नफीसा की चुदाई की प्यास

दोस्तो, मैं जुल्फिकार राजकोट गुजरात से हूँ। मैं राजकोट में आम्रपाली सोसाइटी में रहता हूँ।

मेरी यह पहली कहानी है। कहानी कुछ ऐसी है कि मेरे दोस्त की शादी कुछ 6 महीने पहले हुई। उसकी बीवी नफीसा पोरबंदर की लड़की है। वो हर तरह से समझदार, खूबसूरत चंचल, समझो आल इन वन है। मेरा दोस्त भोसड़ी का लल्लू-पंजू जैसा, मादरचोद पूरा लौडू है। अब आप समझ सकते हो कि नफीसा का क्या हाल होता होगा।

खैर, मैं तो रोज उस घर में आता-जाता रहता हूँ तो सबसे दुआ-सलाम होती ही है। मेरे दोस्त की दो बहनें भी हैं जो मुझे भाईजान बुलाती हैं।

अब बात की शुरुआत हुई जब नफीसा ने मुझे कॉल किया और ज़रूरी बात करने के लिए बुलाया।

मैं और नफीसा एक दोस्त के बुटीक पर मिले और नफीसा ने अपनी बात शुरू की- जुल्फिकार, मैंने तुमको यहाँ बुलाया है क्योंकि मैं जानती हूँ तुम हर बात को समझ सकते हो।
मैं- जी भाभीजान कहिए … क्या बात है?
नफीसा- मैं इस शादी से खुश नहीं हूँ, वजह मैं नहीं बता सकती।
मैं- भाभी आप मुझसे क्या चाहती हो?
नफीसा- मैं तुमको यह बताने आई हूँ कि आज शाम मैं घर छोड़ कर वापस अपनी माँ के पास जा रही हूँ।
मैं- भाभी आपको मैं किसी भी फैसले के लिए मना नहीं करूँगा, पर प्लीज एक बार और सोच लेना।
नफीसा- जुल्फिकार मैंने सब सोच लिया है, जाते-जाते तुमसे दोस्ती करना चाहूँगी।
मैं- अरे भाभी, आप तो शर्मिंदा कर रही हो, मैं तो आपका दोस्त हूँ ही।
नफीसा- तो फिर भाभी-भाभी कह कर दोस्ती निभा रहे हो … मैं सिर्फ नफीसा हूँ ओके!
मैं- ओके … ओके … ‘मिस’ नफीसा!
नफीसा- ह्म्म्म्म … स्मार्टी जुल्फी
मैं- थैंक्स … नफ्फू..!
नफीसा- तो फिर एक दोस्ती वाली बात हो जाए!
मैं- श्योर … नफीसा … क्यों नहीं।

ऐसे मैंने नफीसा को गले लगाया दस मिनट तक वो आँखें बन्द करके मेरी बाँहों में रही और थोड़ा रोई।
मैं- नफीसा एक बात मानो मेरी … ऐसे घर छोड़ कर मत जाओ, एक हफ्ते का समय लो … फिर फैसला करो।
नफीसा- ओके … मान ली बात, पर यह एक हफ्ते तुम मुझे रोज घुमाने ले जाओगे, रोज इस बुटीक पर मुझे लेने आओगे। मुझे पूरा राजकोट घूमना है।
मैं- इतनी सी बात … पक्का वादा रहा।

अभी तक कोई बुरी नज़र या बुरी हरकत का ख्याल भी नहीं आया था।

दूसरे दिन नफीसा का फ़ोन आया उसने कहा- जुल्फी, आज मैं अपनी सहेली सोनिया के घर जा रही हूँ, मिलने आओगे?
मैंने कहा- ठीक है नफीसा, आ जाऊँगा।
नफीसा- मैं फ़ोन करुँगी तब देर मत करना और भाभी समझ कर मिलने मत आना।
मैं- ही..ही … सोनिया का बॉय-फ्रेंड बन कर आऊँगा।
नफीसा- मार डालूँगी, गला दबा दूंगी.

ठीक 9 बजे नफीसा का फ़ोन आया उसने मुझे 10-30 को मिलने का बोला, मैं वक़्त पर वहाँ पहुँचा, बहुत ही गर्मजोशी से मस्ती-मजाक हुआ, पुरानी बातें हुईं।
सोनिया ने कहा- मैं अपने बॉय-फ्रेंड से मिलने जा रही हूँ, सुबह तक आऊँगी।
अब मैं और नफीसा बातें करते हुए थोड़े गहरे ख्यालों में आए और नफीसा ने कहा कि उसको उसका पति बिस्तर पर संतुष्ट नहीं करता है और पूरी रात इलमी किताबें पढ़ता है।

