चाची द्वारा संसर्ग की मनोकामना पूर्ति-1

(Chachi Dwara Sex Ki Manokamna Purti- Part 1)

This story is part of a series:

सम्पादिका : तृष्णा
प्रिय अन्तर्वासना के पाठको, कृपया मेरा अभिनन्दन स्वीकार करें !

मेरी पिछली रचनाएँ
बुआ का कृत्रिम लिंग
बुआ को मिला असली लिंग
और
पजामा ख़राब होने से बच गया
को पढ़ने और उसे पसंद करने तथा उन पर अपनी प्रतिक्रिया अथवा टिप्पणी भेजने के लिए बहुत धन्यवाद !

कई पाठकों ने उन रचनाओं के लिए मेरी प्रशंसा की थी जिसका मैं बिल्कुल भी हक़दार नहीं हूँ। मैं उन पाठकों को अवगत कराना चाहूँगा कि उन रचनाओं की प्रशंसा की असली हकदार लेखिका श्रीमती तृष्णा जी हैं जिनके सहयोग से ही मैं उन रचनाओं को लिखने की हिम्मत जुटा पाया था।

आज भी मेरी यह रचना जो मैं लिख कर अन्तर्वासना पर प्रकाशित कर रहा हूँ उसे श्रीमती तृष्णा जी ने ही सम्पादन और व्याकरण सुधार आदि कर के त्रुटियों रहित किया है तथा अन्तर्वासना पर प्रकाशित भी करवाया है।

आपका और अधिक समय व्यर्थ नहीं करते हुए अब मैं अपनी इस नई रचना का विवरण प्रारंभ करता हूँ!

अपने बारे में तो मैं आप सब को अपनी पहली रचना ‘बुआ का कृत्रिम लिंग’ में बता ही चुका हूँ। मैंने तब से लेकर आज तक अपनी बुआ के साथ यौन सम्बन्ध बना कर रखे हुए है और हम दोनों अधिकतर हर दूसरे दिन संध्या अथवा रात्रि के समय यौन संसर्ग कर ही लेते हैं।

लेकिन जब से मैं पिछले वर्ष की ग्रीष्म ऋतू और दशहरा की छुट्टियों के कुछ दिन अपने गाँव में बिता कर आया हूँ तब से मुझे बुआ के साथ संसर्ग करने से मुझे आनन्द की कुछ मी महसूस होने लगी है। मैं अब सप्ताह में दो बार सिर्फ बुआ का दिल रखने के लिए तथा उसी की संतुष्टि के लिए ही उसके साथ सम्भोग करता हूँ।

बुआ से संसर्ग में आनन्द की कमी का मुख्य कारण है दशहरा की छुट्टियों में गाँव में घटी वह घटना जिस का विवरण मैं अपनी नीचे लिखी इस रचना में कर रहा हूँ।

इंजीनियरिंग की प्रतिस्पर्धा परीक्षा की तैयारी करने लिए मुझे ग्रीष्म ऋतू की छुट्टियों के बीच में ही गाँव से वापिस शहर आना पड़ा था। बड़ी चाची के साथ संसर्ग की अतृप्त लालसा एवं तृष्णा के भाव मन और चहरे में लिए मैंने गाँव में सब से विदाई ली थी।
उस समय मैंने छोटे चाचा की मोटर साइकिल के पीछे बैठे कर जब पीछे मुड़ कर देखा था तब यही महसूस किया था कि बड़ी चाची आँखों ही आँखों में कह रही हो कि ‘अगली बार जब मेरे पास आओगे तो तुम्हारी हर मनोकामना ज़रूर पूरी कर दूंगी !’

