पेट

फ़ुलवा 2014-07-07 Comments

मजदूरी करते रज्जो थकी नहीं थी क्योंकि यही उसका पेशा था। बस सड़क की सफाई करते ऊब सी गई थी।
अब वह किसी बड़े काम की तलाश में थी जहाँ से ज्यादा पैसा कमा सके जिससे वह अपने निठल्ले पति का पेट भरने के साथ ही उसकी दारू का भी इंतजाम कर सके।

शहर से कुछ दूर एक बहुमंजिला अस्पताल का निर्माण हो रहा था, रज्जो की नजर बहुत दिनों से वहाँ के काम पर थी, वहाँ अगर काम मिल जाए तो मजे ही मजे।

एक बार काम से छुट्टी होने पर वह वहाँ पहुँच गई लेकिन बात नहीं बनी क्योंकि फिलहाल वहाँ किसी मर्द की जरूरत थी। उस दिन देर से घर पहुँची तो इन्तजार बबुआ ने पूछ लिया- इत्ती देर कहाँ लगा दी?
रज्जो एक नजर खसम के चेहरे पर डालते हुए बोली- अस्पताल गई थी।
‘काहे? बच्चा लेने?’ खोखली हंसी हंसते बबुआ ने पूछा।
‘और का… अब तू तो बच्चा दे नहीं सकता, वहीं कहीं से लाऊंगी।’ रज्जो ने भी मुस्कराते हुए उसी अंदाज में उत्तर दिया।
‘बड़ी बेशरम हो गई है री…’ बबुआ ने खिलखिलाते हुए कहा।
‘चल काम की बात कर… ‘
‘कब से तेरा रास्ता देखते आंखें पथरा गई। हलक सूखा जा रहा है। भगवान कसम, थोड़ा तर कर लूं। ला, दे कुछ पैसे…’ बबुआ बोला।

रज्जो बिना किसी हीला हवाली के अपनी गांठ खोल बीस रुपए का मुड़ा-तुड़ा नोट उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा- ले मर…’
खींस निपोरते हुए बबुआ नोट लेकर वहाँ से चला गया।

थोड़ी देर में वह लौटा तो हमेशा की तरह नशे में धुत्त था। रज्जो मन मसोसकर रह गई और चुपचाप थाली परोसकर उसके सामने रख दी, भूखे जानवरों सा वह खाने पर टूट पड़ा।

खाना खाते-खाते बबुआ ने एक बार फिर पूछा- सच्ची बता री तू अस्पताल काहे गई थी?
रज्जो उसकी बेचैनी पर मुस्कराते हुए बोल-, क्यों पेट पिराने लगा? अरे मुए… मैं वहाँ काम के जुगाड़ में गई थी। सुना है वहाँ जादा मजदूरी मिले है… एक सौ पचास रुपए रोज।’
‘एक सौ पचास रुपए?’ बबुआ की बांछें खिल गई।

‘बोल… करेगा तू काम? तेरे लिए वहाँ जगह है।’ रज्जो ने पूछा।
बबुआ खिलखिला पड़ा- मैं और काम… काहे? तू मुझे खिला नहीं सकती क्या?
‘अब तक कौन खिला रहा था, तेरा बाप?’ रज्जो ने पलटकर पूछ लिया।

‘देख रज्जो सच बात तो यो है कि मेरे से काम न होए है, तू तो जानत है हमार हाथ-पैर पिरात रहत हैं।’
‘रात को हमरे साथ सोवत समय नाही पिरात? तेरे को बस एक ही काम आवे है वह भी आधा-आधूरा… नामर्द हीजड़ा कहीं का।’ रज्जो उलाहना देते हुए बोली पर बबुआ पर इसका कोई असर नहीं हुआ।

‘ठीक है तू मत जा, मैं चली जाऊं वहाँ काम पर?’ रज्जो ने पूछा।
नशे में भी बबुआ जैसे चिंता में पड़ गया- कौन ठेकेदार है?
‘हीरालाल…’
‘अरे वू… वू तो बड़ा कुत्ता-कमीना है।’ बबुआ बिफर पड़ा।
‘तू कैसे जाने?’
‘मैंने उसके हाथ के नीचे काम किया है।’ बबुआ ने बताया।
‘मुझे तो बड़ा देवता सा लागे है वो… ‘ रज्जो ने प्रशंसा की।
‘हूं, शैतान की खोपड़ी है पूरा… ‘ बबुआ गुस्से में बहका।
‘फिर ना जाऊं?’ रज्जो ने पूछा।

बबुआ सोच में पड़ गया। उसके सामने पचास-पचास के गुलाबी नोट फड़फड़ाने लगे और इसके साथ ही विदेशी दारू की रंग-बिरंगी बोतलें भी घूमने लगी इसलिए उसने इजाजत के साथ चेतावनी भी दे डाली- ठीक है चली जा पर संभलकर रहियो वहाँ, बड़ा बदमाश आदमी है हीरालाल।

