गुसलखाने का बंद दरवाज़ा खोला-4

(Bathroom Ka Band Darwaja Khola-4)

टी पी एल 2014-12-22 Comments

कहानी का तीसरा भाग: गुसलखाने का बंद दरवाज़ा खोला-3

मुझे भी मूत्र विसर्जन के लिए गुसलखाने जाना था मैं वहीं उसके बाहर आने का इंतज़ार करता रहा।

कुछ क्षणों के बाद नेहा अपनी सलवार का नाड़ा बांधती हुई बाहर निकली और मुझे वहाँ खड़ा देख कर थोड़ा झिझकी और फिर मुस्कराते हुए मुझे गुसलखाने में जाने का रास्ता दे दिया।

मैं जब मूत्र विसर्जन कर रहा था तब मैंने तिरछी नजरों से दीवार पर लगे आईने में नेहा की छवि को देखा जो दरवाज़े में से गुसलखाने के अन्दर झांक रही थी।

मैं समझ गया कि वह क्या देखना चाहती है इसलिए मैं थोड़ा घूम गया ताकि उसे मेरा लिंग अच्छे से दिख जाए!

मूत्र विसर्जन के बाद जब मैं गुसलखाने से बाहर आया तो नेहा को वहाँ नहीं देख कर समझ गया कि वह बैठक में भाग गई होगी।

उसके बाद हम दोनों ने अपनी अपनी लिस्ट के हिसाब से सामान छांटा और नेहा अपना सामान ले कर अपने फ्लैट में चली गई!

अगले दो दिन नेहा मुझे कभी कभी बालकनी में नज़र आ जाती और हमारी कुछ देर इधर उधर की बातें हो जाती।

तीसरे दिन मैं अपने कमरे में बैठा लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था, तब नेहा की आवाज़ आई।

इससे पहले की मैं उठ कर बालकनी में पहुँचता, नेहा बालकनी लाँघ कर मेरे कमरे के दरवाज़े को खटखटाने लगी!

मैंने दरवाज़ा खोला तो देखा कि वह हाँफ रही थी तब मैंने उसे आराम से बैठ कर बात करने को कहा तो वह कमरे के अंदर आकर मेरे बैड पर ही बैठ गई।

थोड़ी देर के बाद जब मैंने देखा की उसका हाँफना बंद हो गया है तो पूछा- क्या बात है? इतना हाँफ क्यों रही हो?

जैसे ही उसकी सांस में सांस में आई तब वह बोली- आज मैं बहुत खुश हूँ और वह ख़ुशी तुम्हारे साथ साझा करना चाहती थी इसलिए भागी भागी चली आई! मेरी नौकरी का नियुक्ति पत्र आ गया है और तीन दिनों के बाद सोमवार को मुझे उसे ज्वाइन करना है।

मैंने नेहा से पूछा- कौन सी कंपनी से नियुक्ति पत्र आया है?

तब उसने अपनी नाइटी के गले में हाथ डाला और ब्रा मे फसा एक कागज़ निकाल कर मेरे हाथ में रख दिया।

मैंने जब उसे खोल कर पढ़ा तो देखा कि उसे भी उसी कंपनी में नौकरी मिली है जहाँ मुझको सोमवार को जाना था।

जब मैंने नेहा को बताया कि मुझे भी उसी कंपनी में नौकरी मिली हुई है और मैं भी सोमवार को वहीं ज्वाइन करूँगा तो वह ख़ुशी के मारे उछल पड़ी और मुझ से लिपट गई।

मैंने उसे अपने से अलग किया और फिर हम काफी देर बैड पर ही बैठे अपनी अपनी नौकरी के भविष्य के बारे में बाते करते रहे।

अगले दिन रविवार को भईया, भाभी और मैं जब बालकनी में बैठे थे तब नेहा बालकनी में आई और हमें वहाँ बैठा देख कर तुरंत वापिस अन्दर चली गई।

कुछ क्षणों के बाद वह अपने पति के साथ बाहर आई तब नेहा के पति ने भईया, भाभी का अभिनन्दन किया और मुझसे हाथ मिलाया तथा अपना परिचय दिया।

नेहा का पति कद में नेहा से छोटा लग रहा था और रंग में भी सांवला एवं देखने में भी बदसूरत लग रहा था।

मुझे बहुत ही हैरानी हो रही थी की नेहा ने उस जैसे लंगूर से शादी के लिए हाँ क्यों की होगी।

परिचय हो जाने के बाद नेहा के पति ने मुझसे कहा- नेहा ने मुझे बताया कि तुम्हें भी उसी कंपनी में नौकरी मिली है जिसमें नेहा को मिली है। कल सुबह कंपनी के काम से मुझे चेन्नई जाना है इसलिए मैं कल उसे उसको ऑफिस छोड़ने नहीं जा सकता! अगर तुम्हें कोई परेशानी नहीं हो तो क्या तुम कल उसे अपने साथ ऑफिस ले जा सकते हो?