शहर पहुँच कर बड़ी चाची की आँखों से दिए सन्देश से मेरा मन थोड़ा आश्वस्त तो हो गया था लेकिन मन की संतुष्टि के लिए वह सन्देश काफी नहीं था। वह अगली बार कब आएगी इसका मुझे कोई अंदेशा ही नहीं था लेकिन मन में एक अभिलाषा थी की वह समय जल्द से जल्द आ जायेगा।

अपनी लालसा एवं तृष्णा पूर्ति के लिए मैंने बुआ का सहारा लिया और दिन में दो दो बार भी उनसे संसर्ग किया। लेकिन फिर भी मुझे तृप्ति नहीं मिली और मन की अशांति बढ़ती गई तथा चाची की याद सताने लगी।

अगले एक माह तक मैं इंजीनियरिंग की प्रतिस्पर्धा परीक्षा की तैयारी करने में लगा रहा और बड़ी चाची के साथ फ़ोन या सन्देश द्वारा कोई भी वार्तालाप नहीं कर पाया। प्रतिस्पर्धा परीक्षा समाप्त होने के बाद जब मुझे बड़ी चाची की याद आई तो मैं उनसे मिलने के लिए बहुत व्याकुल हो गया लेकिन ग्रीष्म ऋतू की छुट्टियाँ समाप्त होने और कक्षाएँ प्रारंभ हो जाने के कारण मैं अपना मन मसोस कर रह गया।

दो माह तक मैं अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहा लेकिन फिर भी दिन रात बड़ी चाची को याद कर हस्त-मैथुन करता रहता था। बड़ी चाची ने मेरे मन पर ऐसी छाप छोड़ दी थी कि मैं जब भी बुआ के साथं संसर्ग करता था तो उस में भी बड़ी चाची का अक्स ही ढूँढता रहता था। तीन माह तक मैं चाची के साथ संसर्ग की अतृप्त लालसा एवं तृष्णा एवं व्याकुलता को मन में लिए दिन रात तड़पता रहता था।

गाँव से शहर आने के बाद तीन माह तक मेरा बड़ी चाची से किसी भी माध्यम से कोई भी सम्पर्क नहीं हुआ था। लेकिन सितम्बर माह के अंतिम सप्ताह में एक दिन अचानक ही मेरे मोबाइल पर बड़ी चाची का फोन आया।

मैंने उनसे बात की और उनके बेटे के स्वास्थ्य के बारे में पुछा तो उन्होंने बताया की वह अब बिल्कुल ठीक था। फिर मैंने गाँव के सभी परिवार वालों के बारे में पुछा तो उन्होंने बताया कि वह सब भी ठीक है!

फ़ोन पर बातें करते करते मैंने जब चाची कुछ दिनों के लिए हमारे पास शहर में आ कर रहने के लिए कहा तब चाची ने परिवार के उत्तरदायित्व को अपनी मजबूरी कह कर मेरी बात को टाल दिया। फिर चाची ने भी मेरे और परिवार के सभी सदस्यों के बारे में पुछा और कुछ देर इधर उधर की बातें करती रही।

फिर अचानक ही उन्होंने मुझसे पूछ लिया- शहर में भी तुम्हारा पजामा गन्दा होता है या नहीं?

अकस्मात उनके इस प्रश्न से मैं सकते में आ गया और थोड़ा शर्माते हुए उत्तर दे दिया- आप तो यहाँ मेरे पास हैं नहीं इसलिए आपकी याद आते ही मेरा पजामा तो अक्सर गन्दा हो जाता है।

मेरी यह बात सुन कर जब उन्होंने पूछा- क्या पजामा रोज़ गन्दा होता है?

तब मैंने कहा- जी हाँ आपको रोज़ याद करता हूँ इसलिए रोज़ ही गन्दा हो जाता है!

चाची ने कहा- तो इसका उपचार क्यों नहीं किया?

मैंने उत्तर दिया- मैं इसी के उपचार के लिए ही तो आप को शहर आमंत्रित कर रहा था !

मेरी बात सुन कर चाची चुप हो गई तब मैंने उनसे पूछ लिया- क्या आपके पाँव की मोच का दर्द ठीक है?

