बाथरूम का दर्पण-5

(Bathroom Ka Darpan-Part 5)

This story is part of a series:

मैं रोनी सलूजा एक बार फिर आपसे मुखातिब हूँ। मेरी कहानी बाथरूम का दर्पण आप सभी ने पढ़ी।

इस समय मेरा काम बीना में लगा हुआ था, मेरे मोबाइल पर किसी नए नंबर से काल आई, फोन रिसीव किया तो किसी स्त्री की मधुर आवाज आई- क्या मैं रोनी से बात कर सकती हूँ?
मैं बोला- जी, मैं रोनी बोल रहा हूँ, कहिये!

तो वह बोली- मैं हेमा(पूरा नाम हेमलता पवार) सागर (म.प्र.) से बोल रही हूँ, मुझे अपने मकान में कुछ सुधार करवाना है, क्या आप मेरा यह काम कर सकते हैं?
(पात्र और शहर से नाम बदले हुए हैं।)

मुझे उसकी आवाज बड़ी ही सेक्सी लग रही थी, उसे छेड़ते हुए पूछा- मुझसे अपने मकान में क्या करवाना चाहती हो? मतलब क्या सुधार होना है?
तो बोली- मुझे बाथरूम में दर्पण लगवाना है!

अब चौंकने की बारी मेरी थी, मैं एकदम से सन्न रह गया क्योंकि बाथरूम में दर्पण तो मैंने रमा पाण्डेय के मकान में लगाया था। जिसका राजदार मैं स्वयं और रमा ही थे, अन्य कोई नहीं था, फिर हेमा को ये शब्द कहाँ से दिमाग में आये? यह इत्तिफाक तो नहीं हो सकता!
मैंने पूछा- तुम्हें मेरा फोन नंबर किसने बताया?
तो बोली- मेरे एक परिचित ने दिया!
मैंने कहा- बाथरूम में दर्पण भी लगाता हूँ, यह किसने बताया?
बोली- मेरी परिचित ने ही बताया।

मैंने कहा- आपकी और अपनी सुविधा के लिए उनका नाम जान सकता हूँ?
तो उसने बताया- मेरी सहेली रमा पाण्डेय जो मेरी बचपन की खास दोस्त है, भले ही शहर अलग हैं पर आज भी हम लोगों की मुलाकात होती रहती है। कुछ दिन पहले उसके घर गई थी तो उसके बाथरूम को देखकर अचंभित हो गई। जब मैंने पूछा तो उसने तुम्हारे बारे में बताया, उससे ही मैंने तुम्हारा नंबर लिया था।
मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि रमा ने क्या क्या बताया होगा।

मैंने कहा- ठीक है, मेरा यहाँ का काम 5 तारीख, रविवार को बंद रहेगा तो मैं सागर आकर आपसे मिलता हूँ। अपना पता बता दो!
तो उसने कहा- सागर आकर फोन कर लेना, मैं रिसीव करने आ जाऊँगी।
और फोन काट दिया।

दो दिन तक मैं यही सोचता रहा कि हेमा कैसी होगी? रमा ने कहीं कुछ बता तो नहीं दिया होगा? फिर सोचा बता दिया होगा तो जरूर यह मुझसे चुदना चाहती होगी अन्यथा यह सीधा यह नहीं कहती कि बाथरूम का दर्पण लगवाना है।

रविवार को साढ़े दस पर सागर पहुँच कर हेमा को फोन लगाया तो उसने कहा- सिविल लाइन आ जाओ और चौराहे वाले पेट्रोल पम्प के पास आकर फोन कर देना, मैं आकर रिसीव कर लूंगी।

चूँकि सागर मेरा जाना-पहचाना शहर है तो ठीक 11 बजे नियत स्थान पर पहुँच कर फोन किया।

हेमा ने कहा- दो मिनट में मैं आ रही हूँ, मेरे पास लाल रंग की एक्टिवा है, मैंने सफ़ेद रंग का सलवार सूट पहना है, गाड़ी में पेट्रोल डला कर निकलूँ तो तुम मुझे हैलो करना, मैं समझ जाऊँगी।
फ़िर बोली- तुमने अपनी पहचान नहीं बताई?
मैंने कहा- नीली जींस, सफ़ेद टीशर्ट, हाथ में काला बैग!
बोली- ठीक है।

