गुसलखाने का बंद दरवाज़ा खोला-5

( Bathroom Ka Band Darwaja Khola-5)

टी पी एल 2014-12-23 Comments

कहानी का चौथा भाग: गुसलखाने का बंद दरवाज़ा खोला-4

जैसे ही मैंने नेहा के कमरे का दरवाज़े खटखटाया तो अन्दर से उसकी आवाज़ आई- दरवाज़ा खुला है! अंदर आ जाओ और दरवाज़े की चिटकनी लगाते आना।

मैं दरवाज़े को धकेल कर अंदर चला गया और फिर उसे बंद कर उसमे चिटकनी लगा दी!

अंदर उस कमरे में अँधेरा था लेकिन नेहा के बैडरूम में से रोशनी आ रही थी!

मेरे पूछने पर की वह कहाँ है नेहा बोली- मैं अपने कमरे में हूँ तुम यहीं आ जाओ।

नेहा के कहने पर जब मैं उसके कमरे के अन्दर पहुँचा तो देखा कि वह बैड पर लेटी हुई थी, उसने एक टांग सीधी रखी हुई थी दूसरी टांग खड़ी कर रखी थी।

उसकी खड़ी टांग के कारण उसकी नाइटी भी ऊँची उठ गई थी और मुझे उसकी दोनों जाँघों के बीच का हिस्सा साफ़ दिख रहा था।
वह कभी कभी खड़ी टांग को हिला कर चौड़ी कर देती थी जिससे मुझे उसके जघन-स्थल के बाल भी दिख जाते थे।

यह नज़ारा देख कर मेरा लिंग तन गया और मेरे पजामे के आगे का भाग उभर गया था।

मैं उस उभार को दबाने की चेष्टा कर रहा था जब नेहा बोली- रवि, मेरे पति तो चेन्नई गए हुए है और उन्हें आज रात को ही वापिस आना था। थोड़ी देर पहले उनका फोन आया कि उनका काम आज समाप्त नहीं हुआ इसलिए वह नहीं आ रहे! शादी के बाद रात के समय मैं पहली बार घर पर अकेली हूँ और बहुत डर लग रहा था इसलिए तुम्हें फोन करके बुला लिया है! क्या तुम आज रात मेरे साथ सो सकते हो?
नेहा की बात सुन कर मैं कुछ असमंजस में पड़ गया और सोच में पड़ गया की वह वास्तव में क्या चाहती है!

इसलिए मैंने उसे कहा– तुम यह क्या कह रही हो? मैं पूरी रात तुम्हारे साथ यहाँ बैठने को तैयार हूँ ताकि तुम्हें डर नहीं लगे लेकिन मुझे नहीं लगता की मेरा तुम्हारे साथ सोना ठीक होगा।

मेरी बात सुन कर उसका चेहरा उतर गया और बोली- मैंने तुम्हें मेरे पास बैठने की सजा देने के लिए नहीं बुलाया है! जब तक मुझे नींद नहीं आ जाती तब तक क्या तुम मेरे पास बैठने के बजाय लेट कर बातें नहीं कर सकते।

इससे पहले कि मैं उसकी बात का कोई उत्तर देता नेहा ने अपनी दोनों टाँगे खड़ी करके चौड़ी कर ली जिससे उसकी नाइटी पूरी ऊँची हो गई और उसकी दोनों जांघे, जघन-स्थल और योनि पूर्ण रूप से नग्न हो गई थी!

टाँगें चौड़ी करने के कारण उसकी योनि के होंठ भी खुल गए थे और ऐसा लग रहा था की जैसे वह मुझे उसमे समाने का निमंत्रण दे रही थी!
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ऐसा दृश्य देख कर कोई साधू संत भी उत्तेजित हो जाता, मैं तो सिर्फ एक साधारण इंसान ही था!

जब मैं अपने पर और अधिक संयम नहीं रख सका तब मैं उसके साथ वाले बैड पर उसकी ओर मुँह कर के लेट गया।

मेरे लेटते ही नेहा ने अपनी करवट मेरी और बदल ली और सरक कर बिल्कुल मेरे करीब आ गई।

उसके मेरी ओर करवट करके लेटने से उसकी नाइटी का गला नीचे लटक गया था और उसमें से मुझे उसके स्तन नज़र आने लगे थे!