तो उन्होंने कहा- हाँ, वह तो ठीक है लकिन टांगों और जाँघों की दर्द बढ़ गई है।

मैंने तुरंत उत्तर दिया- आप टांगों और जाँघों का बादाम तेल से मर्दन कर लिया करो।

उन्होंने उत्तर में कहा- गाँव में ठीक से मर्दन करने वाला कोई है ही नहीं, क्यों नहीं दशहरे की छुट्टियों ने तुम मेरा मर्दन करने के लिए मेरे पास गाँव में आ जाते।

चाची की ओर से मुझे गाँव में आ कर रहने का न्यौता मिलते ही मैंने उनसे कहा- शायद माँ पापा नहीं आने देंगे।

तो उन्होंने कहा- मैं तुम्हारे दादाजी एवं दादीजी की ओर से संदेशा भिजवा दूंगी।

तब मैंने वार्तालाप को समाप्त करते हुए दशहरे की छुट्टियों में कुछ दिन उनके पास रहने की बात सहर्ष मान ली।

इसके बाद चाची का यह कहना ‘दशहरे की छुट्टियों में तुम मेरा मर्दन कर देना’ वाली बात के बारे में सोच सोच कर मेरा मन उनसे मिलने के लिए और भी अधिक व्याकुल हो गया था तथा उनसे शीघ्र मिलने की मेरी चाहत चरमसीमा पर पहुँच गई थी।

उस रात मैंने बुआ को बड़ी चाची ही समझ कर उनके साथ दो बार सम्भोग किया।

दशहरे की छुट्टियों से एक सप्ताह पहले दादाजी का फ़ोन आया और उन्होंने मेरे पापा को कहा- क्योंकि तुमने विवेक को ग्रीष्म ऋतू की छुट्टियों में गाँव से जल्दी वापिस बुला लिया था इसलिए अब तुम उसे दशहरे की दो सप्ताह की छुटियों में हमारे पास रहने के लिए गाँव भेज दो।

पापा ने शाम को जब यह बात माँ तथा मुझे बताई तो मेरे मन में प्रसन्नता की एक लहरें उठने लगी।

माँ ने भी दादाजी की बात का समर्थन करते हुए मुझे दशहरे की छुटियों में गाँव जाने के लिए कह दिया। पहले तो मैंने दिखावे के लिए उन्हें मना कर दिया लेकिन बाद में माँ के दुबारा कहने पर मैं गाँव जाने के लिए राज़ी हो गया !

अगले पांच दिनों में मैंने गाँव जाने की तैयारी पूरी कर ली तथा वहाँ बड़ी चाची के साथ क्या क्या करना है उसके ख्याली पुलाव भी बना लिए थे। गाँव जाने की ख़ुशी के मारे मेरे पाँव धरती पर नहीं पड़ रहे थे और इसके लिए मैं मन ही मन बड़ी चाची और दादाजी का दिल से धन्यवाद भी कर रहा था।

शुक्रवार को दोपहर तीन बजे जब मैं कॉलेज से घर पहुँचा तो बुआ को अपने कमरे में अर्ध-नग्न लेटे हुए देखा।

मैंने जब उनसे दोपहर के समय अर्ध-नग्न लेटने का कारण पुछा तो उन्होंने कहा- विवेक, अगले पन्द्रह दिनों के लिए तुम तो गाँव चले जाओगे तब मुझे यौन संतुष्टि देने वाला कोई नहीं होगा। मैं चाहती हूँ कि तुम मेरे साथ अभी यौन संसर्ग करो और मुझे पूर्ण संतुष्टि दे कर ही गाँव जाओ।

मैं उनकी इच्छा को टाल नहीं सका इसलिए मैंने तुरंत अपने कपड़े उतारे तथा उनकी बार और पैंटी उतारने में उनकी मदद करी तथा दोनों के नग्न होते ही मैं उनके ऊपर लेट गया। फिर मैंने उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उनके होंटों को चूस कर उनका चुम्बन लिया। बुआ भी मेरा साथ देने लगी और हम दोनों एक दूसरे के चुम्बनों का आदान प्रदान करने लगे तथा एक दूसरे की जीह्वा को भी चूसने लगे।

दस मिनट के बाद मैंने बुआ के होंठों को छोड़ कर उनके स्तनों पर आक्रमण कर दिया!

