्यूट था। वो भी अपने फ्लैट की बालकनी में खड़ा था और चोरी-चोरी मुझे देख रहा था।
मैं खुश थी कि लड़के अब भी मुझे देखते हैं। जितनी देर भी मैं बालकनी में रही, वो भी वहीं खड़ा रहा। फिर मैं शाम को सैर के लिए निकल गई, तब मैंने नोटिस किया, मैं जिस पार्क में घूम रही थी, वहीं वो बंदा एक बेंच पर बैठा कोई किताब पढ़ रहा था।

उसने शायद मुझे नहीं देखा था उस बंदे को देख कर मेरे मन में आया कि इसके बारे में कुछ पता करूँ। यह सब सोचते हुए सैर कर रही थी और उसे देखे जा रही थी कि अचानक उसकी नज़र मुझ पर पड़ गई।
वो एकदम से चौंक गया और मुझे देखते हुए मुस्कुराया। मैं भी मुस्कुरा उठी, मैंने सोचा कि वो मुझसे बात करने आएगा लेकिन वो नहीं आया, मैं घर आ गई !

अगले दिन सुबह भी मुझे वो सैर पर मिला उसी बेंच पर बैठा था और मुझे देख रहा था।
मैंने अपने मन में उसके लिए कुछ लगाव सा महसूस किया। फिर बालकनी में भी मिला और मुझे देख कर फिर मुस्कुराया। मैंने भी स्माइल पास कर दी। मेरे मन में उससे बात करने की बहुत इच्छा हुई लेकिन शुरुआत उसे ही करनी चाहिए, यह सोच कर नहीं की। उसको देख कर ही मैं खुश रहने लगी। इतना क्यूट जो था वो..!

एक दिन मैं उसके फ्लैट के बाहर से निकल रही थी तो मैंने देखा कि उसके घर से एक कामवाली बाई निकली। तभी मेरे दिमाग़ में आया कि अगर मैं इसको पार्टटाइम रख लूँ तो मुझे इस बंदे के बारे में पता चल सकता है।
मैंने उस काम-वाली से बात की और उसे पार्ट-टाइम के लिए रख लिया।

शाम को फिर से मुझे वो पार्क में मिला। अब तो रोज़ का सिलसिला ऐसे ही चलने लगा। हम रोज़ ऐसे ही एक-दूसरे को देखते और खुश हो जाते।
वो कामवाली जब मेरे यहाँ आई, तो मैंने उससे पूछा- इस बिल्डिंग में किस-किस के यहाँ काम करती हो?
तब वो अपनी राम-गाथा लेकर बैठ गई और जब उसने उस बंदे के बारे में बताना शुरू किया, तो सुन कर मैं हैरान रह गई।

उस बंदे का तलाक हो चुका था, उसकी पूर्व पत्नी बहुत बुरी नेचर की थी, उसके माता-पिता सड़क दुर्घटना में ख़त्म हो गए थे। अब वो बिल्कुल अकेला रहता है। पैसा इतना है कि उसे कुछ करने की ज़रूरत ही महसूस नहीं होती।
उसने बताया- सारे दिन लैपटॉप पर लगा रहता है और रेट्स की बात फोन पर करता रहता है।
मैं समझ गई कि शेयर-ट्रेडिंग करता होगा।

मैंने कहा- वो दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेता?
तो वो बोली- उसने मना कर दिया है और कहा है कि वो अब कभी शादी नहीं करेगा।
कामवाली आगे बोली- उसकी हालत पर उसे भी तरस आता है, वो उसे अपनी बहन मानता है!
उसकी यह बात सुन कर मेरे मन में उसकी इज़्ज़त और बढ़ गई। उसकी आँखों में मैंने हमेशा अपने लिए प्यार ही देखा था, कभी हवस की निगाहों से नहीं देखता था।

मुझे उसकी यह बात मुझे बहुत अच्छी लगती थी।
ऐसे दिन बीतने लगे, पर उसने मुझे ‘हाय’ तक नहीं बोला।
हाँ.. उसने कामवाली से मेरे बारे में पूछताछ ज़रूर की थी, जो उसने मुझे बताया। यह सुन कर मुझे खुशी हुई।
अब रोज़ मैं उसका और वो मेरा इंतजार करने लगा। किसी वजह से कोई अगर लेट हो जाए तो मुँह भी बनाने लगे, लेकिन फिर बाद खुश भी होने लगे।