उसके स्तनों में कसाव था और वह इतने सख्त थे की उसके झुकने के बावजूद भी उनमें कोई लटकन दिखाई नहीं दे रही थी।

मेरा मन कर रहा था कि मैं हाथ बढ़ा कर उसे दोनों स्तनों को पकड़ कर मसल दूँ लेकिन अपने पर नियंत्रण रख कर लेटा रहा।

कुछ देर वह जब कुछ नहीं बोली तब मैंने नेहा के चेहरे की ओर देखा तो पाया कि वह मेरे लिंग के कारण हुए मेरे पजामे के उभार को टकटकी लगा कर देख रही थी!

मुझसे रहा नहीं गया और उससे पूछा- क्या देख रही हो?

वह बोली- कुछ नहीं, तुम्हारा वह देख रही थी।

मैंने अनजान बनते हुए कहा- मेरा क्या देख रही थी?

उसने कहा- तुम्हारा लिंग देखने की कोशिश कर रही थी! वही लिंग जिस में से तुम मूत्र विसर्जन करते हो।

मैं बोला- तुम उसे कैसे देख सकती हो इस समय तो वह पजामे में बंद है, और तुम उसे क्यों देखा चाहती हो?

वह तुरंत बोली- क्योंकि तुम मेरी योनि देख चुके हो इसलिए अब मुझे तुम्हारा लिंग देखने का पूरा हक है।

मैंने जब अपने लिंग को अपनी दोनों जाँघों के बीच में करके दबाने लगा तब नेहा ने मुझे टोका और बोली– रवि, थोड़ा रुको इसे अन्दर मत दबाओ! मैंने तुम्हें पहले भी कहा है कि मुझे इसे देखने का पूरा हक है इसलिए बेहतर होगा की तुम खुद ही अपना पजामा उतार कर इसे बाहर निकाल कर मुझे दिखा दो।

मैंने उससे पूछा- लेकिन मूत्र विसर्जन के समय तुम मेरा लिंग देख चुकी हो फिर अब क्यों देखना चाहती हो?

नेहा बोली- तब तो बहुत दूर से देखा था! मैं इसे अब करीब से देखना चाहती हूँ! मुझे तुम्हारा लिंग मेरे पति के लिंग से कुछ भिन्न लगता है।

मैं चुपचाप लेटा कुछ देर सोचता रहा और फिर अंतिम निर्णय ले कर अपना पजामा उतार कर उसके सामने नग्न हो कर लेट गया और बोला- यह लो, जी भर कर देख लो इसे।

तब नेहा ने झुक कर मेरे लिंग को देखा और मुझसे पूछा- क्या मैं इसे हाथ लगा सकती हूँ।

मैं झट से बोल उठा- नहीं, क्या मैंने अभी तक तुम्हारे किसी भी अंग को छुआ है?

नेहा बोली- रवि, मैं मानती हूँ कि तुमने अभी तक मुझे कहीं भी नहीं छुआ है! लेकिन तुमने अभी तक मुझे या मेरे किसी भी अंग को छूने कोशिश भी नहीं की है और न ही मुझसे ऐसा करने की अनुमति ही मांगी है।

यह सुन कर मैंने नेहा से कहा- अगर तुम मुझे अपने शरीर के अंगों को हाथ लगाने की अनुमति देती हो तभी मैं तुम्हें अपने लिंग को हाथ लगाने दूंगा।

मेरी बात सुनते ही नेहा ने झट से मेरा लिंग पकड़ कर बोली- तुम्हारे लिंग को अपने हाथ में ले कर मैं तुम्हें आज और अभी से तुम्हें अपने शरीर के गुप्तांगों सहित मेरे हर अंग को छूने की अनुमति देती हूँ।

नेहा द्वारा मेरे लिंग को छूने से मेरे लिंग में रक्त का बहाव बढ़ गया था और उसमें चेतना आने लगी थी!

देखते ही देखते मेरा लिंग नेहा के हाथ में ही तन कर कड़क हो गया और उसके हाथ में मेरे कड़क लिंग को देखकर थोड़ी शर्म महसूस कर रहा था।

नेहा ने मेरे लिंग को उलट पलट कर देखा और फिर उसके ऊपर की चर्म को पीछे हटा कर मेरा लिंग मुंड बाहर निकाल दिया और उसे गौर से देखने लगी।

नेहा को ऐसा करते देख कर मैंने उससे पूछ लिया- क्या, तुमने कभी किसी मर्द का लिंग नहीं देखा है? क्या तुम्हें अपने पति का लिंग देखने को नहीं मिलता जो मेरा लिंग इतने गौर से देख रही हो?