मैं पेट्रोल पम्प से 50 कदम दूर टैक्सी स्टैंड पर खड़ा हो गया। दो मिनट बाद लाल एक्टिवा पर सफ़ेद सूट पहने लगभग तीस वर्षीय एक महिला पेट्रोल भराने आई।

उसको देखकर मैं यह भी भूल गया कि मुझे उसके पास जाकर हैलो करना है। क्या गजब का फिगर था, गोरी-चिट्टी, गठा बदन, खुले बाल, चूचियाँ तो जैसे बाहर निकलने को बेताब थी, लाल लिपस्टिक और मांग में लाल सिन्दूर, सचमुच क़यामत लग रही थी।

वो इधर उधर देख रही थी तो मेरी तन्द्रा भंग हुई, भागता हुआ उसके पास जाने लगा। तब तक उसने भी मुझे पहचान लिया, पास पहुँचकर हैलो कहा तो वो बोली- रोनी?
मैंने कहा- जी!
बोली- गाड़ी पर बैठ जाओ!
मैं उसके पीछे बैठ गया।

उसके बदन से गुलाब के पर्फ़्यूम की महक आ रही थी। खुले बाल मेरे चेहरे से टकरा रहे थे मैं मदहोश होता जा रहा था। जब उसने गाड़ी रोकी तो मुझे होश आया छोटा सा लेकिन शानदार मकान था उसका।

फिर उसने गेट खोलकर गाड़ी अन्दर रखकर गेट लाक कर दिया और मकान के दरवाजे का ताला खोला, फिर मुझे अन्दर आने को कहा।
मैंने अन्दर जाकर देखा तो लगा कि स्वर्ग में आ गया हूँ।

मुझे सोफ़े पर बैठा कर अन्दर पानी लेने चली गई। उसकी चाल देखकर लगा जरूर यह कोई मॉडल होगी, जिस अदा से वह चल रही थी, उसका वर्णन शब्दों में तो नहीं कर सकता हूँ।

अब मैं समझ गया कि हेमा ने मुझे क्यों बुलाया है। मेरे हिसाब से इतने खूबसूरत मकान का बाथरूम भी कम खूबसूरत नहीं होगा। दूसरी बात कि घर में कोई भी मौजूद नहीं था। तीसरी बात मकान से सम्बंधित बात उसके पति को करना चाहिए थी जो अब भी मौजूद नहीं है।

हेमा जब पानी लेकर आई तब मैंने उसे सामने से पहली बार ठीक से देखा, गहरे गले की कुर्ती से झलकते हुए उभार मेरी कल्पना से भी ज्यादा बड़े थे, उसका फिगर 36-28-38 होगा। पानी देते वक्त ऐसे लजा रही थी जैसे कोई नई वधू को देखने आया हो।

फिर बोली- क्या लोगे, ठंडा या गर्म?
मैंने कहा- गर्मी बहुत है, ठंडा चलेगा।
बोली- ठन्डे में लिम्का या बीयर?
मैंने कहा- कुछ भी चलेगा।

फिर मैंने ऊँगली से इशारा करके कहा- बाथरूम जाना है!
क्यूंकि मैं अपने शक को यकीन में बदलते हुए देखना चाहता था। वो मुझे बाथरूम तक छोड़ने आई।

मैं दरवाजा खोलकर अन्दर चला गया। शायद इतना सुन्दर बाथरूम मैंने पहली बार देखा था।

तरोताज़ा होकर बैठक में आ गया। तब तक हेमा ने बीयर की बोतल, दो गिलास, नमकीन, तले हुए काजू और दालमोठ सेंटर टेबल पर सजा कर रख दिए थे। मेरे आते ही उसने गिलास में बीयर डालकर एक गिलास मेरी और बढ़ा दिया, फिर अपना गिलास उठा कर चियर्स किया। वो मुझे बड़े ही मादक अंदाज में देख रही थी।

मैंने कहा- हेमाजी, सच बताना, आपका बाथरूम तो पहले से ही सुसज्जित है, फिर मुझे क्यों बुलाया?

