गुसलखाने का बंद दरवाज़ा खोला-3

(Bathroom Ka Band Darwaja Khola-3)

टी पी एल 2014-12-21 Comments

कहानी का दूसरा भाग: गुसलखाने का बंद दरवाज़ा खोला-2

मैंने स्टूल को भी उठाया और बालकनी लांघ कर अपने घर पहुँच गया!

घर के अन्दर जाने से पहले मैंने नेहा को एक बार पीछे मुड कर देखा और फिर उसे ‘बाई’ कह कर घर के अन्दर चला गया!

घर पहुँचते ही मैंने अपनी टी-शर्ट उतारी और उसमे से नेहा की महक को सूंघने लगा।

उस टी-शर्ट में जहाँ जहाँ पर नेहा स्तन छुए थे उन जगहों को चूमा!

फिर मैंने उस टी-शर्ट को दोबारा पहन लिया ताकि मुझे ऐसा एहसास होता रहे कि मैंने नेहा को अपने साथ चिपका लिया है!

मैं नेहा की बातें सुन कर अब अपना संयम खो चुका था इसलिए गुसलखाने में जा कर हस्त-मैथुन किया और मानसिक एवं शारीरिक तनाव को ढीला किया।

अगले दिन सुबह जब मैं उठा तो मौसम बहुत ही सुहावना था क्योंकि धूप निकली हुई थी और आकाश में छोटे छोटे बादलों के टुकड़े हल्की हवा में टहल रहे थे।

मैं जब बालकनी में आया तो मैंने नेहा को अपनी बालकनी में बैठे देखा।

मुझे देखते ही उसके मुस्करा कर कहा- शुभ दिवस, रवि!

मैंने भी उत्तर में कहा- शुभ दिवस, नेहा! तुम कैसी हो?

उसने कहा- मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ तुम कैसे हो?

मैंने हँसते हुए कहा- मैं भी ठीक हूँ! आज तुम कौन से गुसलखाने को बंद कर रही हो?

नेहा ने मेरी बात सुन कर मुझे घूरते हुए कहा- क्या मतलब? क्या मैं रोज़ ही गुसलखाने बंद करती रहती हूँ?

मैंने कह दिया- नहीं, मैंने तो वैसे ही पूछ लिया था! आज तो तुम अपने गुसलखाने में बंद होने से पहले अपने कपड़े साथ ले लेना क्योंकि आज मदद के लिए मेरी सेवायें उपलब्ध नहीं होंगी।

वह गंभीर हो कर बोली- क्यों, क्या कहीं जा रहे हो?

मैंने तो सोचा था कि आज बालकनी में बैठ कर तुमसे पूरा दिन बातें करती रहूंगी।

मैंने उसकी गंभीरता पर हंसते हुए बोला- घर गृहस्थी का सामान लेने! आज सुबह काम पर जाने से पहले भाभी बाज़ार से सामान लाने की एक सूची बना कर दे गई है! मुझे समझ नहीं आ रहा कि यह सामान कहाँ से मिलता है।

मेरी बात सुन कर नेहा ने पूछा- क्या क्या सामान लाना है?

तो मैंने कमरे में जाते हुए उसे कहा- इधर अंदर आकर देख लो।

मेरे कहने पर नेहा बालकनी लांघ कर मेरे कमरे में आ गई और बोली- सामान की सूचि दिखाओ।

मैंने भाभी की लिखी हुई सूचि उसके हाथ में दे दी और वह उसे पढ़ने में मग्न हो गई।

क्योंकि मुझे मूत्र आया था इसलिए मैं उसे कमरे में छोड़ कर गुसलखाने में चला गया!

मूत्र विसर्जन से निपट कर मैं कमरे में आया तो नेहा से पूछा- क्या तुमने सामान की सूचि पढ़ ली है? यह सब सामान कहाँ मिलेगा?

मेरी बात सुन कर नेहा तुरंत बोली- हाँ पढ़ ली है! यह सभी सामान यहाँ से लगभग पांच किलो मीटर दूर एक मॉल और एक मेगा स्टोर है वहाँ से मिल जायेगा।

मैंने उससे कहा- क्या तुम मेरे साथ यह सामान खरीदने के लिए चल सकती हो? वापसी में हम दोपहर का खाना किसी अच्छे से रेस्टोरेंट में ही खा लेंगे।

नेहा कुछ देर सोचती रही फिर बोली- कब चलना है और कब तक वापिस आ जायेंगे।

मैंने कहा- ग्यारह बजे चलते है! एक बजे तक तो खरीदारी हो जाएगी, फिर खाना खायेंगे और दो बजे तक घर वापिस आ जायेंगे।

मेरी बात सुन कर वह बोली- ठीक है मैंने भी अपनी खरीदारी की लिस्ट बना लेती हूँ और ग्यारह बजे तक तैयार हो कर आती हूँ।

नेहा इतना कह कर बालकोनी लांघ कर अपने घर चली गई और मैं भी बाज़ार चलने के लिए तैयार होने लगा!