एक दिन समय निकालकर और हिम्मत जुटाकर रज्जो फिर ठेकेदार हीरालाल के पास पहुँच गई। इस बार वह निर्माण-स्थल के बजाय उसके डेरे पर गई थी।
‘क्या बात है? फिर आ गई… ‘ हीरालाल ने पूछा।
‘काम चाहिए और का?’ रज्जो मुस्कराते हुए बोली।

‘तेरे लिए काम कहाँ है? मेरे को चौकीदारी के लिए मरद चाहिए… अब तुझे चौकीदार रखूंगा तो मुझे तेरी चौकीदारी करनी पड़ेगी।’ रज्जो के जिस्म के मस्त बड़े बड़े उभारों पर ललचाई नजरें फिसलाते हुए हीरालाल भौंडी हंसी में खिलखिला लगा।
‘मेरा मरद तो काम करना ही न चाहे।’ रज्जो ने बताया।
‘तो मैं क्या करूं?’ हीरालाल लापरवाही से बोला।

रज्जो निराश नहीं हुई। उसे वहाँ काम करने वाली मजदूरनी की नसीहतें याद आ गई। उसने बताया था कि अगर तू थोड़ा गिड़गिड़ाएगी, मिन्नतें करेगी तो ठेकेदार पिघल जाएगा, रज्जो ने वही पैतरा अपनाया- बाबूजी आप नौकरी नहीं देंगे तो हम भूखों मर जाएगें।

‘देख भाई इस दुनिया में सभी भूखे हैं। तू भूखी है तो मैं भी भूखा हूँ। ऐसा कर तू मेरी भूख मिटा मैं तेरा और तेरे परिवार की भूख मिटाता हूँ।’ आँख मटकाते हुए हीरालाल ने सीधा प्रस्ताव किया।
रज्जो सोच में पड़ गई।
‘सोचती क्या है… काम मेरे घर करना, हाजिरी वहाँ लग जाया करेगी।’
‘अपने मरद से पूछकर बताऊंगी।’ रज्जो ने कहा।
‘अरे उस बबुआ के बच्चे को मैं तैयार कर लूंगा।’ हीरालाल ने विश्वास पूर्वक कहा।

अगले दिन ठेकेदार हीरालाल ने विदेशी शराब की एक पेटी बबुआ के पास भेज दी। इतनी सारी बोतलें एक साथ देख बबुआ निहाल हो गया। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह सपने में भी एक साथ इतनी सारी बोतलें पा जाएगा। हीरालाल तो सचमुच ही देवता आदमी निकला।

वायदे के मुताबिक हीरालाल ठेकेदार ने रज्जो के भरे-पूरे गदराये जवान जिस्म से अपने जिस्म की वहशी भूख मिटाकर बबुआ की भूख-प्यास मिटाई। कुछ ही दिनों में उसने रज्जो कि मर्दाना सुख के लिए तड़फती बेचैन जवानी को इस तरह तृप्त किया कि एक भावी मजदूर उसकी कोख में पलने लगा। बरसों की प्यासी जवानी का रूप यौवन एक मर्द की मर्दाना सिंचाई पा कर अपने पूरे शवाब पर खिल उठा।

अपनी घरवाली का दिनों दिन पेट बढ़ता देख बबुआ को चिंता सताने लगी। उसने जरा सा छूट दी थी इसका मतलब यह थोड़े कि…!!
वह ठेकेदार हीरालाल के पास गया ही था कि विदेशी दारू की पेटी की एक और खेप उसके पास पहुँच गई।

अंधा क्या चाहे दो आंखें… . उसके विचार बदलने लगे- हीरालाल तो देवता है, प्रसाद देगा ही… रज्जो ही कुलछणी है… लेना भी न आया। आजकल तो इतने सारे साधन हैं कि…!!

एक दिन नशे में धुत्त बबुआ रज्जो पर फट पड़ा, दिल की बात जुबान आ गई- हरामजादी यह क्या कर आई?
रज्जो बेशरमी से अपने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा- बुढ़ापे में तेरी-मेरी देखभाल करने वाला ले आई हूँ और का…?
पर यह हरामी का पिल्ला तो हीरालाल…!!

रज्जो ने उसकी बात काट दी- चीज किसी का हो, मेरी कोख में पल रहा है इसलिए यह मेरा बच्चा है। मेरा बच्चा यानि तेरा…

बबुआ जब कुछ देर तक कुछ नहीं बोला तो रज्जो उसकी ओर नजर उठाकर देखा। बबुआ नशे में एक ओर लुढ़का पड़ा था।

What did you think of this story??

Click the links to read more stories from the category Office Sex or similar stories about ,

You may also like these sex stories

Download a PDF Copy of this Story

पेट

Comments

Scroll To Top