नेहा बोली- मैंने आज तक सिर्फ अपने पति का लिंग ही देखा है! तुम दूसरे मर्द हो जिसका लिंग मैं इतने करीब से देख और छू रही हूँ! मुझे तुम्हारा लिंग मेरे पति के लिंग से कुछ भिन्न सा दिख रहा है।

मैंने तुरंत पूछ लिया- तुम्हें मेरे लिंग और तुम्हारे पति के लिंग से क्या भिन्नता दिखाई दी है?

तब नेहा ने मेरे लिंग को पकड़े हुए ही सरकते हुए मेरे बैड पर आ कर लेट गई और बोली- मेरे पति का लिंग तुम्हारे लिंग से कुछ बड़ा लेकिन पतला लगता है! मेरे पति का लिंग साढ़े छह इंच लम्बा और लगभग एक इंच या सवा इंच मोटा होगा लेकिन तुम्हारा तो उनसे काफी बड़ा लगता है।

मैंने यह सुन कर उसे बताया- नेहा, मेरा लिंग तो तुम्हारे पति के लिंग से छोटा है यह तो सिर्फ छह इंच लम्बा ही है चाहो तो नाप लो! हाँ मेरा लिंग तुम्हारे पति के लिंग से मोटा ज़रूर होगा है क्योंकि इसकी मोटाई ढाई इंच है।

यह सुन नेहा बोली- तुम्हारे लिंग के ऊपर जो चर्म है वह पीछे करके तुम्हारा लिंग मुंड बाहर निकला जा सकता है लेकिन मेरे पति के साथ मैं ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि उन्हें बहुत ही पीड़ा होने लगती है! एक बात और भी है कि तुम्हारा लिंग बहुत ही सख्त है बिल्कुल लोहे की रॉड की तरह और मैं उसे दबा भी नहीं पा रही हूँ! लेकिन मेरे पति का लिंग थोड़ा नर्म रहता है, खड़ा होने के बाबजूद मैं उसे दबा कर मोड़ सकती हूँ।

नेहा की बात सुन कर मैंने उसे समझाने के लिए कहा- नेहा देखो, जैसे हर इंसान की आकृति और प्रकृति में भिन्नता होती है उसी तरह उसके अंगों आकृति और प्रकृति में भी भिन्नता होती है।

नेहा ने मेरी बात बहुत ध्यान से सुनी और पूछा- जैसे हर इंसान के कर्म भिन्न होते है और उसे उन कर्मों का फल भी भिन्न मिलता है?

मैंने उसकी बात सुन कर बोला- हाँ नेहा, तुमने बिल्कुल सही समझा है।

तब नेहा ने प्रश्न किया- इस आकृति, प्रकृति, कर्म और फल आदि की भिन्नता को कैसे परखा जा सकता है?

मैं उसके प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा- उनकी भिन्नता को देख, छू, सूँघ, चख और कार्यशीलता का अनुभव करके ही परखा जा सकता है!

तब नेहा उचक कर बैठ गई और मेरे लिंग को पकड़ कर झुकी तथा उसे सूंघा, चूमा और फिर लिंग के छिद्र में से निकली पूर्वरस वीर्य की दो बूँद अपनी जीभ से चाटने के बाद बोली- मैंने अपने पति के और तुम्हारे लिंग को देख, छू, सूँघ और चख कर उनकी भिन्नता को परख लिया है! अब मैं इन दोनों की कार्यशीलता में भिन्नता का अनुभव भी करना चाहती हूँ! मुझे अपने पति के लिंग की कार्यशीलता का अनुभव तो पहले से ही है, क्या तुम मुझे अपने लिंग की कार्यशीलता का अनुभव करवा सकते हो?