तब तक बीयर का गिलास खाली कर चुकी थी, बोली- मैं तुमसे मिलना चाहती थी! रमा ने मुझे तुम्हारे बारे में सब बता दिया है, रमा ने अपनी पूरी घटना बताने के बाद कहा कि रोनी ने कभी भी मेरी मजबूरी का फायदा उठाने की कोशिश नहीं की, न ही कभी फोन लगाता है, जब मैं फोन लगाती हूँ, तभी बहुत सी बातें होती हैं। क्यूंकि कुल मिलकर रमा ने तुम्हारी जो तारीफ की तो मेरा मन भी तुमसे मिलने के लिए मचल गया। फिर मैंने रमा से फोन लगाकर तुमसे बात करने को कहा था फोन का स्पीकर ऑन करके! उसने तुमसे बात की थी, मैंने तुम्हारी और रमा की सारी बात सुनी पर रमा को अपने मन की बात जाहिर नहीं की। लौटते वक्त तुम्हारा नंबर यह कह कर ले लिया था कि मेरे मकान का कुछ काम करवाना है, यदि जरुरत हुई तो रोनी जी को बुला लूंगी, तुमसे मिलना चाहती थी तो तुम्हें झूठ बोलकर बुला लिया। रोनी जी, मुझे माफ़ कर देना।

मैंने कहा- हेमाजी, आप तो शादीशुदा हैं, फिर आपको मेरी जरुरत क्यूँ पड़ गई?

तो रमा ने अपने बारे में बताया- मेरा पति एक प्राइवेट कम्पनी में काम करता है, जवान और खूबसूरत है, मेरा बहुत ख्याल रखता है लेकिन माह में उनके दस-बारह दिन शहर से बाहर दौरे में निकल जाते हैं। मेरा बेटा जो दस साल का है, इंदौर में बोर्डिंग में है। तन्हाई मुझे डसने लगती है, इन दस-बारह दिनों में मैं जवानी की आग में झुलस जाती हूँ लेकिन अपने जिस्म की आग को दबाकर रखना पड़ती है। कारण कि मैं किसी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिलना चाहती हूँ जो कभी भी मुझसे मिलने चला आये या मुझे फोन करने लगे या राह चलते मुझसे मिलने की कोशिश करे और मेरे पति को मालूम चल जाये! तो मेरी जिन्दगी तो तबाह हो जाएगी, हमारा तो पूरा परिवार ही तबाह हो जायेगा। रमा से तुम्हारे बारे में जानकर लगा कि तुमसे दोस्ती करना ठीक रहेगा। शहर से दूर रहते हो तो रोज मिलना भी नहीं होगा और एक अच्छा दोस्त भी मिल जायेगा, इसलिए मैंने तुम्हे यहाँ बुलाया है।

मैंने भी लोहा गर्म देखकर कह दिया- हेमाजी, आप जैसी हुस्न की मलिका ने मुझे अपने लायक समझा, यह तो मेरी खुश किस्मती है।

मेरी बात सुनकर हेमा मुस्कुरा दी ओर फिर से बीयर के गिलास भर दिए। अपना गिलास खाली करके बोली- मैं कपड़े बदलकर आती हूँ!

अपनी नशीली आँखों से मुझे देखकर एक आँख दबा दी और मदमस्त चाल चलकर बेडरूम में चली गई।

मेरी तो जैसे लॉटरी लग गई थी, हेमलता एकदम हेमा मालिनी की तरह लगती है, भरा गठा हुआ बदन, बड़ी बड़ी आँखें, माथे पर घुंघराली लटें, गुलाबी होंठ, पहाड़ जैसे स्तन, भरे हुए नितम्ब जो चलते वक्त एक ऊपर तो एक नीचे मटक रहे थे, चूत के बारे में मेरे से ज्यादा मेरा लंड अनुमान लगा रहा था जो पैंट के भीतर बेचैन होकर ठुमका लगा रहा था।

मैंने प्यार से उसे दबाकर कहा- कुछ देर और इंतजार कर, फिर तो तुझे ही सब संभालना है।

बीयर का सुरूर आने लगा था, मैं टकटकी लगाये बेडरूम के दरवाजे को ताक रहा था, सोच रहा था कि हेमा को कपड़े बदले की जरुरत नहीं थी, उसे तो कपड़े उतारने की जरुरत थी।

अचानक दरवाजे पर हेमा प्रकट हुई, उसने सफ़ेद रंग का झीना सा बड़े गले का फ़्रॉक जो घुटनों तक बड़ी मुश्किल से आ रहा था, जिसके अन्दर गुलाबी ब्रा और पैंटी के दर्शन हो रहे थे।

मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था।

वो सीधा आकर मेरे बगल में बैठ गई और अपना बीयर का आधा बचा हुआ गिलास उठाकर मेरे मुँह से लगा दिया। एक घूँट बीयर मैंने पी, बाकी उसने पी ली।

वह भी सुरूर में थी, उसने मेरे गले में अपनी बाहें डाल दी और मुझे चूमने लगी। मेरी टीशर्ट निकाल दी और मुझे सोफ़े पर लिटाकर मेरे ऊपर चढ़ कर यहाँ-वहाँ चूमने लगी। फिर मेरी पैंट उतार दी और चड्डी के ऊपर से मेरे लंड को चूमने लगी।
मुझे लगा कि जल्दी ही मेरा माल निकल जायेगा।

मैं उसकी पीठ सहलाने लगा, फिर उसकी फ़्रॉक को निकाल दिया। अब उसके भरे हुए स्तन, जो गुलाबी ब्रा में समां नहीं रहे थे, को मसलना शुरु कर दिया। हेमा ने अपनी आँखें बंद करके सीत्कारना शुरु कर दिया।

मैं उसे गोद में उठाकर बेडरूम में ले गया। उसने तनिक भी विरोध नहीं किया, मेरे गले में बाहें डालकर मुझे चूमने लगी। बेडरूम देखकर तो लगा कि शायद ही कभी ऐसा बेडरूम अपना बना पाउँगा मैं!

मैंने उसे बेड पर लिटाकर उसे चूमना सहलाना शुरु कर दिया और ब्रा को खोलकर एक ओर फेंक दी।

हेमा के चूचे देखकर मेरे होश ही उड़ गए, बिल्कुल खजुराहो की मूर्तियों की तरह या कह सकते हैं कि सांची के स्तूप की तरह जिनके शिखर गगनचुम्बी थे, जैसे इन्हें किसी ने आज तक छुआ ही न हो!

मैंने उन पर जीभ फेरना चालू किया तो हेमा बोली- अब बर्दाश्त नहीं हो रहा है रोनी, एक बार अन्दर डाल कर मेरी प्यास बुझा दो, फिर जो चाहे करते रहना, सारा दिन पड़ा है।

अब मुझे लगा कि यदि मैंने अन्दर डाल दिया तो ज्यादा देर नहीं टिक पाऊँगा। सोचा कि चुसवा कर अपना माल निकाल दूँ। फिर सोचा पता नहीं हेमा को पसंद है या नहीं! बिस्तर पर गिराना नहीं चाहता था, मैंने कहा- हेमा, निरोध है क्या?
बोली- हाँ है!

मैंने कहा- दे दो, पहली बार माल ज्यादा निकलता है तो सुरक्षा और सफाई दोनों काम हो जायेंगे।

हेमा ने कंडोम निकाल कर दे दिया। मैंने लंड पर लगाया और स्तनों को चूमते हुए उसकी चड्डी निकाल दी जो बहुत ही चिपचिपी हो गई थी।

फिर अपने एक हाथ से हेमा की चूत को सहलाने लगा, दूसरे हाथ से एक स्तन को मसलने लगा, दूसरे स्तन को मुँह में लेकर चूसने लगा। हेमा बार बार अपनी टांगों को उठा रही थी, काफी चुदास हो गई थी। फिर मैं 69 की स्थिति में आकर चूत में ऊँगली डालकर अन्दर-बाहर करने लगा।

उसने मेरे लंड को मुट्ठी में लेकर सहलाना शुरू कर दिया तो मैं अंजान बनते हुए अपने लंड को उसके होंठो के पास ले गया, फिर अपनी अंगुली को तेजी से अन्दर-बाहर करने लगा, दूसरे हाथ की अंगुली से उसकी भगनासा को छेड़ने लगा।

मुझे पता ही नहीं चला कि कब हेमा ने मेरा लंड मुँह में ले लिया, बड़े ही प्यार से लॉलीपोप की तरह से चूसने लगी। उसकी सीत्कारें बढ़ने लगी और मेरे लंड ने झटके मारकर पिचकारी चलाना शुरू कर दिया। उसके बदन में भी अकड़न हुई, जोरों की सीत्कार के साथ उसने अपने दोनों पैर भींच लिए, वो झड़ चुकी थी, मेरे लंड का माल निकल चुका था। लंड को उसने मुँह से बाहर निकाल दिया था, मैंने कोंडोम को लंड से उतारकर गठान बांधकर एक ओर रख दिया और हेमा के नंगे जिस्म से पीछे की तरफ से लिपट गया।