पहले मैंने उनके एक स्तन को अपने मुँह में ले लिया और उसकी चुचुक को चूसने लगा तथा दूसरे स्तन को अपने हाथों से मसलने लगा। थोड़ी देर के बाद मैंने बुआ के स्तनों को बदल कर अपने मुँह तथा हाथों से वही क्रिया को दोहराने लगा जिससे वह उतेजित हो कर सिसकारियाँ लेने लगी।

बुआ की सिसकारियाँ सुन कर मैंने अपने खाली हाथ को उनकी जाँघों के बीच में डाल कर उनकी योनि को सहलाने लगा। मेरे द्वारा बुआ की योनि और भंगाकुर को मसलने से वह अधिक उत्तेजित हो कर बहुत ही ऊँचे स्वर में सिसकारियाँ भरने लगी और उनकी योनि में से रस भी रिसने लगा!

उत्तेजना के कारण बुआ से रहा नहीं गया और उन्होंने मुझे अपने स्तनों से अलग किया और घूम कर लेट गई तथा मेरे लिंग को अपने मुँह में ले कर उसे चूसने लगी। फिर उन्होंने अपने हाथों से मेरे सिर को पकड़ कर अपनी जाँघों के बीच ले लिया और अपनी योनि मेरे मुँह पर रख दी।

मैं भी उनकी योनि को चाटने लगा तथा उनके भगांकुर पर अपनी जीह्वा से प्रहार करने लगा। हम दोनों को 69 स्तिथि में इस प्रक्रिया को करते हुए लगभग पांच मिनट ही हुए थे कि बुआ ने चिंघाड़ते हुए एक सिसकारी ली और उनकी योनि में से रस का झरना बह निकला।

बुआ की उस उत्तेजित स्तिथि को भांप कर मैं तुरुन्त उठ कर उनकी टांगों के बीच में पहुँच गया और अपने लोहे जैसे सख्त लिंग को उनकी योनि के मुँह पर रख कर एक धक्का दिया। मेरा लिंग एक तीर की तरह उनकी योनि में घुस गया और इसके साथ बुआ ने एक जोरदार चीख मारी तथा मुझे डांट दिया।

मैं उनकी डाँट पर ज्यादा ध्यान न देते हुए अपने लिंग को धक्के देकर बुआ की योनि के अन्दर बाहर करता रहा।

अगले दस मिनट तक मैं पहले तो धीमी गति से और फिर कुछ तेज़ गति से योनि मैथुन की क्रिया करता रहा।

इन दस मिनटों तक बुआ मेरे नीचे आराम से लेटी हुई अपनी मधुर सिसकारियों से मेरा मनोरंजन करती रही। उसके बाद बुआ अकस्मात ही बहुत ही तेजी से अपने नितम्ब उछाल उछाल कर मेरा साथ देने लगी थी।

पांच मिनट के इस तीव्र गति के यौन संसर्ग के समय ही बुआ का पूरा शरीर अकड़ गया और उनकी योनि ने मेरे लिंग को जकड़ लिया था।

मैं उस जकड़न के विरुद्ध जाकर धक्के लगता रहा और अत्याधिक रगड़ लगने के कारण मैं भी तुरंत चरमसीमा पर पहुँच गया और अपने वीर्य रस का संख्लन बुआ की सिकुड़ी हुई योनि में ही कर दिया।

मैं निढाल हो कर बुआ के उपर ही लेट गया और लगभग पांच मिनट तक लेटे रहने के बाद जब मैं उठने लगा तो बुआ ने मुझे दबोच लिया और मेरे पर चुम्बनों की बौछार कर दी। बुआ को यौन संसर्ग से पूर्ण संतुष्टि एवं आनन्द मिलने के कारण वह बहुत खुश थी और उसी ख़ुशी को वह अपने चुम्बनों के द्वारा प्रदर्शित कर रही थी। बुआ तो एक दौर और करना चाहती थी लेकिन मुझे देर हो रही थी इसलिए मैंने उत्तर में बुआ को एक लम्बा चुम्बन लिया और उठ कर खड़ा हो गया। इससे पहले बुआ कि दुसरे दौर के लिए दोबारा कहे मैंने उन्हें बिस्तर पर नग्न लेटा छोड़ कर अपने कपड़े पहने और तैयार हो कर कमरे से बाहर चला गया।

कहानी जारी रहेगी।
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