मैंने उत्तर में कहा- मुझे इसमें कोई परेशानी नहीं होगी! लेकिन मैं तो बाइक से जाऊँगा इसलिए अगर आपकी पत्नी को कोई परेशानी और आपत्ति नहीं हो तो वह अवश्य मेरे साथ चल सकती हैं।

मेरी बात सुन कर मेरी भाभी ने तुरंत कहा- रवि, अगर सोमवार को तुम नेहा को अपने साथ ले कर जाने वाले हो तो मेरी कार में चले जाना।

फिर भाभी ने नेहा के पति की ओर घूमते हुए बोली- भाई साहिब, आप चिंता मत करें! सोमवार को मैं कार नहीं ले जाऊँगी इसलिए यह दोनों आराम से उसमे नई नौकरी ज्वाइन करने जा सकते हैं।

इसके बाद नेहा और उसके पति ने भईया, भाभी और मेरा धन्यवाद किया और अन्दर चले गए।

हम भी कुछ देर और बालकनी में बैठ कर अपने अपने कमरे में चले गए।

शाम को मुझे नेहा की पुकार सुनाई दी तब मैं बालकनी में गया तो वह मुझसे सुबह ऑफिस जाने का कार्यकर्म पूछने लगी।

मैंने उसे बताया कि मेरे नियुक्ति पत्र में तो साढ़े नौ का समय दे रखा है, इसलिए अगर हम नौ बजे भी चलेंगे तो भी समय से पहले ही पहुँच जायेंगे।

तब उसने कहा कि वह नौ बजे से पहले ही तैयार हो कर हमारे फ्लैट पर पहुँच जाएगी!

सोमवार सुबह ठीक नौ बजे जब मैं घर से निकल रहा था, तब नेहा भी अपने फ्लैट से निकल कर मेरे पास आ गई और हम दोनों तय कार्यक्रम के अनुसार ऑफिस चले गए।

शाम को जब हम दोनों ऑफिस से घर लौटे तब तक भईया और भाभी नहीं आये थे इसलिए मैं नेहा के अनुरोध पर सीधा उसके फ्लैट में ही चले गए।

अंदर जाकर नेहा ने मुझे बैठने के लिए कहा और खुद अपने कमरे में चली गई।

मैं जानता था कि वह अन्दर सीधा गुसलखाने में जाएगी इसलिए दबे पाँव मैं भी उसके पीछे उसके कमरे में चला गया।

कमरे के अंदर नेहा को नहीं देख और गुसलखाने का दरवाज़ा खुला देख कर मैं थोड़ा ओट में रहते हुए अंदर झाँका तो देखा कि नेहा अपनी कमीज़ उतार चुकी थी और सलवार उतार रही थी!

उसके बाद नेहा ने अपनी ब्रा और पैंटी भी उतारी और सभी कपड़े एकत्रित करके कोने में रखी मैले कपड़ों को टोकरी में डाल दिए!
फिर पूर्ण नग्न रूप में ही पॉट पर बैठ कर मूत्र विसर्जन किया और अपनी योनि को धोया एवं पौंछा!

जब वह अपने हाथ से अपनी योनि के होंठ चौड़े करके धो एवं पोंछ रही थी तब उसकी गुलाबी रंग की पावरोटी के अंदर तक की झलक देखने को मिली!