अब मुझे कुछ होश सा आ गया था और उसके जिस्म का भरपूर दीदार कर रहा था। बेदाग पीठ और पुष्ट नितम्ब देखकर फिर खून की रफ़्तार बढ़ने लगी।

मैं उन्हें सहलाने मसलने लगा, हेमा की आँखें अब भी बंद थी। मैंने उसे चित्त लिटाकर उसकी मांसल और सुडौल जांघों को सहलाते हुये चूमना आरम्भ किया तो मेरे लंड ने सलामी देना शुरु कर दिया।

हेमा लंड को हाथ में लेकर मुठ मारने लगी तो चंद सेकेण्ड में ही लंड खड़ा होकर ठोस हो गया लेकिन इस बार उसने चूमने या चूसने की कोशिश नहीं की। मतलब साफ था कि निरोध लगाकर ही चूसती होगी।

हेमा उत्तेजित होने लगी, उसने मुँह से आ ह… आ… सी… सी… आ… करते हुए अपनी टांगों को फैला दिया। अब मेरी आँखों के सामने उसकी केश रहित कमल के जैसी चूत थी जो रस से सराबोर थी, रस गुलाबी योनिद्वार से निकलकर बाहर आ रहा था, चिकनी चूत बड़ी अदभुत लग रही थी।

एक बार चूत को चूम कर मैं हेमा के बराबर आ गया, कमर के नीचे एक तकिया रखकर चूत को और ऊपर को उठा दिया। अब मैं एक हाथ से लंड को पकड़कर चूत पर धीरे धीरे रगड़ने लगा, फिर योनिद्वार पर सुपारा रगड़ा जिसके रस से सुपारा एकदम चिकना और गीला हो गया तो लंड से दाने को सहलाने लगा।

अब हेमा अपने चूतड़ों को ऊपर उठाकर लंड को चूत मे निगल लेना चाह रही थी, वह बड़बड़ा रही थी- रोनी प्लीज़… डालो…न ..आ…आ..ह… उ… इ…इ ..ओं…रोनी…

मैंने लंड को चूत के छिद्र पर रखकर दबाव बनाया तो लंड पूरा का पूरा चूत में समा गया।

हेमा के मुँह से सिसकारी निकल गई- उ…इ..इ इ इ माँ…

मैं धीरे-धीरे अन्दर-बाहर करने लगा और उसके अनावृत उन्नत स्तनों को चूसने-चाटने और मसलने लगा।

‘रोनी, बहुत अच्छा लग रहा है! जोर-जोर से करो!’ हेमा बोली।

मैंने स्पीड बढ़ा दी, हेमा भी नीचे से उछलकर लंड को ज्यादा से ज्यादा अन्दर लेने की कोशिश करने लगी। पाँच मिनट में ही उसका स्वर तेज हो गया, उसकी आहें कमरे में गूंजने लगी, मेरी पीठ पर नाख़ून गड़ाने लगी और तेज सांसों के साथ अकड़ते हुए स्खलित हो गई।

एक दो मिनट के लिए मैं रुक गया फिर मैंने उसकी टांगों को ऊपर उठाकर अपने कन्धों पर रखा और जोर जोर से धक्के मारना चालू किया। चूत बहुत गीली और ढीली हो गई थी सो चप-चप की आवाज आ रही थी और इस चिकने घर्षण का अपना अलग ही मजा आ रहा था। मेरी नसों में तनाव उत्पन्न होने लगा। मैं उसके स्तनों का बहुत ही जोरों से मर्दन कर रहा था।

हेमा बोली- रोनी, दर्द होता है, धीरे दबाओ!

