चिलिका का अधूरा सफ़र

(Chilika Ka Adhura Safar)

suzzaniee 2008-09-05 Comments

प्रेषक : सुज़ान कौर

अन्तर्वासना के पाठकों को मेरा कोटि-कोटि नमस्कार ! आपने मेरी पहली कहानी

जब वो हुई अट्ठारह की
पढ़ी, अब मैं फ़िर से हाजिर हूँ एक नई आपबीती के साथ जिसे पढ़कर आपको मज़ा तो आ ही जायेगा।

बात उन दिनों की है जब मैं अपनी बारहवीं की पढ़ाई कर रहा था, तभी मेरा चुनाव इंडियन नेवी में हो गया। मुझे नियुक्ति पत्र भेजा गया और मुझे नेवी के ट्रेनिंग सेन्टर चिलिका में बुलाया गया जो उड़ीसा राज्य में है। वहाँ मुझे मेडिकल मे बाहर कर दिया गया क्योंकि मुझे कलर ब्लांइड्नेस है। निराश होकर मैं वापिस आने की तैयारी करने लगा और पर स्टेशन आ गया ट्रेन पकड़ने के लिए।

ट्रेन में मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था क्योंकि मैं बहुत निराश था। इसलिये मैंने सारा सफ़र गेट पर ही पूरा करने का तय किया। हालांकि मुझे नागालैन्ड तक जाना था और सर्दियों का मौसम था इसलिए मैने अपना कम्बल ओढ़ लिया और गेट पर बैठे बैठे यात्रा कर रहा था।

अचानक आगे के स्टेसन बालुगाँव से एक लड़की चढ़ गई जो कि बिल्कुल अकेली थी। मैंने ज्यादा ध्यान न देते हुये अपना सफ़र जारी रखा और पूरी रात हो चुकी थी, लेकिन वो लड़की गेट पर ही खड़ी रही और ठण्ड से कांप रही थी। मैं चाह कर भी उसकी कोई मदद नहीं कर सकता था क्योंकि वह अकेली थी और मेरे पास उसके मदद करने के लिये कुछ था भी नहीं।

बहरहाल रात होने की वज़ह से सभी यात्री सो रहे थे और थोड़ी देर के बाद मैने देखा कि वो लड़की मेरे कम्बल से चिपकना चाहती थी, बेचारी करे भी तो क्या?

मरता क्या नहीं करता, मैंने भी थोड़ी ढील दे दी और थोड़ा अन्दर होकर बैठ गया। अब हम दोनों एक ही कम्बल के नीचे बैठ चुके थे।

रात बीतने के साथ उसे नींद आने लगी और वो अपना सर मेरे कन्धे पे रखकर झुकने लगी। थोड़ी देर के बाद मुझे भी नींद आने लगी और मैं भी झुकने लगा। लेकिन दोनों ही थोड़ी थोड़ी नींद में थे।

न जाने कब नींद मे मेर एक हाथ उसके एक जांघ पर चला गया। मैंने झट से अपना हाथ हटाना चाहा पर मैंने देखा कि उसने अपनी टांगें थोड़ी चौड़ी कर दी और मेरे उस हाथ पर अपना हाथ रख दिया, मैं इशारा समझ गया और भला दिक़्क़त भी क्या थी, हम दोनों पूरी तरह से कम्बल से ढके हुए जो थे।

मैंने अपना हाथ धीरे धीरे ऊपर की ओर ले जाना शुरु किया और देखा कि उसे कोई ऐतराज भी नहीं हो रहा है।

ऐसे में मेरा हाथ एकदम से उसकी बुर तक चला गया और अब मेरी नींद पूरी तरह खुल चुकी थी। मैंने उसकी सलवार के ऊपर से ही उसकी बुर को रगड़ना चालू किया और थोड़ी देर के बाद मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया। अब मेरा हाथ उसके चड्डी के उपर था और मैंने महसूस कि उसकी चड्डी उसके बुर के पानी से गीली हो गई है। मैंने देर ना करते हुये अपना हाथ उसकी चड्डी के अन्दर डाल दिया और उसकी योनि को छूने लगा।

हालांकि वो नींद का बहाना कर रही थी पर उसी मुद्रा में उसने एक सिसकारी ली जिसे सुन कर मैं मदहोंश हो गया और झट से अपनी उँगली उसके बुर में डाल दी। उसने एक राहत भरी आह ली और फिर मैं अपनी उँगली उसके बुर में अन्दर बाहर करने लगा। मेरा हाथ तो उसकी बुर के पानी से पहले ही गीला हो चुका था पर थोड़ी देर के बाद वो झड़ गई और एक बार फ़िर से मेरा हाथ और बुरी तरह से सन गया।

थोड़ी देर मैंने अपना हाथ वैसे ही उसकी बुर के अन्दर डाल कर रखा और उसके बाद निकाल लिया। अब मुझे यह लगने लगा कि कैसे इसे चोदूँ। पर यह तो असम्भव जैसी बात हुई ना कि किसी ट्रेन के जनरल डिब्बे में किसी को कैसे चोदा जा सकता है?

यह सोचकर मैंने अपनी उँगली को सूंघ लिया, क्या मदमस्त और मदहोश करने वाली खुशबू थी दोस्तो ! कसम से आप भी कभी करके करना, बहुत मज़ा आयेगा।

फ़िर करीब आधे घण्टे के बाद वो लड़की भुवनेश्वर स्टेशन पर उतर गई।

इतना सारा होने के बावजूद भी आपको यह जानकर हैरानी होगी कि हमने एक बार भी किसी दूसरे से बात नहीं की और उसकी बुर को मैंने अपनी उँगली से चोद भी दिया।

पर जो भी हो उसके बाद मैंने अपना सफ़र जैसे तैसे तय किया।

अब मैं इंजीनियरिंग कर रहा हूँ और मेरी ब्रांच अप्लाईड इलेक्ट्रोनिक्स एंड इंस्ट्रमेसन इंजीनियरिंग है। आज भी वो मंज़र याद करके अपनी उँगली को सूंघ लेता हूँ और मदहोंश होकर मुठ मार लेता हूँ।

तो यह थी मेरी सच्ची कहानी !

आपको कैसी लगी ज़रुर मेल कीजियेगा।

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