विजय पण्डित

यह कैसा मोड़-2

प्रेषक : विजय पण्डित “यह तो गार्डन है… किसी ने देख लिया तो बड़ी बदनामी होगी…” “तो फिर…?” “मौका तलाशते हैं… किसी होटल में चलें…?”

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बेदर्द चाची की अधूरी चुदाई

मेरी चाची मेरे साथ खूब खुल गई थी, मुझे बहुत प्यार करती थी. लेकिन चाची चोदने नहीं देती थी. एक बार मैंने चाची की चुदाई कर ही दी पर वो चुदाई अधूरी ही रही.

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मेरी प्यासी बहन की चूत

शादी के बाद दीदी और सेक्सी लगने लगी थी। उसकी चूचियां भारी हो गई थी, उसके चूतड़ और भर कर मस्त लचीले और गोल गोल से हो गये थे जो कमर के नीचे उसके कूल्हे मटकी से लगते थे।

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बहकता हुस्न

विजय पण्डित अहमदाबाद एक बहुत बड़ा शहर है, साबरमती के कारण उसकी सुन्दरता और बढ़ जाती है। मैं बिजनेस के सिलसिले में यहा आया था।

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