एक दिन वो सुबह पार्क में नहीं आया, मुझे गुस्सा आ गया और फिर मैंने सोचा कि आज मैं बालकनी में नहीं जाऊँगी और आज मैं इसको तड़पाऊँगी, जैसे इसने मुझे तड़पाया है, लेकिन वो बालकनी में भी नहीं आया।
मैं गुस्से से पागल हो गई, मन ही मन उसको कोसने लगी, फिर मुझे लगा कि शायद किसी काम से गया होगा।
लेकिन वो शाम को भी वॉक पर नहीं आया, मैंने सोचा आज का दिन ही बुरा था, सैर करने का मन नहीं किया और घर आ गई।

सारी रात मैं उसके बारे में ही सोचती रही।
अगले दिन सुबह वॉक पर जाते हुए सोच रही थी कि वो मुझे दिखेगा, लेकिन वो नहीं आया मैं उदासमना घर आ गई।
फिर जब कामवाली आई तो उसने खुद बताया कि उसको बहुत तेज़ बुखार है और उसका ऐसे में ख्याल रखने वाला भी कोई नहीं है। मुझे उसकी बहुत चिंता होने लगी, उसको देखने के लिए मन तड़प उठा, क्या करूँ.. क्या नहीं.. कुछ समझ नहीं आ रहा था।

मन कर रहा था कि उससे मिलने जाऊँ, पर ऐसे-कैसे जाऊँ?
फिर मेरे दिमाग़ में एक आइडिया आया और मैंने कामवाली की आज की छुट्टी कर दी और तैयार होकर उसके घर पहुँच गई।
गेट पर खड़े होकर मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी, डर सा लग रहा था। लेकिन फिर मैंने हिम्मत की और घण्टी बजा दी।
अन्दर से एक दर्द भरी आवाज़ आई- गेट खुला है… अन्दर आ जाओ!

मैं डरते-डरते अन्दर घुसी, उसका घर बहुत शानदार था। एक कमरे में लाइट जल रही थी मैं उसी तरफ बढ़ गई।
मैंने देखा वो चादर ओढ़ कर लेटा हुआ था।
मुझे वहाँ देख कर वो चौंक गया और बोला- अरे आप.. आइए.. आइए..!
कह कर उठने लगा।

मैंने कहा- लेटे रहो.. लेटे रहो यार.. अगर बुखार था तो क्या मुझे नहीं बुलवा सकते थे..! हम लोग पड़ोसी हैं.. इतनी मदद तो कोई भी करता है!
यह कह कर मैं उसके पास गई और उसके माथे पर हाथ रखा, बुरी तरह तप रहा था, मैंने पूछा- दवाई ली?
तो बोला- मैंने अभी तक डॉक्टर को नहीं दिखाया है!
फिर मैंने बोला- मैं अभी आती हूँ!

कह कर मैं अपने घर आई और कुछ दवाइयाँ लाकर उसको दीं और पूछा- किस डॉक्टर को दिखाते हो?
तो वो बोला- नहीं.. आप रहने दीजिए.. मैं मैनेज कर लूँगा..
मैं उसे अपनी गाड़ी से ज़बरदस्ती डॉक्टर के यहाँ ले गई, दवाई दिलवा कर उसके घर पहुँचाया और उसके लिए नाश्ता बनाया।
फिर अपने हाथों से खिलाया और उसके पास बैठ कर बातें करने लगी।

मैंने पूछा- आपका नाम क्या है?
बोला- मेरा नाम अमित है!
फिर मैंने उसे अपना नाम बताया और इधर-उधर की बातें करने लगी। वो अब कुछ अच्छा महसूस कर रहा था और मेरे साथ धीरे-धीरे खुल रहा था। शाम कब हो गई, पता ही नहीं चला।
मैंने कहा- अब मैं घर जा रही हूँ और डिनर लेकर आऊँगी.. तब तक आप आराम करो और किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो ये मेरा नंबर है.. कॉल करना..!

फिर वो औपचारिकता की बातें करने लगा, ‘थैंक्स’ वग़ैरह करने लगा।
मैं ‘इट्स ओके..!’ कह कर घर आ गई, लेकिन मेरा मन वहीं रह गया था।
कहानी जारी रहेगी।
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