नेहा की बात सुन कर अवाक रह गया और उससे पूछ लिया- तुम क्या कहना चाहती हो मैं नहीं समझा! मैं तुम्हें वह अनुभव कैसे करवाऊँ?
तो उसने झट अपनी नाइटी उतार कर दूर फैंक दी और पूर्ण नग्न हो कर मेरे से चिपट कर लेटते हुए कहा- बस तुम्हें मेरे साथ सम्भोग कर लो तब दोनों में तुलना के लिए मुझे तुम्हारे लिंग की कार्यशीलता का भी अनुभव हो जाएगा।

मैंने गुस्सा दिखाते हुए उसे कहा- नेहा, क्या तुम होश में तो हो? तुम्हें पता तो है की तुम क्या कह रही हो? तुम एक शादी शुदा नारी हो और तुम एक पर-पुरुष को तुम्हारे साथ सम्भोग करने के लिए कह रही हो?

नेहा ने तुरंत उत्तर दिया- रवि, तुम चिंता मत करो मैं बिलकुल होश में हूँ! मैं तुम्हें बता चुकी हूँ कि मुझे अपने पति के लिंग की कार्यशीलता की तुलना तुम्हारे लिंग की कार्यशीलता से करनी है! एक और बात भी बताना चाहूंगी की मुझे रात में बिना सम्भोग किये नींद नहीं आएगी और उसके लिए आज कि रात मेरे पति तो मेरे पास नहीं हैं! इसीलिए तो तुमसे अनुरोध कर रही हूँ कि मेरे साथ सम्भोग करो ताकि मुझे नींद आ जाये।

इससे पहले कि मैं उसे कोई उत्तर देता उसने मेरे तने हुए लिंग को अपनी जाँघों के बीच अपनी योनि के पास दबा लिया!
मेरे दोनों हाथों को पकड़ कर अपने स्तनों पर रख दिया तथा अपने होंठों को मेरे होंठों पर रख कर मेरा चुम्बन लेना शुरू कर दिया!

मैं उसकी इस हरकत से इतना उत्तेजित हो गया कि मैं उसका कोई प्रतिरोध नहीं कर सका और उसका साथ देने लगा!

मैंने उसके होंठों को चूसते हुए अपने लिंग को उसकी जाँघों में से निकाल कर उसके हाथ में दे दिया और उसके स्तनों को अपने हाथों से तथा उसकी चुचूकों को अपनी उँगलियों से मसलने लगा।

मेरी इस क्रिया से नेहा उत्तेजित होने लगी और हल्की हल्की सिसकारियाँ लेने लगी।

उधर नेहा द्वारा मेरे लिंग को हिला हिला कर मसलने के कारण वह एकदम तन कर कड़क हो गया था।

दस मिनट चुम्बन करने के बाद जब दोनों की साँसें फूलने लगी तब हम अलग हुए और तब नेहा ने मेरे लिंग को दबा कर उसके छिद्र में देखा तथा अपनी योनि में ऊँगली डाल कर बाहर निकाल कर देखी।

फिर मुझे अपनी गीली ऊँगली दिखाते हुए बोली- मेरी योनि तो गीली भी हो गई है, लेकिन तुम्हारे लिंग से अभी तक वीर्यरस की एक भी बूँद नहीं निकली।

मैंने हँसते हुए कहा- इस समय मेरा लिंग दांव पर लगा हुआ है और उसे अपनी कार्यशीलता का सबसे अच्छा प्रदर्शन देना है इसलिए उसे सयम तो रखना ही पड़ेगा।

इस पर वह बोली- मुझे तुम्हारे असीम संयम का पूरा अनुभव है और मैं उसकी दाद भी देती हूँ! लेकिन मुझे तो यह अनुभव करना है कि मुझे तथा मेरी योनि को तुमसे और तुम्हारे लिंग से मेरे पति की तुलना में कितना अधिक आनंद और संतुष्टि प्राप्त होती है या नहीं।

नेहा की बात सुन कर मेरी उत्तेजना थोड़ी और बढ़ गई तब मैंने नेहा के स्तनों को हाथों से दबाते हुए उसके दोनों चुचूकों को बारी बारी से चूसने लगा।

चुचूक चूसना शुरू करते ही नेहा की उत्तेजना में बहुत वृद्धि हो गई और वह पहले से अधिक ऊँची आवाज़ में सिसकारियाँ लेने लगी।

मैंने उससे पूछा- अभी तक तो तुम ठीक ठाक थी अब इतनी ऊँची आवाजें क्यों निकाल रही हो?