ग्यारह बजने में दस मिनट पर जब मेरे घर की घंटी बजी और मैंने दरवाज़ा खोला तो हुस्न की परी नेहा को अपने सामने खड़ा पाया!

किसी भी नारी का समय से पहले तैयार होना मैं पहली बार देख रहा था जिसके लिए मैंने उसे बधाई भी दी!

मैंने नेहा को बैठने को कहा और कपड़े बदलने के लिए अपने कमरे में गया तो वह भी मेरे पीछे आ गई और पूछने लगी- रवि हम सामान लेने कैसे जा रहे हैं?

तब मैंने उससे उल्टा प्रश्न कर दिया- तुम कैसे जाना चाहोगी? पैदल या बस पर?

नेहा गुस्से में बोली- पैदल या बस में तुम अकेले ही जाओ, मुझे नहीं जाना तुम्हारे साथ! सामान जहाँ मिलता है वह जगह बता दी है! अब तुम जानो और तुम्हारा काम मैं अपने घर जा रही हूँ।

मैंने उसका गुस्सा शांत करने के लिए उसके पास जा कर उसे बोला- सॉरी मैडम, मैंने तो मज़ाक में कह दिया था! मुझे नहीं मालूम था की तुम मज़ाक भी सहन नहीं कर सकती।

फिर बात आगे बढ़ता हुआ मैं बोला- तुम कैसे जाना चाहोगी? बाइक पर या कार में?

मेरी बात सुन कर वह बोली- बाइक और कार? वह किसकी है?

मैंने उसे बताया- आज भाभी, भईया के साथ, उनकी कार में ही गई है और अपनी कार मेरे लिए बाज़ार से सामान लाने के लिए छोड़ गई है! बाइक तो भईया की है जो अब उन्होंने चलाने के लिए मुझे दे दी है।

तब नेहा ने कहा- मुझे तो बाइक पर पीछे बैठ कर घूमने जाने में बहुत ही आनंद आता है लेकिन हमे तो सामान लाना है इसलिए कार पर चलेंगे तो सामान उसमें लाद कर लाने में सुविधा होगी।

यह बातें करते हुए मैं तैयार हो गया और उससे मैंने कहा- ठीक है तो मैं भाभी के कमरे से कार की चाबी ले कर आता हूँ तब तक तुम लिफ्ट को ऊपर बुला कर रोको।

चंद मिनटों के बाद हम दोनों घर को बंद कर एक साथ लिफ्ट से नीचे पहुँचे और कार में बैठ कर खरीदारी के लिए निकल पड़े!

मॉल और मेगा स्टोर से दोनों लिस्टों का सभी सामान खरीद कर जब मैंने अपने कार्ड से पैसे दिए तो नेहा ने नाराज़गी दिखाई तब मैंने उसे कह दिया कि दोपहर के खाने के पैसे वह देकर हिसाब पूरा कर दे!

फिर हमने नेहा द्वारा सुझाये रेस्टोरेंट में खाना खाया और दो बजे तक घर वापिस पहुँच गए।

घर पहुँच कर नेहा अपने फ्लैट में जाने लगी तब मैंने उसे कहा- दोनों का सामान आपस में मिल गया है इसलिए अन्दर बैठ कर उसे छांट लेते है फिर तुम उसे ले कर अपने घर चली जाना।

नेहा अच्छा कह कर बैठक में आ गई और अपना पर्स सोफे पर पटक कर सीधा मेरे कमरे में चली गई।

मैं हैरान सा उसके पीछे पीछे गया तो देखा कि वह अपनी सलवार का नाड़ा खोलते हुए मेरे गुसलखाने में चली गई।

मैं जब गुसलखाने के पास पहुँचा तो दरवाज़ा खुला पाया और अन्दर से ‘शूऊ… शूऊ…’ का मधुर संगीत सुनाई दिया।

मैं समझ गया कि नेहा मूत्र विसर्जन कर रही थी।

क्योंकि मुझे भी मूत्र विसर्जन के लिए गुसलखाने जाना था मैं वहीं उसके बाहर आने का इंतज़ार करता रहा।

कुछ क्षणों के बाद नेहा अपनी सलवार का नाड़ा बांधती हुई बाहर निकली और मुझे वहाँ खड़ा देख कर थोड़ा झिझकी और फिर मुस्कराते हुए मुझे गुसलखाने में जाने का रास्ता दे दिया।

मैं जब मूत्र विसर्जन कर रहा था तब मैंने तिरछी नजर से दीवार पर लगे आईने में नेहा की छवि को देखा जो दरवाज़े में से गुसलखाने के अन्दर झांक रही थी।

मैं समझ गया कि वह क्या देखना चाहती है इसलिए मैं थोड़ा घूम गया ताकि उसे मेरा लिंग अच्छे से दिख जाए!

मूत्र विसर्जन के बाद जब मैं गुसलखाने से बाहर आया तो नेहा को वहाँ नहीं देख कर समझ गया कि वह बैठक में भाग गई होगी।

कहानी का अगला भाग: गुसलखाने का बंद दरवाज़ा खोला-4

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top