यह दृश्य देख कर जब मेरा लिंग तन कर क़ुतुब मीनार की तरह खड़ा हो गया तब मैं वहाँ से हट गया।

लेकिन हटने से पहले मैंने देख लिया था कि नेहा ने बिना ब्रा और पैंटी पहने ही नाइटी पहन ली थी और अपना मुख धो रही थी।

मैं बैठक में जाकर बैठ गया और अपने लिंग तो ठंडा करने का प्रयत्न करने लगा।

कुछ देर के बाद नेहा रसोई में जा कर दोनों के लिए काली चाय बना कर ले आई।

हम दोनों चाय पी रहे थे तब नेहा ने यह कह कर मुझे चौंका दिया- रवि, उस दिन तो तुमने मुझे पूर्ण नग्न देख ही लिया था तो आज फिर क्यों छुप कर देख रहे थे? अगर अधिक मन कर ही रहा था तो मुझे कह देते मैं एक बार फिर से तुम्हे नग्न हो कर अपना सब कुछ दिखा देती!

मैं कुछ क्षण तो चुप रहा और फिर उससे कहा- मैंने तो यह छुपा छिपी का खेल तुमसे ही सीखा है! उस दिन जब मैं मूत्र विसर्जन कर रहा था तब तुमने भी तो मुझे छुप कर देखा था!

तुम भी अगर मुझे कह देती तो मैं भी नग्न होकर तुम्हें अपना सब कुछ दिखा देता!

मेरी बात सुन कर नेहा झेंप गई और बोली- तुम्हे कैसे पता कि मैं तुम्हें देख रही थी?

मैंने उत्तर दिया- मैंने तुम्हारी छवि दिवार पर लगे आईने में देख ली थी इसीलिए तो मैं थोड़ा घूम गया था ताकि तुम्हे मेरे लिंग के पूर्ण दर्शन अच्छी तरह से हो जाएँ।

मेरा उत्तर सुन कर उसका चहरा शर्म से लाल हो गया और उसने अपनी आँखे नीची कर ली तथा अपने को सामान्य करने के लिए वहाँ से अपने कमरे में जाने लगी।

तब मैं भी उठ कर खड़ा हुआ और उसे ‘बाई’ कहता हुआ अपने घर आ गया।

घर पहुँचा तो भईया और भाभी आ चुके थे इसलिए मैं उनके साथ बातें करने में व्यस्त हो गया और इसी में रात हो गई।

खाना खाने के बाद रात साढ़े नौ बजे मैं अपने बिस्तर में सोने के लिए लेटा हुआ था जब मेरे मोबाइल पर नेहा का फोन आया- रवि, एक बहुत ज़रूरी काम है! तुम इसी समय मेरे घर आ जाओ।

मैंने उससे पूछा- नेहा, क्या बात है जो इस समय इतनी रात को मुझे अपने घर बुला रही हो? अगर भईया भाभी ने पूछा तो मैं उन्हें क्या जवाब दूंगा कोई कारण तो बताओ।

नेहा ने उत्तर दिया- तुम्हें उन्हें बताने की कोई ज़रुरत नहीं है! तुम बस अभी बालकनी के रास्ते से मेरे घर आ जाओ! मैं बालकनी का दरवाज़ा खोल देती हूँ तुम बस उसे धकेल कर अंदर आ जाना।

मेरे बार बार पूछने पर भी नेहा ने कोई कारण नहीं बताया।

मैं कुछ देर सोचने के बाद बिस्तर से उठ कर भईया और भाभी को देखने व उनसे बात करने गया।

वे दोनों सो चुके थे क्योंकि उनके कमरे का दरवाज़ा बंद था और कमरे में रोशनी भी नहीं थी।

मैं अपने कमरे में आकर दरवाज़ा अन्दर से अच्छी तरह से बंद कर के अँधेरे में बालकनी लांघ कर नेहा के घर पहुँचा।

जैसे ही मैंने नेहा के कमरे का दरवाज़े खटखटाया तो अन्दर से उसकी आवाज़ आई- दरवाज़ा खुला है! अंदर आ जाओ और दरवाज़े की चिटकनी लगाते आना।

मैं दरवाज़े को धकेल कर अंदर चला गया और फिर उसे बंद कर उसमे चिटकनी लगा दी!

अंदर उस कमरे में अँधेरा था लेकिन नेहा के बैडरूम में से रोशनी आ रही थी!

मेरे पूछने पर की वह कहाँ है नेहा बोली- मैं अपने कमरे में हूँ तुम यहीं आ जाओ।

नेहा के कहने पर जब मैं उसके कमरे के अन्दर पहुँचा तो देखा कि…

कहानी का अगला भाग: गुसलखाने का बंद दरवाज़ा खोला-5

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