मैंने उसके स्तन को छोड़कर उसके पैर मोड़कर घुटनों को स्तन के पास करके दबा लिए। अब उसकी चूत और उभर आई लंड पूरा जड़ तक अन्दर जाने लगा।

हेमा फिर से सिसकारियाँ भरने लगी, वह अपने चूतड़ों को चक्की की तरह घुमा रही थी, उसका दाना मेरे लंड से बराबर रगड़ रहा था। इस दृश्य को देखकर मेरी उत्तेजना बहुत बढ़ गई, सुपारा और फूल गया, मुझे लगा कि मैं सातवें आसमान की सैर कर रहा हूँ। लंड से वीर्य निकलने वाला था, लग रहा था समय यहीं रुक जाये पर अगले ही क्षण लंड ने पिचकारी चलाना शुरू कर दिया और वही अलौकिक आनन्द प्राप्त हुआ जिसके लिए इन्सान क्या कुछ नहीं करता।

मेरे साथ ही हेमा एक बार फिर झड़ गई, मैं हेमा के ऊपर ही पसर गया।

हेमा कहने लगी- रमा सच कहती थी, रोनी, तुम्हारे साथ बहुत मजा आया। इतना ही मजा शादी के बाद पति के साथ रोज आता था पर अब समय की कमी के कारण ऐसा रोज नहीं हो पाता! बस कभी-कभी तो कपड़े ऊपर किये और जल्दी जल्दी किया और फ़ारिग हो जाते है।

हम दोनों एक दूसरे से लिपटे हुए चुम्बन कर रहे थे, मैं अपने हाथों से उसके अंगों को सहला रहा था।हेमा उठते हुए बोली- बाथरूम में चलो, अपने आप को साफ करके खाना खाते हैं! बहुत भूख लगी है।

हम दोनों नंगे ही बाथरूम में पहुँच गए और एक दूसरे को साफ करते हुए शावर में नहाने लगे। शीशे में हम दोनों एक दूसरे को नंगे देखकर फिर से उत्तेजित हो गए, मैं हेमा के पीछे से हाथ डालकर दूधों को पकड़ कर मसलने लगा, मेरा लंड उसकी गाण्ड की दरार में दबाव डाल रहा था।

उसी अवस्था में मैंने हेमा को झुकाकर उसके हाथ बाथटब पर रखवाकर घोड़ी बना दिया फिर पीछे से लंड को गाण्ड पर रगड़ते हुए चूत में प्रवेश कर दिया और धक्के मारना चालू किया। यह सब शीशे में देखना दोनों की उत्तेजना को दस मिनट में ही चरमोत्कर्ष पर ले आया।

हेमा झड़ने लगी तो जोर से सिसकारी लेने लगी! उसने अपनी टांगों को इतना जोर से भींच लिया कि मेरा लंड अन्दर ही फूलने लगा, छुटने को बेताब हो रहा था। परन्तु हेमा उसे बाहर निकाल कर वहीं बैठ गई, बोली- मुझे दर्द होने लगा है, थोड़ी देर बाद में कर लेना।

मैं अपने लंड को पकड़कर उसके सामने खड़ा हो गया, बोला- हेमा, मेरा निकलने वाला है, कुछ तो करो!

तो वो बैठे बैठे ही लंड को पकड़कर मुठ मारने लगी। मेरे लंड का सुपारा एकदम लाल हो गया और पिचकारी छुट गई, सारा का सारा माल हेमा के स्तनों पर गिर गया। इस समय दिन के तीन बज गए थे।

नहाकर हम दोनों ने एक साथ खाना खाया, फिर बहुत सी बातें हुई।

उसके बाद एक दौर सेक्स का फ़िर हुआ जिसमें मुझे नीचे लिटाकर हेमा मेरे ऊपर आकर चुदाई करने लगी। उस समय उसकी चूत में लंड जाता देखकर जो आनन्द आया, उसे शब्दों में ब्यान नहीं किया जा सकता।

पाँच बजे मैंने कहा- अब मुझे जाना है!

तो उसने पाँच हजार रूपये लाकर मेरे हाथ पर रख दिए, बोली- मैंने आज का तुम्हारे काम का नुकसान किया, ये रख लो!

तो मैंने यह कहते हुए कि तुम्हारे अनमोल प्यार के आगे हमारे काम का नुकसान कोई मायने नहीं रखता, हेमा को उसके रूपये लौटा दिए।

फिर उसने मुझे बस स्टैंड तक छोड़ा, पूछा- कभी फ़ोन करुँगी तो आओगे?
मैंने कहा- यह उस समय पर निर्भर करता है!

हेमा को अलविदा कहकर मैं बीना आ गया।

मेरी सच्ची कहानी कैसी लगी? सभी पाठकों का स्वागत है।
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