यह बातें करते-करते वो खूब रोई और उसने अचानक मुझसे कहा- जुल्फी क्या तुम?
मैं- क्या … मैं क्या?
नफीसा- क्या तुम मेरी ज़रूरत पूरी करोगे? मुझे जिस्म की आग सहन नहीं होती, क्या मेरा साथ निभाओगे? यह कोई सम्भोग की बात नहीं है, सिर्फ एक हालात को निभाने की बात है।
ये बातें करते हुए नफीसा मेरे गले लग गई और दस मिनट तक बिना कुछ बोले हम दोनों एक दोस्त की तरह बांहों में रहे।

फिर मैंने थोड़ा संभल कर उसे जकड़ना शुरू किया।
नफीसा- जुल्फी अपनी समझ कर मेरे जिस्म पर अपना हक जताओ ना।
मैं- मैंने तुम्हें अपनी समझ कर ही करीब लिया है, मुझसे चिपक जाओ नफीसा।
नफीसा- ओह्ह्ह … जुल्फी, तुम्हारा जिस्म इन सर्दियों में नशा दिलाता है, मुझे मेरा हक दो।
मैं- जब जिस्म से जिस्म मिलते हैं तो एक ही होते हैं, आज से तुम मेरी जान हो, होंठों को मिलने दो।

नफीसा- जुल्फी, मैंने सोनिया को कल उसके बॉय-फ्रेंड के साथ प्यार करते हुए देखा, मैं उस वक्त तुम्हें ही महसूस कर रही थी। जुल्फी मुझे सहलाओ अपना प्यार … अपना सब … मुझे दे दो, मेरे होंठ तरस रहे हैं।

मैंने नफीसा को चूमना शुरू किया, मेरे हाथ उसकी पीठ से कमर तक सहला रहे थे। वो मुझे मदहोश हो कर चूम रही थी। अब हम सोफे पर आ गए, मैंने उसकी कुर्ती की चेन खोल कर उसके जिस्म को सहलाना शुरू किया और फिर उसके स्तन सहलाए।

नफीसा- जुल्फी अपनी टी-शर्ट निकाल दो और मेरे कपड़े भी निकाल दो, मुझे चूमो मेरे ऊपर आ जाओ। मेरे जिस्म से ज्वाला की तपिश निकाल दो।

मैंने उसके सारे कपड़े निकाल दिए और उसके स्तन चूमते हुए पैरों के बीच सहलाना शुरू किया तो नफीसा ने मुझे कान में कहा- जुल्फी मैं झड़ जाऊँगी मेरा रस निकल रहा है।

मैंने उसकी पैन्टी निकाल कर चूत को चूमना शुरू किया, पर वो मेरे चूमते ही झड़ गई। फिर वो मुझसे लिपट गई और मैंने अपना लौड़ा उसको दिखाया वो बिना कुछ कहे मुँह में लेकर चूसने लगी और मैं ‘आह्ह … ओहह्ह’ करते हुए उसको 69 की अवस्था में लेकर चूसता रहा।

फिर मैंने उसे अपने लौड़े पर बिठाया और चोदने से पहले ही वो फिर झड़ गई, पर उसको संतोष नहीं हुआ था और लौड़े को पकड़ कर चूत में डालने लगी।
मैंने उसे बिस्तर पर ला कर चुदाई करने को कहा, पर वो सोफे पर मुझे चोदने को कहने लगी। करीबन 20 मिनट तक उसने चोदा फिर मैंने उसके ऊपर आकर चोदना शुरू किया।

नफीसा- ओह्ह … जुल्फी आआ..अह्ह जुल्फी … जुल्फी प्लीज जल्दी झड़ जाओ ना … मैं तुम्हें झड़ते हुए देखना चाहती हूँ. … मैं वापस झड़ रही हूँ … बहुत..सही … चोदो … पर एक बार तो अन्दर झड़ जाओ।

मैं- जान मुँह में ले लो … चूसो … चाटो..न..!
मैंने उसका मुँह पकड़ कर चोदना शुरू किया और थोड़ी देर में मुँह में झड़ गया।

नफीसा- जुल्फी में तीन बार झड़ चुकी हूँ, पर अब मैं सुकून से बिस्तर पर चुदाई का असली मज़ा लेना चाहती हूँ। मुझे अपने माल से नहलाओ, फिर और जी भर के चोदो।

मैंने फिर नफीसा को बहुत प्यार किया एक-एक घंटे तक तीन बार उसे चोदा पर कोई हवस या वासना मेरे या उसके दिल में नहीं थी।

सुबह जब हम अलग हुए तो उसने कहा- यह एहसान में कभी नहीं भूलूँगी, हमेशा तुम्हारे जैसे दोस्त की दुआ मांगी थी … कुबूल हो गई। अब यह हफ्ता ख़त्म होगा और मैं चली जाऊँगी, पर तुम्हें पोरबंदर आकर हर हफ्ते मुझसे मिलना है ओके … वादा करो।
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