वह बोली- जब से तुमने मेरी चुचूक चूसनी शुरू करी है तब से मेरी योनि के अन्दर बहुत ही गुदगुदी और हलचल शुरू हो गई है! मेरी इच्छा हो रही है कि मैं अपनी योनि में कुछ डाल कर उस गुदगुदी और हलचल को शांत करूँ।

नेहा की यह बात सुन कर मैंने उसके एक स्तन को चूसते हुए, अपने एक हाथ से उसके दूसरे स्तन को मसलने लगा तथा अपने दूसरे हाथ से उसकी योनि की मसलने लगा!

पहले तो मैंने उसकी योनि के होंठों को मसला फिर उसकी योनि के भगनासा को उँगलियों से रगड़ा और उसके बाद दो ऊँगलियाँ उसकी योनि के अंदर बाहर करते हुए उसके जी-स्पॉट को सहलाया!

जब मेरी उँगलियाँ योनि के अन्दर गई तब मुझे महसूस हुआ कि नेहा को थोड़ी राहत हुई है लेकिन जैसे ही जी-स्पॉट को सहलाना शुरू किया तो वह बहुत अधिक उत्तेजित हो गई अपने कूल्हे उठा उठा कर बहुत ही ऊँची आवाज़ में लम्बी लम्बी सिसकारियाँ लेने लगी।

वह चिल्ला कर कहने लगी- यह तुम क्या कर रहे हो? तुमने तो मेरी योनि की गुदगुदी और हलचल कम करने के बजाय उसमें आग लगा दी है! जल्दी से कुछ करो नहीं तो मेरे को कुछ हो जाएगा, मैं पागल हो जाऊँगी।

मुझे नेहा के स्तनों को चूसते, मसलते और योनि में ऊँगली करते हुए दस मिनट से अधिक हो चुके थे इसलिए मैंने वह सब बंद करके नेहा को सीधा लिटाया और उसके ऊपर पलटी होकर लेट गया।

फिर मैंने अपने लिंग को नेहा के मुँह में दे दिया और उसे चूसने को कहा और मैं खुद उसकी योनि के ऊपर मुँह रख कर उसके भगनासा को जीभ से सहलाने लगा!

बीच बीच में मैं अपनी जीभ को योनि के अन्दर तक डाल कर उसके जी-स्पॉट को भी सहला देता!

अब तो नेहा को उत्तेजना की आग से कुछ राहत मिलने के बजाय और भी अधिक उत्तेजना का सामना करना पड़ रहा था।

मेरा लिंग चूसते हुए वह लगातार बहुत ही ऊँचे स्वर में गूं….. गूं…. की आवाज़े निकालती रही! पांच मिनट के बाद उसने मेरा लिंग अपने मुँह से निकाल कर कहने लगी- रवि, अब यह चूसना चुसाना बंद करो और जल्दी से मेरी समस्या का हल करो! तुम अपना लिंग मेरी योनि में डाल कर उसी से ही क्यों नहीं चुसवा लेते? इससे दोनों को ही राहत और संतुष्टि मिल जाएगी।

क्योंकि हमें एक साथ मैथुन-पूर्व क्रियाएँ करते हुए पैंतीस मिनट से अधिक हो चुके थे इसलिए मैंने नेहा के कहे अनुसार मुझे उसकी योनि में अपने लिंग को प्रवेश करा कर उसके साथ सम्भोग शुरू करने का निर्णय लिया!

मैं उसके ऊपर से हट कर उसकी टांगों के बीच में जाकर बैठ गया और अपने तने हुए अत्यंत ही कड़क लिंग को पकड़ कर उसकी योनि के होंठों और भगनासा पर रगड़ने लगा!

मेरी इस क्रिया से नेहा की उत्तेजना और भी प्रबल हो उठी थी और वह चीखने लगी- रवि, क्यों मुझे रहे हो? खुद तो मज़े ले रहे हो और मुझे तरसा रहे हो! मैं अब और सहन नहीं कर सकती! तुम्हें मेरी कसम है अब जल्दी से अपने अग्निशमन उपकरण का प्रयोग करके मेरी योनि में लगी आग को बुझाओ।

मैंने हँसते हुए बोला- लो मेरी सरकार, जैसी तुम्हारी आज्ञा।

कहानी का अगला भाग: गुसलखाने का बंद दरवाज़ा खोला-6

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